लहर आज चली चली
(यह गीत राष्ट्र्दीप्ति
पुस्तक में संग्रहीत है.उत्तराखण्ड सीमेट की पत्रिका नवोन्मेष में प्रकाशित हो
चुका है.
गाँव-गाँव,गली-गली,
लहर आज चली चली,
मुस्कराये फूल-फूल,
मुस्कराई कली-कली.
शिक्षा का दीप जला,
गहन तिमिर दूर हटा,
काली रात खत्म हुई,
भोर की है आयी छटा,
डाल वीरान थी जो,
आज फूल से है लदी.
आज के पढ़ते ये बच्चे,
कल के कर्णधार हैं,
देश के ये रत्न हैं,
राष्ट्र के श्रृंगार हैं,
एक देश,एक वेश,
पंक्ति इनकी भली भली.
बाग भी वीरान था;
नहीं कही गान था,
गहरी नींद सोये थे,
उषा का न भान था,
गीत गाती देखो मस्त,
पंछी आज चली चली,
ज्ञान की फूटी किरन,
नव प्रभात आ गया,
भास्कर की रश्मि से,
सारा जहाँ नहा गया,
ज्ञान अंशुमान की,
सवारी आगे चली चली.
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