मंगलवार, 31 दिसंबर 2019

कुछ बातें, कुछ यादें ९



श्रीनगर का संजय टाकीज और फिल्मों से जुड़ी यादें
     जब हम जूनियर हाईस्कूल की कक्षाओं में पढ़ते थे उस समय गाँव में कुछ लोग वीडियो दिखाने लाते थे | वे उस दौर की हिट फिल्मों को गाँव में किसी स्थान पर दिखाते थे | वे देखने वालों से कुछ रुपये लेते थे | उनकी भी अच्छी कमाई हो जाती थी और गाँव में लोगों को फिल्म देखने को मिल जाती थी | जूनियर हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद जब मेरा चयन एकीकृत परीक्षा के जरिए श्रीनगर आवासीय छात्रावास के हुआ तब मैंने श्रीनगर के संजय टाकीज में पहली फिल्म ‘वीर भीमसेन’ देखी थी | हमारे छात्रावास अधीक्षक सर ने कहा था अच्छी फिल्म लगी हुई है | जो देखना चाहता है देख सकता है | सब अलग – अलग ग्रुप में जाएंगे | हम फिल्म देखने चले गए | बड़े परदे पर फिल्म देखने का अपना मजा था | इसके बाद हमें फिल्म देखने का चस्का लग गया था | उस समय फिल्म देखने के बारे में यह धारणा थी कि फिल्म देखने से बच्चे बिगड़ जाते हैं | (यह धारणा आज भी प्रचलित है |) हम होस्टल से चोरी छिपके फ़िल्में देखने जाते थे | तीन या चार लड़के मिलकर फिल्म देखने की योजना बनाते | दो लड़के फिल्म शुरू होने से पहले चले जाते | वे समय पर टिकट ले लेते | सीट की भी व्यवस्था कर देते | बाकी कुछ देर बात जाते | कभी पकड़े भी जाते थे तो डांट भी पड़ जाती | कभी कुछ मार भी खाने को मिल जाती | हमारे छात्रावास अधीक्षक किशोर मनोविज्ञान के जानकार थे | उनको पता लगा कि कुछ बच्चे चोरी छिपे फिल्म देखने जाते हैं तो उन्होंने योजना बनाई कि क्यों न छात्रावास में ही वीडिओ किराये पर लाया जाय | यह काम छुट्टी के दिन किया जाता | ऐसा करने से चोरी छिपकर फिल्म देखने वालों की संख्या कम होने लगी |
      मुझे तब भी लगता था कि फिल्म देखने बुरा नहीं है | खूब पढने – लिखने के बाद बीच – बीच में फिल्म देखने से दिमाग ताजा हो जाता था | मुझे फ़िल्मों से बहुत कुछ सीखने को मिला | फिल्मों में मुझे वे दृश्य अच्छे लगते थे जब नायक महफिल में कुछ बोल रहा है | कोई गीत सुना रहा है | कविता सुना रहा है और तालियाँ बज रही हैं | इससे मुझे सभा में भाषण देने की प्रेरणा मिली , कविता सुनाने को मैं प्रेरित हुआ | इसका परिणाम यह हुआ कि विद्यालय में आयोजित भाषण, वाद – विवाद , कविता पाठ आदि प्रतियोगिताओं में मैं बढ़ चढ़कर भाग लेने लगा | उस समय सम्पूर्णानन्द और महादेवी वर्मा वाद – विवाद प्रतियोगिताएँ विद्यालय स्तर से राज्य स्तर तक संचालित होती थी | सम्पूर्णानन्द वाद विवाद प्रतियोगिता में प्रमोद कुकरेती और मुझे  मंडल स्तर पर प्रथम स्थान प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हुआ था | यह सिलसिला डिग्री कोलेज तक भी जारी रहा |
      हिन्दी विषय में एक प्रश्न परीक्षा में आता था | कहानी के तत्वों के आधार पर अमुक कहानी का विश्लेषण करो | इसमें कहानी का शीर्षक , उद्देश्य , पात्र और चरित्र चित्रण, कथोपकथन, देश , काल और परिस्थिति आदि के आधार पर विश्लेषण किया जाता | मुझे लगा कि फ़िल्में कहानी के इन तत्वों के आधार पर विश्लेषण करने का सशक्त माध्यम होती हैं |
  इंटर करने के बाद जब हम छात्रावास से विदा ले रहे थे , छात्रावास अधीक्षक सर ने मुझे अपने 
पास बुलाया | उन्होंने कहा, बेटा ! तुम कब – कब फिल्म देखने जाते थे | मुझे सब पता रहता था | मैं तुम्हें इसलिए नहीं टोकता था क्योंकि तुम पढाई भी बहुत करते थे | तुम में साहित्यिक प्रतिभा है | इसलिए तुम्हें फिल्म देखना बुरा नहीं है |
  श्रीनगर आते समय बस से उतरने से पहले पिक्चर हाल संजय टाकीज पर नजर पडती है जो कि अब बंद हो चुका है तो इससे जुडी यादें मन में उभरने लगती हैं |
c- डॉ. उमेश चमोला

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