पुस्तक समीक्षा
कचाकी
प्रकाशक –अविचल
प्रकाशन हाईडिल कोलोनी बिजनोर उत्तर प्रदेश
समीक्षक –डॉ
सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
यथार्थता को
चित्रित करता उपन्यास कचाकी
कहते हैं
साहित्य समाज का दर्पण होता है.हर समाज और समय पर यह शत प्रतिशत सटीक सिद्ध होता
है.इसी पर साहित्यकार की सफलता निर्भर करती है.मुंशी प्रेमचंद जैसे साहित्यकार
इसीलिये लोकप्रिय हुए क्योंकि उनकी कल्पना यथार्थता लिए होती है.जब हम डॉ उमेश
चमोला के गढ़वाली उपन्यास ‘कचाकी’पर दृष्टि डालें तो उनकी काल्पनिक कथावस्तु इतने
सुंदर ढंग से पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की गयी है जो वास्तविक जान पड़ती
है.उन्होंने गढ़वाल के कतिपय ऐसे लोगों के चरित्र को विशेष रूप से उभारने का सफल
प्रयास किया है जो अपनी नकारात्मक सोच और कुकृत्यों द्वारा दूसरों के अनिष्ट करने
का कुचक्र रचते रहते हैं.उपन्यासकार इस कृति द्वारा यह सन्देश देना चाहते हैं इस
प्रकार के षड्यंत्रकारियों का समाज में विरोध किया जाना चाहिए.साथ ही उनकी कलुषित
मानसिकता को समझकर स्वय का बचाव भी करना चाहिए.
डॉ चमोला ने उपन्यास के संक्षिप्त कलेवर में
आंचलिक संस्कृति के कतिपय प्रसंगों द्वारा विभिन्न चरित्रों को प्रदर्शित करने में
गागर में सागर भरने जैसा कार्य किया है.घोर गढ़वाली
शब्दों,लोकोक्तियों,चरित्रों,क्रियाकलापों का वर्णन कर इसे आंचलिक उपन्यास बनाया
है.साथ ही किसी भी पाठक को समझने में कठिनाई न हो गढ़वाली शब्दों का हिन्दी में
अर्थ भी उपलब्ध है.
पुस्तक का अधिकांश भाग टोना टोटका और ज्योतिष
विद्या के प्रयोगों पर आधारित है.नक्षत्र बल के आधार पर जनमपत्रियों के
मिलान,जुड़ने,न जुड़ने की बात कहना,तंत्र मन्त्र का पूजा विधान पर उन्होंने सम्पूर्ण
उपन्यास के अधिकांश अंशों को जोड़ा है.तंत्र मन्त्र को हथियार बनाकर सीदे सादे
लोगों को लूटने वालों की पोल उन्होंने अपने ज्ञान के माध्यम से खोली है.इस रचना
में उन्होंने यह भी दर्शाया है कि बुधि विवेक से कम न करने पर किस तरह कष्ट भोगना
पड़ता है.
डॉ चमोला ने उपन्यास में ठेठ गढ़वाली शब्दों के
साथ ही प्रसंगानुसार मामा घोणा डालो छैल होंदु ,तिम्ला तिमला खतेन्या अर नांगा
नांगां दिखेनया,गुरो भी मरी जौ अर लाठी भी ना टूटू,तरुने ना मौरू ज्वे अर बाले ना
मौरि ब्वे जैसी अनेक लोकोक्ति व मुहावरों का भी प्रयोग किया गया है.यह लेखक की
आंचलिक संस्कृति की पकड़ को प्रदर्शित करते हैं.
कचाकी शब्द दूसरों को पीड़ा,कष्ट ,दुःख पहुचाने
और प्रहार करने के भाव को व्यक्त करता है.जब कोई अपनी वाणी,कार्य के द्वारा किसी
को आहत करता है या ठेस या चोट पहुंचाता है तो गढ़वाली में उसे कचाकी कहते हैं.इसे
डॉ चमोला ने अपने उपन्यास में पूरी तरह परिलक्षित किया है.
रीजनल रिपोर्टेर
जनवरी २०१५ अंक से साभार
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