गीत समीक्षा (गढ़वाली) 4
रैबार
मेरि किताबी
‘पथ्यला’ मा अयां ये गीत की समीक्षा
वरिष्ठ साहित्यकार (समीक्षक) श्री ईश्वर प्रसाद उनियाल जी द्वारा ‘रंत रैबार’ मा
करे गै छै | समीक्षा का वास्ता तौंकू भौत-भौत आभार | ईं पोस्ट से पैलि
‘ऐ जा मेरा गौं मा’ ‘पथ्यला बौण
का’ अर ‘त्वैतें बुलोणा’ कि समीक्षा का बाद गीत दगिडी ईं पोस्ट मा श्री
उनियाल जी द्वारा करीं चौथा गीत ‘
रैबार’ कि समीक्षा पेश छ –
(4)
रैबार
त्वेतैं च आयूँ पहाड़ो रैबार,
त्वेतैं बुलोणा बार-त्यवार |
कांठा मा ज्वोन,अब भी औंद,
सुबेर ह्वेगी गैनू बतोंद,
मोल्यार मा यख डालों फुलार,
सूणी म्वारों कु गितालु
रैबार,
त्वैतें
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झिलमिल औंदी यख बग्वाल,
ब्वे
बाबों की च घौर जग्वाल,
त्वे
बिन होली कन यख होली,
कन
होलू यख रखुडी त्यवार,
त्वैतें
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सैंती
पाली तू बडू बणाई,
तेरा
बाना क्या क्या खैरी नि खाई,
दाना
सयानो को बिसरी दुलार,
ब्वे
बाबु तेरा घौर बीमार ,
त्वैतें
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ज्यूं
पुंगडों मा नाज छौ पाणी,
बांजी
पुंगडी सि त्वेतैं बुलाणी,
दूध
कि नीं छ यख छ्लार,
रीता
पड़यां छन यख कुठार,
त्वैतें
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उत्तराखण्ड
यो राज्य
बणीगे;
आँखों
मा सबुका स्वीणा सजीगे,
उड़ीक
ऐ जा पोथलों की चार,
समाल
अपडू तू घौर बार,
त्वैतें
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-----रचना – डॉ० उमेश
चमोला
समीक्षा
औ अब घर ऐ जा
------ आई ० पी ० उनियाल
राज्य मिल्यां बारा वर्ष ह्वे
ग्येनि पर आज बि राज्य का लोगु तैं मैसूस नि ह्वे कि क्य सचे हमतें अलग राज्य
मिलगे | कारण कि नया राज्य जनु विकास उत्तराखण्ड मा द्य्खनो नि मिल्नू छ |
सन १९९४ बटी द्वी हजार तक पूरा छै साल तक नयाँ
राज्य प्राप्ति खुण आन्दोलन लडे गे | लोगुन झणि
क्य क्य सुपन्य गंठययां छा | सुख-समृद्धि का सुपन्य, होणी हुणत्यार का
सुपन्य, पहाड़ का विकास का सुपन्य, पलायन पर रोक लगौणा सुपन्य अर झणि हौर क्य क्य
गाणि करि छै उत्तराखण्ड का लोगुन पर आज लोगु का यि सुपन्य हि बणी रैग्येनि |
गाणयों का बीच एक सुपन्य छौ पलायन पर रोक लगै
जाणो | नतीजो उलटो ह्वे | राज्य बणना बाद प्रदेश मा पलायन तैं जादा हवा मिले | जु
लोग पैलि कखि काम मिल्न पर हि पलायन कर्दा छा अब वु जरा बि सारो मिल्न पर घर छोड़
देणा छन | ख़ास तौर पर पहाड़ बटि लोगुको मैदान उन्द लमडने मानसिकता का पिछने फटाफट
रूप्या कमैक अग्नै कि पंगत मा खड़ो होणे
इच्छा छ | पैलि जब उत्तर प्रदेश से जुडयां छा तब विचार हि पैदा नि होंदो छो भैर
निकल्नो पर अब त प्रदेश कि राजधानि एक लतडाग पर छ | पहाड़ का छोरा छपरा जनि १५ -२०
पर पौंछणा छन वूंकि मैदानुन्द दौड़ने लंग्यात लग जान्द |
पिछला बारा वर्षो मा अगर द्यखे जाव त पता चललो
कि पैल्ये अपेक्षा यितगै अंतराल मा दुगुणा चौगुणा पलायन ह्वेग्ये | आज मैदानुंद
आकि जब काम धंधा नि मिलणु छ त छोरों कु रुझान होटलु मा भांडा मठोंण / उठोणा तर्फ
ह्वे जाणू छ | सब्यों तैं त नौकरि मिल्दी नीं छ | ये वास्ता जौंकु यिथगा पैनो भाग
नि होंदो वु यख कठिन जिन्दगी जीणों मजबूर ह्वे जान्दन |
अब जब पहाड़ छोड़ी ऐ हि जांदन त कखि कपडे दुकान
हो या फिर परचून कि दुकान या फिर छ्वटि मोटी फैकटरयों मा नौकरि करी यूँ छोरों तैं
टैम बितोंण पड़द | वूंतैं समझ नि औंदों कि वु द्वी चार हजार तनखा मा क्य क्य कर
सकदन | एक तरफ मकान को किराया त हैका तर्फ द्वी टैमें रवटि कु जुगाड़ | यो हि ना
मोबाइल फोन बि चैंद त बाकि यार दोस्तों का समणि अपणु स्टेंडर्ड बि त दिखोणु हि पड़द | ये वास्ता वु अपणि चादर से
भैर तक खुटा पसार दिन्दन | नतीजा यो होंद कि वूंकि जिन्दगी नर्क बणी रै जांद | बात
सिर्फ आजे नीं छ | सवाल सर्य जिन्दगी को छ | आज म्यरा पहाड़ का जवान छोरा गौं छोड़ी
भैर आकि अपणि किस्मत अजमानो ऐ जाणा छन पर कथगों कि किस्मत वूंको दगडो कर्द |
जादातर अधबिचे मा लटक्याँ रै जांदन | नतीजा यो होंद कि यि बच्चा न घर का रैंदा अर
न घाट का |
बात जब सर्य जीवन कि होन्दी त जीवन का खेल मा वी लोग कामयाब ह्वे सकदन
जौंन भोला बारा मा आज हि योजना बनै दये हो | आज कि जर्वतों पर थोड़ी रोक लगै दिए
जाव त वु भोल का वास्ता सौभाग्य को कारण बण जांद |
बात चल्नी छै नया राज्य प्राप्ति खुण गाणि अर
सुपन्यों कि | यीं विधा पर गढ़वाली का गितार अर लिख्वार डॉ० उमेश चमोलान एक गीत
ल्यख्युं छ |’पथ्यला’ नों का गीत संकलन मा रैबार शीर्षक से ये गीत मा डॉ० चमोलान
बड़ा साधारण शब्दों मा बतै दये नयु राज्य बणग्ये अब परदेस जयां लोगु तैं घर ऐ जाण
चयेणु छ |
बड़ा मार्मिक शब्दों मा चमोलाजीन रैबार दिन्युं छ
| अब परदेस रेनै जर्वत नीं छ |
(रंत रैबार १२ नवम्बर
२०१२ बटिन)
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