रविवार, 23 दिसंबर 2018

लोहाघाट में स्थित कथित भूतों का बंगला











एबट माउंट (लोहाघाट )में स्थित कथित भूतों का बंगला
भूतों के बंगले के नाम से जाना जाने वाला यह बंगला उत्तराखण्ड के लोहाघाट कस्बे में स्थित है | इस बंगले को सन १९०० के आस –पास ब्रिटिश डॉ० एबे ने बनाया था | बाद में इस बंगले को एक अस्पताल का रूप दिया गया | यह माना जाता है कि यहाँ रात के समय भूतों की छाया दिखाई देती है | इस अस्पताल में चिकित्सा की जिम्मेदारी ब्रिटिश डाक्टर  मोरिस  को सौंपी गई थी | उस जमाने में अस्पतालों की संख्या कम थी | इसलिए इस अस्पताल की महत्ता और भी बढ़ गई थी | डाक्टर मोरिस अपने पास पराशक्तियों के होने का दावा करता था | वह अस्पताल में आये मरीजों  की नब्ज देखकर उनकी मौत की तिथि बता देता था | यह तिथि सच साबित होती थी | इसलिए मरीजों के  बीच  वह भगवान  माना जाने लगा | लोगों को डॉ मोरिस द्वारा की गई भविष्यवाणियों पर आश्चर्य होता था | बाद में लोगों को पता चला कि डॉ मोरिस असाध्य रोगियों को अस्पताल की अन्य कोठरी में शिफ्ट कर देता था | इसे मुक्ति कोठरी का नाम दिया गया था | वहाँ वह मरीजों को अपनी दवाइयों और चिकित्सा के प्रयोगों द्वारा जीवन और मौत के बीच की अवस्था में पहुंचा  देता था | इस अवस्था में मरीज की नब्ज बंद हो जाती थी किन्तु वह अपने अनुभवों को बता पाते थे | इस प्रकार इन मरीजों पर डॉ मोरिस अपनी रिसर्च और प्रयोग करता था | इन  रिसर्च और प्रयोगों के द्वारा वह मृत्यु के रहस्यों को समझने का प्रयास करता था | यह माना जाता था कि मुक्ति कोठरी में पंहुंचने वाला व्यक्ति आत्मिक शान्ति की अवस्था को प्राप्त कर लेता था | शायद इसलिये यहाँ मौजूद चर्च के बाहर एक बोर्ड लगाया गया है | इसमें आत्मिक शान्ति और भूत –प्रेत सम्बन्धी बाधाओं से मुक्ति की बात लिखी गई है | विभिन्न टी वी चैनलों द्वारा उच्च क्षमता के सेंसरों द्वारा इस चर्च के पास नकारात्मक ऊर्जा की उपस्थिति की बात दिखाई गई है | इस चर्च की खिडकियों से अन्दर झाँकने पर पता चलता है कि यहाँ अन्दर कुछ बेंचें पड़ी हुई हैं | अन्दर मकडी के जाले लगे हुए हैं | इस चर्च के समीप एक कब्रिस्तान है जिसमे लगभग १५ से २० की संख्या में कब्र हैं और कुछ कब्रें टूटी फूटी अवस्था में हैं | वहाँ उपस्थित एक कब्र पर वर्ष १९५९ अंकित है | शायद यह डॉ मोरिस के किसी परिवारीजन की हो सकती है | यह माना जाता है कि यहाँ उन्हीं मरीजों की आत्माएं समय – समय पर अपनी उपस्थिति देती रहती हैं | इस बंगले के बारे में कई टीवी चैनलों ने कार्यक्रम दिए हैं | इसी कहानी पर जी टी वी से फियर एंड फाईल्स का  एपिसोड भी जारी हुआ है | कभी अस्पताल के रूप में प्रयोग में लाई गई यह कोठी आज बंद और वीरान पडी है | अब तो यह प्राइवेट प्रोपर्टी के रूप में खरीदी हुई बताई जाती है |
 इस अस्पताल के बारे में सुने गए किस्से – कहानियों से मन में इस स्थान को देखने की बड़ी इच्छा  थी | यह स्थान प्रकृति की सुरम्य स्थली में है | यहाँ से बर्फों से लदी  पर्वत श्रृंखलाएं सामने दिखाई देती हैं | प्राकृतिक सुन्दरता को देखते हुए यहाँ इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए लकड़ी के कोटेज तैयार किये जा  रहे हैं | इसके कारण भविष्य में यहाँ पर्यटन को और अधिक बढ़ावा मिल सकता है | यह स्थान मनमोहक है और यहाँ बहुत देर रुकने का मन कर रहा था | यहाँ भय जैसी कोई अनुभूति नहीं हुई |  यहाँ के कुछ लोगों का कहना था कि मोरिस की कहानी गडी गढ़ाई है जो कोरी गप है |


रविवार, 25 नवंबर 2018


कुछ यादें , कुछ बातें 5
मधुशाला और मेरा अनुभव
वर्ष १९९५ की बात है | एक इंटरव्यू के लिए मैं  इलाहाबाद गया था | मैं वहाँ एक होटल में रुका था | मैं होटल के बाहर घूम ही रहा था तभी मुझे एक आदमी मिला | उसने मुझसे बातचीत की | पता चला कि वह भी उत्तराखण्ड का रहने वाला है | उसने मेरे बगल का कमरा किराया पर ले लिया | रात को भोजन करने के बाद उसने बोतल निकाली | ढक्कन खोलने के बाद उसने मुझसे कहा, भुला ! तुम भी इसका शौक रखते हो ? मैंने कहा, नहीं| वह बोला, थोड़ी सी ले लो | कुछ नहीं होगा | मैंने मना किया | वह बोला, सॉरी , मुझे माफ़ करना| मुझे शराब पीने की आदत है | अगर  मेरे साथ अच्छा नहीं लग रहा है तो तुम अपने कमरे में चले जाओ | मैंने कहा, आप शौक फरमाओ | आप के साथ यहाँ बैठकर रहने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है |
मैं शराब नहीं पीता किन्तु मैं शराबियों की महफ़िल में  कई बार मौजूद रहा हूँ | इस महफ़िल में शराबियों के संवाद मुझे बहुत रोचक  लगते हैं | कई ऐसे मौके भी आये हैं जब शराबी मित्रों ने कहा, हम आपको शराब पिलाकर मानेंगे | मैं कहता तुम मुझे शराब नहीं पिला सकते | हाँ, किन्तु मुझे इस समय तुम्हारे साथ बैठने में कोई परहेज नहीं है | शराबियों की महफ़िल में मैं उनकी बातों का विश्लेषण करता रहता हूँ | कई बार शराबी नशे में बहुत गहरी बात बोल देते हैं | शायद इसीलिये कहा जाता है कि शराब के नशे में आदमी दिल की बात करता है | शराबियों की महफिल में मैंने उनकी दरियादिली को व्यक्त होते देखा है | इलाहाबाद में जो मेरे बगल के कमरे  में रहे थे , उन्होंने मुझे एक बार भी सुबह और रात के भोजन का बिल चुकता करने नहीं दिया | मैं बिल चुकता करने को होता तो वे नशे में कहते, भुला ! जब तक तेरा ये बड़ा भाई जिन्दा है तू फ़िकर मत किया कर |
दूसरे दिन  इंटरव्यू होने के बाद मैं उसी होटल में लौट आया | मैं थका हुआ था | इसलिए मैंने सोचा आज यहीं आराम करूंगा | कल यहाँ के महत्वपूर्ण स्थानों का भ्रमण करने के बाद वापस चला जाऊँगा | दूसरे दिन मेरे बगल में ठहरे वे शराबी मधुशाला जाने को तैयार हो गए | मैंने भी उनके साथ मधुशाला जाने का निर्णय लिया | वहाँ टूटी फूटी कुछ पुरानी बेंचें थी | कुछ पुरानी कुर्सियां भी थी | मैं भी एक खाली कुर्सी पर बैठकर शराबियों के व्यवहार का अध्ययन करने लगा | वहाँ लोग काउंटर से शराब की बोतल ला रहे थे | कुर्सी और बेंचों में बैठकर पी रहे थे | जो भी शराबी मुझे कुर्सी में बिना बोतल के देखता, वह समझता मेरे पास रूपये समाप्त हो गए हैं | वे अपने साथ रूपये लेकर आते | कहते, ये रूपये रख लो | वापस मत लौटाना | ये तुम्हारे बड़े भाई की तरफ से तुम्हारे लिए हैं |’’ कोई बोतल लेकर आता और कहता, यार तेरे पास रूपये नहीं हैं तो चिंता मत कर | ये ले ये बोतल पी ले | ’’
 मधुशाला में शराबियों के बीच बीते आत्मीय माहौल, उनके प्रेम और दरियादिली को देखकर मुझे अनुभव हुआ कि हरिवंश राय बच्चन ने बिलकुल सही कहा है, बैर बढाते मंदिर – मस्जिद, मेल कराती मधुशाला|



सोमवार, 17 सितंबर 2018

किसने उडाई थी रातों की नींद ?


कुछ बातें, कुछ यादें 3
किसने उडाई थी रातों की नींद ?
वर्ष १९९५ की बात है | मैं एम ० एस – सी द्वितीय वर्ष का छात्र था |  श्रीनगर के देवलोक होटल में हमने एम ० एस – सी प्रथम वर्ष वालों के स्वागत के लिए एक पार्टी रखी थी | पार्टी में एक दूसरे से हम परिचय प्राप्त कर रहे थे | हमारे साथी बलवीर रावत एम ० एस – सी प्रथम वर्ष वालों को द्वितीय वर्ष वालों का परिचय करा रहे थे | उन्होंने उनसे मेरा भी परिचय कराया |  मेरे मन में क्या सूझी ? मैंने कहा, ‘’साथियों ! श्री रावत जी ने आपसे मेरा परिचय तो करा दिया किन्तु उसका परिचय नहीं कराया जिसने मेरी रातों की नींद और दिन के चैन को चुराया था | अगर आप की सहमति हो तो मैं कविता के माध्यम से उससे भी आपका परिचय कराना चाहता हूँ |
हाँ , हाँ , क्यों नहीं ?’’- कुछ जूनियर और सहपाठियों ने एक स्वर में कहा |
तब मैंने यह कविता सुनाई थी –
श्रीनगर में आया था जब,
मैं पहली बार,
स्टेशन पर किया था तुमने
मुझ पर प्रथम प्रहार,
जब मैं अपने बिस्तर पर
बड़े प्रेम से सोया था,
सब दुखों को भूल
मीठे सपनो में खोया था,
मेरे मुख से मिला दिया था
तब तुमने अपना ये मुख,
तुमने मेरी निद्रा तोड़ी
मुझे हुआ तब बहुत दुःख,
रातों की तुमने नींद उडाई,
दिन का तुमने छीना चैन,
करवट बदलकर रात गुजारी,
किया मुझको ऐसा बेचैन,
जिधर जाता उधर तुम्हारा
मुझे सुनाई देता गीत,
नजरों से मेरी दफा हो जाओ,
मुझे नहीं है तुमसे प्रीत,
इस शहर में रहूँ कैसे
तुमसे मैं बचकर,
तुम प्रेमिका नहीं हो मेरी
तुम हो श्रीनगर के मच्छर |
मेरी रातों की नींद और दिन के चैन चुराने वाले से परिचय प्राप्त कर सभी हंस पड़े |
C-  डॉ० उमेश चमोला

शनिवार, 8 सितंबर 2018


कुछ यादें , कुछ बातें 2
उस चिड़िया का अद्भुत प्रेम
नरेन्द्रनगर में हमारे ऑफिस के सबसे किनारे के कक्ष में एक बार एक चिड़िया ने घोंसला बनाया | कुछ समय के बाद उस घौसले में दो नन्हें –नन्हें बच्चे  दिखाई दिए | उस कमरे में रोशनदान भी थे  | उन नन्हें पक्षियों के माता –पिता दरवाजे के बजाय रोशनदानों से ही आया  जाया  करते थे | वे इन शिशुओ को दाना रोशनदानो के रास्ते ही लाया करते थे | शायद उन्हें दरवाजे के बजाय रोशनदान वाला रास्ता सुरक्षित और उनकी प्राइवेसी की दृष्टि से उपयुक्त लगता था | पांच बजे के बाद सभी कमरों की सफाई की जाती थी | एक शुक्रवार की बात है | ऑफिस बंद होने के बाद अन्य कमरों की तरह चिड़िया के घौसले वाले कक्ष की भी सफाई की गई | सफाई करने वाले व्यक्ति ने सफाई के बाद दरवाजे के साथ – साथ रोशनदान भी बंद कर दिए | उसे पक्षियों का ध्यान नहीं रहा | रोशनदान बंद होने से पहले उन बच्चों के माता –पिता बच्चों के लिए दाना लेने बाहर जा रखे थे | दूसरे दिन द्वितीय शनिवार और तीसरे दिन रविवार का अवकाश था | सोमवार को ऑफिस खुला | वे नन्हें पक्षी ची – ची कर रहे थे | हमने बंद रोशनदान देखे | समझ में आया कि मामला कुछ गड़बड़ है | हमने तत्काल रोशनदान खोले | सफाई वाले का ध्यान इस ओर दिलाया और कहा कि अब रोशनदान बंद मत करना | शाम तक भी उन बच्चों के माता –पिता वहाँ नहीं आये थे | हमने उन बच्चों के मुंह में दाने डालने का प्रयास किया किन्तु उन्होंने चोंच खोली ही नहीं | मंगलवार को हमें उन पक्षियों के माता –पिता की तरह दो पक्षियाँ दिखाई दी | वे उस कमरे के बजाय निकट के दूसरे कमरे में आई थी | उनके चाल- ढाल से लग रहा था कि वे कुछ ढूंढ रहीं थीं | शायद वे उन्हीं बच्चों के माता – पिता थे किन्तु रास्ता भटक गए थे | हमने उन्हें बच्चों वाले कमरे की ओर भेजने की कोशिश की किन्तु वे उस कमरे में गई ही नहीं | बुधवार को ऑफिस खुला | आज उन बच्चों के माता –पिता अपने घोंसले में आ गए थे | अब बहुत देर हो चुकी थी | वे नन्हे पक्षी मर गए थे |  मृत बच्चों को देखकर उनके माता –पिता बेचैन हो गए थे | कभी वे कमरे से बाहर जाते , फिर वापस घोंसले की ओर आते | ऐसा वे बार – बार करते | अंत में एक चिड़िया  अपनी चोंच को बार-बार दीवार से टकराती रही | अंत में वह चिड़िया मर गई |
c- डॉ० उमेश चमोला

सोमवार, 3 सितंबर 2018

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: कुछ यादें , कुछ बातें 1-   मेरठ शहर की तहजीब   जीवन में हमारे साथ कई प्रकार की घटनाएँ घटती हैं | कुछ घटनाएँ समय के द्वारा दिल की डायर...

कुछ यादें , कुछ बातें
1-  मेरठ शहर की तहजीब
  जीवन में हमारे साथ कई प्रकार की घटनाएँ घटती हैं | कुछ घटनाएँ समय के द्वारा दिल की डायरी में अंकित की जाती हैं | मेरठ से सम्बंधित एक घटना आप सभी से साझा कर रहा हूँ | वर्ष १९९८ में  अपने शोध के सिलसिले में मुझे मेरठ विश्वद्यालय जाना था | मैं मेरठ पहली बार जा रहा था | इसलिए मुझे वहाँ के होटल आदि की जानकारी नहीं थी | मैं हरिद्वार से मेरठ के लिए रोडवेज मैं बैठ गया | बस मेरठ बस स्टेशन पर रुकी | मैंने एक रिक्शे वाले से कहा, “ मुझे यहाँ एक रात रुकना है | किसी बढ़िया होटल तक ले जा दो |” वह बोला , बाबू जी ! २० रु लगेंगे |” मैं रिक्शे मैं बैठ गया | लगभग आधे घंठे में एक होटल के बाहर छोड़ते हुए रिक्शा वाला बोला, “ यह बहुत अच्छा होटल है | आपके रहने की यहाँ व्यवस्था हो जायेगी | आप चाहें तो खाना बाहर खा सकते हैं | यहाँ पास में ही आपको ढाबे मिल जाएंगे | ‘’
जहाँ तक मुझे याद है उस होटल का नाम ‘सईद होटल’ था | मैं होटल में पंहुच गया | वहाँ दो आदमी मुझे दिखाई दिए | उनका पहनावा बता रहा था कि वे मुसलमान हैं |  उनमे से एक आदमी ने एक बड़ा रजिस्टर निकाला | उसमे उर्दू में ही लिखा हुआ था | उसने मुझसे पूछा, ‘’ आपका नाम क्या है ?’’  कौम का नाम बताइए | मैंने यथोचित उत्तर दिया | उन्होंने मुझसे सम्बंधित विवरण उस रजिस्टर में अंकित किया | इसके बाद वह बोला , ‘’ अगर आपके पास कोई नगदी है तो हमें जमा कर दो | कल जाने से पहले वापस कर देंगे | “ मेरे पास पांच हजार रुपए थे | मैंने वे उनके पास जमा कर दिए | भोजन करने के बाद मैं सोने लगा | मुझे मन ही मन डर भी लग रहा था | सोच रहा था कि जमा पांच हजार की  रसीद मुझे उनसे मांगनी चाहिए थी | मैं बिस्तर पर लेट गया था किन्तु मेरी आँखों से नींद गायब थी | कुछ देर बाद मैंने उस होटल के मालिक को मेरे बगल की चारपाई पर लेट रहे व्यक्ति को डांटते हुए सुना | उन दोनों की बातों से लग रहा था कि उस व्यक्ति ने जिस चारपाई पर मैं सो रहा था उसके नीचे अपने जूते उतारकर रख दिए थे | होटल का मालिक उस व्यक्ति से कह रहा था ,” तुम्हारे बगल पर जो इंसान सोया हुआ है , वह दूसरी कौम का है | वह हमारे लिए मेहमान है | तुमने उसकी चारपाई के नीचे अपने जूते रखकर अच्छा काम नहीं किया है | ‘’
 मुझे अपनी चारपाई के नीचे कुछ हलचल सी महसूस हुई | शायद उस व्यक्ति ने वहाँ से अपने जूते निकाल लिए थे | अब मेरे मन से सारा डर निकल गया था | मुझे गहरी नींद आ गयी थी | मै सुबह उठा | उस डोर्मीट्री में सभी ठहरने वालों के लिए एक ही टॉयलेट था | मै फ्रेश होने गया | टॉयलेट खाली था | मुझे लगा उन्होंने मुझे उठता देखकर मेरे लिए टॉयलेट खाली करवा दिया था | जाते समय मैंने उनका धन्यवाद किया | होटल के मालिक ने कहा, ‘’ हम भले अलग – अलग मजहब से हैं किन्तु हम सभी का पहला मजहब तो इंसानियत का है | जब मैंने उन्हें बताया कि मुझे विश्वविद्यालय जाना है तो एक  मुझे काफी दूर तक छोड़ने आये |


बुधवार, 22 अगस्त 2018




पुस्तक परिचय
शिक्षा का अधिकार
स्थिति और प्रभाव
लेखक – डॉ० सुनील कुमार गौड़
पुस्तक समीक्षक – डॉ० उमेश चमोला
निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के  अधिकार अधिनियम २००९ के अंतर्गत उत्तराखण्ड में सभी बच्चों को शिक्षा के अवसरों की समानता का प्रयास किया गया है | इसके लिए समाज के कमजोर वर्ग तथा अपवंचित वर्ग के बच्चों को निजी / गैर अल्पसंख्यक असहायता प्राप्त विद्यालयों में निशुल्क शिक्षा प्राप्त करने के अवसर दिए जा रहे हैं | इसका व्यय सरकार द्वारा वहन किया जाता है | अन्य विद्यार्थियों की तुलना में इन वर्गों के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि तथा शिक्षा के अधिकार का इन विद्यार्थियों पर पडने वाले प्रभाव का अध्ययन किया जाना आवश्यक है | इससे शिक्षा के अधिकार कानून की प्रभावशीलता का भी पता चलेगा | इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षा का अधिकार
स्थिति और प्रभाव’ पर डॉ ० सुनील कुमार गौड़ द्वारा शोध कार्य किया गया है | इसे समय साक्ष्य प्रकाशन देहरादून द्वारा पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया गया है |
पुस्तक में दी गई विषयवस्तु  आठ अध्यायों में विभक्त की गई है | प्रथम अध्याय ‘प्रस्तावना ‘ में महात्मा गाँधी और  जे ० कृष्णमूर्ति के विचारों के आधार पर शिक्षा की अवधारणा को स्पष्ट किया गया है | साथ ही भारतीय संविधान और विभिन्न राष्ट्रीय शैक्षिक दस्तावेजों  के परिप्रेक्ष्य में निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के महत्व पर प्रकाश डाला गया है | दूसरा अध्याय शिक्षा के अधिकार की पृष्ठभूमि पर आधारित है | इसमें सन १८७० में प्रत्येक ब्रितानी के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को कानूनी रूप देने से प्रारंभ करते हुए 4 अगस्त २००९ को भारतीय संसद द्वारा बच्चों हेतु निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम २००९ पारित करने,२६ अगस्त २००९ को इसके क़ानून बनने और 1 अप्रैल 2010 से लागू होने तक के ऐतिहासिक क्रम को प्रस्तुत किया गया है | अध्याय 3 में  उत्तराखंड की प्रारम्भिक शिक्षा तथा शिक्षा का अधिकार’ में उत्तराखंड में प्रारंभिक शिक्षा के शैक्षिक परिदृश्य से सम्बंधित आंकड़े दिए गए हैं | साथ ही उत्तराखण्ड में शिक्षा के अधिकार के क्रियान्वयन से सम्बंधित तथ्य दिए गए हैं | निजी विद्यालयों में अपवंचित और कमजोर वर्ग के बच्चे कैसे प्रवेश पाते हैं, इस पर भी प्रकाश डाला गया है | अध्याय 4 में शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत निजी विद्यालयों में कमजोर और अपवंचित वर्ग के विद्यार्थियों से सम्बंधित पूर्व में किये गए अध्ययनों का विवेचनात्मक विवरण प्रस्तुत किया गया है | इसी अध्याय में संयुक्त राष्ट्र बालकोष यूनिसेफ़ हाउस नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित ’निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम २००९ पर अक्सर पूछे जाने वाले  सवाल पुस्तिका में दिए ८३ प्रश्नों में से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उनके उत्तरों सहित दिए गए हैं | किसी भी शैक्षिक शोध में पूर्व में किये अध्ययनों के विवेचन से उस शोध की मौलिकता प्रमाणित होती है | इस अध्याय से स्पष्ट होता है कि उत्तराखण्ड के असहायता प्राप्त निजी विद्यालयों में अध्ययनरत अपवंचित एवं कमजोर वर्ग के बच्चों की शिक्षा व्यवस्था हेतु सरकार  द्वारा व्यय की जा रही धनराशि की उपादेयता, इन बच्चों की स्थिति तथा शिक्षा के अधिकार का इन बच्चों पर प्रभाव विषय पर शोध पहली बार लेखक द्वारा किया गया है | अध्याय 5 में उत्तराखण्ड में शिक्षा के अधिकार के परिप्रेक्ष्य में निजी विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थियों के परिदृश्य से सम्बंधित आंकड़े दिए गए हैं | अध्याय 6 से 8 शोध की प्रक्रिया, आंकड़ों का विश्लेषण, शोध निष्कर्ष तथा आगामी शोध हेतु सुझाव पर आधारित हैं | शोध से महत्वपूर्ण निष्कर्ष प्राप्त हुए हैं | निजी विद्यालयों के प्रबंधकों,प्रधानाचार्यों तथा शिक्षकों से साक्षात्कार द्वारा प्राप्त आंकड़ों के आधार पर स्पष्ट होता है कि अपवंचित तथा कमजोर वर्ग की शैक्षिक प्रगति के लिए यह अधिनियम लाभकारी है | शोध अध्ययन से इस  अधिनियम को प्रभावी रूप से लागू करने में आई समस्याएं भी रेखांकित हुई हैं जैसे कतिपय विद्यालयों द्वारा इस अधिनियम का पूर्ण रूप से पालन न किया जाना,सभी निजी विद्यालयों द्वारा प्रतिवर्ष 25 प्रतिशत सीटों की घोषणा नहीं कर पाना, घोषित सीटों के सापेक्ष सभी सीटों पर प्रवेश न कर पाना, सरकार द्वारा प्रतिवर्ष समय से विद्यालयों को प्रतिपूर्ति व्यय न मिल पाना आदि | इसके साथ ही शोधकर्ता द्वारा इस अधिनियम को प्रभावी रूप से क्रियान्वित करने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए हैं |
 शोध पर आधारित यह पुस्तक शैक्षिक प्रशासकों, शिक्षकों, अभिभावकों तथा शोधार्थियों के लिए उपयोगी साबित होगी  | ऐसा विश्वास है| पुस्तक के अंत में 13 बाल अधिकारों को दिया गया है जो पुस्तक के महत्व को और भी बढ़ाते हैं |
पुस्तक का मूल्य -१२० रु , प्रकाशन वर्ष -२०१८,
प्रकाशक – समय साक्ष्य 15 फालतू लाइन, देहरादून, उत्तराखण्ड |
लेखक संपर्क - 9456377099


रविवार, 20 मई 2018




पुस्तक परिचय
उडि जौं अगास
कवि – गिरीश सुन्दरियाल
समीक्षक – डॉ० उमेश चमोला
पक्षियों से काव्यात्मक संवाद है ‘उडि जौं अगास’
 उत्तराखण्ड के विहंगम सौन्दर्य   के बीच विभिन्न पक्षियों का मधुर स्वर ह्रदय को आहलादित कर देता है | पक्षियाँ यहाँ के लोक जीवन में रची बसी हैं | इसीलिए अन्य क्षेत्रों की तरह पक्षियाँ यहाँ की लोककथाओं, लोकगाथाओं, लोकगीतों आदि का अभिन्न हिस्सा रही हैं | यहाँ की पक्षियों से सम्बंधित लोककथायें सामान्यतया दुखांत रही हैं | इन कथाओं में प्राय: कथा के प्रमुख चरित्र की मृत्यु हो जाती है | मृत्यु के बाद वह किसी पक्षी के रूप में जन्म लेता है | पूर्व जन्म के संस्कार के अनुसार उसे विशिष्ट पक्षी का स्वर प्राप्त होता है | काफल पाको मिन नि चाखो, सौतेला पूरा पूर पूर,आज-भोल, तिसमिली तीस-तीस, काग भाषा,घुघुती बैण जैसी लोककथाएँ कुछ उदाहरण हैं | इसी प्रकार कई लोकगीतों में पक्षियों का वर्णन किया गया है |  कुछ  मांगल(मांगलिक अवसर पर गाये जाने वाले गीत )  गीतों में कौवे का आह्वान देखने को मिलता है | खेल गीत और लोरी गीतों में भी पक्षियाँ चित्रित हुई हैं | घुघुती बासूती इसका उदाहरण है | इसी प्रकार विभिन्न रचनाकारों की कहानियों, गीतों, कविताओं , खंड काव्य आदि का विषय भी पक्षियाँ रही हैं | इसी श्रृंखला में कवि और गीतकार गिरीश सुन्दरियाल की पुस्तक ‘उडि जौं अगास’ को एक महत्वपूर्ण प्रयास कहा जा सकता है | इस पुस्तक में उत्तराखण्ड में पाई जाने वाली ऐसी पक्षियों को कविता में स्थान दिया गया है जो साहित्य में उपेक्षित रही हैं | घुघुती, कौआ,गौरैया,कोयल, काफल पाको आदि लोकसाहित्य में बहु वर्णित पक्षियों के साथ –साथ कवि द्वारा ढेंचू,ग्व्थनि, धिस्वलि,मल्यो ( पहाडी कबूतर),तीतर, सुव्वा (तोता प्रजाति का पक्षी),नीलकंठ,चुफल्या ,कफ्फू,मोनाल,बंसरा,मुसफ्य्खडा,सुरड़ी,मेल्वड़ी,चकोर,सिंटुली(पहाडी मैना), कलचुंडी, था थबडि (उड़ते हुए बीच में रूक कर संतुलन बनाने वाला पक्षी ), गरुड़,चील, तोता, लम्पुछ्या (लम्बी पूंछ वाला पक्षी) कठफोड़वा,उल्लू, जल मुर्गी आदि पर भी कवितायेँ रची गई हैं | ये कवितायेँ पक्षियों से  कवि का काव्यात्मक संवाद  कही जा सकती हैं |    इसी संवाद के बहाने कवि द्वारा पलायन के कारण गाँव में बंजर पड़े खेत ,बचपन के लुप्त हो चुके खेल, थड्या – झुमैलो के स्थान पर डिस्को पॉप का चलन आदि के प्रति ह्रदय की पीड़ा अभिव्यक्त हुई है | इसी प्रकार कुछ कविताओं में वर्तमान राजनीति में आई मूल्य विहीनता पर व्यंग्य भी देखने को मिलता है | ‘सूनि-गरुड़ – मंत्रिजि’ कविता में कवि वर्तमान नेताओं को सूनि-गरुड़ पक्षी की संज्ञा देता है | सूनि-गरुड़ पक्षी हमेशा दिखाई नहीं देता है | पूजा विशेष के अवसर पर ही दिखाई देता है | ऐसे नेताओं से कवि कहता है –
सूनि-गरुड़ मंत्रिजि आवा
उद्घाटन स्यो करि जावा
काम भौं कुछ हुयां न हुयां
ढूंगु तुम भी चिपकै जावा |’
इसी प्रकार ‘चिलांग- नेता जी ‘ कविता में कवि चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक गायब रहने के बाद अचानक प्रकट होने वाले नेता जी को खरी खोटी सुनाता है |
कविताओं में कवि द्वारा  पक्षियों को ताऊ,मामा,भान्जा,मौसी,समधी,दीदी, भुली( छोटी बहिन),पूफु(बुआ),भाभी,जैसे संबोधन देना उनके प्रति कवि के अपनत्व की  भावना को दिखाता है | उत्तराखंड में सिंटूलि(पहाड़ी मैना ) पक्षी के बारे में कहा जाता है कि यह पक्षी सुबह उठने के बाद जब भूखा रहता है तो मनुष्य के मल को खाता है | जब उसका पेट भर जाता है तो वह दूसरी चिड़िया से कहता है – ‘ छि दीदी गू नि खाण ‘( हे दीदी , अब गू (मानव मल) नहीं खाना है | दूसरे दिन जब उसे भूख लगती है तो वह कहता है –‘गू नि खाण त क्या खाण ( मानव मल नहीं खाना है तो फिर क्या खाना है ?’ किसी गलत कार्य को न करने की प्रतिज्ञा करने और फिर उस प्रतिज्ञा को तोड़ने वाले लोगों के सन्दर्भ में यह कहावत उद्धृत की जाती है | कवि ‘सिंटूलि सकलि’ कविता में इस पक्षी के बारे में प्रचलित परम्परागत सोच से हटकर प्रेम की भावना व्यक्त करता है | कुछ कविताओं में मुहावरों और लोकोक्तियों का सुंदर प्रयोग किया गया है |’च्योलि तिसलु’ कविता में जैसा बोयेगा वैसा काटेगा कहावत को कवि ने नया  स्वरूप दिया है –
‘बुतिला जो धतूर,
व्हाली कख मसूर,’( अगर धतूरा बोयेंगे तो मसूर कैसे उगेगी )
इसी प्रकार ‘तितर भणजा’ कविता में ‘या त गुड  ही जणदा या त थौला ही जणदा,(परेशानी झेलने वाला ही परेशानी को समझता है) तथा ‘’गण घुघुती स्वाणी’ में तातु दूध हुयूँ चा, घुटेणु न थुकेणू चा जैसे कहावतो का प्रयोग किया गया है |
पुस्तक की भूमिका कवि और रंगकर्मी श्री मदन मोहन डूकलान ने लिखी है | उन्होंने इन कविताओं के बारे में अपना मत प्रकट किया है –‘इन कविताओं में कवि की कल्पना की उड़ान उसे सातवें आसमान में पंहुचाती है किन्तु उसके पैर धरती में ही दिखाई देते हैं | हमारे जीवन का कोई ऐसा रिश्ता –नाता नहीं है जिसके बारे में इन रचनाओं में बात नहीं हुई है | मानवीय संबंधों और आपसी सरोकारों के सभी रंग इस पोथी में दिखाई देते हैं | पहाडी जन जीवन और उसके सरोकारों और संबंधों का तानाबाना है यह गीति काव्य |(श्री डूकलान द्वारा  गढ़वाली में लिखे अंश का भावानुवाद )| कविताओं में जहाँ ‘प्रोब्लम’ और टैम  जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है  तो ठेठ गढ़वाली शब्दों का प्रयोग भी किया गया है | इन शब्दों के साथ – साथ उनके अर्थ भी दिए गए हैं | यह गढ़वाली भाषा के शब्दों को संरक्षित करने का प्रयास कहा जा सकता है | गढ़वाली भाषा के पाठक  जो  अपना  शब्द भंडार  बढाना चाहते हैं उनके लिए यह ज्ञानवर्धक है |
पुस्तक का आवरण आकर्षक है | मुद्रण स्पष्ट है | पुस्तक में पक्षियों पर आधारित ५३ कवितायेँ हैं | अत: बिना इन पक्षियों को जाने इनका चित्रांकन संभव नहीं था | पक्षियों के चित्रांकन को देखकर चित्रकार डॉ बी० एस० नेगी की पक्षियों के प्रति स्पष्ट समझ भी व्यक्त होती है | अत: कवि के साथ –साथ चित्रकार को भी हार्दिक बधाई |
अंत में संग्रह से ‘छ्वीं -बत’ कविता के कुछ अंश –
उडि जौं अगास ,
ज्यू ब्व्नू छ आज
तुम दगडी हैंसु –खेलु
बनी पंछि आज
हे दगडयो आज
हे  च्खुल्यों आज
औ हे मनखी ह्म्हरा गैल
सरया दुन्या की करला सैल
निरदुन्द ह्वे उडला-फिरला
नचला अर च्वीन्च्याट करला
प्रकाशक – समय साक्ष्य 15 फालतू लाइन ,देहरादून २४८००१
मूल्य -१२५ रु
रचनाकार – गिरीश सुंदरियाल
c-  डॉ उमेश चमोला
प्रकाशन वर्ष -२०१६




शनिवार, 12 मई 2018

drishti: पुस्तक समीक्षा ‘झुम्पा’( गढ़वाली बाल कविता संग्रह...

drishti:

पुस्तक समीक्षा ‘झुम्पा’( गढ़वाली बाल कविता संग्रह...
: पुस्तक समीक्षा ‘झुम्पा’( गढ़वाली बाल कविता संग्रह ) कवि –यतेन्द्र गौड़ ‘यति’ समीक्षक –डॉ ० उमेश चमोला विविध कविता रूपी फलों का झुम्पा है...


पुस्तक समीक्षा ‘झुम्पा’( गढ़वाली बाल कविता संग्रह )
कवि –यतेन्द्र गौड़ ‘यति’
समीक्षक –डॉ ० उमेश चमोला
विविध कविता रूपी फलों का झुम्पा है ‘झुम्पा’ बाल कविता संग्रह
‘झुम्पा’ शब्द का अर्थ होता है गुच्छा |
पेड़ों पर लटकते हुए फलों के गुच्छे सबका मन मोह लेते हैं | इन लटकते हुए फलों को तोड़ने के लिए बच्चों को उछलकूद करते हुए देखने पर अपना बालपन याद आता है |उत्तराखण्ड के प्राकृतिक सौन्दर्य,रीतिरिवाज ,पशु –पक्षी,खेती और जंगल की भावभूमि पर आधारित कविता रूपी फलों का झुम्पा लेकर आऐ हैं यतेन्द्र गौड़ ‘यति’ अपने गढ़वाली बालकविता संग्रह में | पुस्तक की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ० नन्द किशोर ढ़ोंडियाल’अरुण’ संग्रह की कविताओं को प्रकृति के बीच लिखी गई कविता मानते हैं | वास्तव में संग्रह की कविताओं में उत्तराखण्ड की प्रकृति बोलती है | यहाँ की डांडी –कांठी,वनस्पतियाँ,बुग्याल,यहाँ के फल जैसे भमोरा,बेडू,हिसर,किनगोड,काफलआदि, घुघुती,गौरैया,हिलांस पक्षियाँ,पहाडी व्यंजन (कोदे की रोटी,माखन की डली,तिल की चटनी, चोलाई की सब्जी,कंडाली का साग ),पहाडी वस्त्र और आभूषण,परम्परागत वाद्य ढोल –दमों ,तीज –त्योहार( दीपावली,हरेला,होली) यह सब आयें हैं संग्रह की कविताओं में | इसके अलावा राष्ट्र प्रेम,तिरंगा,पंद्रह अगस्त तथा कलाम त्वैतैं सलाम जैसी कविताओं में कवि के ह्रदय की राष्ट्र प्रेम की भावना व्यक्त होती है |
इन कविताओं में प्रकृति की गोद में पले –बड़े नौनिहालों की मनोभावना अभिव्यक्त होती है | ग्रामीण नौनिहाल जो गाय की बछिया से भी संवाद करता है |जो खेतों में मक्का के बीज बोने पर प्रतीक्षारत है छोटे –छोटे ख़ूबसूरत पौधों के उगने की |उसे डर भी है रात्रि के समय सेही और दिन के समय आतंक के पर्याय बने बंदरों से कहीं वे उसके सपने को धुल धूसरित न कर दें | जो चखुलों (पक्षियों ) की तरह निस्सीम गगन में सपनो की उड़ान भरने को व्यग्र है |जो घाम(सूर्य के प्रकाश) की तरह चारों दिशाओं में फैलना चाहता है और पानी की धारा की तरह गतिशील रहना चाहता है |
‘कंडली की झपाक’ ‘अब क्या जी कन्न’ और ‘असल मा तुम च्हाणा क्या छन जैसी कविताएँ इसी बच्चे के ह्रदय की पीड़ा को स्वर देती हैं कि वह बड़ों से कुछ कहना चाहता है पर वे सुने तो सही | ‘कंडली की झपाक’ पाठक को उस कालखंड की ओर ले जाती है जब बच्चे को स्कूल और घर में किसी अपराध के लिए हाथ पर कंडली (बिच्छू घास ) लगाने की सजा दी जाती थी | कंडली की झपाक की कल्पना मात्र से शरीर में सिहरन हो उठती थी | वर्तमान समय में परिस्थितियां बदल चुकी हैं | अब बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार अतीत का विषय हो चुका है | इसी तरह वर्तमान कंप्यूटर के युग में पाटी (तख्ती ) पर लिखना एक ऐतिहासिक घटना हो चुकी है | कवि अभी भी पाटी को भूला नहीं है | उसे याद है पाटी पर लिखे अक्षर चमक के साथ अंकित हों ,इसलिए उस पर बोतल से रगडा जाता था | इसे घोटा लगाना कहते थे | ‘घुट्या रे’ कविता में कवि जीवन रूपी पाटी पर परिश्रम रूपी घोटा लगाने की सलाह देता है |
गिनती पर आधारित बाल कवितायेँ हिन्दी में काफी लिखी जा चुकी हैं | जैसे एक था राजा का बेटा,दो दिनों से भूखा लेटा | कुमाउनी भाषा में ऐसा प्रयोग नान्तिनो कि सजोलि’ में विनीता जोशी ने भी किया है | “झुम्पा’ में कवि इसी प्रकार की कविता के माध्यम से नौनिहालों से गिनती गाने का आह्वान करता है |
संग्रहीत कविताओं में ग्रामीण जीवन मुखरित हो उठता है |
कविताओं में आम प्रचलन में प्रयुक्त गढ़वाली शब्दों का प्रयोग किया गया है | बाल कविताओं की कई विशेषताओं में से एक है ध्वन्यात्मकता का समुचित प्रयोग | यतेन्द्र गौड़ की इस संग्रह की ‘माछि टुलुक’ ,खिल्वारोलि’ और ‘बूंदा “ कवितायेँ विशिष्ट ध्वन्यात्मकता के कारण बच्चों को रोचक लग सकती हैं |’झम्म झमले’ और ‘पट्ट गीत’ में लोकगीत शैली का प्रयोग किया गया है | इस कारण इन्हें बच्चों द्वारा गाया जा सकता है | वर्तमान समय में शहरी मध्य और उच्च वर्ग के बच्चों के लिए बाल साहित्य खूब लिखा जा रहा है किन्तु बाल साहित्य में ग्रामीण क्षेत्र का बच्चा आज भी उपेक्षित है | यह बात हिन्दी बाल साहित्य के लिए है | गढ़वाली भाषा में तो आज कविताओं के लेखन पर बहुत जोर चल रहा है | गद्य साहित्य उपेक्षा का शिकार है | कविताओं में भी बाल साहित्य उपेक्षित है |ऐसे में यतेन्द्र गौड़ ‘यति’ का यह प्रयास आशा की किरण कहा जा सकता है | उन्होंने गाँव की माटी में जन्मे, खेलने –कूदने और गाँव की प्रकृति में रचे बसे बच्चे के लिए अपनी लेखनी चलाई | कवि का यह प्रयास सराहनीय कहा जा सकता है | आज गाँव के परिवेश में भी बदलाव आ चुका है | अत: बाल कविताओं में भी यह बदलाव दिखाई देना समय की मांग है | आशा है कवि भविष्य में गाँव के बदले हुए परिवेश को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाएंगे | कवि को इस संग्रह के लिए बधाई |
अंत में संग्रह से किरम्व्लु’ कविता की कुछ पंक्तियाँ –
लब्बि स्या लंगत्यार ल्हेकि,
इक्सन्या इकसार ह्वेकि,
बाटू हिटणा सुर सुरीकि,
हाँ !किरम्व्लु जी कख बिटिकि?

जाणि कख बरात आज,
पण निशाण कख गाजा बाजा,
को च ब्योला कख छ डोला
हे किर्म्वलु जी कुछ त बोला |

---प्रकाशक –समय साक्ष्य
15 फालतू लाइन देहरादून २४८००१
वर्ष -२०१७
मूल्य -१०० रु |
कवि संपर्क -9411585692


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