गीत समीक्षा (गढ़वाली) 6
बेरोजगारि कु ब्यौ
मेरि किताबी
‘पथ्यला’ मा अयां ये गीत की समीक्षा
वरिष्ठ साहित्यकार (समीक्षक) श्री ईश्वर प्रसाद उनियाल जी द्वारा ‘रंत रैबार’ मा
करे गै छै | समीक्षा का वास्ता तौंकू भौत-भौत आभार | ईं पोस्ट से पैलि
‘ऐ जा मेरा गौं मा’ ‘पथ्यला बौण
का’ ‘त्वैतें बुलोणा’
‘रैबार’
अर ‘उत्तराखण्ड
बणी ग्याई’ कि
समीक्षा का बाद गीत दगिडी ईं पोस्ट मा श्री
उनियाल जी द्वारा करीं छटू गीत ‘
बेरोजगारि कु ब्यौ ’ कि समीक्षा पेश छ |
बेरोचगारि कु ब्यौ
बेरोचगारि मा ब्यौ करी, भौत पछ्तायूँ,
अपड़ी खैरी लाणों कु, मीं तुम मू आयूँ |
खर्च नीं छ,पर्च नीं छ, जेब हुईं
खाली,
दक्षिणा किलै नि देंद, ब्वनी छन स्याली,
जोग बिगड़ी,जाणि बुझीक यीं आफत ल्य़ायूँ,
बेरोचगारि मा ब्यौ करी,
भौत पछ्तायूं |
हर दिन की नई –नई वींतें चेंदि
साड़ी,
कखै ल्येण क्रीम पौडर, कनकै चललि गाडी?
ब्वे बाबून ब्यौ कराई ,ऊँकि छ्वीं मा आयूँ ,
बेरोचगारि मा ब्यौ करी,
भौत पछ्तायूं |
अंगरालो कि भ्योल पर, कन ढूगु मारी ,
सोचि छौ सुख मिललू, आई असंद भारी,
ये मकड़जाल मा, कन फंस ग्यांयू,
बेरोचगारि मा ब्यौ करी,
भौत पछ्तायूं |
बेरोचगारि मा ब्यौ न कर्या, गेडी बांधा बात,
ब्वे, बाबू, भै बिरणा होंदा, कजाणि मरदि लात,
तुम न जयां तै बटा बी, जै बाटा मीं जायूं,
बेरोचगारि मा ब्यौ करी,
भौत पछ्तायूं |
-----रचना – डॉ० उमेश चमोला
समीक्षा
क्य सोची
करि ब्यौ
------ आई ० पी ० उनियाल
अपण मुल्को रिवाज छ कि नौनु
जरा सयाणु ह्वे ग्ये त वेको ब्यौ कर दिए जान्द | घर वलोंन यु नि स्वचणु कि छोटा
अपणि ब्वारी तैं खलै-पिलै बि सकद कि न | कखि यु तनि ह्वे जाव कि हमतें हि ब्वारि
पलण पड़ो | एक दिन मैं अपणि तिबारि मा बैठयूँ छौ |
रूडयूँक को दिन छौ | हम द्वी चार लोग समणि बटी भ्यूला डालों से छनैक औणी
ठण्डी हवा को आनंद उठौणा छा कि यितगा मा एक बुजुर्ग हमारि पैड्यों चढ़ी तिबारि मा
ऐकि धम्म खटला बैठि ग्ये | हम हकदक रै गयां | यु सोची कि हम ये मनखि तैं जणदा छां
न पछणदा छां अर बिना जच्यां पुछ्यां धम्म खटला मा बेठण वलो यो को छ | मैन
पूछि,’’भैजी! को छां तुम ? कै गौं का छां ? यीं घामे दोपरि मा कख पैटयां छन ? तुमरू त बुरु हाल छ |’’ वु मनखि पैलि त जरा
चुप रै | तब बोन बैठि, ‘’चुचों ! दूर बटी आयूं छौं | पैलि जरा थौ बिसौण द्या धों |
जरा हवा मा पसिन्य सुखि जालो त गिचा बटि तब त कुछ बोलुलु | यितगा मा केरि काकी
भितर बटि ठण्डो पाणयो गिलास लेकि ऐग्ये अर बोन बैठि .’’पैलि पाणी पी ल्या तब बोलि
दयया धों | “
सि काकी मू बोन बैठिंन,’’यो नोनो कि छुयूं
मा नि अयां | यित अबि झुल्लों मा ख्यलणा छन |’’ हमरो ध्यान फिर अपणि छुयूं मा लग
ग्ये | किलैकि काकी अर वुँ बुजुर्ग सि लगदा मनखि आप सभा छ्वीं लगौण बैठ ग्ये छा |
वुंकि छुयूं कु मतलब कुछ यिनु लगणू छौ कि जन ब्वलेंद वु आदिम अपणा नौना वास्ता
ब्वारी ख्व्जनों भटकणू छौ |
छुयूं मा वून
बतै कि वूंको नौनु देहरादूण नौकरि कनू छ |
वेतैं अच्छी ख़ासी तनखा बि मिलनी छ | वुंकि मंशा छ कि वेको ब्यौ कर दिए जाव | व यी
लगन मा घामे दोफरा मा गौ- गौ रिटण पर लग्युं छ | मैंन पूछि वूँतैं कि नौनु कथगा
सालो छ ? अर कथगा पढयूं छ | जवाब मिले
वुंको नौनु मैट्रिक पास छ अर बीस सालो ज्वान छ | जब वूँसे वेका जॉब का बारा मा
पूछे ग्ये त पता चलि कि कै होटल मा वेटर कि नौकरि कनू छ | मैन पूछि कि तुमुन अपण
नौना तैं बि पूछि ब्यौ का बारा मा त बोन बैठि कि ब्यटा! हम वेका ब्वे बाब छां |
वेको भलो –बुरो कै बात मा छ हम जांणदा छां | ये वास्ता वे तै क्या पूछण? यकुलो
नौनु छ | घर कि सब संपत्ति वेकि ही छ | ये वास्ता वेतैं पूछने क्या जर्वत छ | बस
ढंगे नौनि मिल जाव त हम अपण छोरो कालु मुंड कर दयां | बुडयजी को तर्क सुणी भौत
ताज्जुब ह्वे यो सोची कि छोटो बुबा वेको ब्यौ करी तैं वेका वास्ता एक यिनी मुसीबत
का हालत त्यार कन पर लग्यों छ | मैं तैं ताज्जुब ह्वे कि यो बुजुर्ग क्या सोची
ब्यौ कनू होलो | जबकि नौने तनखा जादा सि जादा ढाई तीन हजार होली यिथगा क्या अफु
खालु ? क्या ब्वारी तैं खलालो? यांका अलावा क्वार्टर को किराया अपणु खर्च मिलैक
वैतें यितगा तनखा नि मिल्दी होलि आखिर क्या करलो यु बिचारु ?
ठीक यीं सोच पर
आधारित छ प्रस्तुत गीत ,पथ्यला नों कि कविता संकलन मा छपी डॉ ० उमेश चमोला कि रचना
| शीर्षक छ ‘बेरोजगारि कु ब्यौ’ | ये गीत मा डॉ० चमोलान वु सबि मुश्किल बयान करीं
छन जु कि एक अल्प वेतनभोगी शादीशुदा मनखि का समणि औंदन | खाण पेण से ल्हेकि मकान
को किराया का अलावा नयु नयु ब्यौ अर वुंकि कच्चि उमर कि ब्वारी,
बिचारो जनानी फरमैश हि पूरि नि कर सकणू छ | वु अपण ब्वे बाबु तैं कोसण पर लग्युं छ
कि बिना देखभाल अर सोच विचार का वूंन ब्यौ त कर दये पर निभोंण वैतें पड़नू छ | आखिर
कथगा दिन तक चललि गिरस्ती ?
(रंत रैबार २८ मई २०१२ बटी)
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