पुस्तक समीक्षा निरबिज
समीक्षक –डॉ० नन्द किशोर ढोडियाल ‘अरुण’
पुस्तक
समीक्षा निरबिजु
समीक्षक –डॉ०
नन्द किशोर ढोडियाल ‘अरुण’
उपन्यासकार –डॉ
० उमेश चमोला
गढ़वाली साहित्य
तैं दिशा देण मा सफल छ गढ़वाली
उपन्यास ‘निरबिजु’
गढ़वाली
मा निरबिजु शब्द का द्वी अर्थ हूंदिन | एक अर्थ मा इन वस्तु जैको बीज ही नि होंदो
| रिखू ,ईख या गन्ना इनि घास छ जैको बीज नि होंदो | इलै जब हम गढ़वाली भाषा कि एक
पहेली (आणा –भैणा) निरबिजु क्या ? पूछ्दों ,त उत्तर मिलदा रिक्खु या गन्ना |
निरबिजु को दुसरो अर्थ छ इन वस्तु या जैको पैलि बीज त छयो पर परिस्थितिवश वैको बीज
नष्ट ह्वेगे | हमारा उपन्यास को शीर्षक ‘निरबिजु’ को सम्बन्ध दुसरा अर्थ से छ |
गढ़वाली मा निरबिजु या निरबिजि एक मुहावरा भी चा जैको प्रयोग यख गाली का रूप मा करै
जांद | निरबिजु को एक औरि अर्थ भी छ बुसिलो | बुसिलो यानि चीज त छैंछ पर वैका अंदर
बीज नीं छ | हमारा उपन्यासकार डॉ० उमेश चमोलान अपणा उपन्यास को शीर्षक केवल
मुहावरा का रूप प्रयोग करे ‘निरबिजु’ |
निरबिजु उपन्यास को कलेवर यद्यपि छ्व्टो छ पर
कथानक या कथा येकि बहुत लम्बी छ | मात्र दस भागों मा सिमटी ये उपन्यास कि कथा एक
बड़ा कालखंड कि कथा छ | जैमा राजनैतिक उथल पुथल अर राजमहलू मा होण वालि कूटनीति का
वर्णन करेगे | नितांत लोककथा शैली को येको कथानक आधुनिक उपन्यास कला मा ढलेगे |
उपन्यास कि कानी इन छ |
शेरगढ़ का रज्जा महेन्द्र प्रतापन एक बार अपणा पड़ोसी राज्य
सौरगढ़ जैकि इन मार काट मचै कि अपणा राज्य मा खून खराबा देखि की वखै राजकुमारी
रूपिणि राजा महेन्द्र प्रताप का समिणि ऐकि रज्जा तैं प्रेम अर धर्म की शिक्षा दीन्द
| जैको प्रभाव रज्जा का मन पर पड़द अर वो सेना का साथ शेरगढ़ लौटी जान्द | इनै जब
रूपिणि तैं पता चलद कि रज्जा का मन पर वींकि शिक्षा को प्रभाव पडी त वो राजा का
पराक्रम अर दयालु स्वभाव से वेसे मन ही मन प्रेम करण लगद | जैकु पता राजकुमारी कि
दगडया कुसुम तैं लगद | त वो रूपणि तैं सलाह दीन्द कि वो अपणु प्रेमपत्र रज्जा
महेन्द्र प्रताप का पास भेजो | रूपिणि उन्नी करद अर रज्जा तैं जब पता लगद वेतैं भी
यो आभास हुंद कि वी भी रूपिणि से प्रेम करण लगीगे | येका बाद दुयुं को ब्यौ होंदा
अर एक साल तक वो बड़ा प्रेम से जीवन बितदिन | शेरगढ़ अर सौरगढ़ कि जनता वुँका राज काज
से प्रसन्न हूंद पर एक दिन राणी रूपिणि तैं एक इनौ सपना हूंद जैमा अमंगल कि छाया
दिखेंद | राजा जब राणी को सुपिन्या अपणा पुरोहित धर्मदत्त जी का समिणि खुलोंद त
धर्मदत्त रज्जा का जीवन मा अमंगल कि आहट बतैकि बुरा कर्म से बचण कि नसीहत देंदिन |
कुछ समय बाद जब रज्जा अपणा दरबार मा सरा राज्य
का नचाड अर गवैयों का समागम करद त एक सुंदर नौनि पर वैको दिल ऐ जांद | मोहिनि
नौंकि यीं नचाड नौनि पर वो राजा इतगा मोहित हुंदा कि बिना प्रजा तैं पूछी वीं से
ब्यौ कर देंद | ईंका रूप मा आसक्त ह्वे वो रज्जा राजपाट कि ओर ध्यान नि देंदु अर
मोहिनि का भै दीवान तैं सेनापति बनै दीन्द | ये से रज्जा का स्वामीभक्त सेनापति
खड्क सिंह तै राज्य का विणास को पूर्वाभास हुंद अर वो राणी रूपिणि का साथ जैक
रज्जा तैं समझाण खुनै जान्द पर मोहिनि वूँतैं रज्जा से नि मिलण दीन्द | इने दिवान,
कुछ् दरबारी अर राणि मोहिनि रज्जा तैं मारण कि साजिस रची सेनापति अर राणी रूपिणि
तैं देश निकाला दे दींदिन | राज पुरोहित धर्मदत्त जब रज्जा तैं समझांद त रज्जा वे
तैं भी राज्य से निकाल दीन्द | इने रज्जा राणि मोहिनि का ब्व्ल्याँ पर एक सेवक
द्वारा अपणि मौत कि नकली खबर खडक सिंह अर राणि रूपिणि मुं भेजद त राणि प्राण त्याग
देंदि | जब यो समाचार रज्जा का पास पौंछ्द त वैका आँखा खुलि जान्दन त वो भरा दरबार
मा राणि मोहिनि तैं मार देण कु आदेश देंद |सेनापति दिवान रज्जा तै मार देंद | हौर
राज्य भक्त सैनिक राणि मोहिनि अर दिवान तैं मार देंदा | सारो राज्य उजड़ जांद |
धर्मदत्त पुरोहित दयखद कि जै रज्जा को इतना बडो राज्य छयो वेको निरबिजु ह्वेगे |
उपन्यास कि कानी बड़ी रोचक अर शिक्षाप्रद छ |
जैतैं बार बार पढणा कु ज्यू करद | कानी को
गठन उपन्यासकार डॉ० उमेश चमोलान बड़ा सूझबूझ अर सदीं लेखनी से करी | यी रचना का
संवाद बड़ा छवटा पर वातावरण का अनुकूल छन जो उपन्यास की कथा तैं अगनै बढान्दिन |ये
उपन्यास मा चार पुरुष अर तीन स्त्री पात्र छन जौंकु चरित्र पात्रानुकूल छ | रज्जा
महेंद्र प्रताप वीर,बुद्धिमान पर काल का वश प्वडयूँ राणि मोहिनि को गुलाम छ | राणि
रूपिणि सदृश्य कुशल शासिका,पतिव्रता दूर दृष्टि संपन्न नारि छ | कुसुम राणि कि
समझदार सखी छ | राणि मोहिनि सुंदर,नचाड पर हमेशा रज्जा तैं अपणा अंगुल्यूं मा नचाण
वालि खलनायिका नारि छ | जु अपणा स्वार्थ खुनै राजा अर राज्य कु निरबिजु करद | खड्क
सिंह स्वामी भक्त सेनापति अर दिवान सत्तालोलुप आदिम छ | धर्मदत्त सच्चो
स्पष्टवक्ता अर दूरदृष्टिसंपन्न राजपुरोहित छ | उपन्यास कि सैरि कथा तैं यी पात्र
ही अगनै बढ़ादिन | उपन्यास कि कथा दुखांत छ | जैको प्रभाव पाठक का मन मा बड़ी देर तक
रैंद |
उद्देश्य की दृष्टि से निरबिजु उपन्यास एक सफल
उपन्यास छ | जनकि उपन्यासकार एक खास उद्देश्य की पूर्ति ख़ुनै उपन्यास लिखद ऊनि डॉ
० चमोलान ये कल्पनापरक उपन्यास तैं इनि गति अर सामग्री सौंपि जैसे वुंको पर्यावरण
संरक्षण अर गढ़ संस्कृति पोषण का उद्देश्य पूरो होंद | देश,काल अर वातावरण कि
दृष्टि से भी यो उपन्यास एक सफल अर सार्थक उपन्यासों की श्रेणि मा आंद |
उत्तराखण्ड कि धरति का गढ़ु अर गढू का अपणा आपस कि एतिहासिक लडै का साथ –साथ युंका
सामंतों, राणी अर कर्मचारियों कि आपसी लडै को सुंदर अर भावानुकूल वर्णन
उपन्यासकारन यै उपन्यास मा करि | वातावरण मा राजदरबारों को वातावरण,लडै कि
विभीषिका,रज्जा रान्यूँ को पारस्परिक प्रेम –विवाद आदि तैं चित्रित करण मा
उपन्यासकार सफल ह्वे |
भाषा अर शैली कि दृष्टि से भी ‘निरबिजु’
उपन्यास अफुमा सफल उपन्यास छ | ये की भाषा विशुद्ध गढ़वाली पर नागपुरिया बोलि की
आंशिक छैल मा पलीं अर बढीं छ | भाषा मा संस्कृत का शब्दू का साथ –साथ अरबी अर
फ़ारसी का शब्द भी ऐ गिन| टैम अर सैड जना अंगरेजी शब्द भी ये उपन्यास मा अया छन |
मुहावरा अर कहावतों को प्रयोग भी ईं गढ़वाली भाषा मा हुयूँ छ | ये का अलावा
उपन्यासकारन ये उपन्यास कि भाषा मा देशज शब्द को भी प्रयोग करी | उपन्यास कि शैली
भावात्मक छ | ये उपन्यास मा इन शैली को भी प्रयोग करेगै जैसे कि यो उपन्यास
एतिहासिक जन लगद |
ये तरों से ‘निरबिजु’ नौंकु यो उपन्यास उपन्यास
तत्वों का आधार पर सफल उपन्यास छ | ये उपन्यास का उपन्यासकार को यो पैलो उपन्यास
जरूर छ पर युंकी कथा गठन अर उपन्यास शैली से इन नि लगदु कि उपन्यासकार एक नवाड
उपन्यासकार छ | इलै यदि आणा वला वक्त मा डॉ० उमेश चमोला इनि ही उपन्यास लिखीं त वो
दिन दूर नीं छ जब वुंकि गणना गढ़वाली का लोकप्रिय उपन्यासकारों मा ह्वेली | जनकि गढ़वाली भाषा का पाठक जणदा होला गढ़वाली मा
अबि तक अंगुल्यूं मा गनै जाणा वाला उपन्यास छन | यी विधा तैं अगर अगने क्वी बडै
सकदा त डॉ० उमेश चमोला जना युग साहित्यकार ही बडै सकदी |
डॉ० उमेश चमोला को यो बालोपयोगी उपन्यास मूलतः
पर्यावरणनीय चेतना,सामाजिक सरोकार, संस्कृति अर नैतिकता का अलावा साहित्य तैं नै
दिशा दींण मा सफल होलो | उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की आर्थिक सहायता से छ्प्युं अर
बिनसर प्रकाशन देहरादून से प्रकाशित ये उपन्यास की कीमत मात्र साठ रूप्या छ | पेपर
बैक का कलेवर मा बंध्यु अर संजीव चेतन की कुची का सतरंगी रंगु का रंग मा रंग्युं
ये को आवरण पृष्ठ प्रौढ़,युवा अर बुढ्यों का साथ –साथ बच्चों तैं भी अपणा ओर खेंचद
|मात्र अट्ठाईस पृश्ठु मा सिमटयां ये उपन्यास तैं भाषा को कुई पाठ्यक्रम बणा त यो
प्राथमिक कक्षा का बच्चों ख़ुनै शिक्षापयोगी छ |
( रंत रैबार दिसम्बर २०१२ अर उत्तराखण्ड खबर
सार १५ से २८ फरवरी २०१३ बटिन साभार )उपन्यासकार –डॉ ० उमेश चमोला
गढ़वाली साहित्य तैं दिशा देण मा सफल छ गढ़वाली
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