रविवार, 3 सितंबर 2017

किताबी समीक्षा
 ‘पथ्यला मा दिख्येंदन जीवन अर संस्कृति का बन्या- बन्या रंग
समीक्षक –संदीप रावत
 बथो (तेज हवा) का कारण जो पत्ता भुयां पडी जांदन वूं खुणि ‘पथ्यला’ ब्वले जान्द | पाड का रैबास्यों का जीवन मा बि कुछ यनि होंणू रैंद यानि बथों औणा रैन्दिन पर फेर बि यखा मनखी टकटका रैन्दीन अर एक जीवंत जीवन बितोंदन | ‘पथ्यला’ नौ छ एस० सी ० ई ० आर ० टी नरेन्द्र नगर मा प्रवक्ता पद पर कार्यरत डॉ० उमेश चमोला कि नै गढ़वाली काव्य पोथी कु जो कि नै छवालि का एक हुणत्यला लिख्वार छन |विचारक छन अर दगड़ा दगड़ी शोधार्थी बि छन | कवि का रूप मा डॉ ० चमोलान अपणा जीवन रूपि डाला से हुयाँ अनुभव रूपि झौडयां पत्तों (पतगा या पथ्यला) तैं ये काव्य संग्रह कु पथ्यला नौ रख्युं छ |
  यीं काव्य पोथी मा उनतीस गीत अर पंद्रह कविता कुल मिलैकि चवालीस रचना छन | जैकु आमुख प्रसिद्ध रंगकर्मी प्रो० डी० आर ० पुरोहित जी कु भौत अच्छा ढंग से लिख्युं छ | अपणि रचनौ कि शुरुवात डॉ० चमोलान ‘शारदे माँ’ का गीत से कर्युं छ | यामा वु वाग्देवी से उत्तराखण्ड मा ज्ञान कु दिया जलौनो अर प्रेम कु बसंत ल्यौनो आह्वान कर्द –
 ‘नया राज उत्तराखण्ड मा, ज्ञान कु दयू जले दये,
 ख्यद अम्पत का बथों मा, प्रेम फुल्यार लै दये |
 रूखी सूखी डाली बोट्लों,मोल्यार ल्येक ऐ तू,
 भला भला बाटों मीं हिटै दये,शारदे ब्वे मेरि तू |’
पथ्यला नौं का गीत की शुरुवात मा डॉ० चमोलान लेखि –
‘हम पथ्यला बौण का, कैतें हमुन दयोंण क्या,
डालों का जब पतगा छा, भला लगदा कतगा छा,
डालों का हम गैल छा,सबु तैं देंदा छैल छा |
ये गीत का अंत मा ब्वलदन –
‘हैका मोल्यार फेर औला, रीति डालों तैं सजोला,
आज छन हम उदास, भोल खुश्या गीत गौला,
जिन्दगी की औणी जाणी,हमुन कै बतोंण क्या,
हम पथ्यला बौण का|’
   यीं काव्य पोथी मा वास्ते मा जीवन अर पाडै संस्कृति का बन्याँ –बन्याँ रंग दिखेंदन | बसंत का दगडी पतझड़ कु बि स्वागत, प्रकृति चित्रण, पाड़ी जीवन मा औण वालि खैरी विपदा अर लोकजीवन से जुडी बात यीं काव्य पोथी मा छन | यों सब्यों का दगड़ी पाड़ी जीवन मा होण वला परिवर्तनों पर बि कवि कि पैनि नजर छ तबि त मद्य निषेध,पलायन, जातिवाद, भ्रष्टाचार अर देश प्रेम जना मुद्दों पर बि बड़ा असरदार ढंग से यीं पोथी मा कविता अर गीतों का माध्यम से लिख्युं छ | ‘ब्वारी नि मिलि भलि’ रचना मा डॉ० चमोला ब्वलदन –‘स्वीणों कु महल चूर चूर ह्वेगी, ब्वारी नि मिलि भलि जिकुड़ी रवेगी ‘| मजबूरी मा पहाड़ का गौ छोडीक शहर की तरफा पैटणा कु वर्णन कविन ‘गुरुमूल्या ढूंगो सीं नौ कि कविता मा करयूँ छ – ‘घौणा बौण का स्वाणा ये मुलुक छोड़ी, अपडी जिकुड़ी तैं तोडी ,द्वी चार कागजा कत्तरो तैं पौनो, दादा –दादी, अर ब्वे बुबा कि मुखड़ी मा चलक देखणों मी आयूँ यख,धुआं ही धुआं च जख |’’
  कवि अर गीतकार डॉ० चमोला अपणि जमीन अर अपणा पहाड़ से भितर तक जुडयूँ च या बात वेका ‘ऐ जा मेरा गौं मा, नौ का गीत से स्पष्ट ह्वे जान्द – ‘टक लगैक सुण, ढोलकी चैत की,
               चांचरी लगान्दी बेतुली मैत की,
               कबि खुदेड़ गीत,कबि सदें लगान्दी,
         थड्या चौफलों का हुलेर चौक मा,
               मेरा गौ मा |’
कविता अर गीतों की भाषा सरल च, नागपुरी शब्द कविता अर गीतों मा दिखेंदन |कुछ शब्दों मा प्रिंटिंग कि गलती दिख्येन्द | आम जीवन अर लोखू से जुड्यां शब्दों कु प्रयोग करयूँ छ | कविन कठिन शब्दों कु हिन्दी मा अर्थ पोथी का सबसे पिछ्न्याँ पन्नों मा देकी होरि अच्छु काम करी | कुल मिलैकि यीं काव्य पोथी मा भला –भला गीत अर कविता छन | वास्तव मा कवि कु यीं काव्य पोथि कु सार्थक नौ  ‘पथ्यला’ रख्युं छ | लोकसंस्कृति अर लोकभाषा का संरक्षण का वास्ता यनि काव्य पोथी लिखे जाण जरूरी छ | आज का ये समय मा इलेक्ट्रोनिक मीडिया का ये दौर मा रुचिपूर्ण स्वस्थ मूल्यों पर आधारित ,लोकजीवन से जुड्यीं बातों पर आधारित अर सबसे बड़ी बात कि अपणि लोकभाषा मा लिख्युं साहित्य कु प्रचार प्रसार कि भौत जर्वत छ आज |
   यीं कविता पोथी से पैलि डॉ० चमोला कि राष्ट्रदीप्ति(राष्ट्र भक्तिपूर्ण गीत अर कविता संग्रह ), उमाळ( गढ़वाली खंडकाव्य), पर्यावरनीय शिक्षा पाठ्य सहगामी क्रियाकलाप अर आस- पास विज्ञान का नौं से पोथी पैलि ऐग्येनी  / प्रकाशित ह्वे गैनी, उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा द्वारा प्रकाशित कै किताब्यों मा उंकों विषय समन्वयन अर सम्पादन लेखन कु काम करयूँ च अर कना छन | भौत कठिन काम होंद अपणि सरकारी नौकरि मा रैकि लेखन कु कम करणु | वास्तव मा यो अच्छु संकेत च हमारि लोकभाषों खुणि कि उच्चतर पढयां –लिख्याँ शिक्षक अर वु बि विज्ञान सेम का शिक्षक अपणि लोकभाषों मा लिखणा छन अर काम कना छन |
 काव्य संग्रह – पथ्यला
 कवि –डॉ० उमेश चमोला
प्रकाशक –अविचल प्रकाशन बिजनौर, मूल्य -१०० रु०
समीक्षक –संदीप रावत
( उत्तराखण्ड खबर सार १ अक्टूबर -१५ अक्टूबर २०११ का अंक से आभार )
  



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