वो चोरी चोरी
पढ़ना
यह उन दिनो की
बात है जब हम राजकीय इंटर कोलेज श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल में पढ़ते थे | कक्षा 8
उत्तीर्ण करने के बाद हमारा चयन एकीकृत परीक्षा के द्वारा श्रीनगर छात्रावास के
लिए हुआ था | श्रीनगर में सुधीर न्यूज एजेंसी में नंदन, चम्पक, पराग, धर्मयुग,
कादम्बिनी, विज्ञान प्रगति, मधु मुस्कान, लोटपोट, चंदा मामा, चाचा चौधरी और साबू
से सम्बंधित कामिक्सों की सीरीज, हिन्दुस्तान आदि तथा फ़िल्मी पत्रिकाएं जैसे मायापुरी, फ़िल्मी
कलियाँ, स्टार डस्ट आदि मिल जाती थी | हम
कोर्स की पुस्तकों के अलावा इन पत्रिकाओं को खूब पढ़ते थे | होस्टल में हर लडके के
पास अलग – अलग पत्र – पत्रिकाएँ होती थी | इसलिए हम इन पत्र – पत्रिकाओं की अदला –
बदला किया करते थे | पत्र – पत्रिकाओं का
यह नेटवर्क चुपके – चुपके अपना काम
किया करता था | कोर्स की पुस्तकों के बीच में हम ये पत्र – पत्रिकाएँ चोरी छिपकर
पढ़ा करते थे | होस्टल में समय – समय पर छात्रावास अधीक्षक राउंड में आते थे | वे
भी छात्रावास में ही रहते थे | इसलिए हम पर उनकी नजर हमेशा बनी रहती थी |
मैंने इन
पत्र – पत्रिकाओं को छिपाकर पढने का एक तरीका खोज निकाला | मैं इन पत्रिकाओं को
एटलस के अन्दर रखकर पढ़ा करता था | एटलस बढ़े आकार में होती थी | इसलिए इन पत्र –
पत्रिकाओं को एटलस के अन्दर छिपाकर पढने में पता नहीं चल पाता था | हम जिस कमरे
में रहते थे, वह बड़ा था | और कमरों में दो – दो लड़के रहते थे | हमारे कमरे में
पांच लड़के रहते थे | एक दिन मैं अपने कमरे में चारपाई में बैठकर कामिक्स पढ़ रहा था
| अचानक हमारे कमरे में सीनियर ( भाई साहब ) आ गए | होस्टल में भाई साहब लोगों को
देखकर वही आदर मिश्रित भय का अहसास होता था जो छात्रावास अधीक्षक सर को देखकर |
उन्हें देखकर मैंने कामिक्स झट से एटलस के अन्दर छिपा ली | कमरे में उस समय हम चार
लड़के थे | एक बाहर जा रखा था | मैं एटलस के अन्दर कामिक्स पढ़ रहा था | बाकी तीन
लड़के गप्पें लड़ा रहे थे | भाई साहब ने उन्हें डांटते हुए कहा, “ तुम जोर – जोर से
गप्पें लड़ा रहे हो | देखो तुम्हारा एक साथी किताब पढ़ रहा है | उसको डिस्टर्ब तो मत किया करो | भाई साहब की यह बात
सुनकर मैं अन्दर ही अन्दर डर रहा था कि कहीं भाई साहब को पता न चल जाय कि मैंने
एटलस के अन्दर कामिक्स छिपा रखी है |
एक दिन छात्रावास अधीक्षक सर ने शाम की
प्रार्थना के समय कहा,” जिसके पास भी कोर्स से बाहर की कोई पत्र – पत्रिका है वह
मेरे पास जमा कर दे | ऐसा करने वालों को कोई डांट नहीं पड़ेगी | नहीं तो बाद में
पता चलने पर दंड दिया जाएगा | कुछ लडकों ने अपने पास की पत्र – पत्रिकाएँ सर के
पास जमा कर दी थी | एक सप्ताह के बाद छात्रावास अधीक्षक सर ने मुझसे कहा,
“तुम्हारे पास भी बहुत सारी पत्रिकाएँ हैं | तुमने अभी तक जमा क्यों नहीं की है ?
“ मैंने कहा , सर ! मेरे पास साहित्यिक पत्रिकाएँ हैं | मैंने समझा कि आपने
उपन्यास और फ़िल्मी पत्रिकाओं को जमा करने के लिए कहा है | “ मेरी बात को सुनकर सर
ने कहा,” बेटा! ये पत्र – पत्रिकाएँ कोर्स की किताबों के बीच टोनिक का कार्य
करती हैं लेकिन ध्यान रखना कहीं इनको पढने का चस्का लगने
से आपके कोर्स की किताबों की पढाई प्रभावित न हो |
c- डॉ० उमेश
चमोला
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