नवल जनवरी –मार्च
२०१७
समीक्षात्मक
परिचय
संपादक –हरि
मोहन ‘मोहन’
समीक्षक –डॉ
उमेश चमोला
नवल का यह अंक
लोककथा, कविता,लघुकथा और पुस्तक समीक्षा के साथ लोकसाहित्य विषयवस्तु पर
आधारित है.पत्रिका के मुखपृष्ठ पर गढ़वाल
चित्रकला शैली के जनक मंगतराम का चित्र दिया गया है.ज्ञात हो कि मंगत राम विश्व
प्रसिद्ध चित्रकार,कवि और विचारक मौलाराम के पिता थे.अंक में प्रख्यात चित्रकार बी
मोहन नेगी ने मंगतराम के जीवनवृत्त पर अपने आलेख में प्रकाश डाला है.पत्रिका का
आंतरिक कवर पृष्ठ होली गीत ‘जो नर जीवें खेलें फाग,हो उर हो होलक रे’ को समर्पित
है.अंतिम कवर पृष्ठ पर विरह गीत (डॉ अनुज प्रताप सिंह ),बोलना चाहती है औरत (लोकेश
नवानी ),सुरा(प्रकाश चन्द्र फुलोरिया )तथा इन सुना दी (नरेन्द्र कठैत)कवितायेँ बी०
मोहन० नेगी के चित्रों के साथ प्रस्तुत की गयी हैं.यह कवितायेँ स्त्री के मनोभावों,शराब
के प्रयोग तथा वृक्षों के संरक्षण की भावभूमि पर आधारित हैं.सम्पादकीय में संपादक
ने उत्तराखण्ड में संपन्न हुए चुनाव में उत्तराखण्ड की अस्मिता से जुड़े मूल
मुद्दों जैसे गैरसेन राजधानी,बेरोजगारी,पलायन
आदि को चुनावी मुद्दे के रूप में न उठाये जाने के प्रति चिंता व्यक्त की
है.सम्पादक के द्वारा जागर गायिका बसन्ती बिष्ट के बारे में दी गयी जानकारी भी ज्ञानवर्धक है.
इस अंक में उत्तराखण्ड के लोकसाहित्य पर आधारित
शोध आलेखों को विशिष्ठ स्थान दिया गया है.डॉ अमिता प्रकाश के शोध आलेख ‘गाथात्मक
लोकसाहित्य में महाकाव्यीय पात्रों के चित्रण में उदाहरण देकर बताया गया है कि
उत्तराखण्ड के लोकसाहित्य में यहाँ के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश का प्रभाव रामायण
और महाभारत के पात्रों पर पड़ा है.इसलिए इनके कथात्मक स्वरूप और चरित्रों का मूल
स्वरूप यहाँ बदले रूप में देखने को मिलता है.पवनेश ठकुराठी का शोध आलेख कुमाउनी
कहानी :एक अध्ययन तथा डॉ विनोद कुमार सिंह बिष्ट का आलेख ‘गोपाल दत्त भट्ट के कुमाउनी कविता संग्रहों की काव्य भाषा भी
लोकसाहित्य के अध्येताओं के लिए उपयोगी लगा.डॉ हेम चन्द्र दुबे का आलेख ‘कुमाउनी
कहावतो में लोक की सत्यानुभूति भी विचारपरक लगा.लोकभाषा,साहित्य एवं संस्कृति के
संरक्षण के सन्दर्भ में डॉ प्रभा पन्त का आलेख समसामयिक लगा.
इसके अतिरिक्ति धन सिंह मेहता’अनजान’ की कहानी
‘मोहरा’पहाड़ में चुनावी परिदृश्य की झलक दिखाने में सफल रहा.डॉ गोपाल नारायण आवटे
की कहानी जीवन के व्यावहारिक पक्ष को दिखाती
है कि किस प्रकार रीतिरिवाज और हमारे व्यवहार व्यवसाय से संचालित हो रहे
हैं.इसके अतिरिक्ति लघुकथाए भी अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं.डॉ राम निवास
‘मानव’ की लघुकथा ‘एक और अभिमन्यु’ दिखाती है कि किस प्रकार निर्दोष व्यक्ति को
झूठे अभियोग में फसाया जाता है.अन्य लघुकथाएं,कुमाउनी कविता और पुस्तक समीक्षा भी
अंक की पठनीयता को बढाने में सहायक हैं.
पता –उत्तराखण्ड
प्रेस रानीखेत रोड रामनगर नैनीताल २४४७१५
मूल्य -१५ रु प्रति,वार्षिक -६० रु द्विवार्षिक -१०० रु
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