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2020 |
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कोरोना काल की
कविताएँ सम्पादक –डॉ.उमेश चमोला |
[ |
कोरोना काल ने हम सब के चिंतन पर प्रभाव डाला है |
इस संग्रह की कविताओं में यही चिंतन दिखाई
दिया है | संग्रह की कविताओं की
मौलिकता का उत्तरदायित्व कवियों का है | मौलिकता संदिग्ध होने पर रचनाकार उत्तरदाई होंगे |
|
अपनी बात
चीन के वुहान शहर से चलकर सम्पूर्ण विश्व में फैले कोरोना विषाणु ने
विश्व की आर्थिकी को गडबडा दिया है और जन संसाधन को भारी क्षति पहुँचाई है | प्रकृति
पर विजय प्राप्त करने का दंभ भरने वाले मानव को इस सूक्ष्म कण ने उसकी सीमा रेखा
का भान करा दिया है | मनुष्य की स्थिति
सर्वत्र घूमने- फिरने वाले उस पंछी की तरह हो गई है जिसे पिंजरे में रहने
के लिए विवश कर दिया गया हो | इस कोरोना
काल ने उन चेहरों को भी बेनकाब किया है जिन्होंने अपने दुष्कर्मों से मानवता को
शर्मसार किया है | इस काल ने मानवता की
रक्षा में तत्पर लोगों को भी इतिहास में
स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज किया है
|
इस कोरोना काल में सामाजिक दूरी बनाए रखने ,
मास्क और सेनिटाइजर का प्रयोग किये जाने तथा अपनी प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने को
ही फिलहाल अपने और दूसरों को बचाने के लिए प्रभावी उपाय बताया जा रहा है | इस आपदा
काल को अवसर के रूप में प्रयोग किए जाने का सिद्धांत क्रियान्वित रूप में दिखाई
देने लगा है | यही कारण है कि जहाँ नौनिहाल ऑनलाइन शिक्षण में व्यस्त हैं वहीं
तकनीकी के विविध संसाधन जैसे गूगल मीट, माइक्रोसाफ्ट टीम आदि के माध्यम से विचारों
का आदान – प्रदान हो रहा है | विभिन्न साहित्यिक – सांस्कृतिक पेजों के माध्यम से लाइव चर्चा जैसे रचनात्मक
प्रयास किए जा रहे हैं | दृष्टि ब्लॉग के माध्यम से ‘कोरोना काल की कविताएँ’ ई संकलन का
प्रकाशन इसी दिशा में एक रचनात्मक प्रयास है |
इस कोरोना काल ने
हमारे चिंतन को नई दिशा दी है | इस संकलन में प्रकाशित कवियों की रचनाओं में यह
चिंतन विविध रूपों में दिखाई दे रहा है | इन कविताओं को ई रूप में एक मंच पर लाना
इस संकलन के प्रकाशन का उद्देश्य है जिससे यह कविताएँ सर्वसुलभ हों और सभी पाठक
इन्हें मोबाइल पर पढ़ सकें | मैं उन कवियों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने
अपनी कविताएँ इस संकलन में प्रकाशन के लिए भेजी |
यह संकलन कोरोना काल में रात – दिन वैक्सीन की खोज में
व्यस्त वैज्ञानिकों , चिकित्सकों, पुलिस
कर्मियों, शिक्षकों और अन्य कर्मियों को समर्पित करता हूँ जो मानवता की रक्षा में
तत्पर हैं | उनको भी जिनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है | संकलन के बारे
में अपने विचार ई मेल या व्हत्स्प के माध्यम से भेजने का कष्ट करेंगे |
----------- डॉ.
उमेश चमोला
व्हत्स्प न
– 7895316807
ई मेल – u.chamola23@gmail.com
अनुक्रम
क्रम संख्या |
रचनाकार का
नाम |
कविता |
१ |
डॉ. पुष्पा
रानी वर्मा |
आत्मकथ्य नई दिशा
मे प्रस्थान चल रहा है |
२ |
डॉ उषा कटियार |
आत्मकथ्य गरीबों की परवाह की होती बेहाल हुए लांश ढोते –ढोते |
३ |
जगदीश ग्रामीण |
आत्मकथ्य कह दो बाय –बाय कोरोना कोरोना तेरे कारण |
४ |
भावना कुकरेती |
आत्मकथ्य मेधा ने की करोना पर चढ़ाई |
५ |
मनोरमा बर्त्वाल |
आत्मकथ्य
मैं आ गया
हलचल मचा गया कोरोना |
६ |
राजेन्द्र सिंह चौधरी |
आत्मकथ्य क्यों भयभीत हो तुम मुझसे पथिक जरा तू चल संभलकर |
७ |
अंजू श्रीवास्तव |
आत्मकथ्य एक दिन फिर मुस्कराएगा भारत |
८- |
कृपाल सिंह शीला |
आत्मकथ्य सबक मजदूर है मजबूर |
९ |
डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी |
आत्मकथ्य विश्व की बदल गई तस्वीर पुष्प की पीड़ा कर्तव्य बोध (बाल कविता)
|
१० |
रूपेश चमोला |
आत्मकथ्य कोरोना का आतंक क्वारंटाइन |
११ |
किरण बहुखंडी |
आत्मकथ्य कोरोना कोरोना के काल में |
१२ |
डॉ. केवलानंद काण्डपाल |
आत्मकथ्य कोरोना का साल बुरा है सख्त इम्तिहान है साहिब |
१३ |
डॉ. सत्यानन्द बडोनी |
आत्मकथ्य कोरोना का रोना नि:शब्द |
१४ |
राकेश जुगरान |
आत्मकथ्य कोरोना ने छीन ली कोविड दोहे / कुंडलियाँ |
१५ |
अवनीश उनियाल |
आत्मकथ्य आह ! औरंगाबाद मुझे अपने घर तक पहुंचना ही होगा आदमी है आदमी से डर रहा |
१६ |
दिनेश रावत |
आत्मकथ्य शिक्षक कोरोना अकेले नहीं आया जीवन
बचाने को जारी है जंग |
१७ |
कमलेश मोंडोल |
आत्मकथ्य यही हमारी मांग है तुमसे |
१८ |
डॉ. उमेश चमोला |
आत्मकथ्य इतिहास लिख रहा है कोरोना जीवन पथ पर चलने की तैयारी |
(1) डॉ. पुष्पा रानी वर्मा आत्मकथ्य- नाम – डॉ. पुष्पा रानी वर्मा | जन्म तिथि – 1-7- 1961 | अभिरुचि – लेखन, कला, बागवानी और सामाजिक कार्य | कृतित्व – विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में
रचनाओं का निरंतर प्रकाशन | कई कवि सम्मेलनो का सञ्चालन, परियोजना प्रबंधन
इकाई , स्वजल परियोजना पेयजल एवं स्वच्छता विभाग उत्तराखंड द्वारा
विकसित स्वच्छता जागरूकता सामग्री में कविता एवं कहानी का लेखन | पुरस्कार – विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा
नेत्रदान, वृक्षारोपण और साक्षरता के लिए प्रशस्ति पत्र एवं पुरस्कार प्राप्त , तीलू रौतेली
सम्मान 2017, इंडिया आइडिल अवार्ड 2016,
प्राइड ऑफ़ नेशन अवार्ड 2015 | कविता नई दिशा मे
प्रस्थान चल रहा है किसी नई दिशा मे प्रस्थान चल रहा है, नियति का स्वच्छता- अभियान चल रहा है।
हवा धुली -धुली है तारे चमक रहे हैं,
घोसले से अपने
परिन्दे निकल रहे हैं,
गूँजता है कलरव
चहूँ ओर इस चमन मे,
सुर -ताल पर जैसे
कोई गान चल रहा है। नदियाँ हुईं निर्मल, सडकें नहा चुकी हैं, शिखरों की चोटियां भी चाँदी चढा चुकी हैं, कोटि-कोटि दीपों की लौ व्योम छू रही है, ओजोन की परत पर कुछ काम चल रहा है |
दरवाजे भिडे हुए हैं खिडकी खुली हुई है ,
हर आदमी के मुख पर पट्टी बंधी हुईं है,
विश्राम कर रहे हैं सदियो से थके शहर,
हर
गाँव की गली में मौन चल रहा है। सब सन्त से बने हैं, संयम बरत रहे हैं, श्रम- यज्ञ हो रहा है ,सब भोग से विरत हैं, प्रकृति कर रही है ये कौन- सा
हवन है ? बलि होगी उसकी जो चलता
नहीं अलग है ।
रुक गए कदम सभी कोहराम हो रहा है,
सूक्ष्मतर विषाणु
से महा संग्राम हो रहा है,
सारे विश्व की दवाई बेअसर हो गई है,
स्वच्छता ,सजगता से
प्राणदान मिल रहा है |
---------कवयित्री राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद
उत्तराखंड देहरादून में उप निदेशक पद पर कार्यरत हैं | चलित संवाद - 941o169o46 संपर्क
– 301, तृतीय तल, मनी टावर (निरंजन वाटिका) , कनखल हरिद्वार | |
(2)
, डॉ उषा कटियार आत्मकथ्य – नाम -
डॉ उषा कटियार | जन्मस्थान
– बरेली | जन्मतिथि - 11-06-74 | शिक्षा - प्रभाकर गायन वादन , MA संगीत, गायन वादन, पीएचडी - संगीत गायन , लघु शोध - 5 एन.सी.ई.आर. टी. नई दिल्ली से । कृतित्व - शास्त्रीय गायन
विधाओं में प्रस्तुतियां, बड़ा ख्याल, छोटा ख्याल , तराना गीत ग़ज़ल, सुगम संगीत | विभिन्न पत्र -
पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं शोध
पत्रों का प्रकाशन, राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर सांस्कृतिक शोध एवं प्रशिक्षण केंद्र नई
दिल्ली से संबंधित प्रशिक्षण में संदर्भ दाता के रूप में कार्य । ‘ निर्झरा’ काव्य
संग्रह का प्रकाशन , फ़लसफ़ा गीत
ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन | दो
ऑडियो सीडी का निर्माण, प्रार्थना और समूह गान, खेल गीत सात भाषाओँ में रिकार्ड |
मेरा सपना - शास्त्रीय संगीत के निशुल्क विद्यालय
का संचालन एवं शिक्षण कार्य । अपनी रचनाओं के लेखन और गायन के माध्यम से
जन-जन को जागरूक करना । |
कविताएँ –
१-
गरीबों की परवाह की
होती
काश अवाम ने
मंदिरों, मसजिदों की सिफारिश न की होती,
सभी ने अस्पताल,
रोजी रोटी के लिए मशक्कत की होती |
ईश्वर बसता है
इंसानियत और इंसानों की पाक रूहों में,
इंसानो को कीमती
जान, हिफाजत को कवायद की होती |
बड़ी दहशत का ग़मगीन
माहोल, भरा सन्नाटा पसरा है,
काश मेरी अरदास
कौमों की खैरियत में क़ुबूल हो गई होती |
लाशों पर खड़े हैं
बेश ऐ कीमती मकां और शामियाने,
दौर ऐ मुफलिसी,
काश हमने कुछ जमीर की सुनी होती |
कोरोना का माहौल
बेपरवाह, सियासत सरगर्मियां जोरों पर हैं,
अमीरी के साथ काश
हमने गरीबी की परवाह की होती |
२ बेहाल हुए लांश ढोते ढोते
कंधे
थक गये जनाजा ढोते
ढोते,
गलियाँ सुनसान हुई सहर होते –होते |
अब तो
आलम है , आँखें भी नहीं रोती,
दिल
पत्थर हुऐ राह संजोते –संजोते
|
एक समंदर था नजदीक मेरे मुद्द्त से,
प्यास सेहरा हुई तन्हा रोते – रोते |
अब
सदाए रब के दर
नहीं जाती,
खुदाई बाहरी हुई दरकार सुनते – सुनते |
माहौल
की नजाकत का जिक्र क्या करते ?
कोरोना
में बेहाल हुये लांश ढोते
ढोते |
---------कवयित्री राज्य
शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखंड देहरादून में
संगीत विषय में प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं |
चलित संवाद - 945 814113 तथा 7906149883
संपर्क - गंगानगर, आनंद
विहार, मकान नंबर 376 /5 ऋषिकेश देहरादून
मोबाइल नंबर - 945 814113 7906149883
ईमेल - ushakatiyar11@gmail.com
(3)
जगदीश ग्रामीण
आत्मकथ्य
नाम - जगदीश ग्रामीण |
रूचि – लेखन, पढ़ना, कविता सुनना,
लिखना और सुनाना |
प्रकाशित पुस्तकें-
1• उत्तराखण्डियों का दर्द न जाने कोय – 1998 |
2• आंख्यों मा आंसू – 2013 |
3• आकाशवाणी केंद्र नजीबाबाद, उत्तर प्रदेश, पौड़ी और देहरादून से कवि गोष्ठियों में प्रतिभाग।
4• विभिन्न दैनिक समाचार पत्रों /पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित ।
5• ग्राम्यांचल पत्रकार समिति गढ़वाल मंडल द्वारा स्वतंत्र पत्रकारिता
के लिए पुरस्कृत,
वर्ष – 2000 |
6• आचार्य श्रीचन्द्र कविता महाविद्यालय एवं शोध संस्थान हैदराबाद, आंध्र प्रदेश
द्वारा "राष्ट्र
सचेतक" उपाधि से सम्मानित वर्ष -2002 |
कविताएँ –
१ - कह दो बॉय-बॉय कोरोना
संकट की घड़ी में संयम रखें हम,
और साहस का भी परिचय दें हम,
भयभीत न तनिक भी हों हम,
अफवाहों से रहें सदा सजग हम |
घर में रहकर आराम फरमाएं,
बिना काम के न बाहर जाएं,
भीड़ भरे माहौल से बचते जाएं,
खूब खाएं और गहरी नींद चाहें |
हाथ धुलें दिनभर बारम्बार,
स्वच्छता का रखें खयाल हर बार,
छींक खांसी रुकती सांस से पाएं पार,
बिन लेटलतीफी जाएं डॉक्टर के द्वार |
घर की चहारदीवारी सीमा हो,
भले ही लाखों का जीवन बीमा हो,
करोड़ों का चाहे कारोबार हो,
हंसती हंसाती जीवन बगिया हो |
घरौंदा किसी का तुम उजाड़ो ना,
खुद जिओ औरों को भी जीने दो ना,
जीवन अमूल्य है इससे हाथ धोना ना,
आओ कह दो बॉय-बॉय कोरोना |
- -----कवि राजकीय
इंटर कालेज नागणी, टिहरी गढ़वाल में शिक्षक
हैं ।
मो0/व्हाट्सएप- 8057127362
(4)
भावना कुकरेती
आत्मकथ्य -
जन्मतिथि - 18 जून 1978 |
शिक्षा -
एम एस सी (मास कम्युनिकेशन),बी एड।
पिता -
श्री राधा बल्लभ कुकरेती।
माता -
स्वर्गीय कमला कुकरेती।
कृतित्व - नवाचारी शिक्षण,दृश्य श्रव्य शैक्षिक सामग्री का
निर्माण के अतिरिक्त कविता
और कहानियों के पठन-पाठन व लेखन में व ब्लॉगिंग में रुचि।
दैनिक अमरउजाला, दैनिक जनवाणी जैसे
हिंदी अखबारों में पद्य रचनाओं का
प्रकाशन।
विभिन्न साहित्यिक वेबसाइटस (प्रतिलिपि, स्टोरी मिर्रर, साहित्य मंजरी,
स्वर्णिम साहित्य इत्यादि ) पर गद्य व पद्य रचनाओ का प्रकाशन ।
वर्तमान में प्रथम लघु उपन्यास ‘शायद ‘ प्रकाशन हेतु
अग्रसर।
कविता
१ - मेधा ने की करोना पर चढ़ाई
सड़कों पर घूमता मंडराता रहा कोरोना, खिड़की दरवाजों को खटखटाता रहा कोरोना ।
बन्द
हो कर घर में,
मिली
परिवार में खुशियां, अपने घर आंगन मन खिलाता रहा कलियां। दिन
-रात बीते, सप्ताह-
माह निकला, प्रकृति
का सौंदर्य खिलखिलाता सा निकला ।
मगर भूख वहीं थी ,
पेट मे फिर कुलबुलाई ,
सड़कों
पर उतरी,
बेअक्ल कहलाई। रोटी
के साथ फिर
से मिला कोरोना, मौत
का फूल बन फिर खिला कोरोना । बंदिशें फिर से आला ने
सड़कों पर लगाई,
मगर
मौत तो पहले ही आसमां से थी चली आयी । ये कहर कोरोना , जो
चुपके से उतरा था, अब
हर दांव पर सबकी कमर तोड़ता था । आर्थिकी सब तरफ ही हुई धराशाई, देशों
ने फिर छोड़ी अपनी
जनता की कलाई। इधर
मौत आयी , उधर भी मौत आयी, चेहरे पर कोरोना के वीभत्स हंसी आयी। मुश्किल केवल चंद देशों पर नहीं आयी, असल
मे यह इंसानियत पर ही
बन आयी। ये
कैसा समय, है मृत्यु प्रफुल्लित, जिधर भी देखो हो रहा सब काल कवलित।
मगर ठहरो मनुज,
तुम अभी टूट मत जाना,
उजास है आता ,
यह सभी को बताना | जिजीविषा ने फिर ली है अंगड़ाई, मेधा
ने अब की कोरोना पर है चढ़ाई।
जीतेंगे हम ही आखिर
में तुझसे कोरोना,
तेरे दांव से ही
तुझे पछाड़ेंगे कोरोना । देख फिर से जीवन मे नव स्फूर्ति है आयी, कोरोना तेरे अंश से ही ले वैक्सीन भी आयी ।
मगर हाँ कोरोना
तुम हो सीख भयानक,
कि प्रकृति को पूजना
ही है रोग नियामक। |
|||||
-------- कवयित्री राजकीय
प्राथमिक विद्यालय टिक्कमपुर, हरिद्वार में सहायक अध्यापिका के रूप में
कार्यरत हैं | चलित
संवाद - 9690272879 पता- प्लॉट नंबर-33,फ्लैट नम्बर-2गुरुबक्स विहार
कॉलोनी (पूर्व) कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड) Email- Bhawna.june@gmail. com (5) मनोरमा बर्त्वाल |
आत्मकथ्य –
नाम – मनोरमा बर्त्वाल |
पिता का नाम – स्व० श्री नारायण सिंह खत्री |
जन्मतिथि – २३ जुलाई १९६३ |
जन्मस्थान –
खत्याड़ी ,नैनीसेण, चमोली |
शैक्षिक योग्यता –
एम. ए. (अंग्रेजी), शिक्षा शास्त्र, बी.एड
|
कृतित्व – ‘गढ़
नंदिनी’ , ‘कुमगढ़’, ‘प्रेरणा अंशु’ आदि विविध पत्र – पत्रिकाओं में कहानी एवं
कविताओं
का प्रकाशन | एस . सी . ई. आर. टी. उत्तराखंड द्वारा उत्तराखंड के
सामान्य ज्ञान पर आधारित डिजिटल लोकसंगीत आधारित सामग्री में ‘उत्तराखंड
का
सम्पूर्ण
परिचय’ गीत का लेखन | परियोजना
प्रबंधन इकाई , स्वजल परियोजना
पेयजल
एवं स्वच्छता विभाग उत्तराखंड
द्वारा विकसित स्वच्छता जागरूकता
सामग्री में कविता एवं
कहानी का लेखन |
कविताएँ
१ मैं आ गया
तूफ़ान डर का साथ लेकर,
मैं डराने आ गया ,
चीन से मैं भाग सरपट,
जग को सताने आ गया |
तीन ऋतुओं को निगलकर,
‘शरद’ तक भी आ गया,
दौड़ता सडकों में जीवन
मैं रुकाने आ गया |
झील, तालों और चमन को
स्वच्छ करने आ गया,
प्रकृति है इंसा से ऊपर
ये जताने आ गया |
तुच्छ समझो ना किसी को
ये पैगाम देने आ गया,
इंसा के बड़ते अहम को
ध्वस्त करने आ गया |
चाँद पर रख पांव फिर भी
मात मुझसे खा गया,
ढहते
घरों की छत और आँगन
मैं
बनाने आ गया |
है जहाँ पर स्रोत तेरा
मानव को दिखाने आ गया,
तूफ़ान डर का साथ लेकर,
मैं डराने आ गया |
2- हलचल मचा
गया कोरोना
झील पर मार कंकड़
हलचल मचा गया
कोरोना,
सावन की झड़ी
में
बिजली गिरा
गया कोरोना |
बाजारों में उमड़ती भीड़ को
कैदी
बना गया कोरोना,
शोर भरी सड़कों को
निर्जन बना गया कोरोना |
गंदली नदियों
को सतह से
स्वच्छ कर गया
कोरोना,
रसोई में खींच
सबको,
हलवाई बना गया
कोरोना ।
छूटे
घर आंगन की पतवार
उखाड़ता गया कोरोना,
शहरों
में खोई नईं पीढ़ी को
गाँव दिखा गया कोरोना |
बूढ़ी आंखों
में दिए खुशी के
जगमगा गया
कोरोना,
चीन का भयावह
चेहरा
दिखा गया
कोरोना।
---------कवयित्री राज्य शैक्षिक
अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखंड देहरादून में
सहायक निदेशक पद पर कार्यरत हैं |
चलित संवाद - 8126711707
संपर्क
- शाश्वत निलयम, काली मंदिर एन्क्लेव बद्रीपुर
जोगीवाला देहरादून, उत्तराखंड |
(6)
राजेन्द्र सिंह
चौधरी
आत्मकथ्य -
नाम – राजेन्द्र सिंह चौधरी
शिक्षा – एम.ए अर्थशास्त्र एवं शिक्षा शास्त्र,
एम.काम, बी.एड |
गृह जनपद – रुद्रप्रयाग |
शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में मास्टर
ट्रेनर के रूप में कार्य |
कविताएँ
१ - क्यों भयभीत हो तुम मुझसे
क्यों भयभीत हो तुम मुझसे ?
मैं नहीं आऊँगा तुम्हारे पास,
अगर तुमने दो गज की दूरी तोड़ी,
बार-बार हाथों को नहीं धोया,
मुंह और नाक अगर ढककर नहीं रखा,
तो समझो हो गयी सर्दी - खासी.,
इतनी तक तो कोई बात नहीं,
अभी भी अगर बात नहीं मानी,
तो समझो, आगे होगी बड़ी परेशानी ।
सर्दी – खांसी के साथ तेज बुखार,
स्वाद और गंध भी नहीं देगा साथ,
अगर फिर भी बढाया दूसरे के साथ हाथ ।
तो समझो होगा तेज बुखार,
सांस लेने में होगी दिक्कत।
तो समझो मैं नहीं आया,
तुमने मुझे बुलाया।
२ - पथिक जरा तू चल संभलकर
आखिर निकला तू बाहर क्यों इस कदर ?
क्यों नहीं तूने नियमों का पालन किया ?
प्रकृति को अभी नहीं है तेरी जरूरत ।
तुझे अभी रहना होगा किसी वीरान
और सुनसान जगह पर,
तेरे प्रायश्चित का है यह वक्त,
जीवन है बहुमूल्य, इसे रख संभालकर।
इन अबोध मासूमियत का क्या कसूर
?
ये धरोहर हैं,
इन्हें रखना होगा संभालकर।
अभी तुझे रखना है अपने को
एकांत जगह पर।
समय आएगा,
जिसका तू इंतजार कर,
पथिक जरा तू चल संभलकर,
आखिर निकला क्यों तू इस कदर बाहर ?
--------------कवि रा. इ. का. क्वानू चकराता देहरादून में शिक्षक
हैं |
चलित संवाद – 8630266799
(७)
अंजू श्रीवास्तव
आत्मकथ्य -
नाम - अंजू श्रीवास्तव
शिक्षा – हिन्दी ,
समाजशास्त्र और शिक्षा शास्त्र में एम.ए.,बी.एड |
कृतित्व – विविध
पत्र – पत्रिकाओं में कविताएँ और कहानियां प्रकाशित |
‘नारी संघर्ष’ पुस्तक विभिन्न मंचों से
पुरस्कृत |
कविता -
- एक दिन फिर मुस्कराएगा
भारत
माना कि आज रात अंधेरी उबासी भरी ,
जीवन में माना नीरसता है घनी,
लेकिन फिर स्थितियां बदलेंगी
एक दिन फिर मुस्कराएगा भारत |
कोरोना महामारी आज विशाल है बनी,
जीवन पर भारी, यह मनुष्य ने जनी ,
हाथों को धोकर, मास्क लगाकर,
रहेंगे
उस वाइरस को दूर हटाकर,
एक दिन फिर यह धरा लहलहाएगी,
एक दिन फिर मुस्कराएगा भारत |
कोरोना
की जंग से लड़ रहा मानव भारी.
वैक्सीन निर्माण का काम रात दिन है जारी.
दुःख
ना रहा है हमेशा धरा पर,
ना अँधेरा ही हमेशा रहेगा,
एक दिन सुकून भरे पल अवश्य आयेंगे,
एक दिन फिर मुस्कराएगा भारत |
-------------- कवयित्री राजकीय माडल इंटर कालेज कालसी में
शिक्षिका हैं |
चलित संवाद – 9917393588
(८)
कृपाल सिंह शीला
आत्मकथ्य –
नाम - कृपाल सिंह शीला
जन्म तिथि – 18-3- 1978
स्थाई पता – ग्राम –
सरपटा, पोस्ट – बसोट, जिला अल्मोड़ा उत्तराखंड |
शिक्षा - एम. एस-सी,
जंतु विज्ञान, एम.ए (हिन्दी और शिक्षा शास्त्र) विशिष्ट बी.टी.सी |
कृतित्व - विभिन्न
स्थानीय एवं राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं जैसे -
कुमगढ़, पहरू,कुर्मांचल
अखबार,चन्द्र दीप्ति, जल चेतना,ज्ञान -
विज्ञान बुलेटिन,नवल, बाल प्रहरी,बाल वाटिका,
विज्ञान प्रगति आदि में रचनाओं का
प्रकाशन | विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक
संस्थाओं से जुड़ाव | एस.सी . ई. आर. टी.
उत्तराखंड द्वारा विकसित कुमाउनी भाषा
के
पाठ्यक्रम निर्माण में सहभागिता |
सम्मान - विभिन्न
राष्ट्रीय मंचों पर सम्मानित, राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त शिक्षक |
कविताएँ
१ - सबक
प्रकृति ने इंसान को आज
देखो कैसा सबक सिखाया ?
वैश्विक
महामारी कोरोना की
वह
अभी तक दवा खोज न पाया |
मानव
के अत्याचारों को
कब
तक प्रकृति ऐसे सहती ?
कूड़ा
कचरा लिए अपने में
ऐसी कब तक नदियाँ बहती ?
मिलों-कारखानों से निकला धुआं,
वायु प्रदूषण कब तक फैलाता ?
हरा भरा पेड़ भी कब तक
प्रदूषण से हमें बचाता ?
कोरोना के इस कहर से आज
थम सी
गई दुनियाँ सारी,
अब भी समझ गए प्रकृति को हम
टल जाएगी यह विपदा भारी |
२ - मजदूर हैं मजबूर
कोरोना वैश्विक महामारी,
विपदा लाई
बड़ी भारी,
मजदूर
आज दिख रहा मजबूर
दो वक्त की रोटी से दूर |
हाथों को काम नहीं
हर हाथ आज खाली,
दिमाग बना शैतान का घर
खफा सी आज है घरवाली |
सारे देश में लाकडाउन
सूना पड़ा शहर बाजार ,
मजदूर कैसे घर चलाए ?
कौन देगा उनको उधार ?
हम फंस गए परदेश में
यहाँ नहीं है अपना घर,
मकान किराया कैसे देंगे ?
इस बात का लगा है डर |
आय का कोई जरिया नहीं
पत्नी कैसे चलाए घर ?
दवा को रुपए नहीं
बच्चों को आया ज्वर |
सामान को पैसे नहीं ,
न
खाने को है अनाज ,
रोजी
रोटी कैसे चले ?
ठप्प पड़ा है कामकाज |
कोरोना के इस कहर में
हाथ काम को खाली,
मजदूर की मजबूरी देखो
छिन गई हाथ से थाली |
---------- कवि राजकीय जूनियर हाई
स्कूल मुनियाचौरा भिकियासेन अल्मोड़ा उत्तराखंड में
शिक्षक हैं |
चलित वार्ता – 9410501465, 9045087170
(९)
डॉ. सुरेन्द्र
दत्त सेमल्टी
आत्मकथ्य –
नाम – डॉ. सुरेन्द्र दत्त सेमल्टी
पिता – स्व.श्री गड़वा मणि सेमल्टी
माता – स्व. श्रीमती गैणी देवी सेमल्टी
जन्मतिथि – 11-10- 1955
जन्मस्थान – पुजारगाँव ( चन्द्रवदनी ) जिला – टिहरी,
उत्तराखंड |
प्रकाशित साहित्य –
1-गढवाल में
तांत्रिक परम्परा और जनमानस ( शोध ग्रन्थ )
2-बहुआयामी
सांस्कृतिक मान्यताएँ (निबंध संग्रह )
3-खडू उठा
धौं लठयालों ( गढ़वाली कविता संग्रह )
4-बड़ते कदम
( बाल कविता संग्रह )
5-बुद्धि
विलास (बाल पहेलियाँ )
6-माटी के
रंग (उत्तराखण्ड की बाल पहेलियाँ )
7-सफलता
के सूत्र ( बाल कविता संग्रह )
8-आगे बढ़ते जाना हर पल (बाल कविता
संग्रह )
9-हमारे
अविस्मरणीय दिवस (राष्ट्रीय –अन्तर्राष्ट्रीय दिवसों का संग्रह )
10-जूझता
राही ( स्मृति ग्रन्थ ) –संपादन
11 –
चन्द्रवदनी (ब्लाक स्तरीय शिक्षा विभाग पत्रिका ) का संपादन
प्रकाशनाधीन –
1 – समूण (
गढवाली कहानी संग्रह )
2 – मेरे तीन
सौ तेरह दोहे ( दोहा संग्रह )
अन्य-
1-
विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं तथा
राष्ट्रीय संकलनो में रचनाएँ प्रकाशित |
2-
विभिन्न दूरदर्शन और आकाशवाणी
केन्द्रों से रचनाओं का प्रसारण |
3-
बाल विकास, महिला उत्थान, शिक्षा
प्रसार, पर्यावरण संरक्षण, नशा मुक्ति हेतु सक्रिय |
पुरस्कार –
शैलेश
मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार सहित देश – विदेश से 80 से अधिक सम्मान प्राप्त |
कविताएँ
१ - विश्व की बदल गई तस्वीर
जिसका रूप न आकार – प्रकार,
मानव जा रहा उससे
हार,
यह
कैसी बीमारी आई ?
बनी नहीं है जिसकी दवाई
कोरोना उस ब्याधि का नाम,
तेज चाल पर लगा जिससे जाम,
ऐसा वाइरस कभी न आया,
जिसका दुःख आज दुनियाँ ने पाया |
चीन देश से चलकर कोरोना
फैला दुनियाँ के हर कोना
सब देशों में हाहाकार,
सब प्रयास हो रहे बेकार,
सफाई
सामाजिक दूरी उपाय,
घर में रहें कोई बाहर न जाय,
कर्फ्यू लाकडाउन करके सील.
निवास
में रहने की सबसे अपील .
जो नहीं लांघे लक्ष्मण रेखा ,
सब जगह लाभ इसी में देखा ,
भीड़भाड़
से जो जन दूर,
स्वास्थ्य उन्हीं का रहा भरपूर,
इसमें
स्वच्छता बहुत जरूरी,
साफ
सफाई नहीं मजबूरी |
स्वास्थ्य ,सफाई, पुलिस कर्मचारी
कष्ट झेल निभा रहे जिम्मेदारी,
मीडियाकर्मी,
दानदाता, सरकारें,
महामारी से सभी को उभारें,
विश्व की बदल गई तस्वीर,
आँखों से टपक रहा है नीर,
करें सभी जन हिम्मत धारण,
विज्ञान करेगा इसका निवारण |
२
- पुष्प की पीड़ा
एक वाइरस है कोरोना
फैला दुनियाँ के हर कोना,
इसका अभी तक इलाज नहीं,
घरों में रहें, न जाएँ कहीं,
कोरोना में सामाजिक दूरी,
बता रहें हैं बहुत जरूरी,
सभी कार्यक्रम हुए निरस्त,
हालत हो गई सबकी पस्त,
हम फूल रो रहे आज सभी,
ऐसे दिन न देखे कभी,
प्रतिबंधित शादियाँ, मंदिर बंद,
हम तक सीमित रही सुगंध,
डालियों पर रहे हैं सूख,
हमारी नहीं है किसी को भूख,
नहीं हो रहे पूजा पाठ,
सूने पड़े हैं हमारे बाट,
लग रहा जन्म हुआ बेकार,
काम न आए हम इस बार,
जीवन की साथर्कता है तब,
दूसरों के काम आयें जब,
अब तो ईश्वर से यही है मांग,
मानव इस संकट को जाये लांघ |
३ - कर्तव्य बोध (बाल कविता)
कोरोना की महामारी ने
फैलाया है अपना जाल,
अस्त व्यस्त हो गया विश्व
हो चुके बहुत बुरे हाल |
नहीं दवाई बनी है अब तक
समाधान है सामाजिक दूरी,
हाथ में साफ़ सफाई हो तो
मिलेगी तभी सुरक्षा पूरी |
सफेदी खाकी वर्दी वाले
सबके बने हैं भगवान,
जो संकट में डालकर खुद को
बचा रहे औरों की जान |
मीडियाकर्मी, सभी सरकारें
और बहुत सी संस्थाएं,
लगे हुए जनसेवा में हैं ,
और भी सब आगे आएँ |
अनादिकाल से रहा है भारत
त्याग तपस्या का स्थल,
नियम, संयम, दया, करुणा ही
बन सकते संकट का हल |
अफवाहों पर विश्वास करें ना
और नहीं खुद फैलायें
सकारात्मक कर्म में रत हों
घर से बाहर ना जाएं |
----------कवि शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार प्राप्त
सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य हैं |
संपर्क - ग्राम / पोस्ट – पुजारगाँव (चन्द्रवदनी)
द्वारा हिन्डोलाखाल , टिहरी उत्तराखंड |
चलित वार्ता
– 9690450659
(१०)
रुपेश चमोला
आत्मकथ्य-
नाम -
रुपेश चमोला |
जन्मस्थान - चमोली गाँव, पौड़ी गडवाल
जन्मतिथि - 20 मार्च
1987
प्रकाशनाधीन पुस्तक
- आत्मकथा ( तुम नही आए न )
शिक्षण में नवाचारी प्रयोगों के प्रति सक्रिय
कविताएँ
१ -कोरोना का आतंक
कोरोना के आतंक का रौद्र कहर,
भयभीत हैं विश्व की चारों दिशायें,
सड़क,मुहल्ला,गलियाँ,आँगन सिमट कर,
आ गए हैं , मकानों के कमरों के
अंदर I
नहीं कोई निकल सकता अपने घरों से
बाहर,
न ही कोई जा सकता है,अपने गाँव
की छाँव में I
कोरोना के भय से अपने भी पराए हो
गए हैं,
खाने को अन्न नहीं, घर बैठने को मजबूर हैं I
कोरोना के आतंक से सड़कें हैं कई
दिनों से बंद,
बाहर तैनात है पुलिस और रोजगार है नम I
जायें
तो कैसे जायें अपने खेत-खलियानों की ओर,
प्रवासी
की है यह व्यथा और यातायात है ठप्प I
रेल की
पटरी का सहारा ले निकले थे कई मजदूर,
क्या
पता था मीडिया की सुर्ख़ियों में आएँगी मजदूरों
की बासी रोटियाँ की सुगंध ?
कोरोना का तो पता नहीं, पर मरे
मजदूर आतंक
और भय से,
कमबख्त, अमीरों से फैला आतंक और
मरे भूखे-प्यासे
मासूम मजदूर I
हाहाकार है हर घर में, रो रहा है दुखी मजदूर,
कुछ मर रहें हैं भूखे-प्यासे,
तो कुछ आत्महत्या
को मजबूर I
कोरोना
का तो पता नही पर, मर रहें हैं मजदूर,
करें तो
क्या करें भला वे ? बेवश मजदूर हैं मजबूर,
I
मदद के
नाम पर लोगों ने दान है किया ,
पर वह दानकर्ता भी कैसा, जिसने खुद के दान
का प्रचार किया ?
मददगार
के रूप में कई लोग खड़े हुए,
जो बिना फोटो खिंचवाकर मजदूरों
संग डटे रहे I
नियमित रूप से स्वच्छता का पालन
कर हाथ धोते रहें ,
दो गज की दूरी और मुँह में मास्क पहने रखें,
चलो नियमों का पालन कर हम कोरोना को हराते हैं,
स्वरोजगार को बढावा देकर सबका
कल्याण करते हैं I
‘खुद का गाँव, खुद का
रोजगार’,यह मुहिम हम चलाते हैं,
चलो यारो स्वरोजगार खुद के घरों
से शुरू करते हैं,
न हो किसी पर आश्रित, स्वावलम्बी हम बनते हैं,
चलो यारो इस आतंक को अवसर में हम बदलते हैं |I
२ - क्वारंटाइन
बार-बार
आती है, मेरी नन्हीं सी छोटी गुडिया,
दरवाजे
से झांक-झांक कर पापा-पापा है कहती,
खोलो ना दरवाजा पापा तुम्हारी बेटी है आई,
एक पल तो प्यार करो न,बहुत दिन हो गए है पापा I
कड़ी
धूप में बाहर बैठ इंतजार में हूँ मैं पापा I
पर
मैं अभागा नही खोल सका कमरे का दरवाजा I
माफ़
करना मेरी बेटी पहली बार कर रहा हूँ अनसुना I
मन
में दुःख लिए पी रहा हूँ दुःख के आँसू को तनहा I
हर
रोज पहरा है देती, कहती है खोलो तो जरा पापा,
तीन
दिन बीत गए हैं बेटी और कुछ दिन और सही I
अब
तो वह खाना ले आती, कहीं पापा न रहें भूखे,
बेटी
है मेरी अनमोल पर न खोल सका में दरवाजा
कुछ
रोज I
पाँच
मिनट के लिए वह ओझल हो जाती, तभी याद
आ
जाते हैं पापा,
दौड़
लगाकर फिर वह आती पापा-पापा कहकर है पुकारती,
यह
आश लगाए घंटों खड़ी रहती है कि खुल जाएगा
दरवाजा
एक रोज I
नहीं बेटी ! नहीं है यह दरवाजा, यह तो है अपनों
से प्यार,
कठोर
बनकर रहना है मुझे, कुछ दिन कमरे में एकांत,
यह
मत समझना कि,करता नहीं हूँ मैं तुम से अब स्नेह I
मेरा
कलेजा जल रहा है तुम्हें देख तपती धूप में खड़े,
जिद्द न करो मेरी बिटिया, छाँव में जाकर तुम बैठो I
पर
कहाँ मानती नन्ही सी पापा की प्यारी सी गुड़िया,
कहती
है, कुछ नहीं होगा एक बार तो गले लगाओ न पापा ,I
हर
रोज यही अनुरोध है करती, पापा नहीं रोक सकें खुद को,
कठोर
पापा धैर्य खोकर दरवाजा खोल देता है एक रोज I
जिसे
देख पुलकित होकर पापा की गोद में आ बैठी बेटिया.
कुछ
देर के लिए दोनों भूल गए क्वारंटाइन में थे पापा I
छोटी
सी बेटी को देख भला कैसे न गोद में लेता पापा,
पर
मुहल्ले वालों की नज़र में बन गए आज दोषी पापा,
क्वारंटाइन
अवधि से पहले बाहर जो निकल आये परी के पापा,
आस-पड़ोस
के सज्जन लोगों ने कॉल लगा दी १०० नंबर पर,
थानेदार
को देखकर, कांपती बेटी को समझाने लगे हैं पापा,
बेटी
कुछ दिनों के लिए जा रहा हूँ मैं अपनी ड्यूटी,
आऊंगा
जल्द मैं, मेरी नन्ही परी ! बाहर न इंतजार मेरा करना I|
----------------कवि जवाहर
नवोदय विद्यालय, पेरेन,नागालैंड में प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं |
संपर्क - दिल्ली फार्म,घरात रोड,खादरी
खड़कमाफ़,श्यामपुर,ऋषिकेश,देहरादून,उत्तराखंड
२४९२०४
चलित वार्ता – 7983248014
(११)
किरण बहुखंडी
आत्मकथ्य-
नाम - किरण
बहुखण्डी
पति
का नाम - डा.ओ.पी.बहुखण्डी
पिता
का नाम - स्व. पी.डी.पसबोला
माता
का नाम- श्रीमती शकुन्तला देवी
गृह
जनपद - पौड़ी गढवाल
शैक्षिक
योग्यता - एम. ए. हिन्दी, संस्कृत
एवं शिक्षाशास्त्र, बी0 एड0
कृतित्व -
1-आकाशवाणी
लखनऊ से स्वरचित कहानियों का समय – समय पर प्रसारण |
2-स्वजल
विभाग के स्वच्छता अभियान पर आधारित अधिगम सामग्री में लेखन कार्य |
3-उत्तरायणी
पत्रिका में लेखन कार्य |
4-तीस
वर्ष शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर कार्य |
कविताएँ
१
कोरोना
मानव ने मानव को मिटाने के लिए,
विश्व जीवन धूल में मिलाने के लिए,
रच डाला परमाणु से सूक्ष्म विषाणु
अनजान,
कोरोना नाम उसका पहला शिकार बुहान।
धरा की रुह को कँपाने के लिए,
मानव से मानव को डराने के लिए,
रच डाला रक्तिम इतिहास चुपचाप ,
हिरोशिमा से भी भीषण था यह तूफान।
निर्मम कठोर
खौफ भरने के लिए,
दानवता की हदों को पार करते हुए,
निर्दोष जीवों का कर दिया संहार,
पाप नहीं महापाप से भर गया संसार।
मुस्कराती जिन्दगियों को रुलाने के लिए,
तड़पाने और मौत
की नींद सुलाने के लिए,
कहर ढाया इस कदर कि रो पड़ा आसमाँ,
बस्ती शहर गुम हुए, चारो
ओर श्मशान।
मानव से
सुख चैन छीनने के लिए,
मानव रूप धर धरा
पर बैठा है दानव,
समन्दर दहल उठा अंतर्मन में ले तूफान,
सूरज दहकता करता सबको सावधान।
ये
कैसा प्रलय आया शक्ति
स्तम्भों के लिए,
कुटिल
कल्पना जगत जीवन मिटाने के लिए,
मानव
ने मानव को मिटाने के लिए,
विश्व
जीवन धूल में मिलाने के लिए |
२ कोरोना
के काल में
कोरोना
के काल में,
लाकडाउन
के साल में,
इन्सान
को इन्सान से डरते देखा,
भय
और भ्रम से मरते देखा |
पराये
नहीं खून के रिश्तों में भी,
अपनों
को दूरियाँ बनाते देखा ।
कोरोना
के काल में,
लाकडाउन
के साल में |
याद
आई भूली संस्कृति,
सबको
नमस्कार करते देखा,
प्यार
और सत्कार करते,
गले
लगे बिना मुस्कराते देखा,
कोरोना
के काल में,
लाकडाउन
के साल में |
वर्माजी
शर्माजी की दोस्ती का,
इससे
कठिन न अन्जाम देखा,
शतरंज
की बाजी की खातिर,
न
पहले वाला इन्तजार देखा,
कोरोना
के काल में ,
लाकडाउन
के साल में |
जाडों
की नरम गरम धूप में,
सुनसान
डगर वाले शहरों को देखा,
छोटे
बड़े घरों की छत पर,
बूढे-बच्चों
को एक साथ देखा,
कोरोना
के काल में ,
लाकडाउन
के साल में |
गली
चौराहों पर चाट ठेलों,
चाउमिन मोमो
का अकाल देखा,
जंक
फूड से दूर बच्चों को
घर
का खाना खाते देखा।
कोरोना
के काल में,
लाकडाउन
के साल में |
मन
से पूजा मंदिर- मस्जिद में,
पिकनिक
वाला न हाल देखा,
सबको
काम अपने ही घर में,
कहीं
भी न आते जाते देखा ,
कोरोना
के काल में
लाकडाउन
के साल में |
नववर्ष ,तीज
,ईद, राखी आई,
शान्त
भाव मनाते देखा,
बिना
बात की कोई हलचल,
कोई
भगदड़ न बवाल देखा,
कोरोना
के काल में,
लाकडाउन
के साल में |
घर
आँगन में सालों बाद,
गौरेया
को फुदकते देखा,
ऊषाकाल
में पक्षियों का कलरव,
अपने
घर के पास देखा,
कोरोना
के काल में
लाकडाउन
के साल में |
हवा
में ताजगी व खुला
आसमान,
हरा
रंग, नीला आसमान देखा,
खुश
हुए गज और सिंहों को,
सड़कों
पर मस्त गुजरते देखा,
कोरोना
के काल में,
लाकडाउन
के साल में |
चेहरे
को मास्क से ढका
आँखों
का अन्दाज देखा,
सेनीटाइज
करते हाथों से
इन्सान
को काम करते देखा,
कोरोना
के काल में
लाकडाउन
के साल में |
दूर-दूर
रहे अब तक जो,
परिवार
परिवार एक हैं देखा,
मात-पिता भाई-बहिनों संग,
खुशियों
का संसांर देखा,
कोरोना
के काल में
लाकडाउन
के साल में |
मानवता
की सेवा में रत
डाक्टर
नर्स को दिन रात देखा,
देव
बनता है कैसे मानव ?
अस्पतालों
में साक्षात देखा,
कोरोना
के काल में
लाकडाउन
के साल में |
स्वच्छता
अभियान देखा,
इन
सेवकों को शवों का भी
अन्तिम
संस्कार करते देखा,
कोरोना
के काल में,
लाकडाउन
के साल में |
भरी
दुपहरी अंधेरी रातों में,
प्रशासन
को जगता देखा,
प्यार
दुलार से पुलिसवालों को
सुरक्षा
में हर पल रत देखा,
कोरोना
के काल में,
लाकडाउन
के साल में |
बुरी
आदतें दूर हुई अब,
जीवन
के प्रति जागृत देखा,
भूल
न जायें अच्छाई अपनी,
वक्त
को जीवन सीख सिखाते देखा ,
कोरोना
के काल में,
लाकडाउन
के साल में |
कुछ
अपने में बुरा दूसरों में अच्छा देखा,
जो
हो बस हर बात का अन्जाम साफ देखा।
---------कवयित्री राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखंड
देहरादून में
उप
निदेशक पद पर कार्यरत हैं |
चलित संवाद - 8979890067
(१२)
डॉ. केवलानन्द काण्डपाल
आत्मकथ्य-
नाम - डॉ.
केवलानन्द काण्डपाल |
पिता का नाम – स्व. परमानन्द काण्डपाल |
माता का नाम – श्रीमती मोहिनी देवी काण्डपाल |
जन्मतिथि – 29
– 1- 1966 |
जन्मस्थान – प्रयागराज
उत्तर प्रदेश |
पैतृक गाँव – खुनौली,
जनपद बागेश्वर उत्तराखण्ड
शिक्षा – डी. फिल( वाणिज्य), एम.काम,एल.एल.एम, एम.ए
(अर्थशास्त्र, शिक्षाशास्त्र)
प्रकाशन – राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 100
से अधिक शैक्षिक एवं शोध
आलेखों का नियमित प्रकाशन |
अभिरुचियाँ – अध्ययन,
गज़ल एवं कविता पठन और लेखन, फोटोग्राफी |
कविताएँ
१-
कोरोना
का साल बुरा है
कोरोना का साल बुरा है |
हम लोगों का हाल बुरा है|
शहर से लौटकर गाँव को आए,
बेरोजगारी का कमाल बुरा है |
वीरान स्कूल, सूनी हैं गलियाँ,
नजर न आए धमाल बुरा है |
गले मिलने का जी करता है,
दूर से नमस्ते मलाल बुरा है |
तुझको हराकर ही दम लेंगे,
चल रही पड़ताल बुरा है |
तेरी लानत मलानत करते हैं,
लौट जा तू पाताल बुरा है |
२-
ये सख्त इम्तिहान है साहिब
ये सख्त इम्तिहान है
साहिब |
जान है तो जहान है
साहिब |
कुछ एक मुश्किलें
हैं लेकिन,
घर पर इन्मीनान है
साहिब |
पेट भर जाय हम लोगों
का,
खेतों में किसान है
साहिब |
मजदूर से ढंग से पेश
आओ,
उसका भी सम्मान है
साहिब|
जिसका कोई नहीं
दुनियाँ में,
कहते हैं भगवान है
साहिब |
धर्म मजहब चाहे जो
भी हो,
हिन्दुस्तान सभी का
है साहिब |
इस किराये के कमरे
से बड़ा,
मिरे गाँव दालान है
साहिब |
वक्त मिले तो जरूर
आइयेगा,
बीच रास्ते मकान है
साहिब |
आज के दौर का तकाजा
है,
बोलो तो नुकसान है
साहिब |
दुश्मन बनाती और
दोस्त भी,
गज़ब शै जुबान है
साहिब |
ये सिर्फ मीरा मुआमला नहीं,
उधर भी तूफ़ान है
साहिब |
इस दिल में छुपा के
रखा है,
वहीं पे मेरी जान है
साहिब |
बुराई के बदले भलाई
करना,
कहने में आसान है
साहिब |
शहर में दिन रात
हलचल थी,
क्यों सब सुनसान है
साहिब |
मुआ कोरोना कहाँ से
आया,
जगह कोई बुहान है
साहिब |
इक गलत फैसले से
उनके,
मुल्क हलकान है
साहिब |
तजुर्बे के कहता हूँ
मैं केवल
हर शख्स परेशान है
साहिब |
-------कवि राजकीय
उच्चतर माध्यमिक विद्यालय पुडकूनी कपकोट जनपद बागेश्वर में
प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हैं | कवि
शैलेश मटियानी राज्य शिक्षक तथा राष्ट्रीय
शैक्षिक पुरस्कार से सम्मानित हैं |
चलित वार्ता- 9897437945 (whtsp भी ) , 9410305524
ई मेल – Kandpal-kn@rediffmail.com
(१३)
डॉ. सत्यानन्द बडोनी
आत्मकथ्य –
नाम - डा.
सत्यानन्द बडोनी
आत्मज - स्व0
श्रीमती शाकम्बरी बडोनी एवं स्व0 श्री हरिदत्त बडोनी ।
जन्म तिथि - 10 मई सन् 1963
शैक्षिक योग्यता- एम0ए0 हिन्दी, पी0एच0 डी0 ,
विक्रमशीला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर पटना बिहार से विद्यासागर
(डी0लिट्) की मानद उपाधि।
जन्म स्थान - ग्राम- कणोली, पत्रालय- टकोली, पट्टी- बारज्यूला, तहसील कीर्तिनगर,जनपद-टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।
अभिरूचि - गीत, कविता, कहानी एवं खोजी लेख (गढ़वाली एवं हिन्दी में)।
प्रसारण - विभिन्न आकाशवाणी एवं दूरदर्शन केन्द्र से सतत्
प्रसारण।
सम्पादन - ‘मन मिमांसा,’ ‘नया अध्याय’, ‘साहित्य प्रभा’ शोध पत्रिका एवं विभिन्न
सहयोगी संकलनों में साहित्य सम्पादन ।
संलग्न - सचिव
श्रीदेव सुमन संस्कृति, साहित्य एवं शिक्षा संस्थान उत्तराखण्ड,देहरादून,
नवाभिव्यक्ति
साहित्य संस्था उत्तराखण्ड,देहरादून एवं उत्तराखण्ड
शोध
संस्थान में सदस्य, सहमंत्री अखिल भारतीय साहित्य परिषद जनपद
देहरादून ।
प्रकाशित कृतियां – ‘शैशव’ (हिन्दी
कविता संग्रह), ‘ताता दूधै घूट’ (गढ़वाली कविता संग्रह), ‘बस!
इथगि
चैन्दू’ (गढ़वाली कहानी संग्रह) ‘पिन्टू बोला मम्मी से.’.....। (बाल
कविताएं) ‘आलेखों के आयाम’।
मैथलीशरण गुप्त सम्मान, पद्म साहित्य अलंकरण, काव्य साहित्य भूषण,
सृजनश्री बाल साहित्यराष्ट्रीय सम्मान, साहित्य प्रभा सरस्वती रत्न राष्ट्रीय
सम्मान, साहित्य प्रभा राष्ट्रीय गौरव सम्मान, सेवा सेतु राष्ट्रीय सम्मान,
पुलिस महानिदेशक उत्तराखण्ड द्वारा ‘प्रतिस्पर्धा’ कहानी के लिए
सम्मान पत्र एवं अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक अभिसूचना मुख्यालय
उत्तराखण्ड द्वारा सम्मान पत्र पुरस्कार, ‘कादम्बरी’ साहित्यिक संस्था
जबलपुर मध्य प्रदेश द्वारा ‘ताता दूधै घूट’ (गढ़वाली कविता संग्रह) के
लिए लोकभाषा साहित्य पुरस्कार वर्ष 2017, राधाकृष्ण कुकरेती साहित्य
शिरोमणि सम्मान वर्ष 2018, हिन्दी भाषा-सम्मेलन पटियाला पंजाब द्वारा
काव्य गौरव सम्मान 2018, संस्कार भारती द्वारा सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार
सम्मान वर्ष 2018, साहित्य मण्डल, श्रीनाथद्वारा हिन्दी काव्य भूषण
मानद उपाधि वर्ष 2019 से विभूषित, उत्तराखण्ड साहित्य साधक
सम्मान 2019 से सम्मानित, प्रगतिशील क्लब देहरादून द्वारा बसंत श्री
सम्मान वर्ष 2020 से सम्मानित एवं बालाजी साहित्य संस्था, म0प्र0 के
अंतर्राष्ट्रीय काव्य संकलन में प्रतिभाग करने पर श्री सीताराम काव्य ऋषि
सम्मान वर्ष 2020 ।
कविताएँ
१- निःशब्द
चरण कोविड ने जब से धरे,
सकल भूतल में चित्कार है।
निःशब्द है जड चेतन मानवी,
चित बसा तब से निंरकार है।।
बन सके जग में अब औषधी,
स्तब्ध है चित ये अब मौन सा।
मिल सके फिर औ’ नव चेतना,
अदृश्य है भय ये मन गौण सा।।
कर बढ़े कर से मिलने कभी,
हम तभी अभिवादन ही करें।
तय हुआ अंतराल सही सही,
मिलन में प्रतिपादन ही करें।।
विकल है मन ईश डरा-डरा,
हर घड़ी घर में जन है पड़ा।
विमुख
सा जग है जड़ सा खड़ा,
विपुल कोविड है अब भी अड़ा।।
अब जरा कुछ यूँ हल भी करें,
हर दशा पर यूँ घर में रहें।
विकृत
कोविड से मुक्त हों सभी,
भगवती
कुछ यूँ वर दे हमें।।
२-
कोरोना का रोना
क्या किसी ने सोचा होगा,
ऐसे दिन भी आयेंगे।
कैद होंगे घर के अन्दर,
भयाक्रांत सब हो जायेंगे।
क्या किसी ने ..............
क्या किसी ने सोचा होगा,
जरूरी मास्क हो जायेंगे।
मचिका लगाये बैलों के मुँह,
मुँह अपने भी लग जायेंगे।
क्या किसी ने.................
क्या किसी ने सोचा होगा,
गौरी-गौरैया फुदकेंगे।
हम रहेंगे सहमे-सहमे,
हर घर आंगन चहचायेंगे।
क्या किसी ने............
थी कभी आशंका हमको,
मठ-मंदिर नहीं जायेंगे।
वे तय दिन परिणय बंधन के,
ऐसे ही टल जायेंगे।
क्या किसी ने.............
सोचा भी नहीं होगा हमनें,
नहीं शव या़त्रा में जा पायेंगे।
दूर अपनों से हो जायेंगे हम,
ठाटबाट भूल जायेंगे।
क्या किसी ने..............
हाथ मिलाने की परिपाटी,
विस्मृत कोरोना में हो जायेगी ।
संस्कृति सनातन अपनी,
फिर से रंग दिखलाएगी ।
क्या किसी ने................
बौने चीन के विचार बौने,
बौने ही रह जाएंगे ,
विश्व शक्ति कहलाने वाले,
धराशायी हो जाएंगे ,
क्या किसी ने ..............
स्वप्न में भी नहीं सोचा
होगा,
रोटी सेकेंगे वे सभी।
दान में मिला राशन पानी,
अपनों में बाटेंगे कभी।
क्या किसी ने.................
अमीर होंगे हाथ फैलाये
गरीब होंगे निःशब्द खड़े
असमर्थ होंगे शीश झुकाये,
पंक्तियों में समर्थ खड़े।
क्या किसी ने.............
छोड़ चले थे गाँव
पहले,
लौट वापस वे आये हैं।
झेला है विरोध उन्होंने,
रौनक गाँव में लाये हैं।
क्या किसी ने..............
मिलती थी पुलिस को गाली ,
पुष्प बरसाते हैं सभी,
सोचा भी नही होगा हमनें,
होगी खाकी हर्षित कभी।
क्या किसी ने................
आत्ममंचन का समय है,
है यह परीक्षा की घड़ी,
सुरक्षाचक्र में सुरक्षित होंगे,
जारी दिशा-निर्देशों की छडी |
-----------कवि पुलिस उपनिरीक्षक के पद पर देहरादून में कार्यरत हैं |
निवास - बी ब्लाक पी- -07 कोतवाली पल्टन बाजार देहरादून, उत्तराखण्ड।
चलित वार्ता - 9411535904/9760932557
ई मेल – sbadoni1963@gmail.com
(१४)
राकेश जुगरान
आत्मकथ्य -
नाम - राकेश जुगरान |
जन्म – 26 जून 1964, पौड़ी गढ़वाल उत्तराखण्ड |
शैक्षिक योग्यता – एम.एस-सी (रसायन विज्ञान ), एम.ए. (शिक्षा
शास्त्र ),बी.एड,
पी.जी.पी.डी(विशेष शिक्षा ) |
प्रकाशन – कविता संग्रह “अन्तर्द्वन्द्व
सामूहिक कविता संग्रह –‘सपनो के मोरपंख’, ‘नई सदी के हस्ताक्षर’
सम्मान –
1-अखिल भारतीय राष्ट्र भाषा विकास संघठन गाज़ियाबाद (उत्तर प्रदेश ) द्वारा
‘राष्ट्र गौरव सम्मान
|
2- विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ गांधीनगर बिहार द्वारा ‘विद्या वाचस्पति’उपाधि
|
3-अखिल भारतीय भाषा साहित्य सम्मेलन
भोपाल (मध्य प्रदेश) द्वारा ‘समन्वयन
श्री’ सम्मान |
4-सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति द्वारा ‘भाषा भारती सम्मान’ एवं
‘संस्कृति समन्वय’ सम्मान |
5-राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समिति द्वारा ‘बाल प्रहरी सृजन श्री सम्मान
|
6- हिमाक्षरा राष्ट्रीय साहित्य परिषद् रायसेन मध्य प्रदेश द्वारा ‘अष्ठ क्षेत्रीय’ एवं
‘साहित्य भूषण’सम्मान |
7-कायाकल्प साहित्य कला फाउन्डेशन नोयडा द्वारा
‘साहित्य श्री’ सम्मान |
विशेष –
1-
समकालीन साहित्य सम्मलेन मुम्बई द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन
मारिशस
एवं श्री लंका में प्रतिनिधित्व एवं सम्मान |
2-
हिमालय कला एवं साहित्य परिषद उत्तराखंड द्वारा आयोजित अन्त:राष्ट्रीय
साहित्य सम्मलेन
थाईलैंड ( बैंकाक) में प्रतिभाग |
कविताएँ
१- कोरोना
ने छीन ली
उसने हमारे चेहरे की खुशी और गमनीयत
सब छीन ली है,
होंठों की मुस्कराहट,
गालों की खूबसूरती,
सारे भाव छीन लिए,
चेहरे का नूर, सुघड़पन,डिम्पल और
झुर्रियां भी
रौब-दाब मासूमियत सब |
हया छीन ली, अदा छीन ली,
ठुड्डी का तिल और सदा छीन ली,
मूंछों का ताव, दाढ़ी की ठसक छीन ली,
दांत भींचने की कसक छीन ली,
छीन ली है जादू की झप्पी,
तपाक से हाथ मिलाने की गर्मजोशी,
बेलौस मेलजोल,
खिलंदड़ापन हमारा,
मुँह फुलाना,रूठना,
हमारे तौर तरीके ,उपासना, उत्सव,
उठना, बैठना,
पढ़ना-लिखना, खेलकूद,
छीन ली हमारी उड़ान, हमारा सफ़र,
अधिकांश रास्ते और मंजिलें भी,
कम्बख्त ने सब कुछ होते हुए भी,
सब कुछ छीन लिया,
हमारी पहचान छीन ली |
गरीबों का निवाला छीन लिया,
चैन सुकून छीन लिया,
छीन ली उनकी झोंपड़ी,
ठिकाने छीन लिए,
अमीरों की महफिल,
मुनाफे छीन लिए,
सत्ताओं की नींद छीन ली,
छीन ली हमारी स्वंतन्त्रता,गहमागहमी
और बेफिक्री |
लेकिन
तमाम
कोशिशों के बाद भी,
वह
नहीं छीन सका है हमारी फिक्र,
हमारे अपनो के लिए,
नहीं रोक पाया है,
योद्धाओं के बढ़ते कदम,
कि हम ठिठके जरूर हैं,
भटके नहीं हैं,
रुके हैं मगर झुके नहीं हैं,
देखना ! हम मिलजुल कर लौटा लाएंगे,
जीवन की रौनकें,
उसके जबड़े से छीन कर
अपनी मिल्कियत सारी,
आमीन !
३-कोविड दोहे / कुंडलियाँ
फिरत अकेलो गलियन में, कोविड भयो उदास,
ये कैसो संसार है, कोई
न आवे पास ,
कोई न आवे पास,यहाँ क्या काम हमारो,
मारन को आयो थो, मारो गयो बिचारो |
हाथन को यूँ धोइये, कोविड गल –मरि जाय,
फिर कोई काहे डरे, और
काहे भरमाय,
कोई पास में आए तब तो पॉजिटिव कर पाऊं,
यूँ बिना बुलाए, दरवाजे के अन्दर कैसे जाऊं ?
कह कोविड कविराय,लाकडाउन ने
मारा,
विश्व विजय का सपना था, भारत से हारा |
------
कवि
जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान
देहरादून उत्तराखंड में प्राचार्य
पद पर कार्यरत
हैं |
चलित संवाद - 7055522591
(१५)
अवनीश उनियाल
आत्मकथ्य –
नाम - अवनीश उनियाल
शिक्षा – एम.एस-सी
(गणित), बी.एड., एम.ए.(शिक्षा शास्त्र), नेट (शिक्षा शास्त्र), रिसर्च
स्कालर |
कृतित्व
–
पुस्तक
– दस्तक (हिन्दी ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशन वर्ष 2006 |
विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में कविताएँ, गजलें और
गीत प्रकाशित |
आकाशवाणी और दूरदर्शन से रचनाएँ प्रसारित | कवि
सम्मेलनो में निरंतर प्रतिभागिता |
हिन्दी
और गढ़वाली भाषा में गीतों का सृजन | यू ट्यूब पर गीत उपलब्ध |
सामाजिक – सांस्कृतिक संस्था धाद से लम्बे
समय से जुड़ाव | धाद साहित्य एकांश के
अध्यक्ष के रूप में विभिन्न साहित्यिक और
सामाजिक कार्यक्रमों का सञ्चालन | 19 वर्षों
तक निजी और सरकारी विद्यालयों में गणित
प्रवक्ता के रूप में अध्यापन | अस्पृश्यता
जैसी सामाजिक बुराई के सम्बन्ध में सामाजिक
जागरूकता हेतु कार्य |
सम्मान
–
उत्तराखंड साहित्य साधक सम्मान 2019 |
कविताएँ
१-
आह ! औरंगाबाद
वो कोरोना से नहीं ....
बल्कि मर गए अक्षम्य
बेरुखी के कारण ..
बस यही था ना अपराध उनका
कि चाहती थी विश्रांति उनकी थकी सांसें
और
घायल पाँव,
पाना
चाहते थे प्रेम का ठाँव,
अपना घर, गाँव ......
मगर मिली उन्हें
एक
खूनी अँधेरी रात में
अचानक
धड़धड़ाती हुई बेरहम, दर्दनाक मौत ..
आखिर क्यों ?
ये अब तो सोचना ही होगा,
तराजू
पर व्यवस्था को
तोलना ही होगा.....
हाँ !भले ही बुरा लगे
मगर
सच को सच
बोलना
ही होगा......
बोलना
ही होगा......
२-
मुझे अपने घर तक
पहुंचना ही होगा
ये माना कि सड़क पर नहीं है निकलना..
ये माना कि नादानी होगी बहुत ये
मगर क्या करूं ?
सब जानते बूझते भी
नहीं वश मेरा है रहा खुद पर भी अब
क्योंकि खाली जेबें
डराती हैं मुझको कि
बच्चों को लेकर
परेशां बहुत हूँ ...
न सर पे है छत,
न कोई दर, ना ठिकाना,
न परदेश में कोई अपना
कि जिसके कंधे का सहारा
लेकर के कुछ दिन ..
जी लूं मौत से मैं छुपते छुपाते..
सुना है बीमारी भयंकर है आई
जिससे जहाँ की हर दिशा
है थरथराई........
मगर क्या करूं ?
थरथराता है दिल जब
सोचता हूँ कि जब
बुझ जाएगा चूल्हा..
और झपटेगी भूख
रातों में अँधेरी..
छटपटा कर किसे तब मैं
आवाज दूंगा ?
नहीं सह सकूंगा
अपनो की तड़प को,
नहीं सह सकूंगा
अपनो की जुदाई...
मुझे सब पता है
मगर क्या करूं मैं ?
मुझे मौत ! गुमनाम मरना नहीं है,
हो मीलों सफ़र...
चाहे काँटों भरा
पर मुझको तो बाहर निकलना
ही होगा.....
पैरों में चाहे पड़ जाएं छाले...
मुझे अपने घर तक
पहुंचना ही होगा ...
पहुंचना ही होगा ...
३-
गज़ल
आदमी है आदमी से डर रहा ||
क्या भयानक दौर है ये चल रहा ||
जानवर था आदमी शायद कभी
आज भी व्यवहार में है दिख रहा ||
कौन जाने ये कि किसके जिस्म में
वाइरस कोरोना का है पल रहा ||
कोरोविड उन्नीस नामक आग में
ये जहाँ है धू धू करके जल रहा ||
शुक्र है ये मौत के बादल में भी
सब्र का सूरज नहीं है ढल रहा ||
दूर रहके दूर होगी ये बला
पास आने से है बी.पी बढ़ रहा ||
हाथ धोने से बचे जब जिन्दगी,
हाथ धोने से भला क्या घिस रहा ?
-----------कवि राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद
उत्तराखंड देहरादून में
प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं |
चलित संवाद - 8077096238
(१६)
दिनेश रावत
आत्मकथ्य –
जन्म : 7 जून 1981 को सीमांत जनपद उत्तरकाशी के बड़कोट तहसील अंतर्गत
पड़ने वाली बनाल पट्टी के कोटी ग्राम में।
शिक्षा : स्नातक (विज्ञान वर्ग), स्नातकोत्तर (इतिहास, समाज शास्त्र),
व्यावसायिक शिक्षा : बी.एड., एम.एस.डब्ल्यू. तथा पी.जी.डी.आर.डी.
सृजन : 'माटी', 'तेरे जाने के बाद' व 'पहाड़
बनते पहाड़' (कविता संग्रह)
'रवाँई
क्षेत्र के लोकदेवता एवं लोकोत्सव', 'रवाँई
के देवालय एवं देवगाथाएँ'(प्रकाशाधीन)।
सम्पादन : विद्यालयी पत्रिका 'राहें हमारी' |
प्रसारण : दूरदर्शन देहरादून के साहित्यिकी
कार्यक्रम में ( 4 सितम्बर 2018 और
26अक्टूबर 2019 )रवांल्टी कवि गोष्ठी में कविता पाठ ।
अन्य : देशभर के विभिन्न
हिस्सों से प्रकाशित होने वाली पत्र—पत्रिकाओं में
लेख एवं रचनाओं का प्रकाशन।
पुरस्कार एवं सम्मान : 'दीपशिखा
साहित्य सम्मान', 'हिन्दी भाषा रत्न' के अतिरिक्त सामाजिक क्षेत्र में
उल्लेखनीय अवदान हेतु 'राष्ट्रीय युवा पुरस्कार', 'राजीव गांधी समरसता एवार्ड', 'उत्कृष्ट युवा पुरस्कार', 'उत्कृष्ट सेवा सम्मान', 'श्याम उत्कृष्ट सेवा सम्मान' के अतिरिक्त वर्ष 2015—16 में संकुल तथा दिसम्बर 2018 व जनवरी 2020 में विकास खंड स्तर पर 'मासिक उत्कृष्ट शिक्षक' के रूप में सम्मानित।
कविताएँ
१-शिक्षक
शिक्षक निभाता आया है
गुरूत्तर दायित्व सदियों से
निभा
रहा है आज भी
महामारी काल में भी
डटा है मोर्चे पर
झोंके हुए है खुद को
कोरोना के खिलाफ जारी जंग में |
माना कि चल नहीं पा रही
चॉक—कलम कक्षा में
फिर भी गढ़ रही हैं
कहानियाँ सफलता की नित नवीन |
दिन की तपिश हो
या कालिमा रात की
सुबह—शाम भी लगा वह
पहचानने—समझाने में लोगों को |
सीमावर्ती चैक पोस्ट हों
या स्टेशन बस व रेल के
संग रोधक केंद्रों सहित
सेवित क्षेत्रों में भी जारी है
पहरेदारी उसकी |
कर रहा है आगाह
आने—जाने वालों को
ताकि लगे अंकुश बढ़ती महामारी पर
और बचायी जा सके
ज़िंदगी एक—एक
जन की |
इन सबके बाद भी
वह दूर है सुर्खियों से
मगर आंका नहीं जा सकता
कमतर योगदान को उसके ।
२-कोरोना अकेले नहीं आया
कोरोना कोई अकेले नहीं आया,
भूख,भय, बेबसी, लाचारी..
और भी बहुत कुछ साथ लाया है |
लोग जान बचाने को
जैसे—तैसे निकल लिए,
ना पाथेय, ना सवारी मुकम्मल,
सूखे अधर,टूटी चप्पल पहने ही चल दिए |
मार्ग की मुसीबतों से
वो इस कदर जूझते रहे,
कि मई—जून की भीषण गर्मी को
बिन पानी पी गये |
उम्मीद थी लॉकडाउन में
कहीं दफन हो जाएगा कोरोना,
मगर नहीं यहाँ तो
जन—जीवन ही तबाह हो गया |
प्रयास जारी हैं
कोरोना पर काबू पाने को,
पर सवाल कोरोना से अधिक
भूख का गहरा गया है |
वो चाहता है बंद रहना घर में,
मगर जठराग्नि की ज्वाला मिटाने को
चौराहा पर आ गया है |
उसे अपनी नहीं,
अपनों की चिंता सता रही है,
कोरोना से ज्यादा,
पेट की आग जला रही है।
३-जीवन बचाने को जारी है जंग
कोरोना की जब से है आयी ख़बर
लताएं भी सहमी सी आती नज़र।
मुश्किल में देखो पड़ी ज़िंदगी है
दवा और दुआ हो रही बेअसर।।
दशा
देख दुनिया की सब रो रहे।
भयभीत
मन ही मन हो रहे।
विस्तार
पाने ना पाये यहाँ ये
प्रयास
ऐसे अटल हो रहे ।।
जीवन बचाने को जारी है जंग
हरायें कोरोना, ना हारेंगे हम।
रखो ध्यान उसका कहा जा रहा जो
खातिर हमारे लड़ा जा रहा जो।।
मुश्किल बहुत है, असंभव नहीं
दूसरों के नहीं, खुद की खातिर सही।
बैठो घरों में ,धरो धीर मन में
है जीवन अभी यहाँ बहुत मुश्किलों में।।
---------कवि राजकीय प्रा.वि.नम्बर—4, ज्वालापुर, हरिद्वार (उत्तराखंड) में शिक्षक हैं ।
सम्पर्क : 1बी, टाईप—2, सेक्टर—1, बी.एच.ई.एल.—हरिद्वार (उत्तराखंड) पिन—249103
ईमेल— rawat.dineshsingh2018@gmail.com
मोबाइल : 9927272086, 9456527453
(१७)
कमलेश मोंडोल
आत्मकथ्य
नाम – कमलेश मोंडोल
भाषा ज्ञान – अंग्रेजी, हिन्दी और बंगाली .
कृतित्व – अंग्रेजी, हिन्दी और
बंगाली भाषा में कई कविताओं का लेखन, अंतर्जाल पर विशेष रूप से
सक्रिय |
कविता
यही हमारी मांग है तुमसे
कोरोना तू रुला रहा है, तू डरावना है,
महामारी है तू, तू खतरनाक है,
तू परदेशी है, तू आपदा है,
तूने सारी दुनिया को बर्बाद कर दिया,
तू जहरीला कैक्टस है,
रेगिस्तान की प्रचण्ड गर्मी में
नंगे पाँव चलने जैसा अहसास है
तू,
तू मौत का साक्षात्कार और प्रलय
का रुदन है,
तू आँसू का जनक है ।
तू जालिम है तू बेरहम है,
तू सारी दुनियाँ को
अपने कठिन पंजे पर रख मसलना
चाहता है ,
हजारों जाने छीनी हैं तूने ,
गांव , शहर या वीरान जगह
तूने किसी को नहीं छोड़ा ।
तू दुनियाँ को निगलना चाहता है,
तूने हजारों जाने ले
ली, मौत दी,
रोना और गम दिया ।
तबाही का खेल खेल रहे हो तुम,
बेवजह जान ले रहे हो तुम,
शर्म ,बस शर्म करो!
तुम, लोगों का शाप और फटकार ले
रहे हो ।
शांत रहो अब,तुम दुनिया छोड़ दो
हमारी सुंदर दुनिया हमको वापस दे दो ।
यही हमारी मांग है तुमसे ।
------- कवि राजीव गाँधी राष्ट्रीय भूजल प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान रायपुर
छत्तीसगढ़ में
वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं तथा
डीओपीटी भारत सरकार के डी.टी. एस. कार्यक्रम
के रिकग्नाइज्ड ट्रेनर हैं |
संपर्क - राजीव गाँधी राष्ट्रीय भूजल प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान द्वितीय तल,
ब्लाक – ए 1, पुजारी चैंबर, पचपेडी, नाका, रायपुर, छत्तीसगढ़-492001
ई मेल -- mondalkamalesh13@gmail.com
चलित वार्ता – 09753079567
(१७)
आत्मकथ्य
नाम - डॉ.उमेश चमोला
माता - श्रीमती राजेश्वरी चमोला |
पिता - स्व0 श्रीधर प्रसाद चमोला |
जन्मतिथि - 16 जून 1973
शैक्षणिक योग्यता - एम.एस-सी, एम.एड, डी.फिल, पत्रकारिता स्नातक (रजत पदक) |
गांव का पता - ग्राम कौशलपुर, पो- बसुकेदार, जिला-रुद्रप्रयाग |
संपर्क पता - एस.सी.ई.आर.टी. राजीव गांधी नवोदय विद्यालय
भवन, नालापानी
रायपुर देहरादून, उत्तराखण्ड
|
कार्य क्षेत्र - शिक्षण,प्रशिक्षण, साहित्य सृजन
प्रकाशित पुस्तकें-
गढ़वाली - 1-उमाळ
(खंडकाव्य),2-पथ्यला (गीत-कविता संग्रह),3-पड़वा
बल्द (व्यंग्य कविता संग्रह),4- निरबिजु (उपन्यास),5- कचाकि
(उपन्यास), 6- नानतिनो कि सजोळि (गढ़वाली-कुमाउनी बाल
कविता
संग्रह),7-बणद्यो कि चिट्ठि (पर्यावरण और शिक्षा
विषयक बाल नाटिका संग्रह) 8- छै फुटे जमीन (लिओ
टॉलस्टॉय
की कहानियों का गढवाली
भाषा में अनुवाद |
हिन्दी- 1- राष्ट्रदीप्ति (राष्ट्रभक्तिपूर्ण गीत-काव्य संग्रह), 2-पर्यावरण
शिक्षा पाठ्य सहगामी
क्रियाकलाप (नाटक, नारे,गीत और काव्य
संग्रह) 3-उत्तराखण्ड की लोककथाएं दो खंड ,4- पुष्पांजलि
(स्मृति ग्रंथ) 5-फूल
(बाल कविता संग्रह),6- आस-पास
विज्ञान (कविता,पहेली एवं कहानी संग्रह) 7- धुरलोक से
वापसी (विज्ञान गल्प) 8- पिंजरे का पंछी (सरिता पत्रिका
प्रकाशन नई दिल्ली
द्वारा प्रकाशित औडिबुक )
प्रकाशनाधीन पुस्तकें- गढ़वाली -1- व्यंग्य कविता संग्रह 2- बाल नाटिका संग्रह 3-
विज्ञान आधारित बाल
नाटिका संग्रह 4- अब्वलो(उपन्यास)
हिन्दी- 1- विज्ञान कथा संग्रह 2- आपदा जागरूकता साहित्य
3- घटनाओं में विज्ञान 4-
उत्तराखण्ड
की
लोककथाएं 5- लघु
कथा संग्रह 6- विज्ञान
पहेलियाँ 6 – हिन्दी व्यंग्य कविता संग्रह
अंग्रेजी-
Story for kids
अन्य - अ-
शोध पत्र
1-रवीन्द्रनाथ टैगोर के साहित्य के विविध
पक्ष।
2- महाकवि कालीदास के साहित्य में हिमालयी
परिवेश।
3-महाकवि कालीदास के साहित्य में वनस्पति
विज्ञान।
4-चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्य में
प्रकृति चित्रण।
5-चन्द्रकुवर बर्त्वाल के साहित्य में
छायावाद से इतर प्रवृत्तियां।
6-उत्तराखण्ड के लोकगीतों के प्रसार एवं
सृजन में महिलाओं की भूमिका।
7-गढ़वाली साहित्य का विकास ।
8-उत्तराखण्ड के लोकगीतों में पर्यावरण ।
9-बहुभाषा कक्षा : एक
प्रभावी अधिगम संसाधन |
ब- साहित्य पर शोध -
डॉ. उमेश चमोला के साहित्य में नारी
पात्रों का चरित्र चित्रण ।
शोधकर्ता- डॉ. अनुराधा शर्मा
स- विविध -
·
देश एवं स्थानीय प्रमुख
समाचार पत्रों एवं पत्र पत्रिकाओं जैसे अमर उजाला, दैनिक जागरण,
राष्ट्रीय सहारा, हिमाचल टाइम्स, पर्वतीय टाइम्स, युगवाणी, रीजनल रिपोर्टर, रंत रैबार, कुमगढ़, दस्तक, खबरसार, धाद, पंखुड़ी, प्रेरणा अंशु,
गढ़गौरव, रंत रैबार, बाल प्रहरी, अविचल दृष्टिकोण, पुरवाई (ई पत्रिका), बाल वाटिका, बच्चों का देश, अभिनव बालमन, विज्ञान प्रगति, सरिता, नवल आदि में रचनाओं का प्रकाशन।
·
परियोजना प्रबंधन इकाई, स्वजल
परियोजना, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग उत्तराखण्ड
द्वारा एल-1 ( कक्षा 3 से 5 तक के बच्चों के लिए), एल -2 ( कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए) तथा एल-3 ( कक्षा
9 से 10 तक के विद्यार्थियों के लिए) विकसित स्वच्छता जागरूकता सामग्री में
कविता, कहानी एवं पहेलियों का प्रकाशन।
·
‘गौं
मा‘ ऑडियो कैसेट के माध्यम से गढ़वाली
गीतों का प्रसारण । यू ट्यूब पर
भी उपलब्ध।
·
उत्तराखंड के सामान्य ज्ञान पर आधारित लोक संगीतमय डिजिटल अधिगम
सामग्री के अंतर्गत ‘उत्तराखंड के जंतु एवं वनस्पति’ विषय पर गीत का लेखन |
·
उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा द्वारा प्रकाशित पाठ्य पुस्तकों के लेखन
एवं सम्पादन में सहभागिता |
·
राष्ट्रीय एवं अन्त:राष्ट्रीय शोधपत्रिकाओं में विविध शैक्षिक आलेख
प्रकाशित |
प्राप्त सम्मान – मध्य प्रदेश, पंजाब,
छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली आदि की
विविध साहित्यिक संस्थाओं से सम्मान प्राप्त |
कविताएँ
१-
इतिहास
लिख रहा है कोरोना
इतिहास लिख रहा है
कोरोना ,
इसमें कुछ उजले पन्ने
भी होंगे
जिनमे मानवता की
रक्षा में तत्पर
लोगों का जिक्र किया जाएगा ,
इतिहास उन्हें विस्मृत होने नहीं देगा ,
आने वाली पीढी उन पन्नो को
सम्मान भरी नजरों से देखेंगी ,
कुछ ऐसे पन्ने भी होंगे
जब भी वे टटोले जाएंगे
पढ़ने वालों की आँखों में इतिहास के
इस कालखंड का स्याह पक्ष उतर जाएगा ,
उन्हें लगेगा इतिहास भी स्वयं
थू थू कर रहा है मानवता के हत्यारों पर |
२-
जीवन पथ पर चलने की तैयारी
कल सपने में मैंने देखा
कोरोना जी आए,
मुझे डरता हुआ देखकर
धीरे से मुस्काए |
मैंने बोला,’बहुत हो गया,
अब तुम वापस जाओ,
हमें चैन से अब जीने दो,
इतना मत सताओ |
वह बोले, सुन ले हे मानव !
बातें मेरी सारी,
जीवन पथ पर अब चलने की
कर ले तू तैयारी |
जल, थल, नभ को तूने जीता,
सर्वश्रेष्ठ तू प्राणी,
मैं तो एक छोटा सा कण हूँ,
कहते हैं विज्ञानी |
प्रकृति को तूने है जीता,
पर मुझसे तू हारा,
पल भर में तेरा ये गौरव,
चूर हो गया सारा |
अनुशासन में रहो, बताया,
मैंने तुझे सिखाया,
मानवता का रूप अनोखा,
मैंने तुझे दिखाया |
मुझे पता है जंग अनोखी
एक दिन तू जीतेगा,
मेरी ही दी गई सीख से
नव रेखा खींचेगा |
---------कवि राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद
उत्तराखंड देहरादून में
प्रवक्ता पद पर कार्यरत हैं |
चलित संवाद - 7895316807, ई मेल
– u.chamola23@gmail.com
मुझे मुझे कल
रुके हैं मग़र झुके नहीं हैं,
देखना!हम २व्ब्न्न
र
कह कोविड कविराय, लॉक डाउन ने मारा,
विश्व विजय का सपना था, भारत से हारा।
राकेश
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