सोमवार, 17 अप्रैल 2017

           उत्तराखण्ड की लोककथा
       Folklore   of   Uttarakhand  India  by  
                  Dr. Umesh     Chamola
            वीरा बहिन और सात भाई
             ----------डॉ उमेश चमोला
Veera   sister  and  seven  brothers
      किसी गाँव में सात भाई रहते थे|उन्हें बहिन का न होना खटकता| वे सोचते,’’काश! उनकी भी कोई बहिन होती| वह रक्षा बंधन के दिन उनकी कलाई में राखी  बांधती| उन्हें भी बहिन का प्यार मिलता| उन सात भाइयों की माँ दीपा गर्भवती थी| “’’हमारा मन इस घर में नहीं लगता| हम इस घर में अब तभी कदम रखेंगे जब हमें बहिन के जन्म का समाचार प्राप्त होगा|’’
 यह कहकर वे सातों भाई जंगल जाने के लिए तैयार हो गए.
‘’ “ठीक है|अगर तुम्हारा भाई होगा तो मैं जंगल के टीले पर  पाटी (तख्ती ) और बोल्ख्या (लकड़ी से बनी वस्तु जिसके एक सिरे पर कटोरी का आकर और दूसरे सिरे पर  पकड़ने के लिए हैन्डल जैसा बना होता है|इसमें सफ़ेद मिट्टी (कमेडा) को पानी में घोला जाता है|इसमें कलम को डुबोकर तख्ती पर लिखा जाता था) रखूँगी| अगर तुम्हारी बहिन हुई तो टीले पर गंजाला (मूसल ) और छटणा (कूटे अनाज को छानने के लिए प्रयुक्त वस्तु) रखूँगी|’’
 यह कहकर उन सात भाइयों की माँ दीपा ने उन्हें जंगल के लिए विदा
  किया|
    जंगल पहुँच कर सातों भाइयों ने वहाँ लकड़ी और घास-फूस से छानी बनाई|वे जंगल से लकड़ी काटकर बेचते थे| इसी से अपना गुजारा करने लगे| जंगल में रहते-रहते काफी समय गुजर गया| एक दिन सबसे बड़ा भाई बोला ,’’ बहुत दिन हो गऐ,हमने घर की सुध नहीं ली|पता नहीं हमारा भाई हुआ होगा या बहिन? चलो जंगल के टीले में देखने जाएँ ,माँ ने वहाँ क्या रखा है?’’
 वे सातों भाई जंगल के उस टीले को देखने गए|वहाँ उन्हें पाटी और बोल्ख्या दिखाई दिए|उन्हें अपनी माँ का कहा याद आया,’’ अगर तुम्हारा भाई होगा तो मैं जंगल के टीले पर  पाटी  और बोल्ख्या रखूँगी|
 घर में भाई का जन्म हुआ है|यह जानकर सातों भाई उदास हो गए|वे जंगल अपनी छानी में वापस लौट आए| इधर उन सात भाइयों की माँ ने एक सुन्दर कन्या को जन्म दिया| उसका नाम वीरा रखा गया| वीरा बड़ी होती गयी| एक दिन वीरा सहेलियों के साथ घास लेने जंगल गई| उसकी सहेलियां अपने साथ खाने के लिए माल्टे(संतरे) भी ले गई| उनका एक माल्टा रास्ते में कहीं गिर गया| उन्होंने वीरा पर शक जताते हुए कहा,’’वीरा! कहीं रास्ते में चलते-चलते तूने हमारा माल्टा तो नहीं खाया?’’
 ‘’नहीं,मैंने नहीं खाया.’’-वीरा ने कहा|
‘’अपने भाइयों की सौगंध खाकर बोल कि तूने माल्टा नहीं खाया ?’’
‘’मैं भाइयों के सौगंध कैसे खाऊँ?मेरा तो कोई भाई है ही नहीं|’’-सहेलियों की बात को सुनकर वीरा बोली|
 उसकी सहेलियों ने उसे बता दिया कि उसके सात भाई हैं|वीरा अपने सात भाइयों के बारे में जानकर बहुत खुश हुई| वह जंगल से घास लेकर घर पहुँच गई | उसने माँ से अपने सात भाइयों के बारे में पूछा| उसकी माँ ने कहा,’’तेरे सात भाई हैं किन्तु वे कहाँ हैं यह मुझे भी पता नहीं है|’’
  वीरा के मन में अपने भाइयों से मिलने की उत्सुकता थी|वह एक कोने में उदास बैठी थी| थोड़ी देर में वहाँ पर एक गरुड़ आया| गरुड़ ने वीरा से पूछा;तुम उदास क्यों हो?’’
 ‘’गरुड़ मामा!मैंने आज तक अपने सात भाइयों  को नहीं देखा|वे इस दुनिया में होंगे या नहीं?’’-वीरा ने अपना दुःख व्यक्त किया|
 ‘’चिंता करने की कोई बात नहीं है| तुम्हारे सातों भाई इसी दुनियाँ में हैं| वे चाहते थे कि उनकी कोई बहिन हो| मैं तुम्हें अपने पंखों पर बिठाकर तुम्हारे भाइयों के पास ले चलूँगा|’’-गरुड़ ने उससे कहा.
 गरुड़ ने वीरा को यह बात भी बता दी कि उसकी माँ ने उसके भाइयों से कहा था कि अगर उनके घर में बेटी का जन्म होगा तो वे जंगल के टीले में गंजाला और छटणा रखेगी| उसकी माँ ने वीरा के जन्म होने पर टीले में गंजाला और छटणा ही रखा था किन्तु उनके किसी दुश्मन ने गंजाला और छटणा को हटाकर वहाँ पाटी और बोल्ख्या रखा जिससे उसके भाइयों को सच बात पता न चल सके|
  गरुड़ ने वीरा को अपने पंखों में बैठा लिया| वह उडकर वीरा के सात भाइयों की छान में पहुँच गया|वहाँ पहुँच कर वीरा ने छान का दरवाजा खोला| वह छान के अन्दर चली गई| वीरा के सात भाई उस समय लकड़ी लेने  जंगल जा रखे थे| वीरा ने वहाँ खाने –पीने का सामान देखा| उसने उस सामान से खाने-पीने की चीजें बना दी| जैसे ही उसे सात भाइयों के आने की आहट सुनाई दी, वह वहाँ रखे कोंडा (रिंगाल से बनी अनाज रखने की वस्तु जिसे गोबर से लीप कर रखा जाता है) के अन्दर छिप गई| उसके भाइयों ने लकड़ी के गट्ठर एक जगह पर रखे और छान के अन्दर आ गए| वहाँ पकवानों की महक आ रही थी| उन्हें घर में पकवानों को देखकर आश्चर्य हुआ| उन्हें जोर की भूख लगी थी| उन्होंने वीरा के बनाए पकवान खा लिए| थोड़ी देर में वे गहरी नींद में सो गए| अब हमेशा ऐसा ही होने लगा| उसके भाई जैसे ही शाम को घर पहुँचते उन्हें खाना-पीना बना हुआ मिलता| भाइयों के आने से पहले वह कोंडा में छिप जाती| जब उसके भाई रात को गहरी नींद में सोए रहते वह कोंडा से बाहर आकर शौच आदि से निवृत्त हो जाती| फिर कोंडा में छिप जाती| ऐसा कई बार होता| उनकी अनुपस्थिति में खाना कौन बनाता है? इस रहस्य को जानने के लिए उन सात भाइयों को एक विचार सूझा,’’वे सात भाई बारी-बारी से रात को उठे रहेंगे जिससे खाना बनाने वाले का पता चल सके|
    सात भाई रात को बारी-बारी से उठे रहने लगे किन्तु आधी रात के बाद उन्हें नींद आ जाती| सबसे छोटे भाई की बारी आने पर उसने अपने हाथ की उंगली को चाक़ू से काट दिया| कटी उंगली पर उसने मिर्च डाल दी| ऐसा करने से उसे रात भर नींद नहीं आई| आधी रात के बाद जैसे ही वीरा कोंडा से बाहर निकली,सबसे छोटे भाई ने अन्य भाइयों  को उठा दिया| उन्हें पता चल गया कि यही लडकी उनके लिए खाना बनाती थी| उन्होंने वीरा से पूछा,’’तुम कौन हो? वीरा ने उन्हें पूरी बात बता दी| सातों भाई वीरा को पाकर बहुत खुश हुए| उन्होंने वीरा के लिए बहुत सारे आभूषण बनाए|
   अब वे सातों भाई निश्चिन्त होकर जंगल लकड़ी काटने जाते| वीरा उनके आने से पहले खाना बनाकर रखती| उन्हें समय पर खाना बना मिल जाता| वीरा फटिंग के गारों को आपस में रगड़ कर आग पैदा करती थी| एक दिन वीरा को फटिंग के गारे घर में नहीं मिले| वह फटिंग के गारों को ढूढते हुए घर से बाहर निकल गई| वहाँ भी उसे फटिंग के गारे नहीं मिले| ‘’आज मैं खाना कैसे बनाऊगी?’’-वीरा सोच ही रही थी| तभी उसे एक बुढ़िया दिखाई दी| वह बोली,’’बेटी! चिंता मत करो,मेरे साथ चलो|’’ वह बुढ़िया वीरा को अपने घर  ले  गई| उसने वीरा को अपने घर से आग(अंगारे और राख) एक छलनी में दी| वीरा उस आग को लेकर अपने भाइयों की छान में पहुँच गई| कुछ देकर बाद बुढ़िया के घर में लम्बे-लम्बे बाल और नाख़ून वाला एक  आदमी आया| वह जोर से चिल्ला रहा था,’’मनख्या बॉस(यहाँ मनुष्य की गंध आ रही है)| बोलो! कहाँ है यहाँ आया मनुष्य?’’
 वह बुढ़िया का बेटा था| वह एक राक्षस था| बुढ़िया उससे बोली;यहाँ एक लडकी आग मांगने आई थी| मैंने उसे छलनी में आग दी है| जिस रास्ते वह गई होगी वहाँ छलनी से राख गिरी होगी|इसी राख को देखकर तुम उस लड़की के घर चले जाओ|’’
  राक्षस रास्ते में गिरी हुई राख को देखकर वीरा के भाइयों की छान में पहुँच गया| वीरा ने दरवाजा अन्दर से बंद कर रखा था| राक्षस दरवाजे के बाहर उसके भाइयों की आवाज में बोला,’’ वीरा बहिन! हम तुम्हारे सात भाई घर आ गए हैं| हमारे साथ हमारे सात कुत्ते  और सात बिल्लियां  भी हैं| दरवाजा खोलो|’’
  छान के दरवाजे के बगल पर एक चन्दन की डाली थी| राक्षस को देखकर वह बोली,’’ सावधान,वीरा बहिन! तुम्हारे सात  भाई सात कुत्ते और सात बिल्लियों सहित नहीं आये हैं| तुम्हारे दरवाजे के बाहर एक राक्षस खड़ा है| वह तुम्हारे भाइयों की आवाज में तुमसे झूठ बोल रहा है|’’
  चन्दन की डाली की बात को  सुनकर राक्षस को क्रोध आया|राक्षस ने चन्दन की डाली को तोडकर खा लिया| इसके बाद छानी का दरवाजा तोड़कर वह अन्दर आ गया| उसने वीरा को निगल लिया| चन्दन की डाली को खाने और वीरा को निगलने के बाद राक्षस को अणसनी(अधिक खाने के बाद पेट में भारीपन का अहसास ) लग गई| वह छानी के अंदर सो गया|
  शाम को वीरा के सात भाई अपने सात कुत्ते और सात बिल्लियों के साथ छान में पहुंचे तो राक्षस को वहाँ चित्त पड़ा हुआ देखकर वे सब समझ गए| सात कुत्तों और सात बिल्लियों ने राक्षस के पेट को फाड़ डाला| राक्षस के पेट से वीरा बाहर आ गई| वीरा के सात भाइयों ने राक्षस को अपनी छानी से कुछ नीचे गाड़ दिया| उन्होंने वीरा को समझाया,’’राक्षस के शरीर के जहरीले कांटे अभी भी वहाँ पड़े हैं| वहाँ कभी मत जाना| वे कांटे तुम्हारे हाथ-पैरों में चुभ सकते हैं|’’
  एक दिन वीरा के सातों भाई जंगल जा रखे थे| वह घर में अकेली ही थी| वह बालों में कंघी कर रही थी| अचानक उसके हाथ से कंघी छूटकर  गिर गई | वह कंघी लुढकते हुए वहाँ पहुँच गई जहाँ राक्षस को गाड़ रखा था| वहाँ से कंघी उठाने पर राक्षस के शरीर के जहरीले कांटे वीरा के पैरों में चुभ गए| वह दर्द से कराहने लगी| वह जैसे तैसे छानी के अंदर पहुँच गई और बेहोश हो गई|
  शाम को वीरा के सात भाई अपने सात कुत्तों और सात बिल्लियों के साथ छानी में पहुंचे| सात कुत्तों और सात  बिल्लियों ने वीरा के  पैरों को चाटा| इससे वीरा के पैरों में चुभे  कांटे निकल गए| वीरा अब ठीक हो गई|
  दूसरे दिन वीरा ने गरुड़ को याद किया| देखते-देखते गरुड़ वहाँ पहुँच गया| वीरा के सातों भाई और वीरा एक –एक कर गरुड़ के पंखों में बैठकर अपने गाँव चले गए| सातों भाई तथा वीरा को देखकर उसकी माँ दीपा बहुत खुश हुई |


     पुस्तक ‘उत्तराखंड की लोककथाएँ (काथ-कानी ,रात ब्याणी)

        खंड -2 लेखक –डॉ उमेश चमोला से 

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