गुरुवार, 11 मई 2017

कविता

साजिश 
तुम मेरे जीवन का एक दुखद अध्याय हो ,
इसमें लिखी है
मेरे विरुद्ध तुम्हारी की गयी साजिशों की इबारतें,
इसमें लिखा है कि तुमनें रुपयों की खातिर
कैसे रची थी मेरी मौत की साजिश,
और छिन्न भिन्न कर डाला विश्वास का अटूट बन्धन,
तुम्हारी साजिशों की दीवार को फांदकर
मैं कैसे बच गया था ,
यह भी इसमें लिखा है ,
अभी भी समय समय पर
तुम्हारी साजिशी आंधी के थपेड़े
मुझे विचलित करने आते हैं ,
पर याद रखना कि यह थपेड़े मुझे डिगा नहीं सकते
क्योंकि मैं अब बन चुका हूँ हिमालय
और मेरे ऊपर विराजते हैं नीलकंठ.

रचना-----डॉ उमेश चमोला

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें