पुस्तक समीक्षा ‘उमाळ’ (गढ़वाली खंडकाव्य)
देश प्रेम और
हृदयगम्य भावनाओं का प्रस्फुटन है ‘उमाळ’ खंडकाव्य
समीक्षक – हेमा
उनियाल , कवि –डॉ० उमेश चमोला
सात सर्गों में विभाजित
‘उमाळ’ खंडकाव्य डॉ० उमेश चमोला द्वारा रचित गढ़वाली भाषा में रचित एक ऐसा खंडकाव्य
है जिसमे देशभक्ति एवं प्रेममय भावपूर्ण अभिव्यक्ति का कुशल समायोजन है | लेखक की
यह भावनाएं कहीं देश के प्रति अपने परम कर्तव्य को लिए हुए मुडती है तो कहीं सुख –दुःख
की मिश्रित अनुभूति लिए अपनी प्रेयसी पत्नी व गाँव –घर के प्रति प्रकट होती है |
जहाँ खंडकाव्य का प्रारम्भ ही वीरभूमि ! गढ़भूमि! त्वेतैं परणाम, नौं जपदू रौऊँ मीं
सुबेर अर शाम’ इन पंक्तियों से हो ,वहाँ यह स्पष्ट होता है कि अपनी माटी गढ़भूमि उत्तराखण्ड के
प्रति लेखक कितना सजग और सम्मान रखता है |
‘उमाळ’ खंडकाव्य हृदयगम्य भावनात्मक अनुभूतियों
का भी कुशल समायोजन है | नायक के लिए एक ओर जहाँ देश प्रेम की भावना सर्वोपरि है
तो वहीं अपनी पत्नी की याद का दृश्यावलोकन सुखद अनुभूति प्रदान करता है | प्रेममय
भावनाओं का ज्वार देश प्रेम के आड़े नहीं आता बल्कि उसे और समृद्ध बनाता है | नारी
के मन का प्रेम ,पीड़ा, उद्वेग व भावनाओं को बड़ी सूक्ष्मता से इस खंडकाव्य में
उकेरा गया है –
‘कन होला स्वामीजी लडै मा तख,
सुशीला
छै घौर मुं तख छै टक |’
वुँका बिना द्वीइ दिन भी नि ह्वेन,
लगुणु छौ कति मैना बीति गेन |’
नायक सीमा पर हो तो अशल –कुशल
जानने का एक महत्वपूर्ण माध्यम पत्र होता है | यह ह्रदय की सम्पूर्ण स्थिति एवं
जीवन की संभावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं | नायक का पत्र गाँव की एक –एक याद को
शब्दों के माध्यम से ऐसा बुनता है जैसे सम्पूर्ण ग्रामीण परिवेश उसकी आँखों में
उतरकर शब्दों के माध्यम से फूट पडा हो –
‘ऊँचि –निस्सि डांडी,गाड़ गदेरा,
रौली गदनी पाड कि स्वाणी,
वूँतैं तु प्यारी मेरि सेवा बोली,
मेरि सेवा बोली तु धारा का पाणी ‘|
नायक के पत्र के माध्यम से अभिव्यक्त खंडकाव्य का
सम्पूर्ण छटा सर्ग कहीं एक फ़ौजी की मनोदशा को बखूबी दर्शाता है वहीं देश प्रेम का
जज्बा जो एक सैनिक में कूट कूट कर भरा होता है उसे उसकी सर्वोत्तम वरीयता पर ला
खड़ा कर देता है |
नायक का यह सोचना –
‘गबर
सिंह, चन्द्र सिंह,कफ्फू सिंह की वीर या भूमी,
जबरि
भारत ब्वेन धदेन,ल्वे बगे दीनी चूमी या भूमी ,
देश का
बाना काम ऐ जालू,मी भी अमर ह्वे जालू प्यारी,
देश मा खुशी का फूल खिलला,शान्ति कि सजिली देश मा
क्यारी |
उत्तराखण्ड के सैनिकों की परम वीरता, देश के
प्रति निस्वार्थ समर्पित दृष्टिकोण को बखूबी चरितार्थ करता है | एक सैनिक का देश
प्रेम अपनी समस्त आंकाक्षाओं,इच्छाओं को दरकिनार कर देश के प्रति अपने अभिन्न
अक्षुण प्रेम का जो दृष्टिकोण रखता है वह इस खंडकाव्य का वास्तविक आधार है |
ग्रामीण पात्रों
का समग्र व्यक्तिगत जीवन,भोगा हुआ यथार्थ,जीवंत मूल्यों की सार्थकता,एक
अभीष्ट आदर्श एवं एक सम्पूर्ण सांस्कृतिक ग्रामीण जीवन यह सब लेखक के स्वनुभुत किए
गए विचारों एवं आदर्शों का एक ऐसा खंडकाव्य प्रतीत होता है जिससे उमाळ के बाद आने
वाला ठहराव ही खंडकाव्य का वास्तविक धरातल
है | उच्च आदर्श और जीवंत मूल्यों को सहेजता यह खंडकाव्य पठनीय एवं संग्रहणीय है |
पुस्तक –उमाळ
कवि – डॉ ० उमेश
चमोला
प्रकाशक –बिनसर
प्रकाशन कम्पनी देहरादून