शनिवार, 9 सितंबर 2017

पुस्तक समीक्षा
डांड्यों –कांठयों अर यखै रैबास्यूं कि खैरि छ   ‘पथ्यला’
कवि –डॉ० उमेश चमोला ,   समीक्षक- यतेन्द्र प्रसाद गौड़
   सन अस्सी क दशक क बाद बिटि आज गढ़वाली साहित्य मा बंड्या कुछ लिख्येणा बि छ अर छ्प्येणा बि छ | ये से पैलि गढ़वाली साहित्य लिख्येंद त छ्या पण छ्प्येंद कम छ्या | कखि-कखिमुं बंच्येग्या त बंच्येग्या निथर सैरि लिख्युं सुच्युं एकि जिकुड़ी मा रितणू रै | जादा से जादा रै त कलम स्यांक लिख्यू जु कि पोथि पन्नो मा इ लिख्युं रैगे | पढ्दरों तलक नि पौंचि साक | यां से गढ़वाली बोली भाषा कि विकास जात्रा अगनै त बढणा रै पण जरा जरा कैकि |
    गढ़वाली साहित्य मा बड़ा बड़ा जणगुरु साहित्यकार ह्वेनि जौंन गढ़वाली बोली /भाषा मा इ अपड़ी लेखनि चलै | गढ़वाली बोली तैं भाषा कि सी अन्वार दे | वूं मध्ये स्व० भजनसिंह,स्व० कन्हैया लाल डंडरियाल,स्व० जीवानंद श्रीयाल, श्री सुदामा प्रसाद प्रेमी, यना रचनाकार ह्वेनि जौंन गढ़वाली समाज तैं अमर कृति देनि | जू आज का समै मा बुल्ये जा त अमर ग्रन्थ छन | जौं मा कविता संग्रै, गीत काव्य,खंड काव्य छन | अजर –अमर रैंयाँ  यु रचनाकारों कु सत अर तपन आज नया –नया साहित्य सृजन हुण बैठि ग्यां | बोलि/भाषा क साहित्यप्रेमी साहित्य सृजन करण बैठि गैनि| जां से गढ़वाली साहित्य कु आज का तारीख मा बड़ो रचना संसार बणि ग्ये |
   ये इ रचना संसार बिटि  एक नों औंद डॉ० उमेश चमोला जु एक दशक बिटि गढ़वाली बोलि भाषा अर संस्कृति तै अगनै बढाण मा अपड़ा महत्वपूर्ण योगदान दीणा छन | ये संग्रह से पैलि वुंको एक गढ़वाली खंडकाव्य प्रकाशित ह्वेग्ये छौ | वेक बाद एक गढ़वाली गीतुं कि अलबम ‘गौं मा’ बि प्रसारित ह्वे छौ | ‘पथ्यला’ गीत /कविता संग्रै वूँको यु तिसरु प्रयास छ | ये संग्रै मा कुछ गीत छन, त कविता बि छन | कुल मिलैक डॉ ० उमेश चमोला को यो ४४ रचनौ कु संग्रै छ |
  ‘पथ्यला’ गढ़वाली मा ये शब्द कु अर्थ हूंद ‘सूखो पात’ जु डालों बिटि झडीक भियां ऐ जांदिन | इ सूखो पात सैनों मा करलों परे ,बाटों मा चदरि सीं बिछी रंदिन | सैद आज हमर पहाड़ कि माटि अर मनिख्युं कि यन्नि कुछ हालत हवीं छ | वूँकि रचनौ मा या पीड़ साफ़ दिखेणी छ | अपड़ी मन कि ईं बिथा तैं कवि श्री चमोला जी माँ सरसुति का समणि प्रकट करणा छन | ज्वाकि वूंकि पैलि रचना छ | गढ़भूमि मा जगो-जगों पर द्यब्तों का ठौ छिन | ये ही कारण से ये थैं देवभूमि बुल्ये ग्या| वेखि की बि वंदना श्री चमोला जी कन्ना छिन |
    संग्रै मा तीसरि कविता ‘पथ्यला बोण का’ सैरि पोथी का सार प्रकट कन्न वाळी कविता छ | या रचना नई ढंग कि विषयवस्तु लेकि पढ़दरों कि जिकुड़ी परै सुबराट कन्न वाळी रचना छ | ये ई कारण से पोथिक शीर्षक बि बनि ग्ये | संग्रै मा देवभूमि क आस अर बिस्वास क कै बनिकि रंग अर अन्वार दिखणू कु मिलद छिन | तकरीबन कवितों मा राजनैतिक भ्रष्टाचार, ध्वकादारी,एक हैका रीस, ठीन्स-मीस जनि बुरै छन त हैकि तर्फ रूप सिंगार, ज्वनि कि उमंग,बसंत कि बहार बि छ |
   कवि चमोला जी कि रचनो मा गजल विधा कि बि झलक आणि छ जौं थैं कि असरदार रचना बोलि सकदों |
   मिथे वन त छंद शास्त्र क इतगा बडू ज्ञान नीं छ ,पण बंचण मा लय बंठ मा शब्द आणा छन | त बोलि सकदा कि ज्यादातर रचना छंदबद्ध छन | आखिर मा क कुछ रचना छंदमुक्त रचना छन | कुछेक रचना छिट्गा छन जु असरदार छन | छंदबद्ध रचना हिन्दी साहित्य शैली मा लिख्याँ छन | भाषा सरल अर बिम्बप्रधान छन | पोथी मा केदार घाटी अर नागपुर छेत्र कु सांस्कृतिक जीवन कि झलक दिख्येणी छ | यु बडू सुंदर लग कि कठिन शब्दों क अर्थ बि पोथी अलग से लिख्याँ छन | पोथी कु मुखपृष्ठ सुन्दर अर छ्पछुप छ |

   कुलमिलैकि ‘पथ्यला’ आखर मात्र नी छ | आखरु से अगनै कि छ्वीं छन | उम्मीद छ साहित्य की कवितों कि या बिज्वाड फूललि फललि जरूर |
         (शैल वाणी २३ जुलाई २०१३ बटिन साभार )

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