शनिवार, 25 जुलाई 2020



पुस्तक समीक्षा       
              विचारों और भावनाओं की सहज अभिव्यक्ति है ‘आंॅख्यों मा आंॅसू‘
दर्द ए दिल सुना जाते आंॅसूं,
आप बीती बतला जाते आंॅसू,
सुख-दुख का फर्ज निभा जाते आंॅसू,
प्रेम की परिभाषा समझा जाते आंॅसू।

 यह पंक्तियां जगदीश ‘ग्रामीण‘ की पुस्तक ‘आंख्यों मा आंॅसू‘ की कविता की पंक्तियांॅ हैं। पुस्तक का शीर्षक गढ़वाली भाषा में है। शीर्षक को देखकर  लगता है कि यह गढ़वाली भाषा में लिखे गए लेखों का संग्रह होगा या गढ़वाली गीत या कविता संकलन किन्तु  यह गढ़वाली भाषा में लिखे गए लेखों या गीत / कविताओं का संकलन नहीं है । इसमें लेखक ने लेख, कहानी,संस्मरण, विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े व्यक्तियों के जीवन परिचय,कवितायें, गढ़वाली गीत,श्लोक, गजल, दोहे और समाचार पत्र में प्रकाशित पत्रों को स्थान दिया  है।
   यह रचनाएंॅ लेखक की भक्ति भावना,राष्ट्रप्रेम, राजनीति, शिक्षा और साहित्य के प्रति अनुराग को दिखाती हैं। कहीं-कहीं पर व्यंग्य भी नजर आता है। यह पुस्तक एक रचनाकार की डायरी जैसी लगती है। मन में हिन्दी की कविता आ जाए उसमें लिख ली। गढ़वाली कविता सृजित हो गई तो उसे भी लिख लिया । हिन्दी व्यंग्य क्षणिकाओं को भी स्थान दे दिया । यह भावों और विचारों की ऐसी क्यारी के समान लगती है जिसमें अलग- अलग प्रकार के पौधों को रोपा गया हो। ऐसा लगता है जैसे लेखक ने अपनी डायरी को पुस्तक का रूप दे दिया है। 
 लेखक पुस्तक में  अलग-अलग विधाओं के रचनाकार के रूप में सामने आया है। इन सब में लेखक का साहित्यकार के बजाए पत्रकार का रूप अधिक प्रभावी लगता है जो जन मुद्दों को बड़ी सहजता से आगे रखता है। लेखक कुछ राजनेताओं पर भी व्यक्तिगत काव्यात्मक टिप्पणी से भी परहेज नहीं करता है। पुस्तक में संग्रहीत लेखक की गढ़वाली भाषा में लिखी गई रचनाएंॅ  संकेत देती हैं कि लेखक भविष्य में गढ़वाली भाषा में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हो सकते हैं।
  लेखक की रचनाओं को पढ़कर लगता है कि सामाजिक मुद्दों के प्रति वह संवेदनशील है। इसलिए कलम उठाने को मजबूर है।  कवि के रूप में रचनाकार को  भाव और विचार पक्ष के साथ कला पक्ष की बारीकियों पर भी ध्यान एकाग्र करना होगा। यदि लेखक कविताओं  में अपनी बात सीधे सपाट न कहकर प्रतीकात्मक रूप में लिखे तो कवितायें अपना प्रभाव छोड़ने में अधिक सफल होंगी । लेखक को पुस्तक प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई । आशा है कि लेखक की भविष्य में विधावार अलग-अलग पुस्तकें सामने आएंगी ।
समीक्षक -  डाॅ. उमेश चमोला
 


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