शनिवार, 8 सितंबर 2018


कुछ यादें , कुछ बातें 2
उस चिड़िया का अद्भुत प्रेम
नरेन्द्रनगर में हमारे ऑफिस के सबसे किनारे के कक्ष में एक बार एक चिड़िया ने घोंसला बनाया | कुछ समय के बाद उस घौसले में दो नन्हें –नन्हें बच्चे  दिखाई दिए | उस कमरे में रोशनदान भी थे  | उन नन्हें पक्षियों के माता –पिता दरवाजे के बजाय रोशनदानों से ही आया  जाया  करते थे | वे इन शिशुओ को दाना रोशनदानो के रास्ते ही लाया करते थे | शायद उन्हें दरवाजे के बजाय रोशनदान वाला रास्ता सुरक्षित और उनकी प्राइवेसी की दृष्टि से उपयुक्त लगता था | पांच बजे के बाद सभी कमरों की सफाई की जाती थी | एक शुक्रवार की बात है | ऑफिस बंद होने के बाद अन्य कमरों की तरह चिड़िया के घौसले वाले कक्ष की भी सफाई की गई | सफाई करने वाले व्यक्ति ने सफाई के बाद दरवाजे के साथ – साथ रोशनदान भी बंद कर दिए | उसे पक्षियों का ध्यान नहीं रहा | रोशनदान बंद होने से पहले उन बच्चों के माता –पिता बच्चों के लिए दाना लेने बाहर जा रखे थे | दूसरे दिन द्वितीय शनिवार और तीसरे दिन रविवार का अवकाश था | सोमवार को ऑफिस खुला | वे नन्हें पक्षी ची – ची कर रहे थे | हमने बंद रोशनदान देखे | समझ में आया कि मामला कुछ गड़बड़ है | हमने तत्काल रोशनदान खोले | सफाई वाले का ध्यान इस ओर दिलाया और कहा कि अब रोशनदान बंद मत करना | शाम तक भी उन बच्चों के माता –पिता वहाँ नहीं आये थे | हमने उन बच्चों के मुंह में दाने डालने का प्रयास किया किन्तु उन्होंने चोंच खोली ही नहीं | मंगलवार को हमें उन पक्षियों के माता –पिता की तरह दो पक्षियाँ दिखाई दी | वे उस कमरे के बजाय निकट के दूसरे कमरे में आई थी | उनके चाल- ढाल से लग रहा था कि वे कुछ ढूंढ रहीं थीं | शायद वे उन्हीं बच्चों के माता – पिता थे किन्तु रास्ता भटक गए थे | हमने उन्हें बच्चों वाले कमरे की ओर भेजने की कोशिश की किन्तु वे उस कमरे में गई ही नहीं | बुधवार को ऑफिस खुला | आज उन बच्चों के माता –पिता अपने घोंसले में आ गए थे | अब बहुत देर हो चुकी थी | वे नन्हे पक्षी मर गए थे |  मृत बच्चों को देखकर उनके माता –पिता बेचैन हो गए थे | कभी वे कमरे से बाहर जाते , फिर वापस घोंसले की ओर आते | ऐसा वे बार – बार करते | अंत में एक चिड़िया  अपनी चोंच को बार-बार दीवार से टकराती रही | अंत में वह चिड़िया मर गई |
c- डॉ० उमेश चमोला

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