सोमवार, 17 सितंबर 2018

किसने उडाई थी रातों की नींद ?


कुछ बातें, कुछ यादें 3
किसने उडाई थी रातों की नींद ?
वर्ष १९९५ की बात है | मैं एम ० एस – सी द्वितीय वर्ष का छात्र था |  श्रीनगर के देवलोक होटल में हमने एम ० एस – सी प्रथम वर्ष वालों के स्वागत के लिए एक पार्टी रखी थी | पार्टी में एक दूसरे से हम परिचय प्राप्त कर रहे थे | हमारे साथी बलवीर रावत एम ० एस – सी प्रथम वर्ष वालों को द्वितीय वर्ष वालों का परिचय करा रहे थे | उन्होंने उनसे मेरा भी परिचय कराया |  मेरे मन में क्या सूझी ? मैंने कहा, ‘’साथियों ! श्री रावत जी ने आपसे मेरा परिचय तो करा दिया किन्तु उसका परिचय नहीं कराया जिसने मेरी रातों की नींद और दिन के चैन को चुराया था | अगर आप की सहमति हो तो मैं कविता के माध्यम से उससे भी आपका परिचय कराना चाहता हूँ |
हाँ , हाँ , क्यों नहीं ?’’- कुछ जूनियर और सहपाठियों ने एक स्वर में कहा |
तब मैंने यह कविता सुनाई थी –
श्रीनगर में आया था जब,
मैं पहली बार,
स्टेशन पर किया था तुमने
मुझ पर प्रथम प्रहार,
जब मैं अपने बिस्तर पर
बड़े प्रेम से सोया था,
सब दुखों को भूल
मीठे सपनो में खोया था,
मेरे मुख से मिला दिया था
तब तुमने अपना ये मुख,
तुमने मेरी निद्रा तोड़ी
मुझे हुआ तब बहुत दुःख,
रातों की तुमने नींद उडाई,
दिन का तुमने छीना चैन,
करवट बदलकर रात गुजारी,
किया मुझको ऐसा बेचैन,
जिधर जाता उधर तुम्हारा
मुझे सुनाई देता गीत,
नजरों से मेरी दफा हो जाओ,
मुझे नहीं है तुमसे प्रीत,
इस शहर में रहूँ कैसे
तुमसे मैं बचकर,
तुम प्रेमिका नहीं हो मेरी
तुम हो श्रीनगर के मच्छर |
मेरी रातों की नींद और दिन के चैन चुराने वाले से परिचय प्राप्त कर सभी हंस पड़े |
C-  डॉ० उमेश चमोला

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