रविवार, 20 अगस्त 2017

गीत समीक्षा (गढ़वाली) 5
            उत्तराखण्ड बणी ग्याई
  मेरि किताबी ‘पथ्यला’ मा अयां ये गीत की  समीक्षा वरिष्ठ साहित्यकार (समीक्षक) श्री ईश्वर प्रसाद उनियाल जी द्वारा ‘रंत रैबार’ मा करे गै छै | समीक्षा का वास्ता तौंकू भौत-भौत आभार | ईं पोस्ट से पैलि  ‘ऐ जा मेरा गौं मा’  ‘पथ्यला बौण का’  ‘त्वैतें बुलोणा’ अर ‘रैबार’ कि समीक्षा का बाद  गीत दगिडी ईं पोस्ट मा श्री उनियाल जी द्वारा करीं पांचू   गीत ‘ उत्तराखण्ड बणी ग्याई’    कि समीक्षा पेश छ | या समीक्षा द्वी रूपों मा (अलग –अलग) रंत रैबार मा छपी छै |
                    (5)
         उत्तराखण्ड बणी ग्याई  
उत्तराखण्ड बणी ग्याई,
गौंकु  विकास होलु ब्वे,
घौर कि रोटि खौलु
परदेसू नि रौलु ब्वे |

भाण्डा मजाणु होटलों मा,
दिन कटूणू रोई रवे,
राज्य बणनै कि खुशि मा
चिट्ठी लेख्णु त्वेतैं ब्वे |

छोटा मा गाजि चरोंण कु,
याद भौत आणु च,
बौण मा रडाघुसि खेनु,
मी सणी रुलाणु च,
रूठि गैन डांडी कांठी
मी तैं वख लिजै दे क्वी,
राज्य बणनै कि खुशि मा
चिट्ठी लेख्णु त्वेतैं ब्वे |

परदेस मी आयूँ यख
ढुंगा सीं जिकुड़ी कैरीकि,
कनकै लगौण ब्वे,
छ्वीं यखै कि खैरि की,

रोणु छौं मी दिन रात,
तू जिकुड़ी ना दुखै,
राज्य बणनै कि खुशि मा
चिट्ठी लेख्णु त्वेतैं ब्वे |

न मन्योडर भेजणु,
न क्वे त्वे समोण ब्वे,
गरीबी मा पल्या बडयाँ,
भाग मा लेख्युं रोण ब्वे,

सदनी नि रैला यन,
खैरयों का दिन ब्वे,
राज्य बणनै कि खुशि मा
चिट्ठी लेख्णु त्वेतैं ब्वे |

 -----रचना – डॉ० उमेश चमोला

समीक्षा -१
               दिन बौडने  आस मा 
------ आई ० पी ० उनियाल
    गरीबी अर बेचारगी उत्तराखण्ड का पहाडी अंचलों कि पुराणी नियति
रे | उखड़ी खेति से टंगी जिन्दगी कब बेमान ह्वे जाव पता नि चल्दु छौ कबि | आज भले हि वखा हाल कुछ सुधरयां छन पर वामा मौलिक विकास नीं छ | हाल सुधरणा पिछ्नै आयातित अर्थ व्यवस्था का सिवा कुछ नीं छ | फिर बि द्वी टेमों खानों जुगाड़ कर हि देन्दन वखा लोग | य स्थिति आजै छ पर अस्सी –नब्बे का दसक मा स्थिति अलग छै | हालाँकि तब बि वख भूकन क्वी म्वरदु छौ पर बच्यां रेण तको गफ्फा पैदा ह्वेहि जान्दो छौ | बस यु समझा कि जिन्दगी तैं धक्का देनै स्थिति छै |
   तब खेति-पाती अर पशु पालन का अलावा क्वी हैको व्यवसाय नि छौ |
छ्व्टा नौन्याल अव्वल त प्राइमरी से अग्ने पढै नि कर्दा छा | ये वास्ता गोर बखरा चरोणा अलावा घर को काम बि वूंतैं कन पड़दा छा | छ्व्टा भै बैनो कि देखभाल कना अलावा धारा बटी पाणयों बंठा भरी ल्याणु ,गोरु भैंसों तैं पाणी पिलोणु जना काम बि वूँ छ्वटा- छ्व्टा बच्चों का जिम्मा रैंदु छौ | यांको कारण छौ कि ब्वे बाब खेति पर हाड़ गौण त्वडोन्द छा | पथरीला पुंगडों मा धाण –धंधा कना सिवा हल्यों का दगिडी एक का बाद हैको काम पड़ जांदो छौ | यी वजै छै कि खास तौर पर घर कि जनान्यों तैं बाल- बच्चों कि देखभाल कनो मौका नि मिल्दु छौ | यांको जिम्मा इस्कुल्या बच्चों मदे सबसे ठुला भै- बैणयों का कन्धा मा जांद | यां से वु छ्व्टा बच्चों तैं पढ्नो मौका नि मिल्दु छौ | यां से अपणा पहाड़ मा शिक्षा अर स्वास्थ्य का गैराल छा | काम चलाऊ आखर  ज्ञान तक यि बच्चा रै जांदा छा | यी वजै रै कि यि बच्चा घर बटी कैका बि दगडी देश ऐ जांदा छा | अब वुँका समिणी होटल ढाबों मा भांडा मठोंण का सिवा कुछ विकल्प नि रैंदु छौ अर ताजिंदगी वु भांडे मठोंद रैंदों छौ | जादा सि जादा क्वी बड़ा होट्लू मा बेयर कि नौकरि तक मिलि जांदि छै |हाँ एक और बात छै  कि कैकि सिफारिस पर कै अधिकारि को घरय नौकर बण जांदा छा यि बच्चा | कुछ कारखानों मा नौकरि करी अपणि ज्वन्नि तक पार कर देंदा छा |
    पर आज य बात नीं छ | अलग राज्य उत्तराखण्ड बण जाण से स्थिति मा थोड़ा भौत बदलौ ऐ ग्ये | वुन पहाड़ का लोग अब कामगत्ती ह्वे जावन वु बड़ी आसनि से ख़ुशी से जिंदगी बितै सकदन | सरकारी योजना यितगा बण ग्येनि कि वूँ पर आश्रित काम शुरू करी तैं आर्थिक स्थिति सुधरे जै सकद पर यिनु कम से कम करीतें जादा से जादा प्राप्त कनै मानसिकता घर कर ग्ये वखै ज्वान पीढी मा | राज्य बणने खुशि मा एक प्रवासि गढ़वाली लोगु मा भौत सारि अपेक्षा छै कि अपण राज्य मा यु कल्ला,यिन्के अपणि जिंदगी तैं सौंगी बनै दयोला |
    डॉ० उमेश चमोला कि प्रस्तुत कविता कु सार भाव यी छ | कविन अपणि रचना तैं ढाळ दयेकि वीं तैं गीत कि अन्वार देयीं छ | ‘उत्तराखण्ड बण ग्याई’ नौंकि ईं कविता /गीत मा घर कि खस्ता आर्थिक स्थिति से उकतै कि देश अयां एक जवान नौना कु ज्यू कु उमाळ छ | वु देश बटी अपणि ब्वेका वास्ता चिट्ठी ल्यखणु छ कि अब चिंता कने जर्वत नीं छ किलैकि उत्तराखण्ड राज्य बणग्ये अब | अब वक्त ऐग्ये कि अपण गौं घर मा रैक त्यरा हाथे रवटि खौलो | होटुलु मा भांडा मठोणा दिन अब ख़त्म ह्वे जाला | दिन कटणा भारि होयां छन | अब नयु राज्य बणनू छ यीं खुशी मा त्यरा वास्ता चिट्ठी भ्यजुणू छौं |
   वु दिन बि क्या छा कि गौं मा गोर चरोणा अर बोण मा रडाघुसी ख्यलुणु यि सबि याद आणी छन | अब किलैकि नयु राज्य बणणू छ | ये वास्ता बुरा दिन ख़त्म ह्वे जाला | यिन लगुणू छ जन कि हमर वास्ता वखै डांडी कांठी रुसै ग्येनि | पर परदेश आणु मेरा वास्ता शौक या ख़ुशी कि बात नि छै | जिकुड़ा मा ढूगो धरी तैं मैन घर छोडि छौ | अब यख मीरा ज्यू पर क्य बितणी छ त्वेतैं कनुक्वे बतौण?
   एक प्रवासि नौने दिल कि क्य हालत होंद कविन यीं कविता मा साफ़ करीतें उल्लेख कर्युं छ | प्रवासी बतौणु छ कि अब तक हमरा भाग्य मा रोणु लख्युं छ | गरीबी मा पल्यां छां यां से लगद कि पैलि जु दुःख पै छा अब वु ख़त्म ह्वे जाला  किलैकि नयु राज्य उत्तराखण्ड बणनू छ | ये वास्ता त्वैतैं चिट्ठी ल्यखणु छौं |
      (रंत रैबार २  अप्रैल  २०१२  बटिन)


समीक्षा -२
               नि बदले बुलागिरी कि तस्वीर
   ------ आई ० पी ० उनियाल
    कवि कि कल्पना जथगा उच्ची उड़ान भर द्या कम हि कम छ | वेकि उड़ान कि क्वी थौ नीं छ | वु एक तिरिण तैं विराट बनैक वेकि पूरि दुन्य सज्यें देंद | कखि कुछ न कथ पर कवि कि थौलि मा सब कुछ मौजूद होंदु | वु एक कुरमण पर हथ खुटा सज्येकि वेतैं बेगवान जीव बनैकि वेका अस्तित्व तैं विस्तृत कर देंद | ठीक यिनि ह्वे होलो उत्तराखण्ड राज्य निर्माण कि घोषणा होणे संभावनों से पैलि |
   उत्तराखण्ड राज्य बणलो लोगुन कल्पना करि होलि विकास कि ,नौकरयों कि, उत्तराखण्ड तैं देश का हौर राज्यों कि श्रेणी मा खड़ो कनो | वुंकि लालसा का क्य नतीजा ह्वेनि य बात त जुदा छ पर एक कविन अलग ही कल्पना करी तैं उत्तराखण्ड बणणा बादे तस्वीर खैंची रखीं रखीं छ | डॉ० उमेश चमोला जु कि गढ़वाली मा गीत व काव्य सृजन का वास्ता काफि जणयां मन्यां छन,वूंन उत्तराखण्ड बणनै ख़ुशी को इजहार एक होटल मा भांडा मठोंण वला भुला का मुख बटी कर्युं छ | हाँ, भांडा मठोंण वलो भुला जै नौकरि कि तलाश मा मैदान कि तर्फ उन्मुख होयुं छ डॉ० चमोलान  वेकि पिडा को वर्णन कर्युं छ | काव्य संकलन ‘पथ्यला’ मा संकलित गीत ‘उत्तराखण्ड बणी ग्याई’ शीर्षक वला गीत मा वे भंडमजा’ भुलाकि कल्पना पर चमोला जी वेकि यी न्रिकृष्ट पछ्याण से मुक्ति को मार्ग समझदन | भुला नौ का कलंक से ओतप्रोत पाड़ी छोरों कि पिडा  या छ कि होलो क्वी यनु जु मैं तैं ये कलंक से मुक्ति दिलैदयो | वेकि आस बंधीं छ कि अब उत्तराखण्ड बणन वालु छ ये वास्ता वु अब बुलागिरी कन्य नी छ |
     यु भुला अपणि माँ तैं चिट्ठी भ्यजुणू छ कि ब्वे अब बुरा दिन गया समझा | किलैकि उत्तराखण्ड बणी ग्याई | अब मैतै परदेश नि जाण पडलो | अब वेतैं अपुणु घर नि छ्व्डन पडलो | ब्वे मैं अब त्यरा हाथै रवटि खौलो |
   वु ल्यखणू छ कि भांडा मठोंद मठोंद वैका हाथ गळ ग्येनि | हाथ कबि सुख्दै नि छन | यी वजै छ कि द्विय हाथु मा कादैई लगीं छ | यूँ हालू मा रवे रवे कि दिन कटणु छौं पर अब खैरी दिन चलि ग्येनि | यु समझले | किलैकि उत्तराखण्ड बण ग्याई |
   किशोर अवस्था मा हि गरीबी से तंग एकि यु किशोर घर छोड़ी भैर ऐग्ये | वेकि उमर अबि यिथगा कठिन दिनचर्या बितोने नि छै पर क्य कन गौंकि कंगाली का यि दिन छन | भुला का अबि खेलकूद का दिन छन | बण का गोरु चरोणु, रडाघुसि ख्य्लण, जंगल मा सौ बनि बनि का फल -फूल  खानो अर नि जाणि क्य कल्पना ये भुला का मन मा पैदा होन्दी होलि | जनकि ब्व्लेंद वेका वास्ता वखै डांडी कांठी रुसै ग्येनि | क्वी हवा जु वेतैं वख ल्हेकि चल जाव | हे माँ ! राज्य बणने ख़ुशी मा त्यारा वास्ता चिट्ठी ल्यखणू छौं |
    परदेश आणु वैकि ख़ुशी नी छै | वु वखि पहाडै उन्मुक्त हवा जिन्दगी जीने इच्छा पाली रखण वलो एक साधारण छोरा छ | जैकि यख होटल मा भारि दुर्गति होणी छ | वु ल्यखणु छ कि परदेश मा वेतैं ज्व खैरि खाण पड़नी छ वु कन्क्वे लेख सकद | मीतें ढूंगो जिकुड़ा करीतें गौ छोडण पडि | मैं यख दिन रात रोणु रैंदु | सुबेर बटी अधा रात तक भांडा मठोनों काम करदो | यीं पिडा तैं त्वेमा कनक्वे लगै सकदों | पर अब उत्तराखण्ड बण ग्याई समझा कि दुःख तकलीफ जल्दी हि चल जैलि |
  क्य कन माँ यु सब भाग मा ल्यख्युं  होंद जुकि कबि टळदो नीं छ | कंगाली मा पळयां – बढ़यां छां |  जब भाग मा भांडा मठोंणु ल्यख्युं हो त क्वी करे बि क्य पर माँ अब बुरा दिन जाण वला छन किलैकि उत्तराखण्ड बण ग्याई | यि सबि दुःख ख़त्म ह्वे जाला |
  डॉ ० चमोलान कल्पना त खूब करि छै पर क्य यों नोन्यालु को सुपन्य पूरा ह्वे छन | क्य वे भुला कि चिट्ठी मा ल्यखीं खैरी छ्वीं अर सुख कि कल्पना पूरि व्हे छ ? शैद ना |हाँ, अब भंडमजा कम अर वेटर ,सैफ य फिर स्टुवर्ट जरूर बणग्येनि | यानि बुलागिरी कि जगा वेटरगिरी |
         (रंत रैबार ८  अक्टूबर  २०१२  बटिन)



 






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