शनिवार, 29 जुलाई 2017

पुस्तक समीक्षा

पुस्तक समीक्षा
दुनियां की सूरत बदलेगी
कवि – गोविन्द सिंह असिवाल
समीक्षक –डॉ उमेश चमोला
Critical review of the book ‘duniya ki surat badlegee
Poet- Govind  Singh  Asiwal
Critic- Dr. Umesh  Chamola
किसी ने कविता को रसात्मक वाक्य कहा है तो किसी ने ह्रदय से स्वउद्भूत एवं स्वनिसृत भावनाओं का ज्वार|
 “मेरी पीड़ा,मेरा दर्शन,
 कविता मेरी मशाल है,
 आँखों में अंगारे मेरे,
 पांवों में भूचाल है|’’
 गोविन्द सिंह असिवाल की ये पंक्तियाँ उनके व्यक्तित्व और उनकी कविता के बारे में सब कुछ बयां कर रही है | काव्य संग्रह ‘दुनियां की सूरत बदलेगी’ में संग्रहीत कवितायेँ अन्याय और शोषण के विरुद्ध बिगुल बजाती हैं| शायद इसीलिए सम्पादकीय में शैलेन्द्र कुमार शैली ने इन्हें ‘इन्कलाब की कवितायें’ शीर्षक के अंतर्गत सम्मिलित किया है | वस्तुतः ये कवितायेँ कवि के उस जुनूनी और बागी मन की अभिव्यक्ति हैं जिसमें हर समय प्रश्न सुलगते रहते हैं –
  ‘मेरे साथ ही शहर से आया,
  मेरा बागी मन,
  भूख,गरीबी,जुल्म का मारा,
  मेरा बागी मन |’
इसी प्रकार –
‘खुशियों के झरने ढूढ रहा है,
मेरा पागलपन,
पत्थर-पत्थर पूज रहा है,
मेरा पागलपन,
भूख,गरीबी,बेकारी,
क्यों नाच रही दुनियाँ में,
प्रश्न सुलगते पूछ रहा है,
मेरा पागलपन |’
 कवि जड़ हो रही व्यवस्था में सुलगते प्रश्नों के समाधान के लिए क्रांति का पक्षधर है |तभी तो कह उठता है –
‘अब सवालों के अगर,
उत्तर जरूरी हैं,
हाथ में दोनों यहाँ पत्थर
जरूरी हैं |’
  संग्रहीत अधिकांश कविताओं को इन्कलाब की कवितायेँ कहा जाना सार्थक प्रतीत होता है किन्तु कुछ कविताएँ बिलकुल अलग प्रकृति लिए हैं | उदाहरण के लिए –
‘हल्दी सी आँगन में,
बैठ गई धूप,
भोर भये आँगन में,
रात गई डूब |’
  इसी प्रकार ‘मस्ती और आजादी चीड़ों की’ कविता में कवि का प्रवासी ह्रदय वर्षों पहले छोड़ चुके चीड के जंगलों की मधुर स्मृतियों में डूबा है | हिमवादी कविता में हिमालयी प्रकृति का सुन्दर चित्रण देखिए-
‘हिमवादी’   में कोंपल कलियाँ,
मुस्कानों के निर्झर हैं,
फूल कई और ब्रह्म कमल
और गंधों के भंवर हैं |’
‘बड़ा सुहाना लगता है’ कविता में कवि प्रकृति के नजारों का आनंद कुछ यों लेता है –
 ‘मौसम फिर पोशाकें बदला,
 खुशियाँ भी हरियाई हैं,
 छुप्पन छुप्पेया सूरज खेले,
 बड़ा सुहाना लगता है |’
‘सोना सोना गाँव’ और ‘शहतूती छाँव’ भी हिमालयी प्रकृति में रची -बसी हैं |
कवि विकृत व्यवस्था की सूरत बदलने के लिए हड़ताल को आवश्यक मानता है –
‘दुनियाँ की सूरत बदलेगी,
लोगों की हड़ताल,
नएं जहाँ का सृजन करेगी,
लोगों की हड़ताल |’
लेकिन उसे यह भी विश्वास है कि दुनियाँ में चैन –अमन के लिए प्यार की खुशबू लुटाना भी जरूरी है | इसीलिये तो वह कहता है –
‘चिट्ठियों सीं जाएगी ये
आसमां के छोर तक,
द्वार पर दस्तक भी देगी,
प्यार की खुशबू हमारी |’
क्रांति के साथ प्यार की खुशबू बाँटने वाला यह कवि स्वप्नदर्शी है | कवि जीवन की प्रगति के लिए स्वप्नों की उड़ान को जरूरी मानता है-
 ‘जिन्दगी में कुछ हसीं ख्वाब चाहिए,
 एक नई रोशनी का आफताब चाहिए |’
संग्रह की कुछ कवितायेँ भोगवादी सोच के कारण प्रदूषित हुए पर्यावरण की ओर हमारा ध्यान खींचती है | ‘किरण –किरण लाचार’ कविता में कवि की चिंता इस तरह प्रकट होती है –
‘खुशियों के झरने सूख गए,
दूषित है गंगा जल,
बदली भी बीमार हुई,
दिन अंधियारे हैं |’
‘वातावरण’ और ‘ये सरोवर’ कवितायेँ भी पर्यावरनीय सरोकारों पर आधारित हैं |’ये सरोवर’ की पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं –
‘जिनकी लहरों पर लिखी थी
शाकुंतलम की पंक्तियाँ,
अप्सराएँ थी नहाती,
ये सरोवर देखिए |’
 कुल मिलाकर संग्रह की कविताएँ कवि के जीवन संघर्ष एवं भोगे हुए यथार्थ को चित्रित करती है | कवितायेँ शिल्प के तटबंधों को तोडती हुई आम जन के प्रति आवेगित हैं | संग्रहीत कविताओं से समाज में वैचारिक चेतना का प्रसार होगा | इस आशा के साथ कवि को संकलन हेतु बधाई |
संग्रह का मूल्य -२० रु,
प्रकाशक -2 बी, विजय नगर,लालघाटी,भोंपाल -४६२०३० 





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