पुस्तक समीक्षा
डांड्यों –कांठयों
अर यखै रैबास्यूं कि खैरि छ ‘पथ्यला’
कवि –डॉ० उमेश चमोला
, समीक्षक- यतेन्द्र प्रसाद गौड़
सन
अस्सी क दशक क बाद बिटि आज गढ़वाली साहित्य मा बंड्या कुछ लिख्येणा बि छ अर
छ्प्येणा बि छ | ये से पैलि गढ़वाली साहित्य लिख्येंद त छ्या पण छ्प्येंद कम छ्या |
कखि-कखिमुं बंच्येग्या त बंच्येग्या निथर सैरि लिख्युं सुच्युं एकि जिकुड़ी मा
रितणू रै | जादा से जादा रै त कलम स्यांक लिख्यू जु कि पोथि पन्नो मा इ लिख्युं
रैगे | पढ्दरों तलक नि पौंचि साक | यां से गढ़वाली बोली भाषा कि विकास जात्रा अगनै
त बढणा रै पण जरा जरा कैकि |
गढ़वाली
साहित्य मा बड़ा बड़ा जणगुरु साहित्यकार ह्वेनि जौंन गढ़वाली बोली /भाषा मा इ अपड़ी
लेखनि चलै | गढ़वाली बोली तैं भाषा कि सी अन्वार दे | वूं मध्ये स्व० भजनसिंह,स्व०
कन्हैया लाल डंडरियाल,स्व० जीवानंद श्रीयाल, श्री सुदामा प्रसाद प्रेमी, यना
रचनाकार ह्वेनि जौंन गढ़वाली समाज तैं अमर कृति देनि | जू आज का समै मा बुल्ये जा त
अमर ग्रन्थ छन | जौं मा कविता संग्रै, गीत काव्य,खंड काव्य छन | अजर –अमर
रैंयाँ यु रचनाकारों कु सत अर तपन आज नया –नया
साहित्य सृजन हुण बैठि ग्यां | बोलि/भाषा क साहित्यप्रेमी साहित्य सृजन करण बैठि
गैनि| जां से गढ़वाली साहित्य कु आज का तारीख मा बड़ो रचना संसार बणि ग्ये |
ये इ
रचना संसार बिटि एक नों औंद डॉ० उमेश
चमोला जु एक दशक बिटि गढ़वाली बोलि भाषा अर संस्कृति तै अगनै बढाण मा अपड़ा
महत्वपूर्ण योगदान दीणा छन | ये संग्रह से पैलि वुंको एक गढ़वाली खंडकाव्य प्रकाशित
ह्वेग्ये छौ | वेक बाद एक गढ़वाली गीतुं कि अलबम ‘गौं मा’ बि प्रसारित ह्वे छौ |
‘पथ्यला’ गीत /कविता संग्रै वूँको यु तिसरु प्रयास छ | ये संग्रै मा कुछ गीत छन, त
कविता बि छन | कुल मिलैक डॉ ० उमेश चमोला को यो ४४ रचनौ कु संग्रै छ |
‘पथ्यला’
गढ़वाली मा ये शब्द कु अर्थ हूंद ‘सूखो पात’ जु डालों बिटि झडीक भियां ऐ जांदिन | इ
सूखो पात सैनों मा करलों परे ,बाटों मा चदरि सीं बिछी रंदिन | सैद आज हमर पहाड़ कि
माटि अर मनिख्युं कि यन्नि कुछ हालत हवीं छ | वूँकि रचनौ मा या पीड़ साफ़ दिखेणी छ |
अपड़ी मन कि ईं बिथा तैं कवि श्री चमोला जी माँ सरसुति का समणि प्रकट करणा छन |
ज्वाकि वूंकि पैलि रचना छ | गढ़भूमि मा जगो-जगों पर द्यब्तों का ठौ छिन | ये ही
कारण से ये थैं देवभूमि बुल्ये ग्या| वेखि की बि वंदना श्री चमोला जी कन्ना छिन |
संग्रै
मा तीसरि कविता ‘पथ्यला बोण का’ सैरि पोथी का सार प्रकट कन्न वाळी कविता छ | या
रचना नई ढंग कि विषयवस्तु लेकि पढ़दरों कि जिकुड़ी परै सुबराट कन्न वाळी रचना छ | ये
ई कारण से पोथिक शीर्षक बि बनि ग्ये | संग्रै मा देवभूमि क आस अर बिस्वास क कै
बनिकि रंग अर अन्वार दिखणू कु मिलद छिन | तकरीबन कवितों मा राजनैतिक भ्रष्टाचार,
ध्वकादारी,एक हैका रीस, ठीन्स-मीस जनि बुरै छन त हैकि तर्फ रूप सिंगार, ज्वनि कि
उमंग,बसंत कि बहार बि छ |
कवि
चमोला जी कि रचनो मा गजल विधा कि बि झलक आणि छ जौं थैं कि असरदार रचना बोलि सकदों
|
मिथे
वन त छंद शास्त्र क इतगा बडू ज्ञान नीं छ ,पण बंचण मा लय बंठ मा शब्द आणा छन | त
बोलि सकदा कि ज्यादातर रचना छंदबद्ध छन | आखिर मा क कुछ रचना छंदमुक्त रचना छन |
कुछेक रचना छिट्गा छन जु असरदार छन | छंदबद्ध रचना हिन्दी साहित्य शैली मा लिख्याँ
छन | भाषा सरल अर बिम्बप्रधान छन | पोथी मा केदार घाटी अर नागपुर छेत्र कु
सांस्कृतिक जीवन कि झलक दिख्येणी छ | यु बडू सुंदर लग कि कठिन शब्दों क अर्थ बि
पोथी अलग से लिख्याँ छन | पोथी कु मुखपृष्ठ सुन्दर अर छ्पछुप छ |
कुलमिलैकि
‘पथ्यला’ आखर मात्र नी छ | आखरु से अगनै कि छ्वीं छन | उम्मीद छ साहित्य की कवितों
कि या बिज्वाड फूललि फललि जरूर |
(शैल वाणी २३ जुलाई २०१३ बटिन साभार )
(शैल वाणी २३ जुलाई २०१३ बटिन साभार )
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