मंगलवार, 24 दिसंबर 2019



‘समोण अर बुझोण’ पर चर्चा के बहाने
‘समोण’ श्री सर्वेश्वर दत्त कांडपाल द्वारा लिखित खंडकाव्य है | यह सन १९७१ में प्रकाशित हुआ था | सन १९७२ में यह ‘समोण अर बुझोण’ नाम से द्वितीय संस्करण के रूप में प्रकाशित हुआ था | सन २०१२ में इसका तृतीय संस्करण ‘समोण अर बुझोण’ लोकभाषा आन्दोलन समिति रुद्रप्रयाग ,कलश संस्था और श्री कांडपाल के परिवारीजनों के सहयोग से संस्कृति प्रकाशन अगस्त्यमुनि द्वारा प्रकाशित किया गया | इसमें समोण खंड के अंतर्गत ‘समोण’ खंडकाव्य पर आधारित विषयवस्तु को स्थान दिया गया है | ‘बुझोण’ में श्री सर्वेश्वर दत्त कांडपाल द्वारा लिखित 14 कविताओं को जगह दी गई है |
‘समोण’ खंडकाव्य पहाड़ की पहाड़ जैसे जीवन जीने वाली नारी की व्यथा कथा है | इसमें खैरी खाने वाली बेटी –ब्वारी की प्रतीक है सरला | सरला के रूप में पहाड़ की बेटी –ब्वारी के कष्टों का जो यथार्थ चित्रण कवि ने किया उसे पहाड़ की नारी ने आत्मसात किया और सरला में अपने रूपों को महसूस किया | यही कारण यह खंडकाव्य १९७० के दशक में पहाडी नारी द्वारा खूब पढ़ा गया | रात को खाने बनाते समय या और कामों को करने के साथ –साथ महिलाओं द्वारा इसी रचना का गायन किया जाता रहा और छ्वीं – बत भी इसी के सम्बन्ध में होती रही | यह कृति गढ़वाल की नारी की कंठहार बन गई |
इस खंडकाव्य की कथा में सरला के पिता वीरू लड़ाई में गुम हो जाते हैं | उसकी माँ इस वियोगजनित पीड़ा को सह नहीं पाती है और उसी अज्ञात लोक को चली जाती है जहाँ उसके पति जा चुके थे | अब सरला अनाथ हो गई थी | उसका लालन – पालन उसकी गाँव की काकी द्वारा किया गया | समय बदलता है और एक दिन सरला के पिता घर आ जाते हैं | वह अपने हाथों सरला का कन्यादान कर देती है |
इस खंडकाव्य के सर्गों में शार्दुलविक्रीडित, द्रुतविलंबित, मंदाक्रांता और कवित्त छंदों का प्रयोग किया गया है | पहाड़ के मेले,त्यौहार. यहाँ की वनस्पति ग्वीराल,प्यूली,किनगोड,करोंदा,हिसर तथा यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य को जीवंत बनाने वाली पक्षियों घुघुती,सेंटुली,हिलांस आदि की मीठी भौण इस खंडकाव्य में महसूस की जा सकती है | ग्रामीण जीवन का यथार्थ यहाँ देखा जा सकता है |
खंडकाव्य में आम जन में प्रयुक्त गढ़वाली शब्दों का प्रयोग किया गया है | कहीं –कहीं पर संस्कृतनिष्ठ भाषा भी प्रयोगित है जैसे –
‘जननि हे ! गढ़भूमि प्रभामयी,
वरदहस्त विभावन सुन्दरी,
सकल पुष्प पराग प्रसर्पिता,
गिरिलतावृत्त माँ ममतामयी |’
‘बुझोण’ खंड में रामलीला से सम्बंधित कुछ गीत जैसे ‘पंचवटी में राम’ , ‘सीता –जनक संवाद’ और ‘सूर्पणखा लक्ष्मण संवाद ‘ दिए गए हैं | ‘सूर्पणखा लक्ष्मण संवाद’ में सूर्पणखा द्वारा अपनी सुन्दरता की तुलना रत्तादाणि (एक प्रकार का सुन्दर बीज ) से करना बेजोड़ है |
मुझे याद है मंदाक्रांता , शिखरनी आदि छंदों से हमारा परिचय हाई स्कूल तथा इंटर की कक्षाओं में हिन्दी के पठन से हुआ | हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में वर्णित श्री अयोध्या प्रसाद ;हरिऔध’ की इन पंक्तियों को हमने कंठस्थ किया था –
‘जब हुए समवेत शने –शने,
सकल गोप सधेनु समन्डली ,
तब चले ब्रज भूषण को लिए,
अति अलंकृत गोकुल ग्राम को |’
यद्यपि इन छंदों से हमारा वास्तविक परिचय हिन्दी की पाठ्यपुस्तक से हुआ था किन्तु प्राथमिक स्तर से ही हम इन छंदों में आबद्ध पद्याशों को गाते थे | इसका कारण था हमारे घर में श्री राम प्रसाद गैरोला कृत ‘सुद्याल’ ,मेघढूत(गढ़वाली ) ,समोण’ जैसी पुस्तकें थी | अपने माता – पिता के मार्गदर्शन में हम इन छंदबद्ध
पद्याशों का गायन कर आनंदित होते थे | उस समय सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के संसाधन सीमित थे | इसके बावजूद ‘समोण’ और ‘सुद्याल’ जैसी कृतियों का लोकप्रिय होना इन कृतियों का भावप्रणव होना था | आज परिस्थितियां बदल गई हैं | आज ह्वटसअप, फेसबुक,इन्स्टाग्राम आदि के माध्यम से गढ़वाली –कुमाउनी भाषाओँ का खूब प्रचार प्रसार हो रहा है | गढ़वाली और कुमाउनी भाषा में सृजनात्मक चिंतन और लेखन के लिए ह्वटसअप और फेसबुक में सक्रिय रचनाधर्मियों ने कई समूह बनाए हैं | यू ट्यूब के माध्यम से भी गढ़वाली और कुमाउनी भाषा में कई कवितायेँ सृजित कर प्रस्तुत की जा रहीं हैं | इन माध्यमों से गढ़भाषाओं में सृजन और प्रचार –प्रसार के लिए युवा वर्ग सक्रिय रूप से आगे आ रहा है | कई मेलों, रामलीला और अन्य उत्सवों के अवसरों पर जगह –जगह कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जा रहा है | यह सभी प्रयास हमारी दुदबोली भाषा के प्रचार –प्रसार और उन्नयन की दृष्टि से एक सुखद अहसास देते हैं |
वर्तमान में गढ़वाली भाषा में बहुत पुस्तकें लिखी जा रही हैं | यदि प्रकाशित पुस्तकों का हम विश्लेषण करें तो पाएंगे कि इन पुस्तकों में से अधिकांश पुस्तकें काव्य की पुस्तकें हैं | गद्य: कविनाम निकष: वदन्ति (गद्य कविता की कसौटी है) लिखकर विद्वानों ने कविता के सन्दर्भ में गद्य की महत्ता को दर्शाया है | गढ़वाली भाषा में गद्य में लिखी जाने वाली पुस्तकों की संख्या बहुत कम है | किसी भी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए उस भाषा में प्रत्येक विधा में लिखा जाने वाला अनिवार्य है | अत: गढ़वाली भाषा में हर विधा में लिखा जाना होगा तभी भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में अपनी दुदबोली भाषाओँ को सम्मिलित करने का हमारा दावा मजबूत होगा | गढ़वाली भाषा में निबंध, कहानी, जीवनी, उपन्यास, रिपोर्तार्ज आदि सभी विधाओं के साथ –साथ बालसाहित्य, व्यंग्यसाहित्य आदि उपेक्षित क्षेत्रों पर गंभीरतापूर्वक कार्य किए जाने की आवश्यकता है | वर्तमान युग की आवश्यकताओं के अनुरूप विज्ञान आधारित साहित्य,समीक्षा और शोध की दिशा में भी लिखे जाने की आवश्यकता है | आज ह्वटसअप, फेसबुक ,यु ट्यूब आदि माध्यमों ने नए –नए रचनाकारों को मंच प्रदान किया है | इन माध्यमों में अधिक समय दिए जाने के कारण हमारे स्वाध्याय में कमी आई है | स्वाध्याय का अर्थ मुद्रित सामग्री के अध्ययन के साथ –साथ ई सामग्री के अध्ययन से भी है |
आज प्रस्तुत की जाने वाली कई कवितायेँ मंचीय दृष्टि से तो अत्यधिक सफल हैं किन्तु साहित्यिक कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही हैं | मंचीय कविताओं में प्रस्तोता की भाव भंगिमा, वाचन और गायन शैली कई बार रचना की विषयवस्तु और साहित्यिकता के ऊपर हावी होती है | इस कारण रचना की लोकप्रियता के बावजूद वह शिल्प विधान, बिम्ब आदि की दृष्टि से कमजोर साबित होती है | आज प्रस्तुत कई कवितायेँ तुकात्मक सपाटबयानबाजी की शिकार हो चली हैं |
अत: युवा रचनाकारों को वरिष्ठ, नए और पुराने रचनाकारों की रचनाओं का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करना चाहिए | इससे उनकी रचनाओं में प्रौढ़ता आएगी | वे अपनी विरासत से परिचित हो पायेंगे | उन्हें जानकारी प्राप्त हो पायेगी कि इन रचनाकारों ने क्या लिखा है ? उन्हें किन नए क्षेत्रों में कलम चलानी चाहिए ? ‘समोण अर बुझोण’ जैसी कृतियों को नएं रूप में प्रकाशित कर पाठकों तक पहुँचाने का लक्ष्य भी शायद यही है नई पीढ़ी भी अपनी गौरवशाली विरासत को जान सकें | इस नवीन संस्करण का मूल्य ३५ रु शायद इसीलिये निर्धारित किया गया है ताकि पुस्तक आम पाठक तक पहुँच जाय |
‘समोण अर बुझोण’ के प्रकाशन के इस पुनीत लक्ष्य को सफल बनाने की दिशा में लोकभाषा आन्दोलन समिति, कलश संस्था और कलश लोकसंस्कृति ट्रस्ट, श्री कांडपाल जी के परिवारी जनो के साथ ही संस्कृति प्रकाशन अगस्त्यमुनि रुद्रप्रयाग को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |
पुस्तक का नाम – समोण अर बुझोण
कवि – सर्वेश्वर दत्त कांडपाल
मूल्य – ३५ रु
प्रकाशक –संस्कृति प्रकाशन विजय नगर ,अगस्त्यमुनि ,रुद्रप्रयाग ,उत्तराखण्ड भारत
समीक्षक –डॉ ० उमेश चमोला

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