वर्ष 1998 की बात है। अनुमोदन होने के बाद मैंने अपना शोध कार्य शुरू कर दिया था । मेरे पर्यवेक्षक सर ने मुझे निर्देशित किया कि मैं ‘संबंधित साहित्य के अध्ययन‘ के अंतर्गत कम से कम एक सौ शोध प्रतिवेदनो का अध्ययन करूं। इसमें कुछ पुराने भी हों और कुछ नवीनतम हों। इसके लिए मैंने मेरठ विश्वविद्यालय और एन.सी.ई.आर.टी. नई दिल्ली के पुस्तकालय जाने का निर्णय लिया । मैंने मेरठ में तीन -चार दिन रहकर लगभग चालीस शोध प्रतिवेदनो का अध्ययन कर इनसे संबंधित सूचनाएं डायरी में नोट कर दीं। इसके बाद मुझे एन.सी.ई.आर.टी. नई दिल्ली जाना था । मैंने योजना बनाई कि मैं एन.सी.ई.आर.टी. के अतिथि गृह में तीन -चार दिन रुकूंगा । एन.सी.ई.आर.टी. के पुस्तकालय में काम पूरा करने के बाद घर वापस लौटूंगा । मैं सुबह साढ़े सात बजे के लगभग एन.सी.ई.आर.टी पहुंच गया । मैं बहुत थका हुआ था। अभी पुस्तकालय खुलने में भी समय था । मैं एन.सी.ई.आर.टी कैंपस के अंदर खाली मैदान की दूब में लेट गया । मैदान में लेटते हुए आसमान में चलते हुए हवाई जहाज मुझे दिखाई देने लगे। मेरी आंॅखें लग गई। कुछ देर बाद नींद खुली । मैंने सोचा कि अब मुझे अपने लिए आवास की व्यवस्था कर लेनी चाहिए । मैंने एन.सी.ई.आर.टी. के अतिथि गृह में पता किया तो जानकारी मिली कि वहांॅ एक सप्ताह तक कोई कमरा उपलब्ध नहीं है। अब मैंने सोचा कि मुझे एन.सी.ई.आर.टी. के निकट स्थित किसी होटल में रहने की व्यवस्था कर लेनी चाहिए । मैं एन.सी.ई.आर.टी. कैंपस से बाहर की ओर आ गया। काफी दूर चलने के बाद मुझे एक होटल दिखाई दिया । मैं उस होटल में गया । मैंने वहां रिसेप्सन में बताया कि मुझे तीन -चार दिन के लिए एक कमरा चाहिए। वहां एक सजी धजी महिला और कोट पैंन्ट पहने एक सज्जन बैठे हुए थे। मेरी बात को सुनकर वह बोले,‘‘ आप लक्की हैं। बस एक ही कमरा खाली है।‘‘ मैंने पूछा,‘‘कमरे का रेन्ट क्या होगा ?‘‘ वह बोले,‘‘ मात्र दो हजार तीन सौ पिचासी रुपए, एक दिन का।‘‘ कमरे का यह रेन्ट मेरे बजट से बाहर था । मैंने उन्हें अपने मन की बात बताई। वह बोले, ‘‘ यहाॅ आपको सब सुविधाएं मिलेंगी।‘‘ मैं उस होटल से बाहर आ गया। मुझे जोर की भूख लगी हुई थी । आगे चलने पर मुझे एक भोजनालय दिखाई दिया । मैं अन्दर बैठ गया । भोजनालय का एक कर्मचारी मेरे पास आकर बोला,‘‘आपको क्या खाना है ? मैंने पूछा, ‘‘ क्या -क्या है ?‘‘ उसने जो नाम बताए उसमें से मुझे ब्रेड पकोड़ा सही लगा । मैंने उसे बता दिया । वह बोला,‘‘ पहले काउंटर से टोकन ले लो ।‘‘ मैं काउंटर पर गया । वहां बैठे कर्मचारी ने मुझे टोकन दिया और कहा कि भोजन करने के बाद यहीं काउंटर पर जमा कर दें। उसने ब्रेड पकोड़े के एक सौ रुपए काट दिए। वह बोला, ‘‘ अब आपको ब्रेड पकोड़े का अलग से भुगतान नहीं करना पड़ेगा । टोकन के साथ ही ब्रेड पकोड़े का भुगतान भी काट लिया गया है। उस ब्रेड पकोड़े ने मेरी भूख शांत करने के बजाए और बड़ा दी। मैं उस भोजनालय से बाहर आ गया । मैं सोचने लगा,‘‘ अब क्या किया जाए ? सारे रास्ते बंद होते जा रहे हैं। मैंने एक रिक्शा वाले से पूछा,‘‘ यहां कहीं पास में सही दाम में कोई कमरा मिलेगा ?‘‘ वह बोला, ‘‘ यहां सब महंगे कमरे हैं। गंगाराम हास्पिटल में मेरा कोई पहचान वाला है। मैं वहांॅ बात करके रात को बेंच में आपके लेटने की व्यवस्था करा सकता हूंॅ।‘‘
मेरे दिमाग में एक विचार आया । आज जितना अधिक हो सकता है उतना काम एन.सी.ई.आऱ.टी. के पुस्तकालय में बैठकर किया जाए। इसके बाद रात की गाड़ी से चंडीगढ़ दीदी के यहां विश्राम करने जाऊंॅ। एक दिन वहांॅ विश्राम कर रात्रि वहां से दिल्ली के लिए चलूं। दिन भर एन.सी.ई.आर.टी. दिल्ली में काम करने के बाद रात की गाड़ी से उत्तराखण्ड वापस लौट चलूं। एन.सी.ई.आर.टी. पुस्तकालय आकर मैंने देर शाम तक कार्य किया । इसके बाद मैं बस से आइ.एस.बी.टी. आ गया । वहां से पी.सी.ओ में दीदी को चण्डीगढ़ आने की सूचना दे दी। इसके बाद बस में बैठकर सुबह चंडीगढ़ पहुंच गया। चंडीगढ़ पहुंच कर ऐसा लगा जैसा नया जीवन मिल गया है। नहाने धोने के बाद मैं आराम करने लगा । तीन -चार घंटे आराम करने के बाद मैंने जमकर भोजन किया । फिर मैं सो गया। शाम तक मेरी यात्रा की थकान मिट गई थी। मैंने रात की गाड़ी से फिर दिल्ली जाने का निर्णय लिया। मैं दिल्ली के लिए बस में बैठ गया। सुबह मैं दिल्ली पहुंच गया। मैंने दिन भर एन.सी.ई.आर.टी. पुस्तकालय में बैठकर अपना शेष कार्य निपटा लिया। रात को मैं आइ.एस.बी.टी. से उत्तराखंड की गाड़ी में बैठ गया।
जब भी मैं एन.सी.ई.आर.टी. की कार्यशाला, प्रशिक्षण या सेमिनार में भाग लेने जाता हूं तो वह गुजरा हुआ समय मेरी आंॅखों में उतर आता है।
मैं इस निष्कर्ष पर पहुंॅचा कि जिस विषय पर शोध किया जाता है उसमें गहराई से उतरने का अवसर शोध के दौरान प्राप्त होता है। इसके अलावा जिन्दगी के व्यावहारिक पक्षों का विश्लेषण करने का भी मौका मिलता है।