सोमवार, 3 सितंबर 2018


कुछ यादें , कुछ बातें
1-  मेरठ शहर की तहजीब
  जीवन में हमारे साथ कई प्रकार की घटनाएँ घटती हैं | कुछ घटनाएँ समय के द्वारा दिल की डायरी में अंकित की जाती हैं | मेरठ से सम्बंधित एक घटना आप सभी से साझा कर रहा हूँ | वर्ष १९९८ में  अपने शोध के सिलसिले में मुझे मेरठ विश्वद्यालय जाना था | मैं मेरठ पहली बार जा रहा था | इसलिए मुझे वहाँ के होटल आदि की जानकारी नहीं थी | मैं हरिद्वार से मेरठ के लिए रोडवेज मैं बैठ गया | बस मेरठ बस स्टेशन पर रुकी | मैंने एक रिक्शे वाले से कहा, “ मुझे यहाँ एक रात रुकना है | किसी बढ़िया होटल तक ले जा दो |” वह बोला , बाबू जी ! २० रु लगेंगे |” मैं रिक्शे मैं बैठ गया | लगभग आधे घंठे में एक होटल के बाहर छोड़ते हुए रिक्शा वाला बोला, “ यह बहुत अच्छा होटल है | आपके रहने की यहाँ व्यवस्था हो जायेगी | आप चाहें तो खाना बाहर खा सकते हैं | यहाँ पास में ही आपको ढाबे मिल जाएंगे | ‘’
जहाँ तक मुझे याद है उस होटल का नाम ‘सईद होटल’ था | मैं होटल में पंहुच गया | वहाँ दो आदमी मुझे दिखाई दिए | उनका पहनावा बता रहा था कि वे मुसलमान हैं |  उनमे से एक आदमी ने एक बड़ा रजिस्टर निकाला | उसमे उर्दू में ही लिखा हुआ था | उसने मुझसे पूछा, ‘’ आपका नाम क्या है ?’’  कौम का नाम बताइए | मैंने यथोचित उत्तर दिया | उन्होंने मुझसे सम्बंधित विवरण उस रजिस्टर में अंकित किया | इसके बाद वह बोला , ‘’ अगर आपके पास कोई नगदी है तो हमें जमा कर दो | कल जाने से पहले वापस कर देंगे | “ मेरे पास पांच हजार रुपए थे | मैंने वे उनके पास जमा कर दिए | भोजन करने के बाद मैं सोने लगा | मुझे मन ही मन डर भी लग रहा था | सोच रहा था कि जमा पांच हजार की  रसीद मुझे उनसे मांगनी चाहिए थी | मैं बिस्तर पर लेट गया था किन्तु मेरी आँखों से नींद गायब थी | कुछ देर बाद मैंने उस होटल के मालिक को मेरे बगल की चारपाई पर लेट रहे व्यक्ति को डांटते हुए सुना | उन दोनों की बातों से लग रहा था कि उस व्यक्ति ने जिस चारपाई पर मैं सो रहा था उसके नीचे अपने जूते उतारकर रख दिए थे | होटल का मालिक उस व्यक्ति से कह रहा था ,” तुम्हारे बगल पर जो इंसान सोया हुआ है , वह दूसरी कौम का है | वह हमारे लिए मेहमान है | तुमने उसकी चारपाई के नीचे अपने जूते रखकर अच्छा काम नहीं किया है | ‘’
 मुझे अपनी चारपाई के नीचे कुछ हलचल सी महसूस हुई | शायद उस व्यक्ति ने वहाँ से अपने जूते निकाल लिए थे | अब मेरे मन से सारा डर निकल गया था | मुझे गहरी नींद आ गयी थी | मै सुबह उठा | उस डोर्मीट्री में सभी ठहरने वालों के लिए एक ही टॉयलेट था | मै फ्रेश होने गया | टॉयलेट खाली था | मुझे लगा उन्होंने मुझे उठता देखकर मेरे लिए टॉयलेट खाली करवा दिया था | जाते समय मैंने उनका धन्यवाद किया | होटल के मालिक ने कहा, ‘’ हम भले अलग – अलग मजहब से हैं किन्तु हम सभी का पहला मजहब तो इंसानियत का है | जब मैंने उन्हें बताया कि मुझे विश्वविद्यालय जाना है तो एक  मुझे काफी दूर तक छोड़ने आये |


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