कुछ यादें , कुछ
बातें 5
मधुशाला और मेरा
अनुभव
वर्ष १९९५ की
बात है | एक इंटरव्यू के लिए मैं इलाहाबाद
गया था | मैं वहाँ एक होटल में रुका था | मैं होटल के बाहर घूम ही रहा था तभी मुझे
एक आदमी मिला | उसने मुझसे बातचीत की | पता चला कि वह भी उत्तराखण्ड का रहने वाला
है | उसने मेरे बगल का कमरा किराया पर ले लिया | रात को भोजन करने के बाद उसने
बोतल निकाली | ढक्कन खोलने के बाद उसने मुझसे कहा, “ भुला ! तुम भी इसका शौक रखते हो ?” मैंने कहा, “ नहीं”| वह बोला, थोड़ी सी ले लो | कुछ नहीं होगा |” मैंने मना किया | वह बोला, “सॉरी , मुझे माफ़ करना| मुझे शराब पीने की आदत है
| अगर मेरे साथ अच्छा नहीं लग रहा है तो तुम
अपने कमरे में चले जाओ | “ मैंने कहा, “आप शौक फरमाओ | आप के साथ यहाँ बैठकर रहने में
मुझे कोई आपत्ति नहीं है |”
मैं शराब नहीं
पीता किन्तु मैं शराबियों की महफ़िल में कई
बार मौजूद रहा हूँ | इस महफ़िल में शराबियों के संवाद मुझे बहुत रोचक लगते हैं | कई ऐसे मौके भी आये हैं जब शराबी
मित्रों ने कहा, “ हम आपको शराब पिलाकर मानेंगे |” मैं कहता “ तुम मुझे शराब नहीं पिला सकते | हाँ, किन्तु
मुझे इस समय तुम्हारे साथ बैठने में कोई परहेज नहीं है | “ शराबियों की महफ़िल में मैं उनकी बातों का
विश्लेषण करता रहता हूँ | कई बार शराबी नशे में बहुत गहरी बात बोल देते हैं | शायद
इसीलिये कहा जाता है कि शराब के नशे में आदमी दिल की बात करता है | शराबियों की
महफिल में मैंने उनकी दरियादिली को व्यक्त होते देखा है | इलाहाबाद में जो मेरे
बगल के कमरे में रहे थे , उन्होंने मुझे
एक बार भी सुबह और रात के भोजन का बिल चुकता करने नहीं दिया | मैं बिल चुकता करने
को होता तो वे नशे में कहते, “ भुला ! जब तक तेरा ये बड़ा भाई जिन्दा है तू फ़िकर
मत किया कर | “
दूसरे दिन इंटरव्यू होने के बाद मैं उसी होटल में लौट आया
| मैं थका हुआ था | इसलिए मैंने सोचा आज यहीं आराम करूंगा | कल यहाँ के महत्वपूर्ण
स्थानों का भ्रमण करने के बाद वापस चला जाऊँगा | दूसरे दिन मेरे बगल में ठहरे वे
शराबी मधुशाला जाने को तैयार हो गए | मैंने भी उनके साथ मधुशाला जाने का निर्णय
लिया | वहाँ टूटी फूटी कुछ पुरानी बेंचें थी | कुछ पुरानी कुर्सियां भी थी | मैं
भी एक खाली कुर्सी पर बैठकर शराबियों के व्यवहार का अध्ययन करने लगा | वहाँ लोग
काउंटर से शराब की बोतल ला रहे थे | कुर्सी और बेंचों में बैठकर पी रहे थे | जो भी
शराबी मुझे कुर्सी में बिना बोतल के देखता, वह समझता मेरे पास रूपये समाप्त हो गए
हैं | वे अपने साथ रूपये लेकर आते | कहते, ये रूपये रख लो | वापस मत लौटाना | ये
तुम्हारे बड़े भाई की तरफ से तुम्हारे लिए हैं |’’ कोई बोतल लेकर आता और कहता, “यार तेरे पास रूपये नहीं हैं तो चिंता मत कर | ये
ले ये बोतल पी ले | ’’
मधुशाला में शराबियों के बीच बीते आत्मीय माहौल,
उनके प्रेम और दरियादिली को देखकर मुझे अनुभव हुआ कि हरिवंश राय बच्चन ने बिलकुल
सही कहा है,” बैर बढाते मंदिर – मस्जिद, मेल कराती मधुशाला| “
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