लेखन
और मेरे पत्रमित्र श्री मिट्ठन लाल
अरोड़ा
जब
मैं डिग्री कालेज में पढ़ता था तो अख़बारों में पत्र कालम के अंतर्गत अपने आलेख
भेजता था | सप्ताह में कम से कम दो पत्र मेरे प्रमुख समाचार पत्रों में छपते ही
रहते थे | इन पत्रों पर कई विद्वान पाठकों की प्रतिक्रिया पोस्ट कार्ड के माध्यम
से प्राप्त होती रहती थी | वे मेरे पत्रमित्र बन गये थे | कुछ दिन पहले
जब मैं अपने किताबों की आलमारी में एक किताब ढूढ रहा था तो एक पुरानी किताब के अन्दर उस समय के
कुछ मित्रों के भेजे पत्र मुझे
मिले | तो
उन पत्रों को देखकर उन पत्रमित्रों की याद ताजा हो गई | इन पत्रमित्रों में से एक
प्रमुख नाम था – मिट्ठन लाल अरोड़ा डिप्टी कलैक्टर सेवानिवृत्त जो मुजफ्फरनगर के
रहने वाले थे | जब भी समाचार पत्र में प्रकाशित मेरा कोई पत्र उन्हें अच्छा लगता
था तो वे पोस्टकार्ड में उसके बारे में लिखकर मुझे बधाई सन्देश भेजते रहते थे |
इसके अलावा तीज त्यौहार और राष्ट्रीय पर्वों पर उनके शुभकामना सन्देश पोस्ट कार्ड
के माध्यम से मुझे प्राप्त होते रहते थे | मैं भी उनके पत्रों का जवाब देता था |
डिग्री कालेज में पढने के समय से शुरू हुई यह पत्रमित्रता राजकीय सेवा में आने तक
भी चलती रही | मैंने अपनी पहली पुस्तक ‘राष्ट्रदीप्ति’ की स्क्रिप्ट उनको भेजी थी | उन्होंने इस पर अपनी प्रतिक्रिया
मुझे भेजी | मैंने इसे पुस्तक में स्थान दिया था | वर्ष २००४ में जब मैं लमगौन्डी
(जिला रुद्रप्रयाग ) से नरेंद्रनगर आया तो सामान की शिफ्टिंग के कारण उनके भेजे
पत्र इधर उधर हो गये | इसलिए श्री अरोड़ा जी से संपर्क टूट गया | अब
इतने वर्षो बाद मुझे उनके भेजे गये पत्र पुरानी किताब के अन्दर मिले तो उनकी याद ताजा
हो गई | क्या पता फेसबुक के माध्यम से उनके बारे में पता चल पाए और उनसे फिर से संपर्क हो जाए | इस आशा के साथ
इस पोस्ट को साझा कर रहा हूँ |