बुधवार, 15 जनवरी 2020

मनोरमा बर्त्वाल कि गढ़वाली कहानी


ल्यणकटा रिवाज
         गातरी दादी ब्याळि अपणा गौ पौंछी। मुख इतगा दिप्प  दिख्येणू छो जन खळका का बाद नो ही हंवई ल्योली कू भूख। सुबेर मा सब्बी अपणा -खौला द्वाराकी दादीकू बम्बे रैबासा बारा मां पूछणौ उत्सूक छा। दाद्यू सब तै काणसू नौनू बम्बे मंचेष्ट नेवी मां छौ। परिवार बम्बे में तीन कमरों वाला फ्लैट मां रौन्दी छौ। दर्शन की ड्यूटी त जहाजूं मॉं ही रौन्दी छै पर नौनयालूंॅ पढै-लिखै बाना वू बम्बे मां रौणा छा। छः मैना बाद वापिस ऐ दादी-------- दर्शनै ब्वारीन खुटयूं  का चमड़ा चप्पल अर बरीक बोड़र वाली सूती घ्वती पैरें के भेंजी छै। दादी वापिस। दादी हाथ-मुख घ्वै तैं चोक मां धरी प्लास्टिकै कुरसी मां बेठी तबर्यों परताप द्ादान धै लगाई--बोजी परणाम-परणाम कबारि ऐनया ? तनै मिन सुणली छौ कि तुम वापिस औणा भाला गौं का हीरू दगड़ी ’’
परणाम द्यूरजी ! कन छन तुम ? शरील खुस्ब च ? हाँ बौजी ! हमरू त क्या छ---- यी उखेड़ा धार कांकरू पुंगड़ी---- हौल लगावा नाज बूता अर बालड़ी आई नी कि बान्दर-
ग्यूण्यू की डार-- रूवै जान्दा हमैतें।
त्ुम त भग्यान छना बौजी-- बडू ब्यटा मास्टर छोटू मर्चेण्ट नेबी मां-- ठाट कन छा तुमुन वख-- किलै आया इथ्या जल्दी ? येरां दां द्यूर जी -- तन ता तुम ठिक्की छन ब्वना। कम्मी भी कुछ नी च वख-- पर फलैटू मां कन जेलखानू होन्दू-- एक दौ भित्तर चल्या त भैर भी कन मां औण ? दर्शना नौनू दिन्न भर टूशैने मां रौन्दू द्यूरजी जबारी ऊं स्यू औन्दू तबारी तक घाम भी अछै जान्दू।
बौजी अफू औण क्या ह्वे तुम तैं ? दा द्यूर जी-- तथ्या फैड़ी मी सै नी जयैन्दू--नी सकदू मी चढी-- अर बाटू भी गबैडे जान्दू-- सि त बटन दबौन्दा अर स्वां एैंच-- स्वां मूड़ी, हें ?यन रन्दू वक्ख ? होर सुणा ना बोजी बम्बे बात्ता बम्बे रैन-सैन द्यूर जी मि त अधै छौ वक्ख कू रीति रिवाज देखी, दिक्क एैगी है मितै।
वक्ख सारी घाणी छोटी-छोटी--ब्वारी का गमला मां सतरौ डालू छौ अर वैपर औंला दाणी जतरी संतरी हुई छै।
परताप न आंखा ताड़ी तैं बोली- ऐ बौजी ! तथ्या नि ठग्या हमैतें । हमारा तथ्या झपन्याला डालूं पर संतरा का बड़ा-बड़ा दाणा होन्दा अर तुम-- चुप रा बौजी।
ना द्यूर जी-- गो का सौं--वक्ख सब कुछ हाकी किस्मा छन। घौरी का भोरू पर काण्ड़ा लगांया अर कुकुर बिस्तरा मां सेणा। नौन्यू का कपड़ा नी पैरया। हमरा गौं फुन त बुडया-खाड्या कूड़ी का सबसे अगन्या हाटी तिबारी मां सेन्दा खान्दा रौन्दा अर वख बुड्यूंत ैं सबसे पिछिन वाला कमरा मां घौरदा।
                ब्वारी तब उठदी जब काम वाली चल जान्दी। अर द्यूरजी खाण की रस्याण त गफ्फे  दगड़ी सुरूक करी घुटी देण। सपडाट नि कन खान्दी दौ, चिमचान खायू सवादी नी होन्दू ना मी तैं डौरी न मि भित्तर लिजान्दू अपणू खाणू-- यन लगदू जन चोरी करी खाणू होलू। तनै भली लपसपी दाल रन्दी, बरीक चौंल रन्दा मूलैम रोटी रन्दी पर द्यूर जी गौला बट्टी मूड़ी नी जान्दी।
      द्यूर जी कन जमानुू ऐगी बम्बे मां। ब्वारी-ब्वारी कन रन्दी छै। हमारा जमाना झपझपा बिलोज पैरी , लम्बी घौपेली, कखी बम्बे रिवाज हमारा गौ मां ना औ--वक्खा का औजी बिलोज छोटू करि देन्दा अर कपड़ा जादा काटी देन्दा । मेरू दरसनु ब्वनू छौ कि  माँजी अब बड़ा-बड़ा सैरू मां चीज-बस्त छोट्टी ह्वेगी। टैम कम च न लोगू मा-त बाबा ते बा’, माँजी तै मोम’, अर दीदी ते दीबोलदा, अर वटएपहौन्दू बल द्यूरजी एक तै मां त बल छवी  लगोन्दा पर आंखरों तै छट्वा करदा बल। अर तखा का नौ स्यवा नी लांदा जरा। सिन मौण हिलौन्दा बस ह्वेगी स्यवा सौली , चार दिनों ब्यो मी चम करी एक दिन मां ह्वे जाणू’’
                औ बौजी ! बम्बे मां त जादै आग लगी सैद। पर हमर गौ मां मी यीं छलारा छिट्टा पड़या। यख मी कन बैठ्या लाग यन्नी। पर जू भी हो द्यूरजी मेरो गौ भलू रौतेला डांडा, खौला द्वारो मां छवीं बाती। उरख्यल्यू मां खिखताह, अर पुगड्यू मां पड्याल, कम से कम मनख्यू मुख त दिख्ये जान्दा, बच्या त सुणी जान्दू , वख त द्यूर जी भितर क्वे, बच्चादूं नी अर भैर गाड्यू  कू पुपंयाट।
                पर बौजी देस जाणी तैलोग मुण्ड़ कपाली कना।
द्यूर जी देखदी गवा कब त आली अकल--जरूर आली--आखिर दाजुली अपणी तरफौं कात्दी अर घुण्ड़ी अपणी तरफा मुडदी। यन ल्यणकटा कपड़ा लत्ता बोली भाषा मा हम सब सदानि त नि बण्या रला ल्यणकटा।


  -मनोरमा बर्त्वाल, शाश्वत निलयम, काली मन्दिर एन्क्लेव, बद्रीपुर जोगीवाला देहरादून,
    मोबाइल संपर्क - 9528025295, 8126711707,

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