रविवार, 28 मई 2017

 सुमित्रानंदन पन्त जयंती पर विशेष (२० मई २०१७)
                                    -डॉ० उमेश चमोला
    आज ही का दिन सन  १९०० मा उत्तराखण्ड कि स्वानि धरति कौसानी मा एक नौन्यालन जलम लीनि छौ.कैतें पता छौ कि स्वो नौनु हिन्दी साहित्य का अगास मा चमकण वालू सूरज बणुलु.जन विद्वान बोल्दन बल कविता दुःख कि नौनि होंदी.तै क्रूर कालन भी ये नौना तैं कवि बनोने छै सोचीं.तबै त जलम लेण का कुछ घंटों का बाद तेन तै नौना तैं ब्वे कि कोखिली हर्चे
दीनि.जी बात होणी छ प्रकृति का सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पन्त कि जौन अपुणु भोग्युं सच यों पंक्त्यों मा बिन्गाई-
 ‘वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा गान,
 उमड़ कर अधरों से चुपचाप,बही होगी कविता अनजान.’
जु छायावादा चार खम्बों –जयशंकर प्रसाद,महादेवी वर्मा,निराला अर सुमित्रानंदन पन्त मदि एक छन.ब्वे से बिछण की तौंकी जिकुड़ी की पीड़ा यों पंक्त्यों मा देखि सकेंदी –
 ‘नियति ने ही निज कुटिल कर से,
 सुखद गोद मेरे लाड की थी छीन ली,
बाल्य में ही हो गयी थी लुप्त हा,
मातृ अंचल की हाय छाया मुझे.’
 एक तरफ ब्वे कि कोखिली हरचण की पीड़ा अर हैकि तरफा प्रकृति रूपि ब्वे कु लाड-प्यार-उलार.ये से पन्त ज्यू की  बटिन कवितो धारू बौगण बैठी.पन्त ज्युकि किताब्यों मदि ग्रंथि,गुंजन,ग्राम्या,युगांत,स्वर्ण किरण,स्वर्ण धूलि,कला और बूढ़ा चाँद,लोकायतन,सत्यकाम,चिताम्बरा प्रमुख छन.कविता का दगड़ा पन्त ज्यून नाटक,एकांकी,रेडियो रूपक अर उपन्यास भी लेखिन.सहृदय कवि होण का दगड़ा पन्त ज्यू एक कठोर आलोचक भी रेन.तौंकी आलोचना का वार से सरस्वती पत्रिका का सम्पादक महावीर प्रसाद द्विवेदी भी बचि नि सक्याँ.
  सुमित्रानंदन ज्यू का रचना काल पर नजर दौडायो जो त तौंकि पैलि- पैलि लेखीं कवितों तै प्रकृति का स्वाणा चित्रों कि संज्ञा दी सकेंदी.वेका बादे कवितों मा छायावादा बिम्ब  अर कोंगिलि भावना बींगि सकेंदि.पन्त ज्यू पर कार्लमाक्स अर फ्रायडा विचारों कु प्रभो भी पडी.ये से तौंकि कै कविता प्रगतिवाद का चौ पर भी खडी छन.ईं कविता मा त सुमित्रानंदन पन्त अफु तैं कबीरपंथी बतलोंदन—
 ‘सूक्ष्म वस्तुओं से चुन-चुन स्वर,
 संयोजित कर उन्हें निरन्तर,
 मैं कबीरपंथी कवि,
 भू जीवन पट बुनता नूतन.’
पन्त ज्यूका कृतित्व कु मर्म ‘ग्रंथवीथी’ मा लेख्या यों शब्दों मा छलकद,जु हिन्दी मा तोंका लेख्याँ कु गढ़वाली भावानुवाद छ-
 ‘प्रकृति यकु छ.पैलि तींका भैर का स्वरूप से मेरु लग्यार हवे छौ अर मीन प्रकृति का चौ पर खडी कविता रचिन.बाद मा मी प्रकृति का भितर का रूप तैं देखण बैठ्यु जू मनखी अर मनखी जीवन मा अभिव्यक्त होंदु.’
हिन्दी साहित्य कु यु सूरज अपणा भौतिक रूप मा २८ दिसम्बर १९७७ का दिन अछ्लेगी छौ पर येकु उजालू हम सबुतें आज भी बाटू बतलौणु छ.कवि कि जयंति पर कवि कु भावपूर्ण स्मरण अर नमन.

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