मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

यह कौन भारत का मजदूर ,रचना --श्रीधर चातक



    यह कौन भारत का मजदूर
शीत के भीषण झोंकों में ये
खींच रहा है धनिकों का यान,
बेचने को निर्मम हाथों में
कौन आया है निज प्रेम सम्मान?
     अधरों पर देखो मुस्कान नहीं है,
     स्वतंत्रता का जिसे भान नहीं है,
    जीर्ण वसन सब टूक हुए हैं,
    इसका भी किंचित भान नहीं है.
धनिकों के इस उच्च भवन में,
निहित वैभव आहुतियां जिसकी,
फफक कर रो रही क्षितिज में,
सिमटी हुई चिर आहें जिसकी,
   इस अथक श्रम की कीमत
   हा अब भी कोई पहचान सकेगा.
  धरा पर गिरी श्रम बूंदों का
  क्या अब भी ऐ मानव पान करेगा,
कौन कहता है स्वतंत्र हैं ये,
मेरे प्रिय दीन भारतवासी,
रोटी के दो टूकों हित
छाई है जिनके घर में उदासी,
खेल रही निर्धनता घर में
है ऋतु वसनों से भी मजबूर,
  हर साध अधूरी पडी जिसकी,
यह कौन?भारत का मजदूर?
   याद रखना ऐ निर्मम मानव,
छार अंगार विनाश ला सकते हैं,
अब भी ध्यान न गया इन पर,
ये क्रांति मेघ बन छा सकते हैं
-------कविता –श्रीधर चातक

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