वर्ष 2009 की बात है। डायट भीमताल में उत्तराखण्ड के कक्षा 1 से 8 तक
विद्यार्थियों के लिए राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में दिए दिशा
निर्देशों के क्रम में पाठ्य पुस्तक लेखन कार्यक्रम चल रहा था । इस कार्यक्रम में
बाल साहित्य लेखन से जुड़े शि़क्षकों को बुलाया गया था । सभी शिक्षकों को विषय के
हिसाब से समूहों में बांटा गया था ।
इसी दौरान विनीता जोशी मैडम
से मुलाकात हुई । विनीता जोशी अल्मोड़ा के प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत थी। उन्होंने बताया कि उन्होंने कुमाउंनी भाषा में
बच्चों के लिए कुछ कविताएंॅ लिखी हैं। मैंने उन्हें बताया कि मैंने भी उत्तराखण्ड
के ग्रामीण परिवेश को ध्यान में रखते हुए कुछ बाल कविताएंॅ लिखी हैं। वार्ता में
इस बात पर भी चिन्ता व्यक्त की गई कि आजकल जो बाल साहित्य लिखा जा रहा है वह
सामान्यतः शहर में रहने वाले बच्चों पर केन्द्रित है। ग्रामीण परिवेश के बच्चों की
आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर कम लिखा जा रहा है।
तय हुआ कि गढ़वाली और कुमाउंनी बाल कविताओं के संयुक्त संकलन पर कार्य किया
जाएगा । पुस्तक लेखन कार्यक्रम महीनो तक
चलता रहा । यह कायक्रम रात को भी विषय समूहों में चलता रहा । इसमें इतनी व्यस्तता
रही कि गढ़वाली-कुमाउंनी संयुक्त संकलन के बारे में सोचने का समय नहीं मिल पाया ।
कार्यक्रम समाप्त होने के
बाद हम अपने कार्यस्थल को चले गए । अब धीरे-धीरे गढ़वाली-कुमाउंनी संयुक्त संकलन की दिशा में हम कार्य करने लगे । विनीता
जोशी मैडम ने कुमाउंनी बाल कविताएंॅ मुझे डाक से भेजी । मैंने इनको टाइप करके
पांडुलिपि तैयार कर दी । गढ़वाली और
कुमाउंनी में लिखी ये कवितायें पहाड़ की प्रकृति, स्थानीय भोज्य पदार्थ, बरसात का दृश्य, पहाड़ की होली, दीपावली, घुघुती
और फुलदेई त्योहार, पहाड़
की पक्षियां जैसे घुघुती (फाख्ता), गौरेया, फूल
जैसे बुरांस, प्यंूली, यहांॅ के जंतु , ऋतुएं, लोरी आदि विषयों
पर केन्द्रित थी । 25
बाल कविताएं कुमाउंनी में विनीता जोशी मैडम ने और 25 बाल कविताएंॅ गढ़वाली में मैंने लिखी थी । इन कविताओं से संबंधित
पुस्तक का नाम ‘नानतिनो कि
सजोळि‘ रखा गया । इसमें
यह सोचा गया कि पुस्तक के नाम में कम से कम एक शब्द गढ़वाली और एक कुमाउंनी शब्द का
प्रयोग किया जाएगा। इसलिए ‘नानतिनो‘ कुमाउंनी
और ‘सजोळि‘ गढ़वाली शब्द का
प्रयोग किया गया । सजोळि रिंगाल से बनी छोटी-छोटी टोकरियों को कहते हैं जिनमें
बच्चे फुलदेई त्योहार में फूल एकत्र कर हर घर की देहरी में डालते हैं। डाॅ. नंद किशोर ढोंडियाल ‘अरुण‘ और श्री भीष्म
कुकरेती जी ने इस संकलन की समीक्षा करते
हुए इसे गढ़वाली और कुमाउंनी बाल कविताओं
का प्रथम संयुक्त संकलन लिखा । पुस्तक का आवरण श्री प्रदीप बिष्ट जी द्वारा फेसबुक
में लोड की गई फोटो के आधार पर तैयार किया गया ।
पुस्तक का लोकार्पण तत्कालीन अध्यक्ष विधानसभा उत्तराखण्ड श्री गोविन्द
सिंह कुंजवाल जी द्वारा किया गया था ।
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