बचपन
की बात है। हमारे पास बैलों की एक जोड़ी थी । इनमें एक काले रंग का था और दूसरा
भूरा और लाल रंग का था । काले रंग के बैल को कळ्या और दूसरे को कफ्ळू नाम से हम
पुकारते थे । कळ्या बल्द चुस्त था । वह लड़ाकू भी था । किसी दूसरे बैल के साथ लड़ता
था तो उसे भगाकर ही मानता था । कफळू बैल कुछ सुस्त सा था । वह दूसरे बैलों से लड़ता
नहीं था किन्तु खड़े होकर पैर आगे करके अपनी भौंहें टेड़ी करता था । उसे इस मुद्रा
में देखकर कुछ बैल उससे डर कर भाग जाते थे । यदि कोई बैल उसकी इस मुद्रा से डरता
नहीं था तो कफळू बैल डर कर स्वयं भाग जाता था । वैसे तो कफळू बैल सुस्त था लेकिन
उसे यदि हरा-भरा खेत दिखाई दे जाए तो वह बहुत तेजी से दौड़कर उजाड़ खाने चला जाता था
। कुछ समय बाद हमने बैलों की एक नईं जोड़ी खरीद ली । इनमें से एक का रंग काला और
दूसरे का लाल और भूरा रंग था । जब पहली बार बैलों की इस नईं जोड़ी को खेत में हल
लगाने के लिए ले जाया गया तो काले रंग वाला बैल खेत की एक पट्टी (स्यूं) हल लगाने
के बाद अचानक बैठ गया । हल लगाने वाले व्यक्ति ने कहा, ‘‘आपका यह बल्द पड़्वा है।
वर्षों तक बचपन की ये स्मृतियां मन में तैरती रहीं । एक दिन मन में विचार आया
कि क्यों न बैलों के विभिन्न प्रकारों को कविता में प्रतीकात्मक रूप से अभिव्यक्त
किया जाए । इसी विचार ने दो कविताओं ने जन्म दिया । एक कविता ‘पड़्वा बल्द‘ पर आधारित थी और दूसरी कविता में एक
पड़्वा बल्द और एक हळ्या बल्द (हल लगाने वाला बैल) की आपस में वार्ता को दिखाया गया
था । इसमें पड़्वा बल्द , हल लगाने वाले बल्द से कहता है , ‘‘मेरी जब मर्जी आती है तब मैं हल लगाता
हूंॅ । तेरी तरह काम के बोझ में दबा नहीं रहता हूंॅ। अंत में वह
कहता है, ‘‘ मी जना उजाड़्या बल्द, संगति छन देश मा, मी छौ बल्द जोनि मा, सि छन मनखि भेष मा (मेरी तरह उजाड़ खाने
वाले बैल देश में सारी जगह हैं किन्तु अंतर इतना ही है कि मैंने बैल की योनि में जन्म लिया है और वे
मनुष्य के भेष में हैं।)
बैलों पर आधारित इन कविताओं को ‘पड़्वा बल्द‘ गढ़वाली व्यंग्य कविता संग्रह में स्थान
दिया गया जो वर्ष 2015 में प्रकाशित हुआ । इन कविताओं में ‘पड़्वा बल्द‘ समाज में कामचोरी की प्रवृत्ति में
माहिर लोगों और उजाड्या बल्द भ्रष्टाचारी
व्यक्तियों के प्रतीक के रूप में वर्णित
किए गए । इस पोस्ट के साथ पड़वा बल्द और
उजाड़्या बल्द से संबंधित दो कविताएं भी
आपके पठनार्थ प्रस्तुत हैं।
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