गुरुवार, 25 जून 2020

कुछ बातें, कुछ यादें 20, सी.सी.आर.टी. प्रशिक्षण और ‘कविता चोर‘ कविता की चोरी




वर्ष 2002 की बात है। मैं राजकीय इंटर कालेज लमगौण्डी जिला रुद्रप्रयाग में   कार्यरत था । जिला रुद्रप्रयाग से मेरा नाम सी.सी.आर.टी. प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था । जून के महीने के अवकाश के बाद जुलाई में मैं जब विद्यालय पहुंचा तो मेरे नाम से एक डाक आई थी । मैंने लिफाफा खोला तो पता चला कि वह डाक सी.सी.ई.आर.टी. नई दिल्ली से आई थी ।  इसमें लिखा था कि कि प्रशिक्षण में आने के लिए 15 जून तक अपनी सहमति भेजनी अनिवार्य है। तभी 15 जुलाई से होने वाले प्रशिक्षण मे भाग लिया जाना संभव होगा । यह पत्र सी.सी.आर.टी. नई दिल्ली के तत्कालीन उप निदेशक श्री गिरीश च्ंाद्र जोशी जी के हस्ताक्षर से आया था । मैंने श्री जोशी जी को एक पत्र भेजा ।  इसमें मैंने उन्हें अवगत कराया थ कि जून में अवकाश होने के कारण मैं सहमति पत्र नहीं भेज पाया था । अतः भविष्य में मुझे प्रशिक्षण के लिए आमंत्रित किया जा सकता है।
    कुछ समय के बाद श्री गिरीश चन्द्र जोशी जी द्वारा भेजा गया एक पत्र मुझे मिला । इसमें लिखा हुआ था कि माह दिसंबर में पप्पनकलां द्वारिका नई दिल्ली में चलने वाले प्रशिक्षण में मैं चाहूं  तो जिला विद्यालय निरीक्षक की अनुमति लेकर जा सकता हूं ।  जिला विद्यालय निरीक्षक रुद्रप्रयाग से अनुमति मिलने के बाद मैं सी.सी.आर.टी. प्रशिक्षण के लिए नई दिल्ली जाने के लिए रवाना हो गया । प्रशिक्षण में देश के अलग-अलग राज्यों के लोगों से परिचित होने का अवसर मिला । ऐसा लगता था जैसे भारत माता अपनी सांस्कृतिक विवधताओं के साथ हमें अपना दर्शन दे रही है 25 दिन की लंबी अवधि के बाद वहां कई मित्र बन गए । वहां से वापस आने के बाद भी कई वर्षों तक उन मित्रों से पत्र व्यवहार चलता रहा ।  प्रशिक्षण के दौरान मध्य प्रदेश और गुजरात के साथियों के साथ ही मुझे कमरा मिला । इस प्रशिक्षण में देश भर से 120 से अधिक शिक्षकों ने भाग लिया था ।
    हम हास्टल की जिस मंजिल में रह रहे थे, वहां के कुछ शिक्षकों ने तय किया कि रात को भोजन के बाद एक हालनुमा कमरे में साहित्यिक - सांस्कृतिक कार्यक्रम किया जाएगा ।  हमारे कमरे के साथी भी समय पर कार्यक्रम का मजा लेने उस कमरे में पहुंच गए ।  वहां एक साथी ने चार कविताएं सुनाईं। सभी ने ताली बजाकर उनका उत्साह बड़ाया । वे कविताएं किसी और के द्वारा लिखी गई थी । वे उन्हें स्वरचित कविता कहकर सुना रहे थे । कई लोग ऐसे होते हैं जिन्हें बहुत सारी कवितायें याद रहती हैं किन्तु उन्हें उनके रचनाकारों का नाम पता नहीं होता । ऐसे लोगों की इतनी सारी कविताओं को याद रखने की विलक्षण प्रतिभा की सराहना तो की जानी ही चाहिए ।  ये व्यक्ति भी दो प्रकार के होते हैं- एक वे जो रचनाकार का नाम न जानने के कारण उनके नाम को उद्धृत नहीं कर पाते हैं लेकिन वे किसी कवि की रचना सुना रहा हूं जैसा कथन बोलते हैं जबकि कुछ लोग दूसरे की लिखी कविता को धड़ल्ले से अपनी कविता कह कर सुनाते हैं
  कार्यक्रम के बीच में मेरे रूम पार्टनर मध्य प्रदेश के साथी श्री जगदीश सोमेडिया ने मेरा परिचय कराया और मुझे भी कविता पढ़ने के लिए आमंत्रित किया । मैंने  तीन -चार कवितायें  सुनाई । कविता सुनाते-सुनाते मेरे मन में कुछ पंक्तियां ‘  कविता चोरकवियों के बारे में आई-
बड़ा वही कवि आजकल जो कविता का चोर,
कविता की बखिया उधेड़े, करे सभी को बोर,
करे सभी को बोर, जोरों से चिल्लाए,
जिसे देखकर जनता कानो पर हाथ लगाए।‘‘
 यद्यपि यह कविता साहित्यिक दृष्टि से कमजोर रही होंगी किन्तु इसमें तात्कालिकता का भाव था । इस कविता को सुनाकर मैं सोच रहा था कि दूसरों की लिखी कविता को अपने नाम से सुनाने वाले साथी इस कविता को सुनकर सचेत हो जाएंगे और उनके मन में अपराध बोध की भावना जाग्रत होगी । दूसरे दिन हमारी मंजिल के नीचे विश्राम करने वाले शिक्षकों ने भी एक कवि सम्मेलन करने का निर्णय लिया । आयोजक ने मुझसे भी उस कार्यक्रम में सम्मिलित होने का विशेष आग्रह किया था । उस कार्यक्रम में भी वही साथी आज फिर दूसरों की लिखी कविताओं  को अपनी कह कर सुना रहे थे । उन्होंने कल मेरी सुनाई हुई कविता चोरकविता को भी अपनी कविता बताकर  मेरे ही सामने सुना दिया । 





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें