गढ़वाल में बहुत पहले से तंत्र -मंत्र
के प्रयोग के किस्से सुनने को मिलते रहे
हैं ।
हम बचपन में सुनते थे कि अमुक स्त्री का पति उसके वश में नहीं था । उसने कुछ
कराया-खिलाया तो वह उसके वश में हो गया या फलां आदमी पर तंत्र-मंत्र का प्रयोग
किया गया तो वह पागलों जैसा व्यवहार करने लगा है।
यह बातें तो सुनी सुनाई थी परंतु
वर्ष 2001 से 2003 के आस-पास मुझे तंत्र-मंत्र संबंधी विचित्र घटनाओं का सामना करना
पड़ा । एक व्यक्ति मेरे साथ रहता था । उससे मेरा आत्मीय रिश्ता था । वह बीच-बीच में अपने घर चला जाता था । उसके जाने
के बाद मेरे कुछ कपड़े जैसे कमीज या कुर्ता मुझे ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलता था । जब
वह अपने घर से लौटकर मेरे पास आ जाता तो
वह कपड़े उसके थैले में मिलते। उन कपड़ों पर पिठांई के निशान मिलते । कभी-कभी वह अपने घर से टूटे फूटे बरतन भी वहांॅ
ले आता ।
एक रात की बात है। मैं सो रखा था । आधी रात का
समय था । उस व्यक्ति ने अपने थैले से एक काली डोरी निकाली । आधी रात को वह उस काली
डोरी से मेरी लंबाई मापने लगा । मेरी नींद खुल गई । मैंने उससे कहा,‘‘यह क्या कर रहे हो ? ‘‘ वह बोला, ‘‘ मैं यह देखना चाहता था कि आप कितने लंबे हैं ?‘‘
इस घटना
के कुछ दिनो के बाद उस व्यक्ति ने मुझसे कहा, ‘‘ चलो, आप और मैं कुछ दिनो के लिए मेरे घर
चलते हैं ।‘‘ मैं राजी हो गया । मैं उसके साथ उसके घर चला गया । मेरी आदत है कि
मैं रात को कम से कम एक बार तो बाहर आता ही हूं । उस रात को भी मैं बाहर आया । मुझे
अजीब सी आवाजें सुनाई दी । मैं आवाज की दिशा में आगे बढ़ा । मुझे यह आवाज एक कमरे
से आती हुई लगी। मैं उस कमरे की खिड़की के पास खड़ा हो गया । खिड़की से अन्दर का
दृश्य देखकर मैं अचंभित हो गया । वहां हवन चल रहा था । हवन कुण्ड के पास आटे से
बनाई एक लंबी आकृति रखी हुई थी । हवन करवाने वाला व्यक्ति बोला,
‘‘क्या
यह पुतला उस आदमी की लंबाई के बराबर बनाया गया है ?‘‘
‘‘हां , मैंने डोरी से उसकी लंबाई अच्छी तरह नाप ली थी ।‘‘- मेरे साथ रहने वाला वह आदमी बोला ।
‘‘अब इस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा करनी
होगी । जिस पर टोणा मोणा कर रहे हो अब उसका, उसके माता-पिता और गोत्र का नाम बताओ।‘‘ - हवन करवाने वाला आदमी बोला ।
उसकी
बात को सुनकर हवन कुण्ड के पास बैठा मेरे साथ रहने वाला वह आदमी मेरा, मेरे माता- पिता , गांॅव ,गोत्र आदि का नाम बोलने लगा । इसके बाद हवन कराने वाला जोर-जोर से
कहने लगा, ‘‘ तुझे सब देवताओं का शाप लगेगा जो तूने
(मेरा नाम लेकर) इसका और इसके घरवालों का विनाश नहीं किया । तू इनकी छासी नासी, पताळ बासी करा देना । तू नरक में रहेगा
जो तूने कहीं अपना और हमारा नाम बताया ।‘‘
एक बार फिर वह आदमी बोला, ‘‘ मैं गाय की पूंछ के बाल, खलड़ा, नाखून का चूरा और मुर्दा घाट की राख को मिक्स करके भी साथ लाया हूं ।
यह तुम्हें उसके खाने में मिलाकर 21 दिनो तक उसे खिलाना है। हां! श्मशान घाट की राख का टीका भी उस आदमी
के कपाल पर 21 दिनो तक लगाना होगा। तुम्हारा काम हो
जाएगा । अब देर मत करो । इस पुतले को चैराहे में दबाना है अभी ।‘‘
जैसे ही वे आटे से बनाए मेरे पुतले को बाहर लाने
लगे, मैं खिड़की की तरफ से दौड़कर अपने सोने
के कमरे में चला गया । उन्हें पता नहीं चला कि मैंने उनका तंत्र प्रयोग देख लिया
है। दूसरे दिन हम दोनो उनके घर से वापस आ गए । अपने घर में जब मैं सुबह नहाया । वह
आदमी श्मशान घाट की उस राख को मेरे कपाल पर लगाते हुए बोला,‘‘ कल कोई केदारनाथ से आया था । वह इस
बभूत को लाया था । तुम्हें 21
दिनो तक इसका टीका रोज लगाना होगा । ‘‘
इस घटना ने मुझे तंत्र-मंत्र के बारे में सोचने
पर विवश कर लिया था। भले आधुनिक वैज्ञानिक
युग मंे तंत्र-मंत्र महज एक अंधविश्वास है किन्तु
एक बात स्पष्ट है तंत्र-मंत्र करने वाला दूसरे के अनिष्ट की इच्छा रखता है।
उसकी मंशा दूसरे को नुकसान पहुंॅचाने की रहती है।
वह व्यक्ति विश्वास करने योग्य नहीं होता है। तंत्र मंत्र में सफल न होने
पर वह किसी और माध्यम से भी आपको नुकसान पहुंॅचा सकता है। तंत्र करने वाला व्यक्ति
दूसरे का न खाने योग्य पदार्थ खिलाता है जो उसके शरीर में निश्चय ही विकार पैदा
करेंगे।
अपने साथ घटी इन घटनाओं को आधार बनाकर मैंने ‘कचाकि‘ उपन्यास लिखा । यह सन 2014 में प्रकाशित हुआ । इस उपन्यास में खलनायिका के रूप में ‘मासंती‘ पात्र द्वारा अपनी सौतेली बेटी के पति पर तंत्र-मंत्र का प्रयोग किया
जाता है। इस उपन्यास की समीक्षा डाॅ. नंद
किशोर ढौंडियाल ‘अरुण‘, डाॅ. नागेन्द्र जगूड़ी ‘नीलांबरम‘ और श्री भीष्म कुकरेती द्वारा की गई ।
इस उपन्यास में मैंने अपने द्वारा खिड़की से देखी गई तांत्रिक प्रक्रियाओं का वर्णन
उपन्यास के नायक ‘प्रभात‘ के माध्यम से किया था । डाॅ. नागेन्द्र जगूड़ी नीलांबरम ने ‘उत्तराखण्ड स्वर‘ पत्रिका में इस उपन्यास की समीक्षा
करते हुए लिखा था कि पहले उन्हें लगा कि उपन्यासकार द्वारा तंत्र प्रयोग के इस
दृश्य को उपन्यास में नहीं दिखाना चाहिए था किन्तु पूरा उपन्यास पढ़ने के बाद
उन्हें लगा कि यह दिखाना जरूरी था ।
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