एक दौर वह था जब कक्षा 8 के बाद एकीकृत परीक्षा उत्तीर्ण करना
एक बड़ी उपलब्धि माना जाता था । एकीकृत परीक्षा में पूछे जाने वाले उच्च स्तरीय
होते थे ।
एकीकृत परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद श्रीनगर
स्थित आवासीय छात्रावास में प्रवेश मिलता था । कक्षा 9 में जब हमने यहाँ प्रवेश लिया तो तीन -चार महीने तक घर की बहुत याद आती
थी
। जब कोई अभिभावक कभी मिलने को आते तो यह यादें दुगुनी हो जाती थी । इसका कारण एक
तो घर के सदस्यों से दूर रहना और दूसरा सीनियर छात्रों की अपेक्षा रहती थी कि
जूनियर होने नाते हम विनम्र और अनुशासित रहें । हम बीच – बीच में घर चिट्ठी भी
भेजते
थे
| यहाँ सीनियर छात्रों को भाई साहब कहा
जाता था । छात्रावास अधीक्षक की ही तरह
भाई साहब लोगों के सामने जाने में भी झेंप
और सम्मान का भाव होता था। अनुशासन बनाए रखने की यह अद्भुत परंपरा थी । कुछ
महीनो के बाद हमें घर जैसा वातावरण ही
लगने लगा । बाद में तो छुट्टियों में भी यहाँ रहने का मन करता था ।
शिक्षा के उद्देश्यों में से एक प्रमुख
उद्देश्य बच्चों में नेतृत्व क्षमता और समस्या समाधान के कौशल का विकास करना भी है
। बच्चों में नेतृत्व गुणो के विकास के लिए इस छात्रावास में मैस मोनिटरिंग की
व्यवस्था लागू थी । इसके अंतर्गत हर माह दो छात्रावासियों को एक महीने के लिए मैस
मोनिटर का दायित्व निभाना होता था । एक मोनिटर को मैस से संबंधित खर्चे, बिल आदि का रजिस्टर में विवरण तैयार
करना होता था । दूसरे का काम दुकानदार से समन्वयन कर सामान को छात्रावास तक पहुंचाना
होता था । छात्रावास के भोजन सामग्री के स्टोर की चाबियां मैस मोनिटर के पास ही
रहती थी । उन्हीं की उपस्थिति में खाना तैयार करने वालों को भोजन बनाने के लिए
राशन दिया जाता था । मैस मोनिटर की जिम्मेदारी कक्षा 11 के छात्रों को ही दी जाती थी । कक्षा 10 और 12 के छात्रों को इससे मुक्त रखा जाता था । विशेष परिस्थितियों में 12 और 10 के छात्रों को सत्र के शुरुआती महीनो में ही यह जिम्मेदारी दी जाती
थी । जब हम कक्षा 9 में पढ़ते थे तो हम कल्पना करते थे कि
मैस मोनिटरिंग का कार्य कितना कठिन होता होगा ? जब कक्षा 11 में हमें यह जिम्मेदारी मिली तो हमें
इसमें आनन्द आने
लगा
। इससे जिम्मेदारी लेने, प्रबंधन और नेतृत्व गुणो के विकास के साथ
ही आत्मविश्वास भी जाग्रत हुआ ।
मुझे याद है एक बार जब मैं मैस मोनिटर था ।
सुबह जैसे ही मैंने स्टोर का ताला खुला और
खाना बनाने वालों को चायपत्ती, चीनी
और मिल्क पाउडर दिया । उसी समय स्टोर के अंदर एक जूनियर भाई आकर बोला, ‘‘भाई साहब! पाउडर और चीनी ।‘‘ ‘‘मतलब‘‘ ? -मैंने कहा। वह नजर झुकाए सकुचाते हुए
बोला, ‘‘ खाने के लिए चाहिए ।‘‘
मैंने
उसे एक मुट्ठी के बराबर चीनी और कुछ पाउडर देते हुए कहा, ‘‘ ठीक है । ले लो। रोज-रोज मत आना ।‘‘
उसने पाउडर और चीनी को हाथ में रखकर मिला दिया
और मुँह में रख दिया । इसके बाद एक गिलास
पानी पी दिया ।
मैस मोनिटर का यह काम भी होता था कि वह देखे कि
कोई नाश्ता दुबारा तो नहीं ले रहा
है
? एक दिन मेरे और एक सहपाठी के बीच शर्त
लगी । मैंने कहा, ‘‘मैं आज दुबारा नाश्ता करके रहूंगा ।‘‘ मैं एक बार नाश्ता लेने के बाद फिर से
नाश्ता लेने लगा । मैस मोनिटर भाई साहब ने मुझसे कहा, ‘‘ तू तो पहले भी नाश्ता कर चुका है ।
मैंने कहा,‘‘ भाई साहब! मेरा नाश्ता गिर गया है।‘‘ उस दिन नाश्ते में पाकीजा लाया गया था
। उन्होंने मुझे एक पाकीजा और दिला दिया । शर्त लगाने वाले मेरे सहपाठी को जब यह पता लगा
कि यह दुबारा नाश्ता प्राप्त करने में सफल रहा तो उसने मैस मोनिटर भाई साहब से
मेरी शिकायत कर दी । उन्होंने मुझे और मेरे उस दोस्त को अपने पास बुलाया । मेरे
दोस्त ने शिकायत करते हुए भाई साहब से कहा, ‘‘ इसका नाश्ता गिरा नहीं था । इसने झूठ बोला था ।‘‘
उन्होंने मुझसे कहा, ‘‘ तुमने झूठ क्यों बोला ?‘‘ मैंने कहा, ‘‘ भाई साहब मेरा नाश्ता सचमुच गिर गया था
। यह जमीन में नहीं गिरा था । यह मेरे दूध के गिलास में गिर गया था।‘‘ मेरी बात को सुनकर भाई साहब ने मुझे डांटने के बजाय जोर से ठहाका लगाया।
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