शनिवार, 12 मई 2018



पुस्तक समीक्षा ‘झुम्पा’( गढ़वाली बाल कविता संग्रह )
कवि –यतेन्द्र गौड़ ‘यति’
समीक्षक –डॉ ० उमेश चमोला
विविध कविता रूपी फलों का झुम्पा है ‘झुम्पा’ बाल कविता संग्रह
‘झुम्पा’ शब्द का अर्थ होता है गुच्छा |
पेड़ों पर लटकते हुए फलों के गुच्छे सबका मन मोह लेते हैं | इन लटकते हुए फलों को तोड़ने के लिए बच्चों को उछलकूद करते हुए देखने पर अपना बालपन याद आता है |उत्तराखण्ड के प्राकृतिक सौन्दर्य,रीतिरिवाज ,पशु –पक्षी,खेती और जंगल की भावभूमि पर आधारित कविता रूपी फलों का झुम्पा लेकर आऐ हैं यतेन्द्र गौड़ ‘यति’ अपने गढ़वाली बालकविता संग्रह में | पुस्तक की भूमिका में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ ० नन्द किशोर ढ़ोंडियाल’अरुण’ संग्रह की कविताओं को प्रकृति के बीच लिखी गई कविता मानते हैं | वास्तव में संग्रह की कविताओं में उत्तराखण्ड की प्रकृति बोलती है | यहाँ की डांडी –कांठी,वनस्पतियाँ,बुग्याल,यहाँ के फल जैसे भमोरा,बेडू,हिसर,किनगोड,काफलआदि, घुघुती,गौरैया,हिलांस पक्षियाँ,पहाडी व्यंजन (कोदे की रोटी,माखन की डली,तिल की चटनी, चोलाई की सब्जी,कंडाली का साग ),पहाडी वस्त्र और आभूषण,परम्परागत वाद्य ढोल –दमों ,तीज –त्योहार( दीपावली,हरेला,होली) यह सब आयें हैं संग्रह की कविताओं में | इसके अलावा राष्ट्र प्रेम,तिरंगा,पंद्रह अगस्त तथा कलाम त्वैतैं सलाम जैसी कविताओं में कवि के ह्रदय की राष्ट्र प्रेम की भावना व्यक्त होती है |
इन कविताओं में प्रकृति की गोद में पले –बड़े नौनिहालों की मनोभावना अभिव्यक्त होती है | ग्रामीण नौनिहाल जो गाय की बछिया से भी संवाद करता है |जो खेतों में मक्का के बीज बोने पर प्रतीक्षारत है छोटे –छोटे ख़ूबसूरत पौधों के उगने की |उसे डर भी है रात्रि के समय सेही और दिन के समय आतंक के पर्याय बने बंदरों से कहीं वे उसके सपने को धुल धूसरित न कर दें | जो चखुलों (पक्षियों ) की तरह निस्सीम गगन में सपनो की उड़ान भरने को व्यग्र है |जो घाम(सूर्य के प्रकाश) की तरह चारों दिशाओं में फैलना चाहता है और पानी की धारा की तरह गतिशील रहना चाहता है |
‘कंडली की झपाक’ ‘अब क्या जी कन्न’ और ‘असल मा तुम च्हाणा क्या छन जैसी कविताएँ इसी बच्चे के ह्रदय की पीड़ा को स्वर देती हैं कि वह बड़ों से कुछ कहना चाहता है पर वे सुने तो सही | ‘कंडली की झपाक’ पाठक को उस कालखंड की ओर ले जाती है जब बच्चे को स्कूल और घर में किसी अपराध के लिए हाथ पर कंडली (बिच्छू घास ) लगाने की सजा दी जाती थी | कंडली की झपाक की कल्पना मात्र से शरीर में सिहरन हो उठती थी | वर्तमान समय में परिस्थितियां बदल चुकी हैं | अब बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार अतीत का विषय हो चुका है | इसी तरह वर्तमान कंप्यूटर के युग में पाटी (तख्ती ) पर लिखना एक ऐतिहासिक घटना हो चुकी है | कवि अभी भी पाटी को भूला नहीं है | उसे याद है पाटी पर लिखे अक्षर चमक के साथ अंकित हों ,इसलिए उस पर बोतल से रगडा जाता था | इसे घोटा लगाना कहते थे | ‘घुट्या रे’ कविता में कवि जीवन रूपी पाटी पर परिश्रम रूपी घोटा लगाने की सलाह देता है |
गिनती पर आधारित बाल कवितायेँ हिन्दी में काफी लिखी जा चुकी हैं | जैसे एक था राजा का बेटा,दो दिनों से भूखा लेटा | कुमाउनी भाषा में ऐसा प्रयोग नान्तिनो कि सजोलि’ में विनीता जोशी ने भी किया है | “झुम्पा’ में कवि इसी प्रकार की कविता के माध्यम से नौनिहालों से गिनती गाने का आह्वान करता है |
संग्रहीत कविताओं में ग्रामीण जीवन मुखरित हो उठता है |
कविताओं में आम प्रचलन में प्रयुक्त गढ़वाली शब्दों का प्रयोग किया गया है | बाल कविताओं की कई विशेषताओं में से एक है ध्वन्यात्मकता का समुचित प्रयोग | यतेन्द्र गौड़ की इस संग्रह की ‘माछि टुलुक’ ,खिल्वारोलि’ और ‘बूंदा “ कवितायेँ विशिष्ट ध्वन्यात्मकता के कारण बच्चों को रोचक लग सकती हैं |’झम्म झमले’ और ‘पट्ट गीत’ में लोकगीत शैली का प्रयोग किया गया है | इस कारण इन्हें बच्चों द्वारा गाया जा सकता है | वर्तमान समय में शहरी मध्य और उच्च वर्ग के बच्चों के लिए बाल साहित्य खूब लिखा जा रहा है किन्तु बाल साहित्य में ग्रामीण क्षेत्र का बच्चा आज भी उपेक्षित है | यह बात हिन्दी बाल साहित्य के लिए है | गढ़वाली भाषा में तो आज कविताओं के लेखन पर बहुत जोर चल रहा है | गद्य साहित्य उपेक्षा का शिकार है | कविताओं में भी बाल साहित्य उपेक्षित है |ऐसे में यतेन्द्र गौड़ ‘यति’ का यह प्रयास आशा की किरण कहा जा सकता है | उन्होंने गाँव की माटी में जन्मे, खेलने –कूदने और गाँव की प्रकृति में रचे बसे बच्चे के लिए अपनी लेखनी चलाई | कवि का यह प्रयास सराहनीय कहा जा सकता है | आज गाँव के परिवेश में भी बदलाव आ चुका है | अत: बाल कविताओं में भी यह बदलाव दिखाई देना समय की मांग है | आशा है कवि भविष्य में गाँव के बदले हुए परिवेश को भी अपनी रचनाओं का विषय बनाएंगे | कवि को इस संग्रह के लिए बधाई |
अंत में संग्रह से किरम्व्लु’ कविता की कुछ पंक्तियाँ –
लब्बि स्या लंगत्यार ल्हेकि,
इक्सन्या इकसार ह्वेकि,
बाटू हिटणा सुर सुरीकि,
हाँ !किरम्व्लु जी कख बिटिकि?

जाणि कख बरात आज,
पण निशाण कख गाजा बाजा,
को च ब्योला कख छ डोला
हे किर्म्वलु जी कुछ त बोला |

---प्रकाशक –समय साक्ष्य
15 फालतू लाइन देहरादून २४८००१
वर्ष -२०१७
मूल्य -१०० रु |
कवि संपर्क -9411585692


Like
Comment

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें