बुधवार, 15 जनवरी 2020

पुस्तक समीक्षा पुस्तक का नाम – बोगेंनविलिया की टहनी





लेखकजगदर्शन सिंह बिष्ट
समीक्षकडॉ. उमेश चमोला
        बोगेँनविलिया की टहनी को एक लम्बी कहानी या लघु उपन्यास कहा जा सकता है | कहानी मोहल्ले के उन लडकों पर आधारित है जो क्रिकेट के प्रति जूनून रखते हैं किन्तु उनके पास एक बैट तक नहीं है | इसलिए वे लकड़ी को बैट के आकार में काटकर कपड़े धोने के किए बनाई थापी का प्रयोग बैट के रूप में करते हैं | उन्हें दूसरी टीम से मुकाबला करना है इसलिए वे एक अच्छे बैट की तलाश में हैं | वे इसके लिए विभिन्न प्रयास करते हैं | एक दिन जब वे कालेज के मैदान में प्रैक्टिस कर रहे थे तो उनकी गेंद कालेज के ताला लगे एक कमरे में दरवाजे के एक टुकड़े को तोड़कर चली गई | जब वे वहाँ गेंद देखने गए तो उन्हें वहाँ एक बैट दिखाई दिया | उन्होंने वहाँ से बैट को निकालने और खेलने के बाद वहीं रखने का निर्णय लिया | इस बात का पता जब कालेज के एक छात्रनेता को चला तो उसने सब के सामने उनके इस काम के बारे में बता दिया | यह बात टीम के एक खिलाड़ी अभय के पिताजी को जब  पता चल जाती है | वह अभय को बुरी तरह डाँटते हैं | वह उसे उसी बोगेनविलिया की टहनी से पीटते हैं जिसकी मदद से उन्होंने कालेज के कमरे से बैट निकाला था | अभय इस बोगेनविलिया की टहनी को कलम के रूप में काटकर गमले में रोपता है | वह इस टहनी को  नियमित सींचने का निर्णय लेता है | वह इसे मंदिर की तरह पवित्र मानकर इस अपने जीवन के अभिन्न अंग के रूप में स्वीकार करता है | वह संकल्प लेता है कि भविष्य में वह ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा जिससे किसी का भी बुरा हो | वह परिश्रम और लगन से जीवन में ऊँचा मुकाम हासिल करेगा | दरअसल यह कहानी इस उपन्यास /कहानी के पात्र राघवेन्द्र सिंह रौतेला द्वारा लिखी पुस्तक में वर्णित कहानी है | जब उसके पिता देवेन्द्र सिंह  कहानी का प्रूफ देखते हैं तो उनकी आँखें आंसुओं से भर जाती है कि उनके बेटे ने पात्रों के नाम बदलकर अपने बचपन की ही घटना पर कहानी लिखी है | उन्होंने बोगेनविलिया की टहनी से किस निर्ममता से अपने बेटे को पीटा था | अब वह कहानी का पात्र राघवेन्द्र सिंह मैनेजर प्रोड्क्शन है |
   हमारे जीवन में ऐसी कोई न घटना कभी न कभी घटित होती है | यदि हम इसे सकारात्मक रूप से लें तो यह हमारे जीवन की दिशा बदल सकती है अन्यथा हम दिशाहीनता के शिकार भी हो सकते हैं | इस उपन्यास/ कहानी का उद्देश्य बचपन में बच्चों को गाइडेंस देकर सही दिशा की ओर उन्मुख करना है | स्वयं लेखक के शब्दों में, यदि हम  अपनी संतानों में बचपन की गलतियों को समय पर सुधार करें तो हमारे समाज में काफी बुराइयाँ स्वत: ही दूर हो जायेंगी और हम एक सुसंस्कृत समाज के निर्माण में सफल होंगे |
 कहानी वर्ष १९८४ की सिक्ख विरोधी दंगों की पृष्ठभूमि से भी जुडी  है | इसमें दिखाया गया है कि किस प्रकार चरणजीत का राजपुर देहरादून में स्थित ढाबा दंगाइयों ने जला दिया था और परिश्रम से उन्होंने फिर उसे एक अच्छे रेस्टोरेंट के रूप में बदल दिया था | इसे उन्होंने NF  (Never Forget  ) 84 नाम दिया | कहानी में कालेज लाइफ, कालेज राजनीति, क्रिकेट मैच (विशेषकर भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाला), के प्रति विद्यार्थियों की उत्सुकता और जूनून, क्रिकेट प्रेमी बच्चों द्वारा क्रिकेट के संसाधनों को जुटाने के लिये संघर्ष करना आदि का जीवंत वर्णन किया गया है | पाठक को कहानी पढ़ते समय उस दौर के क्रिकेट खिलाड़ी, फ़िल्मों के गाने, अभिनेता और 31 अक्टूबर १९८४ को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद की स्थतियों आदि से परिचय प्राप्त होता है |
क्रिकेट के प्रति जुनूनी बच्चों द्वारा अपनी टीम के लिए चुनाव प्रचार की एवज में जमा रुपयों से क्रिकेट किट प्राप्त करने की योजना बनाना और बाद में इन जमा रुपयों से सिक्ख विरोधी दंगे से प्रभावित अपने दोस्त की सहायता करना युवाओं की सहृदयता को दिखाता है | बोगेनविलिया की टहनी को गमले में रोपते समय उसमे पानी डालने से पहले आंसुओं की बूंदों का गिरना पाठक को भावुक कर सकता है | कहानी में दैनिक बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया गया  है | छोटे – छोटे संवाद उपन्यास / कहानी की विषवस्तु को सहजता से आगे बढाने में सहायक हैं | ९१ पेजों में सिमटी कहानी  एक ही सिटिंग में पढी जा सकती है | पुस्तक का आवरण कहानी की विषयवस्तु के अनुरूप है | लेखक की यह पहली पुस्तक है | इस पुस्तक का पाठकों के बीच स्वागत होगा | ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए |  भविष्य में भी कहानी और उपन्यास  के अलावा संस्मरण विधा पर भी लेखक कलम चलाएंगे | ऐसी आशा की जा सकती है | 
पुस्तक का नाम – बोगेँनविलिया की टहनी
लेखक – जगदर्शन सिंह बिष्ट
प्रकाशक – समय साक्ष्य, 15 फालतू लाइन देहरादून, उत्तराखंड २४००१
प्रकाशन वर्ष – २०१९,
मूल्य – 100 रूपये मात्र
समीक्षक – डॉ उमेश चमोला

5 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut sargarbhit samiksha ki gayi hai, Thank u for giving ur valuable time

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  2. Dr. Umesh chamola dwara bahut hi sateek samiksha ki gayi hai.

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  3. Kuch hi din pehle yah kitab mene padhkar khatm ki aur sach kahu to lekhak ki vo kahani dil me utar gayi hai.
    Bahut hi saral bhasha ka paryog bade hi sahaj dhamg se kiya gaya hai.aakhri tak suspense bana rahta hai ki vo tahni aakhir itne mahatvapurn kyu hai.

    Lekhak ke yah pahli kitab hai parantu kahani bahut hi gazab hai va gazab dhang se prastut ki gayi hai.

    Kahani padhte hue mujhe bhi apna bachpan yad aa gaya tha.kahani padhkar yad aaya ki aaj kal samaj me log ek dusre ko milte to hai lekin keval whatsapp facebook me. Parantu kahani padhkar yah bhi yad aya ki pahle log sabko hakikat me mila karte the, sath khusiya v gam bata karte the, ek duje ki madad ke liye tatpar rahte the jo aajkal ke samaj me kam hi dekhne ko mil raha hai.

    Kahni humko naitik mulyo ka aina bai dikhati hai.

    Me 4.5 rating dena chaunga kitab ko (5 me se)

    A very brilliant effort by the author/writer. Eagerly waiting for 2nd book by him.

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