विद्यार्थी जीवन
में मेरी रूचि भाषण, वाद – विवाद प्रतियोगिता और कविता पाठ में रही थी | शिक्षक के
रूप में कार्य करने के बाद कई अवसरों पर मैंने देखा कि बच्चों को तो दूर हमारे
साथियों को भी वाद – विवाद प्रतियोगिता, भाषण और तात्कालिक भाषण के बीच के अंतर का
पता नहीं था | वर्ष १९९७ से १९९८ तक मैंने प्रवक्ता पद पर श्री गुरु राम राय
पब्लिक स्कूल श्रीनगर गढ़वाल में कार्य किया | श्रीनगर गढ़वाल में विभिन्न संस्थाओं
के द्वारा बच्चों के लिए क्विज, तात्कालिक भाषण, लोकगीत, लोकनृत्य , वाद – विवाद
आदि प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता था | एक बार वाद – विवाद प्रतियोगिता का
विषय ‘राजनीति में महिलाओं को आरक्षण दिया जाना आवश्यक है’ रखा गया था |
इसी विषय पर बिड़ला संघटक महाविद्यालय श्रीनगर से
मेरा चयन अंत:विश्वविद्यालयी ( राष्ट्रीय स्तर ) के लिए हुआ था | अब मुझे बच्चों
को इसी विषय के पक्ष और विपक्ष में तैयारी करानी थी | मेरे पास कक्षा 12 की दो बालिकाओं
( एक पक्ष और एक विपक्ष ) ने अपना नाम लिखाया था | मैंने उनसे कहा, “इस विषय पर पहले तुम कुछ मैटर तैयार करके
लाना और मुझे सुनाना | दो – तीन दिन के
अन्दर वे इस विषय पर मैटर तैयार करके लाये | मैंने उन्हें वाद – विवाद प्रतियोगिता
में सफल होने के टिप्स देते हुए उनके द्वारा सुनाए मैटर में संशोधन किया | वाद –
प्रतियोगिता के मानकों के आधार पर उनके डिबेट की तैयारी पूरी करा ली | श्रीनगर के
नगरपालिका हाल में वाद – विवाद प्रतियोगिता होनी थी | मैं वहाँ नियत समय पर पहुँच
गया | बच्चों ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और श्री गुरुरामराय पब्लिक स्कूल ने नगर
के सभी विद्यालयों के बीच पहला स्थान प्राप्त किया | जब बच्चों को प्रतीक चिह्न
दिया जा रहा था तो एक बालिका ने संयोजक मंडल से कहा मुझे अपने सर के हाथों ये
सम्मान पाना है | मुझे मंच पर बुलाया गया | मंच से उतरने के बाद मैंने देखा कि हॉल
में उस बालिका के माता – पिता भी उपस्थित थे | बालिका ने अपने माता – पिता से मेरा
परिचय कराया| बालिका के माता – पिता ने कहा,”सर हमारी बालिका को पहला स्थान मिला है |
इसका श्रेय आपको ही जाता है | हमारी बालिका ने बताया कि आपने डिबेट में बहुत मेहनत
कराई है |”
इस घटना से मैं अभिभूत हो गया था | मैंने सोचा,
“ यह बालिका मंच पर सम्मान देने के लिए
अपने माता – पिता को भी बुला
सकती थी किन्तु उसने मुझे बुलाया | शिक्षक को उस बालिका द्वारा दिए सम्मान से मैं
स्वयं को भी सम्मानित महसूस करने लगा |
cc-
डॉ ० उमेश चमोला