सोमवार, 31 अगस्त 2020

कुछ बातें, कुछ यादें 31, शोध से जुड़ी यादें

 

     वर्ष 1998 की बात है। अनुमोदन होने के बाद मैंने अपना शोध कार्य शुरू कर दिया था । मेरे पर्यवेक्षक सर ने मुझे निर्देशित किया कि मैं ‘संबंधित साहित्य के अध्ययन‘ के अंतर्गत कम से कम एक सौ शोध प्रतिवेदनो का अध्ययन करूं। इसमें कुछ पुराने भी हों और कुछ नवीनतम हों। इसके लिए मैंने मेरठ विश्वविद्यालय और एन.सी.ई.आर.टी. नई दिल्ली के पुस्तकालय जाने का निर्णय लिया । मैंने मेरठ में तीन -चार दिन रहकर लगभग चालीस शोध प्रतिवेदनो का अध्ययन कर इनसे संबंधित सूचनाएं डायरी में नोट कर दीं।  इसके बाद मुझे एन.सी.ई.आर.टी. नई दिल्ली जाना था । मैंने योजना बनाई कि मैं एन.सी.ई.आर.टी. के अतिथि गृह में तीन -चार दिन रुकूंगा । एन.सी.ई.आर.टी. के पुस्तकालय में काम पूरा करने के बाद घर वापस लौटूंगा । मैं सुबह साढ़े सात बजे के लगभग एन.सी.ई.आर.टी पहुंच गया । मैं बहुत थका हुआ था। अभी पुस्तकालय खुलने में भी समय था । मैं एन.सी.ई.आर.टी कैंपस के अंदर खाली मैदान की दूब में लेट गया । मैदान में लेटते हुए आसमान में चलते हुए हवाई जहाज मुझे दिखाई देने लगे। मेरी आंॅखें लग गई। कुछ देर बाद नींद खुली । मैंने सोचा कि अब मुझे अपने लिए आवास की व्यवस्था कर लेनी चाहिए । मैंने एन.सी.ई.आर.टी. के अतिथि गृह में पता किया तो जानकारी मिली कि वहांॅ एक सप्ताह तक कोई कमरा उपलब्ध नहीं है। अब मैंने सोचा कि मुझे एन.सी.ई.आर.टी. के निकट स्थित किसी होटल में रहने की व्यवस्था कर लेनी चाहिए । मैं एन.सी.ई.आर.टी. कैंपस से बाहर की ओर आ गया। काफी दूर चलने के बाद मुझे एक होटल दिखाई दिया । मैं उस होटल में गया । मैंने वहां रिसेप्सन में बताया कि मुझे तीन -चार दिन के लिए एक कमरा चाहिए। वहां एक सजी धजी महिला और कोट पैंन्ट पहने एक सज्जन बैठे हुए थे। मेरी बात को सुनकर वह बोले,‘‘ आप लक्की हैं। बस एक ही कमरा खाली है।‘‘ मैंने पूछा,‘‘कमरे का रेन्ट क्या होगा ?‘‘ वह बोले,‘‘ मात्र दो हजार तीन सौ पिचासी रुपए, एक दिन का।‘‘ कमरे का यह रेन्ट मेरे बजट से बाहर था । मैंने उन्हें  अपने मन की बात बताई। वह बोले, ‘‘ यहाॅ आपको सब सुविधाएं मिलेंगी।‘‘ मैं उस होटल से बाहर आ गया।  मुझे जोर की भूख लगी हुई थी । आगे चलने पर मुझे एक भोजनालय दिखाई दिया । मैं अन्दर बैठ गया । भोजनालय का एक कर्मचारी मेरे पास आकर बोला,‘‘आपको क्या खाना है ? मैंने पूछा, ‘‘ क्या -क्या है ?‘‘ उसने जो नाम बताए उसमें से मुझे ब्रेड पकोड़ा सही लगा । मैंने उसे बता दिया । वह बोला,‘‘ पहले काउंटर से टोकन ले लो ।‘‘ मैं काउंटर पर गया । वहां बैठे कर्मचारी ने मुझे टोकन दिया और कहा कि भोजन करने के बाद यहीं काउंटर पर जमा कर दें। उसने ब्रेड पकोड़े के एक सौ रुपए काट दिए। वह बोला, ‘‘ अब आपको ब्रेड पकोड़े का अलग से भुगतान नहीं करना पड़ेगा । टोकन के साथ ही ब्रेड पकोड़े का भुगतान भी काट लिया गया  है। उस ब्रेड पकोड़े ने मेरी भूख शांत करने के बजाए और बड़ा दी। मैं उस भोजनालय से बाहर आ गया । मैं सोचने लगा,‘‘ अब क्या किया जाए ? सारे रास्ते बंद होते जा रहे हैं। मैंने एक रिक्शा वाले से पूछा,‘‘ यहां कहीं पास में सही दाम में कोई कमरा मिलेगा ?‘‘ वह बोला, ‘‘ यहां सब महंगे कमरे हैं। गंगाराम हास्पिटल में मेरा कोई पहचान वाला है। मैं वहांॅ बात करके रात को बेंच में आपके लेटने की व्यवस्था करा सकता हूंॅ।‘‘ 

      मेरे दिमाग में एक विचार आया । आज जितना अधिक हो सकता है उतना काम एन.सी.ई.आऱ.टी. के पुस्तकालय में बैठकर किया जाए। इसके बाद रात की गाड़ी से चंडीगढ़ दीदी के यहां विश्राम करने जाऊंॅ। एक दिन वहांॅ विश्राम कर रात्रि वहां से दिल्ली के लिए चलूं। दिन भर एन.सी.ई.आर.टी. दिल्ली में काम करने के बाद रात की गाड़ी से उत्तराखण्ड वापस लौट चलूं। एन.सी.ई.आर.टी. पुस्तकालय आकर मैंने देर शाम तक कार्य किया । इसके बाद मैं बस से आइ.एस.बी.टी. आ गया । वहां से पी.सी.ओ में दीदी को चण्डीगढ़ आने की सूचना दे दी। इसके बाद बस में बैठकर सुबह चंडीगढ़ पहुंच गया। चंडीगढ़ पहुंच कर ऐसा लगा जैसा नया जीवन मिल गया है। नहाने धोने के बाद मैं आराम करने लगा । तीन -चार घंटे आराम करने के बाद मैंने जमकर भोजन किया । फिर मैं सो गया। शाम तक मेरी यात्रा की थकान मिट गई थी। मैंने रात की गाड़ी से फिर दिल्ली जाने का निर्णय लिया। मैं दिल्ली के लिए बस में बैठ गया। सुबह मैं दिल्ली पहुंच गया। मैंने दिन भर एन.सी.ई.आर.टी. पुस्तकालय में बैठकर अपना शेष कार्य निपटा लिया। रात को मैं आइ.एस.बी.टी. से उत्तराखंड की गाड़ी में बैठ गया। 

  जब भी मैं एन.सी.ई.आर.टी. की कार्यशाला, प्रशिक्षण या सेमिनार में भाग लेने जाता हूं तो  वह गुजरा हुआ समय मेरी आंॅखों में उतर आता है। 

 मैं इस निष्कर्ष पर पहुंॅचा कि जिस विषय पर शोध किया जाता है उसमें गहराई से उतरने का अवसर शोध के दौरान प्राप्त होता है। इसके अलावा जिन्दगी के व्यावहारिक पक्षों का विश्लेषण करने का भी मौका मिलता है। 


शनिवार, 15 अगस्त 2020

कुछ बातें, कुछ यादें 30,

 

कुछ बातें, कुछ यादें 30,

    ट्रेन का छूट जाना

   ये वर्ष 2019 की बात है। मुझे किसी कार्य के सिलसिले में नैनीताल जाना था । उन दिनो डेंगू बुखार का प्रकोप चरम पर था । मुझे भी कुछ दिनो से तेज बुखार चल रहा था । मेरी इच्छा नैनीताल जाने की नहीं थी किन्तु वहांॅ जाना जरूरी था । आॅफिस से आने के बाद मैंने अपनी डेंगू और प्लेटलेट की जांच करवाई । जांच केन्द्र काफी भीड़ थी । एक घंटे में जांच का नंबर आ गया । मैं बहुत थक गया था । दो-तीन दिनो के बाद रिपोर्ट ने आना था । जांच कराने के बाद मैं रात को नैनीताल के लिए रवाना हो गया । मेरा हरिद्वार से काठगोदाम लिंक के लिए आरक्षण था ।  मैं लगभग 11 बजे हरिद्वार पहुंॅच गया । हरिद्वार रेलवे स्टेशन के डिस्प्ले बोर्ड पर काठगोदाम लिंक के हरिद्वार पहुंॅचने का समय 2 बजे लिखा हुआ था । मैंने सोचा अभी बहुत समय है। मैं थका हुआ तो था ही। मैंने रेलवे प्रतीक्षालय के अंदर अपने साथ लाई चादर बिछाई और मैं लेट गया । मुझे गहरी नींद आ गई । लगभग सवा बजे मेरी नींद खुली । मैंने सोचा, ‘‘ वैसे तो ट्रेन के आने का समय दो बजे है किन्तु एक बार बाहर चलकर देख लेता हूंॅ।‘‘ मैं उठकर अपना बैग पकड़ कर प्रतीक्षालय से बाहर की ओर आया। मेरे सामने ही काठगोदाम लिंक चली गई । मेरे मन में रेल के दो बजे पहुंॅचने का समय इतनी गहराई से अंकित था कि ट्रेन के जाते समय मैं सोच रहा था शायद डिब्बे इधर से उधर किए जा रहे होंगे। जब ट्रेन मेरी नजरों से ओझल हो गई तो तब मुझे सच्चाई का पता चल पाया । मैंने बस या कार का पता किया जो मुझे ट्रेन के पहुंॅचने से पहले लक्सर या नजीबाबाद तक पहुंॅचा दे  किन्तु कोई व्यवस्था नहीं हो पाई। अंततः रोडवेज बस से जाने का निर्णय लिया । पता किया तो किसी ने बताया कि सुबह 6 बजे रोडवेज बस मिलेगी। थोड़ी देर में एक हल्द्वानी तक की बस आती हुई दिखाई दी। मैंने पता किया कि क्या वह बस काठगोदाम लिंक से पहले मुझे नजीबाबाद पहुंॅचा सकती है ? उसने मना किया । अब मेरे पास उस बस से जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मैंने उस बस से हल्द्वानी के लिए टिकट ले लिया। 

   जिन्दगी में उस ट्रेन की तरह हमें भी कई बार अवसर प्राप्त होते  हैं किन्तु किसी की गलत सलाह,  या  अन्य चूक के कारण हम उस अवसर को गंवा देते हैं।  गंवाया गया  वही अवसर फिर से प्राप्त नहीं हो पाता है ।

रविवार, 2 अगस्त 2020

पाठ्य और पाठ्येतर क्रियाकलापोंको तनु (dilute) करती हैं एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड द्वारा विकसित लोक संगीतमय डिजिटल अधिगम सामग्री -

 

समीक्षा - डाॅ. उमेश चमोला
विद्यालयों में आयोजित होने वाले समस्त क्रियाकलापों को समझने की दृष्टि से प्रमुखतः दो रूपों में बांटा जाता रहा है- पाठ्य क्रियाकलाप और पाठ्येतर क्रियाकलाप । पाठ्य क्रियाकलाप के अंतर्गत पठन -पाठन से संबंधित गतिविधियों को सम्मिलित किया जाता रहा है। यह पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए आयोजित की जाती हैं। अन्य क्रियाकलाप जैसे- सांस्कृतिक और साहित्यिक  क्रियाकलापों को पाठ्येतर अर्थात् पाठ्य क्रियाकलापों से इतर गतिविधियों के रूप में रखा जाता रहा है।  इसके अलावा पाठ्येतर क्रियाकलापों को पाठ्य सहगामी अर्थात् पठन- पाठन के साथ साथ चलाई जाने वाली गतिविधियों के रूप में परिभाषित किया जाता रहा है।  इन सभी क्रियाकलापों का उद्देश्य विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास करना है। जिन क्रियाकलापों को पाठ्येतर या पाठ्य सहगामी के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है वे भी पाठ्य क्रियाकलापों के रूप में नवाचारी शिक्षकों द्वारा वर्तमान समय में प्रयोग की जा रही हैं। इन गतिविधियों को पाठ्यक्रम में निर्धारित विषयवस्तु के शिक्षण का हिस्सा  बनाने से शिक्षण रोचक और उपलब्धिपूर्ण हो जाता है।  नौनिहालों के शैक्षिक विकास में व्यावहारिक रूप से सिद्ध इन्हीं शैक्षिक सिद्धांतों का क्रियान्वित रूप लगती हैं  राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् उत्तराखण्ड द्वारा समग्र शिक्षा के अंतर्गत गढ़वाली भाषा में विकसित लोक संगीतमय डिजिटल अधिगम सामग्री ।
   इसमें  उत्तराखण्ड के सामान्य ज्ञान से संबंधित विषयवस्तु पर आधारित 14 गीत तैयार किए गए हैं। ये चौदह गीत उत्तराखण्ड के प्रमुख नगर, जनजातियां, प्रमुख उत्सव एवं मेले, प्रमुख पर्यटन स्थल, धार्मिक स्थल,दर्रे,ग्लेशियर,पर्वत चोटियां, ताल एवं झील, नदियांॅ, वनस्पति एवं जन्तु, स्वतंत्रता संग्राम सैनानी एवं वीर सपूत, उत्तराखण्ड का इतिहास और उत्तराखण्ड की सूचनाएं जैसे विषयों पर लिखी गई हैं।
 इन गीतों को बच्चे आसानी से समझ पाएंगे क्योंकि गीतों में ठेठ गढ़वाली भाषा के शब्दों के स्थान पर हिन्दी के निकट की शब्दावली का प्रयोग किया गया है।  इसके साथ ही मूल गीत भी हिन्दी अनुवाद के साथ अलग से दिया गया है। गीत के चलते समय स्क्रीन पर गीत का हिन्दी अनुवाद भी साथ- साथ देखा जा सकता है।  प्रत्येक गीत में आए गढ़वाली भाषा के शब्दों का अलग से भी अर्थ स्पष्ट किया गया है।  हर गीत के लर्निंग आउटकम (अधिगम परिणाम ) भी दिए गए हैं । इन्हें प्राप्त करने के संदर्भ में गतिविधिपरक अभ्यास भी दिए गए हैं। इससे अधिगम संप्राप्ति के मूल्यांकन में सहायता प्राप्त होगी ।  इस आधार पर कहा जा सकता है कि पाठ्य और पाठ्येतर क्रियाकलापों के बीच की दीवार को तनु (dilute ) करने की दिशा में यह सार्थक प्रयास लगता है।
‘‘ हम रोजमर्रा के अनुभव से जानते हैं कि ज्यादातर बच्चे स्कूल की शिक्षा की शुरुआत से पहले ही भाषा की जटिलताओं और नियमों को आत्मसात कर पूर्ण भाषिक क्षमता रखते हैं।‘‘
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में वर्णित यह कथन शिक्षण-अधिगम की प्रक्रिया में मातृभाषा के महत्व की ओर संकेत करता है। एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड द्वारा विकसित लोक संगीत आधारित डिजिटल सामग्री  बच्चों की मातृभाषा गढ़वाली में लिखी गई है।  उस भाषा में जिस भाषा से बच्चे का जुड़ाव जन्म से है। जो उसकी दुदबोली भी है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 मातृभाषाओं को प्रभावी समझ के लिए जरूरी मानती है। इसके अनुसार भाषाएं एक प्रकार के स्मृतिकोश का भी काम करती है। ये वे माध्यम भी हैं जिनसे अधिकतर ज्ञान का निर्माण होता है।  बच्चे की मातृभाषाओं को नकारना  या उनको मिटाने के प्रयास उसके व्यक्तित्व से हस्तक्षेप की तरह लगते हैं। प्रभावी समझ और भाषाओं के प्रयोग के माध्यम से बच्चे विचारों, व्यक्तियों और वस्तुओं तथा आस-पास के संसार से अपने आपको  जोड़ पाते हैं। (पाठ्यचर्या के क्षेत्र, स्कूल की अवस्थाएं और आकलन, एन.सी.एफ 2005 का दस्तावेज पृष्ठ 41 )
अतः शिक्षण - अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर और उपलब्धिपूर्ण बनाने में इन गीतों की भूमिका स्पष्ट है। यह लोकसंगीत आधारित डिजिटल सामग्री एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड के यू ट्यूब चैनल में अपलोड की गई है। इसका उपयोग विद्यार्थी और शिक्षक विद्यालय के अलावा घर और अन्य स्थानो पर भी कर सकते हैं।  वर्तमान कोरोना काल में  इस सामग्री का मोबाइल के जरिए प्रयोग बच्चों द्वारा घर में भी किया जा सकता है। प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी करने वाले अध्येताओं के लिए भी यह गीत उपयोगी हैं।
 उत्तराखण्ड के सामान्य ज्ञान पर आधारित इन गीतों का संगीत कर्णप्रिय और गायक-गायिकाओं द्वारा इन्हें मधुर स्वरों में गाया गया है। इनमें हारमोनियम, तबला,ढोलक,ढोल, दमाऊ,मसकबाजा, खांकर, चिमटा,मरकस, घुंघरू,मोरछंग, हुड़का,भंकोर,एकतारा, डौंर और थाली का प्रयोग किया गया है। गीतों में छपेली, जागर, राधाखंडी और रैप शैली उपयोग में लाई गई है।  धुंयाल, मंडाण, वार्ता, कहरवा और खेमटा ताल में गीतों को निबद्ध किया गया है। विविध लोकवाद्यों के वादन, शैली और तालों के अद्भुत समन्वय ने इन गीतों को कर्णप्रिय और मनोहारी बना लिया है।
 इन गीतों की रचना और गायन उत्तराखण्ड विद्यालयी शिक्षा के शिक्षकों द्वारा किया गया है। गीतों को ओम बधाणी, डाॅ.शिवानी राणा चंदेल,डाॅ. बिन्दु नौटियाल और सुधा ममगांईं ने स्वर दिया है। कोरस गायन डाॅ. शिवानी राणा चंदेल, डाॅ. बिन्दु नौटियाल , सुधा ममगांईं ,मोहित कुमार उपाध्याय और ओम प्रकाश नौगरियाल ने किया है। गीतकारों के रूप में डाॅ. नंद किशोर हटवाल, डाॅ. प्रीतम अपछ्याण, गिरीश सुन्दरियालमनोरमा बत्र्वाल, डाॅ. उमेश चमोला, अवनीश उनियाल, ओम बधाणी, सुधीर बत्र्वाल, डाॅ. बिन्दु नौटियाल, धीशराज शाह,नवीन डिमरी ‘‘ बादल‘‘ धर्मेन्द्र नेगी और देवेश जोशी ने अपना योगदान दिया है।  गीतों का संगीत संयोजन रणजीत सिंह ने और अकादमिक निर्देशन, संपादन और संकलन डाॅ. नन्द किशोर हटवाल ने किया है। ये गीत  डाॅ. आर मीनाक्षी सुन्दरम, सचिव विद्यालयी शिक्षा के संरक्षण में सीमा जौनसारी निदेशक अकादमिक शोध एवं प्रशिक्षण उत्तराखंड के निर्देशन में तैयार किए गए है। समन्वयन अजय कुमार नौडियाल, अपरनिदेशक एस.सी.ई. आर.टी. उत्तराखण्ड तथा मार्गदर्शक मण्डल के सदस्य के रूप में प्रदीप कुमार रावत विभागाध्यक्ष पाठ्यक्रम एवं शोध विभाग तथा राय सिंह रावत उपनिदेशक, एस.सी.ई.आर.टी. उत्तराखण्ड ने अपना योगदान दिया है।

 नई शिक्षा नीति में भी मातृभाषाओं के महत्व पर बल दिया गया है | अत: नई शिक्षा नीति के दिशा निर्देशों को जमीनी स्तर पर उतारने की दिशा में भी यह प्रयास सार्थक सिद्ध होगा | ऐसी उम्मीद की जा सकती है | 







https://www.youtube.com/watch?v=Ov8kvpOB6E8&t=18s