वर्ष
1998 की बात है । मुझे अपने शोध के सिलसिले में मेरठ
विश्वविद्यालय जाना था । मैं शाम को मेरठ पहुंचा । एक होटल में विश्राम करने के
बाद मैं सुबह मेरठ विश्वविद्यालय की तरफ चला गया । मुझे जोर की भूख लगी हुई थी ।
विश्वविद्यालय से बाहर कुछ दूरी पर एक छोटा होटल था । मैंने सोचा,‘‘पहले जमकर नाश्ता कर लूं। इसके बाद
विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में जाकर अपने शोध से संबंधित कार्य करूंगा । मैंने
होटल में भोजन के बारे मे पता किया । होटल के मालिक ने मुझसे बातचीत की । उसने
मुझे मेरठ आने का उद्देश्य पूछा । उसने मुझे यह भी सुझाव दिया कि यदि मैं चाहूं तो
विश्वविद्यालय में काम होने तक अपना बैग होटल में रख सकता हूं । बातों -बातों में जब उसे पता चला कि मैं
उत्तराखण्ड का रहने वाला हूं । उसने मुझे बताया कि उसके होटल में एक
कर्मचारी उत्तराखण्ड का है। उसने उसको आवाज दी । वह दौड़ा -दौड़ा आया । उसने मुझसे
पूछा, ‘‘ तुम कखा छन?‘‘ मैंने कहा, ‘‘ रुद्रप्रयाग जिला कु रौण वाळु छौं ।‘‘ वह बड़ी आत्मीयता से मुझसे उत्तराखण्ड
के मौसम, खेती आदि के बारे में बात करने लगा ।
वह मुझे पीने के लिए ठण्डा पानी लाया । होटल में अन्य लोग भी खाने के लिए आए थे
किन्तु उसका ध्यान मेरी ही ओर था । नाश्ता
करने के बाद मैं विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में चला गया । वहां मैंने लगभग दो बजे
तक अपना काम किया । इसके बाद मैं दिन के भोजन के लिए उसी होटल में चला गया । दिन
के भोजन के बाद मैंने बचा हुआ काम शाम तक पूरा कर लिया । इसके बाद रात को मैं
उत्तराखण्ड वाली बस में बैठ गया ।
मेरे मन में होटल का वह दोस्त घूमने लगा ।
मैं सोचने लगा कि यदि उत्तराखण्ड अलग राज्य के रूप में बन गया तो क्या इस दोस्त
जैसे होटल में काम करने वाले लोग रोजगार के लिए उत्तराखण्ड वापस लौट आएंगे ? मेरे दिमाग में एक गीत की थीम आ गई ।
कोई व्यक्ति होटल में उत्तराखण्ड से बाहर नौकरी कर रहा है। इसी बीच उत्तराखण्ड
राज्य के गठन की घोषणा हो जाती है। यह
सुनकर होटल में काम करने वाला वह युवक प्रसन्न हो जाता है। वह खुशी में अपनी मांॅ
को एक चिट्ठी लिखता है। इस चिट्ठी में वह प्रवासी जीवन की कठिनाइयों और अपने
रोजगार की परेशानियों का जिक्र करता है। वह आशा व्यक्त करता है कि अब उत्तराखण्ड
अलग राज्य के रूप में बनने वाला है। इसलिए उसके खौरी (विपत्ति) के दिन समाप्त होने
वाले हैं। वह अपनी रोजी रोटी के लिए अपने गांॅव वापस आने का विचार करता है। मैंने इस थीम पर छह- सात गीतांश तैयार
कर लिए । यह गीत ‘पथ्यला‘ गीत-कविता संग्रह में प्रकाशित हुआ था। गीतों की समीक्षा की श्रृंखला
के अंतर्गत ‘रंत रैबार‘ में श्री ईश्वरी प्रसाद उनियाल जी
द्वारा लिखी इस गीत की समीक्षा प्रकाशित
हुई । उन्होंने इस समीक्षा में
उत्तराखण्ड निर्माण के इतने दिनो के बाद भी यहां
रोजगार के अवसर पैदा होने के
बजाए निरंतर होेते पलायन पर चिन्ता प्रकट की । इस पोस्ट के साथ श्री ईश्वरी प्रसाद
उनियाल जी द्वारा लिखी गई समीक्षा भी दी गई है।
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