गीत समीक्षा (गढ़वाली) 2
हम पथ्यला बौण का
मेरि किताबी
‘पथ्यला’ मा अयां ये गीत की समीक्षा
वरिष्ठ साहित्यकार (समीक्षक) श्री ईश्वर प्रसाद उनियाल जी द्वारा ‘रंत रैबार’ मा
करे गै छै | समीक्षा का वास्ता तौंकू भौत-भौत आभार | पैलि पोस्ट मा ‘ऐ जा मेरा गौं मा’ कि
समीक्षा का बाद गीत दगिडी ईं पोस्ट मा श्री
उनियाल जी द्वारा करीं दूसरा गीत ‘हम पथ्यला बौण का’ कि समीक्षा पेश छ –
(2)
पथ्यला बौण का
हम पथ्यला बौण का,
कैतें हमुन दयोण क्या |
डालों का जब पतगा छा,
भला लगदा कतगा छा,
डालों का हम गैल छा,
सबु तैं देंदा छैल छा |
बथोंन मार्या रोण क्या,
हम पथ्यला बौण का |
ठौर नीं,ठिंगणु नीं,
बथों चो जख लिजौ,
कैका खुटिन कुरची जौ,
बटवे रोडू ,गालि खौ,
अपड़ी छ्वीं लगौण क्या,
हम पथ्यला बौण का |
क्वी लटयाली स्व्लटि भोरी,
अपडी साली लिजौ,
आटी मोळ बनैक;
अपड़ा पुंगड्यों चुलौ,
अपड़ी छुईं बिंगौण क्या,
हम पथ्यला बौण का |
लगदी छै स्वाणी भली,
छा डाल्यों पर जब पतगा,
हमरा बिन डाला आज,
जन हों रूखा सूखा सेड्गा,
दयोंण कै समोण क्या,
हम पथ्यला बौण का |
हैका मोल्यार फेर औला,
रीति डाल्यों तैं सजौला,
आज छन हम उदास,
भोळ खुश्या गीत गौला,
जिन्दगी कि औणी जाणी,
हमुन कै बतोंण क्या|
हम पथ्यला बौण का |
----रचना –डॉ उमेश चमोला
समीक्षा
ठौर नीं ठिकाणु नी
------ आई ० पी ० उनियाल
उत्तराखण्ड बणयां ग्यारा
वर्ष ह्वे ग्येनि पर अबि तक यखा शासकुन क्वी यिनी नीति नि बनै कि जांसे लोगु तैं
गौ मा हि रोजगार मिल जाव | पहाड़ी बहुल उत्तराखण्ड को ग्रामीण परिवेश मठु-मठु कै
अपनि पछ्याण हर्चाँद जाणू छ | अब गौ मा जावा त सब कुछ बनावटी सीं लगद | पैलि वलि लसाग नीं छ गौ वालों का
बर्ताव मा | क्वी अगर प्रेम से बी बच्याणु हो त लगद कि स्यु बी बनावटी हि व्यवहार
कनू छ | गौंका बुडय –बुजुर्ग कि आंख्युं मा ममता,वात्सल्य अर छ्व्टो का वास्ता
स्नेह कि शकल नि दिखेंदी |
ये सब कि वजै कुछ बि हो पर लगद कि वूंका बर्ताव मा वूंका भितर दब्यू पुरवाग्रह बोन बच्यांद भैर औनू छ
| कबि जब परदेश बटी क्वी घौर जान्दो छौ त वेका घर मा गौं वलों कि लंग्यात लग जांदी
छै | वूंते भले इछि चाणा लैंची दाणा मिलु पर वूंतैं ज्व खुशी मिल्दी छै वांको
वर्णन नि करये जै सकदो | किले कि यु सब देखी सूनी अर भोग करी तैं मैसूस करये जै
सकेंद पर अब व बात नि रैग्ये | को आणु छ अर को जाणू छ यां से कै तैं कुछ मतलब नीं
छ | सब अपण- अपण स्वार्थ से बंध्याँ छन | लगद कि जन ब्व्लेंद वेतैं कैकि जर्वत ही
नीं छ | वेकि युकुलि जिन्दगी आराम से कटे जालि |
आज जबकि शहरी गौं मा बि लोग एक दुसरा से
बन्ध्यां छन, भले ही यांमा वूंकु स्वार्थ हो पर वूंका बर्ताव मा मैलिकता अबि बी
बाकि छ पर हमरा गौं ईं संवेदना से हरबि-हरबि दूर होंद जाणा छन | आज हमरि मानसिकता
भैर भगनै होयीं छ | भितर हमारो दम घुटेंद | भितर बि हम्तैं अपणु सि नि लगदो | वखै
हर चीज वस्तु से हमरो मोह ख़त्म होंद जाणू छ | य स्थिति ठीक नीं छ | य हालत बर्बादी
ल्होंण वलि छ | बर्बादी मनख्यों
कि,बर्बादी प्राकृतिक संसाधानु कि अर बर्बादी संस्कृति कि | यिनी कुछ बिंदु छन जौ
पर गढ़वाली का ल्य्ख्वार अर गितार
डॉ ० उमेश चमोला जी का प्रस्तुत गीत कि | ये
गीत मा चमोलाजीन भावनों अर संवेदनों कु समावेश कर्यूं छ | गीत कु शीर्षक छ ‘पथ्यला
बौण को’ | कविता ठेठ टिर्याली भाषा मा छ | त सिनगर्य बोन वलों तैं ह्वे सकद गीत
समझ मा नि आव त यांकी समीक्षा से पढ्दरा कविता को भाव समझि जाला |
पथ्यला यानी डाला बटी भुयां पड़यां सूखा पत्ता |
कविन पत्तों खुण पतगा शब्द इस्तमाल कर्युं छ जु कि ठेठ टिरियाली मा पत्तों
खुण बोल्दन | वून डाला पर लग्याँ हैरा पत्तों अर सूखिकि
भुयां पड़यां पत्तों मा मार्मिक अंतर बतायुं छ | बोल्दन हम बौण का सुक्यां पत्ता
छां | हम कैतें न कुछ दे सकदा अर न कुछ अफुमा समै सकदा | जब तक डालों पर लग्याँ छा
त सबि मिली तैं छाया देंदा छा | पर जब बथोंन डाला से टूटी भुयां पड्ग्यां त हमरि
जिन्दगी वखि बटी भटकाव कि स्थिति मा ऐग्ये | क्य ही मार्मिक भाव छ कि हमरि क्वी
दिशा नी | बथों जख बि लिजालु चल जौला | तब चै कैमा खुटों तौल कुर्चे जावन य फिर
हमुमा रौडी क्वी चोट खैकि हमतें गाली दयाव | चै क्वी जनानी घर लिजैक छान्युं मा
डाली वेको मोळ बनैक पुगडों मा फैले द्या | हमुन अपनि कथा क्य लगौण | जब डालों पर
छा त स्वाना लगदा छा | आज हमरा बिना वु खरडा हुयां छन | कवि पहाड़ से पलायन करीं
तैं बिना दिशा तै कर्यां मैदान उन्द बगदी ज्वन्नि पर अपनि ब्यथा व्यक्त कनू छ | अब
जीवन कि क्वी लीक हि नीं छ त जान्वी छ वून देणा बै | यामा चै क्वी ठोकर मारी बै
पिच्कै दयोंन चै क्वी कुरची अगनै निकलन हम्तैं सीढ़ी का रूप मा इस्तमाल करो |
फिर बि कवि
निराश नीं छ | वेतैं आस छ कि अबि कुछ नि बिगडे, उत्थान –पतन कुदरत को खेल छ | आज
अगर पतझड़ छ त भोल मोल्यार बि त ऐलि | फिर डाली हैरी होली |फिर नयाँ पत्ता डाल्युं
तैं सजोला | आज पतझड़ को दर्द सैण वला भोल हैरयाली को सुख भोग करला | आज जु दुःख अर
उदासी को वातावरण छ भोल खुशी गीत गा णों
मौका बि आलो | या जिन्दगी आणी-जाणी छ | ये वास्ता निराश नि ह्वा अर भोले
खुशी कि जग्वाल करा |
(रंत रैबार १४ मई २०१२ )
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