वर्ष 2014 की बात है । मुझे भोजनमाताओं के प्रशिक्षण के अनुश्रवण के लिए बागेश्वर जाना था
। मैं निर्धारित समय पर देहरादून से हल्द्वानी होते हुए बागेश्वर पहुंच गया ।
बागेश्वर विकासखडं में काम पूरा होने के बाद मैं कपकोट जाने के लिए एक ट्रैकर में बैठ गया । ट्रैकर से उतरकर पैदल चलकर मैं
बी.आर.सी कपकोट पहुंच गया । बी.आर.सी कपकोट खेतों के बीच स्थित है। मुझे वहां की
स्थिति को देखकर बहुत अच्छा लगा । हरे-भरे
खेत और उनके बीच स्थित बी.आर.सी और स्कूल का भवन । वहां भोजनमाताओं से बातचीत के
बाद मैं बागेश्वर की ओर चल पड़ा । मैंने बागेश्वर से हल्द्वानी पहुंचने के बारे में
पता किया तो मालूम हुआ कि इस समय कोई गाड़ी नहीं मिलती है। एक ट्रैकर के ड्राइवर ने बताया कि वह गरुड़
जा रहे हैं। वहां से अल्मोड़ा जाने के लिए कोई न कोई बस/ट्रैकर मिल जाएगा । मैं उस
जीप में गरुड़ के लिए बैठ गया । गरुड़ पहुंच कर पता चला कि एक ट्रैकर अल्मोड़ा तक
जाने के लिए तैयार है बस दो-तीन सवारियों की कमी है। ड्राइवर ने प्रस्ताव रखा कि
यदि सभी यात्री अधिक किराया दे तो वह अल्मोड़ा जा सकता है। सभी सवारी तैयार हो गए ।
अल्मोड़ा पहुंॅचने के बाद कार में बैठकर मैं हल्द्वानी पहुंच गया ।
हल्द्वानी से हरिद्वार के लिए रोडवेज मैं बस
में बैठ गया । बस मैं बैठते ही मुझे नींद आने लगी । किराया चुकता करने के बाद मैं
सो गया । काफी दूर चलने के बाद गाड़ी को बहुत जोर का झटका लगा । झटके के बाद ऐसा
लगा जैसे बस रेंगते हुए जा रही हो । मैंने बगल में बैठे एक व्यक्ति से पूछा, ‘‘ये बस ऐसे रेंगते हुए क्यों चल रही है ?‘‘ वह बोला,‘‘ बस बिना ड्राइवर के चल रही है। ‘‘ अचानक बस रुक गई। हमारी वाली गाड़ी के पीछे कुछ लोगों के रोने की
आवाजें आ रही थी। अब पता चला कि जिस रोडवेज में हम बैठे हुए थे,
उससे
सड़क के किनारे खड़े एक ट्रक को टक्कर लग गई
थी। टक्कर लगने से यह ट्रक सड़क के नीचे गड्ढे में गिर गया था । उसमें कांवड़ यात्री
सवार थे। ट्रक को टक्कर मारने के बाद ड्राइवर बस से कूद कर भाग गया था । इसीलिए बस बिना ड्राइवर के रेंगते हुए चल रही थी ।
आखिर हमारी बस रेंगते हुए चलने के बाद सड़क के किनारे रुक गई थी । वहांॅ सड़क के
नीचे बहुत गहरी खाई थी । ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने बस को सुरक्षित स्थान पर सड़क
के किनारे खड़ा कर दिया था । यदि बस में खाई में गिर जाती तो किसी के बचने का सवाल
ही नहीं था। बस के आगे का कांच टूट गया था
। ड्राइवर के पीछे के सीट पर बैठे कुछ लोगों को गंभीर चोटें आई थी । सभी यात्री बस
के अंदर से बाहर आने के लिए निकास द्वार की ओर आए तो पता चला कि टक्कर लगने के बाद
यह दरवाजा बन्द हो गया है। इसी बीच ट्रक में सवार लोगों में से एक बस के बाहर आया
। वह बस को ड्राइवर को बुरा भला कह रहा था । वह बोला,‘‘ मैं इस बस में बैठे लोगों को बाहर आने
के लिए दस मिनट का समय दे रहा हूंॅ। इसके बाद मैं गाड़ी को आग लगा दूंगा ।‘‘ उसकी बात को सुनकर गाड़ी के अंदर
अफरातफरी मच गई । ड्राइवर की खिड़की के रास्ते एक-एक कर सभी यात्री कूद कर बाहर आ
गए । यह घटना रात को ढाई बजे के लगभग नगीना के पास हुई थी । इस घटना से मैं सोचने
लगा,‘‘ जिन्दगी और मौत के बीच एक महीन रेखा होती है। कब यह रेखा पार हो जाए ? कह नहीं सकते ।
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