शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

कुछ बातें, कुछ यादें 14 आंशिक आवासीय छात्रावास और मैस मोनिटरी



  एक दौर वह था जब कक्षा 8 के बाद एकीकृत परीक्षा उत्तीर्ण करना एक बड़ी उपलब्धि माना जाता था । एकीकृत परीक्षा में पूछे जाने वाले उच्च स्तरीय होते थे
  एकीकृत परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद श्रीनगर स्थित आवासीय छात्रावास में प्रवेश मिलता था । कक्षा 9 में जब हमने यहाँ  प्रवेश लिया तो तीन -चार महीने तक  घर की बहुत याद आती
थी । जब कोई अभिभावक कभी मिलने को आते तो यह यादें दुगुनी हो जाती थी । इसका कारण एक तो घर के सदस्यों से दूर रहना और दूसरा सीनियर छात्रों की अपेक्षा रहती थी कि जूनियर होने नाते हम विनम्र और अनुशासित रहें । हम बीच – बीच में घर चिट्ठी भी भेजते
थे | यहाँ  सीनियर छात्रों को भाई साहब कहा जाता था । छात्रावास अधीक्षक की ही तरह  भाई साहब लोगों के सामने जाने में भी झेंप  और सम्मान का भाव होता था। अनुशासन बनाए रखने की यह अद्भुत परंपरा थी । कुछ महीनो के बाद हमें  घर जैसा वातावरण ही लगने लगा । बाद में तो छुट्टियों में भी यहाँ  रहने का मन करता था ।
   शिक्षा के उद्देश्यों में से एक प्रमुख उद्देश्य बच्चों में नेतृत्व क्षमता और समस्या समाधान के कौशल का विकास करना भी है । बच्चों में नेतृत्व गुणो के विकास के लिए इस छात्रावास में मैस मोनिटरिंग की व्यवस्था लागू थी । इसके अंतर्गत हर माह दो छात्रावासियों को एक महीने के लिए मैस मोनिटर का दायित्व निभाना होता था । एक मोनिटर को मैस से संबंधित खर्चे, बिल आदि का रजिस्टर में विवरण तैयार करना होता था । दूसरे का काम दुकानदार से समन्वयन कर सामान को छात्रावास तक पहुंचाना होता था । छात्रावास के भोजन सामग्री के स्टोर की चाबियां मैस मोनिटर के पास ही रहती थी । उन्हीं की उपस्थिति में खाना तैयार करने वालों को भोजन बनाने के लिए राशन दिया जाता था । मैस मोनिटर की जिम्मेदारी कक्षा 11 के छात्रों को ही दी जाती थी । कक्षा 10 और 12 के छात्रों को इससे मुक्त रखा जाता था । विशेष परिस्थितियों में 12 और 10 के छात्रों को सत्र के शुरुआती महीनो में ही यह जिम्मेदारी दी जाती थी । जब हम कक्षा 9 में पढ़ते थे तो हम कल्पना करते थे कि मैस मोनिटरिंग का कार्य कितना कठिन होता होगा ? जब कक्षा 11 में हमें यह जिम्मेदारी मिली तो हमें इसमें आनन्द आने
लगा । इससे जिम्मेदारी लेने, प्रबंधन और नेतृत्व गुणो के विकास के साथ ही आत्मविश्वास भी जाग्रत हुआ ।
   मुझे याद है एक बार जब मैं मैस मोनिटर था । सुबह जैसे ही मैंने स्टोर का ताला खुला  और खाना बनाने वालों को चायपत्ती, चीनी और मिल्क पाउडर दिया । उसी समय स्टोर के अंदर एक जूनियर भाई आकर बोला,  ‘‘भाई साहब! पाउडर और चीनी ।‘‘ ‘‘मतलब‘‘ ? -मैंने कहा। वह नजर झुकाए सकुचाते हुए बोला, ‘‘ खाने के लिए चाहिए ।‘‘
मैंने उसे एक मुट्ठी के बराबर चीनी और कुछ पाउडर देते हुए कहा, ‘‘ ठीक है । ले लो। रोज-रोज मत आना ।‘‘
 उसने पाउडर और चीनी को हाथ में रखकर मिला दिया और मुँह  में रख दिया । इसके बाद एक गिलास पानी पी दिया ।
 मैस मोनिटर का यह काम भी होता था कि वह देखे कि कोई नाश्ता दुबारा तो नहीं ले  रहा
है ?  एक दिन मेरे और एक सहपाठी के बीच शर्त लगी । मैंने कहा, ‘‘मैं आज दुबारा नाश्ता करके रहूंगा ।‘‘  मैं एक बार नाश्ता लेने के बाद फिर से नाश्ता लेने लगा । मैस मोनिटर भाई साहब ने मुझसे कहा, ‘‘ तू तो पहले भी नाश्ता कर चुका है । मैंने कहा,‘‘ भाई साहब! मेरा नाश्ता गिर गया है।‘‘  उस दिन नाश्ते में पाकीजा लाया गया था । उन्होंने मुझे एक पाकीजा और दिला दिया   । शर्त लगाने वाले मेरे सहपाठी को जब यह पता लगा कि यह दुबारा नाश्ता प्राप्त करने में सफल रहा तो उसने मैस मोनिटर भाई साहब से मेरी शिकायत कर दी । उन्होंने मुझे और मेरे उस दोस्त को अपने पास बुलाया । मेरे दोस्त ने शिकायत करते हुए भाई साहब से कहा, ‘‘ इसका नाश्ता गिरा नहीं था । इसने झूठ बोला था ।‘‘
 उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘ तुमने झूठ क्यों बोला ?‘‘ मैंने कहा, ‘‘ भाई साहब मेरा नाश्ता सचमुच गिर गया था । यह जमीन में नहीं गिरा था । यह मेरे दूध के गिलास में गिर गया था।‘‘  मेरी बात को सुनकर भाई साहब ने  मुझे डांटने के बजाय जोर से ठहाका लगाया। 


शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

इतिहास लिख रहा है कोरोना - रचना डॉ. उमेश चमोला


इतिहास लिख रहा है कोरोना ,
इसमें कुछ उजले पन्ने भी होंगे
जिनमे मानवता की रक्षा में तत्पर
लोगों का जिक्र किया जाएगा ,
इतिहास उन्हें विस्मृत होने नहीं देगा ,
आने वाली पीढी उन पन्नो को
सम्मान भरी नजरों से देखेंगी ,
कुछ ऐसे पन्ने भी होंगे
जब भी वे टटोले जाएंगे
पढ़ने वालों की  आँखों में इतिहास के 
इस    कालखंड का स्याह पक्ष उतर जाएगा ,
उन्हें लगेगा इतिहास भी स्वयं
थू थू कर रहा है मानवता के  हत्यारों पर |