रविवार, 24 मार्च 2013

स्तक समीक्षा  'यात्रावृतांत  हिमालय के गाँवो में 
पहाड़ी राज्य के रूप में उत्तराखंड में शिक्षा;रोजगार ;सड़क;चिकित्सा ;पेय जल  आदि  
बुनियादी मुद्दों से जुडी समस्याओं के समाधान की आशा में ही अलग राज्य के रूप मे उत्तराखंड के गठन की मांग उठी थी 
उत्तराखंड राज्य  बनने के इतने वर्षों में आम जन से जुडी समस्याएं कहाँ तक दूर हो पाई हैं?इस पर शोध आधारित अध्ययन किये जाने की जरूरत है, आज से छब्बीस वर्ष पहले गिरी विकास अध्ययन संसथान लखनऊ द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों के समग्र विकास पर ऐसी ही एक शोध परियोजना केन्द्रित की गयी थी .इसके अंतर्गत नैनीताल'बागेश्वर,अल्मोड़ा'पिथोरागढ़ ;चम्पावत;टिहरी ;देहरादून;चमोली;उत्तरकाशी तथा पौड़ी के 78-79 गांवों में विकास के सूचकों के आधार पर विकास की स्तिथि का अध्ययन किया गया था;इससे सम्ब्बंधित अध्ययन दल में श्री प्रदीप टम्टा (वर्तमान संसद अल्मोड़ा );डॉ अरुण कुकसाल ;श्री चन्द्र शेखर तिवारी ;डॉ दीवान नगरकोटी ; श्री मंगल सिंह ;डॉ मनोज अग्रवाल तथा श्री हरिशंकर तिवारी शामिल थे;
         इस अध्ययन पर आधारित यात्रा    वृतांत  को ;हिमालय के गांवों में नाम से पुस्तक रूप में तैयार किया है अध्ययन दल के सदस्यों  डॉ अरुण  कुकसाल  और  चंद्रशेखर तिवारी  ने ,पुस्तक को प्रकाशित किया है दून पुस्तकालय  एवं शोध केंद्र देहरादून नै ,पुस्तक की विषय सामग्री को 15 अध्यायों में बाँटा  गया है;प्रत्येक अध्याय सर्वेक्षण हेतु चयनित गाँव के विकास की  दशा को बंया करता है;
 पुस्तक में पहाड़ी दुर्गम गांवों की विषम भोगोलिक परिस्थिति के साथ-साथ पलायन के कारणों पर भी प्रकाश डाला  गया है;
पुस्तक आज से 26 वर्ष पूर्व का ऐना दिखाती है ,इन 2 6 वर्षो में विशेषकर उत्तराखंड गठन के बाद आम जन के जीवन स्तर  में कितना सुधर आया है? इस प्रश्न पर चिंतन करने को पुस्तक प्रेरित करती है ;इस पुस्तक को पड़ने से मन में एक विचार आता है उत्तराखंड के समग्र विकास पर  ही सर्वेक्षण /शोध फिर होना चाहिए जिससे हम यह देख सकें इतने वर्षों में पहाड़ के समग्र विकास  हेतु सर्कार द्वारा चलाई गयी योजनायें वास्तविक धरातल पर किस स्तर पर क्रियान्वित हो पाई हैं?
-------------------------=समीक्षक --डॉ उमेश चमोला