डॉ0 उमेश चमोला के साहित्य में नारी
पात्रों का चरित्र चित्रण
( Women characters in literature of Dr. Umesh Chamola )
- डॉ. अनुराधा शर्मा
डॉ0 उमेश चमोला द्वारा रचित साहित्य को अध्ययन की दृष्टि से तीन भागों
में बांटा जा सकता है- बाल साहित्य, लोक साहित्य विषयक और गढ़वाली लोकभाषा
में रचित साहित्य । डॉ0 चमोला की
राष्ट्रदीप्ति (राष्ट्रभक्तिपूर्ण गीत एव कविता संग्रह), आस-पास
विज्ञान (विज्ञान आधारित कविता,कहानी एवं पहेलियों का संग्रह),
पर्यावरणीय शिक्षा पाठ्य सहगामी क्रियाकलाप (पर्यावरण पर आधारित नाटक,कविता,गीत
एवं नारों का संग्रह ),फूल (बाल कविता संग्रह), धुरलोक
से वापसी (विज्ञान कथा संग्रह) आदि पुस्तकों को बालसाहित्यपरक पुस्तकों के रूप में
श्रेणीबद्व किया जा सकता है। डॉ0 उमेश चमोला द्वारा संग्रहीत ‘उत्तराखण्ड की लोक कथाएंॅ‘ (काथ
काणी,रात ब्याणी) खण्ड एक और दो तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपे उनके
लोक साहित्य पर आधारित आलेखों को लोक साहित्य विषयक रचनाओं के अंतर्गत सम्मिलित
किया जा सकता है । डॉ0 उमेश चमोला ने गढ़वाली भाषा में उमाळ
(खंडकाव्य) , पथ्यला (गढ़वाली गीत-कविता संग्रह), पड़्वा
बल्द (गढ़वाली व्यंग्य कविता संग्रह) , नानतिनो कि
सजोळि (गढ़वाली एवं कुमांउनी बाल कविता
संग्रह), निरबिजु (उपन्यास) , कचाकि (उपन्यास), बणद्यो
कि चिटिठ (पर्यावरण अर शिक्षा कि दस बाल नाटिका ) आदि कृतियों का प्रणयन किया है।
उपरोक्त
सभी पुस्तकों का अध्ययन और विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि उमाळ (खंडकाव्य) ,पथ्यला
(गढ़वाली गीत-कविता संग्रह),पड़्वा बल्द (गढ़वाली ब्यंग्य कविता
संग्रह) , निरबिजु (उपन्यास) , कचाकि (उपन्यास), बणद्यो
कि चिटिठ (पर्यावरण अर शिक्षा कि दस बाल नाटिका) में नारी पात्रों का वर्णन आया है । ‘पथ्यला‘
(गढ़वाली गीत-कविता संग्रह) में कुछ गीत श्रृंगार रस प्रधान हैं । इन
गीतों में संयोग और वियोग श्रृंगार की छटा देखने को मिलती है किन्तु नारी पात्रों
के चरित्र चित्रण हेतु शोध के लिए इस पुस्तक का चयन प्रासंगिक नहीं होगा। इसी
प्रकार ‘बणद्यो कि चिट्ठि‘ में भी नारी पात्रों का चित्रण समग्र
रूप से नहीं आया है । अतः प्रस्तुत शोध हेतु इस पुस्तक का चयन करना भी उचित नहीं
है। अब आते हैं डॉ0 उमेश चमोला की वर्ष 2006 में प्रकाशित
पुस्तक उमाळ (खंडकाव्य) पर । यह खंडकाव्य
कारगिल यु़द्ध में सीमा पर तैनात जवान अमर सिंह और उसकी प्रेयसी पत्नी सुशीला की
विरह वेदना और देशभक्ति की भावना पर आधारित कृति है । इसमें नारी पात्र के रूप में
सुशीला नायिका के रूप में वर्णित है किन्तु कवि खंडकाव्य का प्रारंभ सुशीला की मॉ
के परिचय से करता है जो डांडी-कांठ्यों के बीच बसे गांव के प्रधान की पत्नी है।
नायिका की मां के सौन्दर्य को चित्रित करते हुए कवि ने उसके मुखडे़ की ज्वोन
(चांद) तथा उसके कोमल हृदय की उपमा नौण (मक्खन) से की है । उसके प्रेमपूर्ण नारी
व्यक्तित्व को माया की छलार (प्रेम की धारा) कहकर समादृत किया है। सुशीला (कन्या )
के जन्म का समाचार प्राप्त होने पर सभी परिवारी जनो का मुंह पीतवर्णी प्यूंली के
फूल के समान खिले हुए थे । ऐसा लग रहा था कि उनके घर खुशियों के सूर्य (घाम) ने
प्रवेश कर लिया हो। कन्या के जन्म पर सुशीला के घर-परिवार वालों के हृदय की यह
प्रसन्नतापूर्ण अभिव्यक्ति उन लोगों पर करारी चोट है जो कन्या भ्रूणहत्या जैसा
पैशाचिक कृत्य करने से बाज नहीं आते। घर में कन्या के महत्व पर प्रकाश डालने के
साथ -साथ कवि उन लोगों को भी चेताता है जो परिवार में पुत्र और पुत्री में भेदभाव
करते हैं-
‘दुई घरों
तैं एक घौर बणोन्द,
अपडि़
महक द्वी घौरु फैलोन्द,
भलि बेटुलि यन स्वाणि फूल छ,
नौना नौनि मां भ्येद बडि़ भूल छ,‘।
खंडकाव्य की नायिका सुशीला इस खंडकाव्य में
कला-संगीत के प्रति अनुरागी,पतिव्रता, और देशभक्ति
से परिपूर्ण आदर्श नारी के रूप में सामने आई है । वह सीमा पर देश की रक्षा को
तैनात अपने पति की विरहाकुल नारी के रूप में चित्रित है। जब वह अपने मामा के ब्याह
के अवसर पर नायक को महफिल में गीत गाते हुए देखती है तो कला (गीत) के प्रति उसका अनुराग नायक के प्रति उसके मन
में प्रेम के बीज बो देता है । उसके मन में नायक के प्रति उपजी प्रेम की भावना को
कवि इन पंक्तियों में वर्णित करता है-
‘भिजिगे
जिकुडि़ ह्वेगि तर तर,
गरम्यूं मां बथों जन सर सर ।‘
सुशीला पारिवारिक और सांस्कृतिक संस्कारों से बंधी हुई है । इसलिए सोचती है कि वह अपने हृदय की मयाळी छ्वीं
(प्रेम की बात) कैसे किसी को बता सकती है ? इसलिए
होंठों को सिले रखने में ही समझदारी है । उसे पता है कि परंपरा के अनुसार उसका
विवाह वहीं होगा जहाँ उसके माता-पिता चाहेंगे । वह ईश्वर के प्रति आस्थावान है ।
वह ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना करती है कि वह उसके हृदय की बात उसके और नायक तथा
नायक के माता-पिता के पास पहुचाए । होता भी ऐसा ही है । उसके माता-पिता के पास उसी
युवक (नायक अमरसिंह) की जन्म पत्रिका सुशीला के साथ ब्याह के लिए आती है। पत्रिका
के साथ एक पत्र भी उन्हें प्राप्त होता है जिसमें लिखा होता है कि वह वही अमरसिंह
है जिसका विवाहोत्सव के अवसर पर सुशीला से परिचय हुआ था। पत्र में यह भी लिखा था-
‘‘ फौजी से
तुमुन बेटी बिवोण,
खैरि
ही खैरि मिललि समौण ।‘‘
अर्थात् अगर तुमने एक फौजी के साथ अपनी बेटी का
ब्याह करना है तो तुम्हें उपहार के रूप में विपत्ति ही प्राप्त होगी ।
इस
पत्र को पढ़कर सुशीला के माता-पिता चिन्ता में पड़ जाते हैं। वे सोचते हैं कि कहीं वे फौजी से अपनी बेटी का विवाह कर उसका
जीवन पथ कांटों भरा तो नहीं बनाने जा रहे ? अपने
माता-पिता की इस भावना से अवगत होने पर सुशीला उन्हें समझाती है कि फौजी तो देश के
भाल को झुकने नहीं देते हैं। हमें उनका सम्मान करना चाहिए । मनुष्य जन्म लेकर
यदि हमारे हृदय में देश प्रेम की भावना नहीं है
तो हम भाग्यहीन हैं। यदि फौजी की जीवन संगिनी बनकर उसे भी पुण्य कमाने का अवसर
प्राप्त होता है तो वह फौजी के साथ ब्याह करने के लिए तैयार है। सुशीला के हृदय के
यह उद्गार देश के प्रति उसके अगाध प्रेम
की भावना को व्यक्त करते हैं।
देश प्रेमी होने के साथ -साथ उमाळ खंडकाव्य में
सुशीला पतिव्रता नारी के रूप में भी सामने आई है । पति अमर सिंह को कारगिल युद्ध
के लिए विदा करते समय वह कहती है कि उसका मन भी पति के साथ युद्ध में जाकर दुश्मनो
से लोहा लेने का करता है । वह पति की प्रतीक्षा करेगी कि वे देश की सीमा को
दुश्मनो के चंगुल से मुक्त कर उसके पास वापस लौटेंगे। अगर उसके पति युद्ध में शहीद
होकर अमर हो जांए तो वह ईश्वर से प्रार्थना करेगी कि ईश्वर उसे भी पति के साथ
स्वर्ग ले जाए ।
खंडकाव्य के पांचवे सर्ग में सुशीला पति की याद
में तड़पती हुई विरहिणी के रूप में चित्रित है। इस सर्ग में सुशीला की विरह दशा को
महसूस कर पाठकों का हृदय करुणा से द्रवित हो जाता है । इस सर्ग का शब्द चित्रण
पाठकों की आँखें भिगोने की सामर्थ्य रखता है। पहाड़ के जंगलों में बसंत के समय
सुन्दर बुरांस खिले हैं। बिठे-पाखों में प्यूंली के फूल सुन्दरता बिखेर रहे हैं।
ये संयोग श्रृंगार की स्थितियाँ हैं
किन्तु नायक इस नयनाभिराम दृश्य का अवलोकन करने के लिए उसके साथ नहीं है। अतः
विरहिणी की आँखों में इस समय सावन की बरसात का आना स्वाभाविक है । वह सुन्दर
जंगलों में घुघुती, कफ्फू
जैसी पक्षियों की मधुर घ्वनि को सुनकर रो पड़ती है । उसे सपने में बर्फीला
बॉर्डर दिखाई देता है । गोलियों की आवाज सुनाई देती है । यह सुनकर उसका शरीर चचला
जाता है । जब वह आसमान में बादलों से घिरी ज्वोन ( चन्द्रमा) को देखती है तो सोचती
है कि इस चाँद की तरह वह भी विपत्ति रूपी बादलों की ओट में है । पता नहीं विपत्ति
रूपी बादलों को हटाने वाली परिस्थिति रूपी पवन आएगी या नहीं ? वह
होली के समय खयालों में अपने पति के पास पहूँच
जाती है किन्तु जब खयालों की दुनियाँ से बाहर आती है तो उसके गाल में अश्रुकण ऐसे
लगते हैं जैसे पानी में भीगा हुआ कोई गुलाब हो।
छटवें
सर्ग में सुशीला की विरह दशा का वर्णन कवि इन पंक्तियों के माध्यम से करता है-
‘कन होला
स्वामी जी,बौडर लड़ै मां,
सुशीला
यन मन मां सोचिणी,
आँसू
कि धार बगिणी सरासर,
सुशीला
आँसू सें आँसू छै धोणी ‘।
सुशीला ईश्वर के प्रति आस्थावान है । जब वह नायक
(अमर सिंह) के प्रति आकृष्ट होती है तो सोचती है कि वह अपने हृदय की बात अपने
माता-पिता को कैसे बताए ? तो वह ईश्वर से प्रार्थना करती है कि
वह उसके हृदय की बात उन तक पहुंॅचा दे। उसका विश्वास फलित भी होता है । जब उसका
पति कारगिल सीमा पर दुश्मन से लोहा ले रहा होता है तो वह सुबह माँ दुर्गा के
मन्दिर में दीपक जलाकर अपने सुहाग की रक्षा के लिए प्रार्थना करती है । वह कहती है,‘‘
मेरे पति सभी माताओं और बहिनो के कष्टों के निवारण के लिए सीमा पार
के असुरों को मारने गए हैं। इसलिए उनकी खातिर भी वह मेरे पति की रक्षा करे।‘‘
जब
उसे समाचार मिलता है कि उसके पति का कारगिल लड़ाई में कोई पता नहीं चल पाया है तो उसे
लगता है जैसे उसके पैरों के नीचे की धरती खिसक रही हो। उसे डांडी-कांठियां (ऊंची
नीची पर्वत श्रेणियां) घूमती हुई नजर आती है । कटे हुए पेड़ की तरह वह जमीन में
गिर जाती है। उसकी आँखें बन्द हो जाती हैं। वह स्वप्नलोक में पहुंॅच जाती है । वहाँ
वह माता भवानी से पूछती है कि माता ने उसके पति की रक्षा क्यों नहीं की ? माता
भवानी उसके पति के कुशल होने की बात उसे बताती है । तभी उसकी आँखें खुल जाती हैं।
इस
प्रकार सुशीला को ईश्वर के प्रति पूर्ण आस्था है । उसका सोचना है -
‘‘धैरीक
ध्यान ऐंच वळा से
जू कुछ
मांगा स्वो मिलि जांद,
सब कुछ
वेका नौं छोडि़ जावा,
सुपिन्यों कु फूल तब खिलि जांद ।‘
सुशीला
अपनी बांई आँख फड़कने को ईश्वर के संकेत के रूप में मानती है कि उससे पति के मिलन
की घड़ी बस आने वाली है ।
इस
प्रकार उमाळ खंडकाव्य में कवि ने जहाँ एक फौजी के देश के प्रति समर्पण भाव को
दिखाया है वहीं उसकी पत्नी के त्याग की भावना का भी विशद वर्णन किया है ।
‘उमाळ ‘ खंडकाव्य
के बाद साहित्य में नारी पात्रों के चित्रण का अनुशीलन करते हैं अब उनके उपन्यास ‘कचाकि‘
में । इस उपन्यास में दीपा, दीपा की माँ
सुरिणी, दीपा की दादी और दीपा की सौतेली माँ मांसंती नारी पात्र हैं। दीपा के
बालपन में ही जंगल में घास काटते समय उसकी माँ की मौत पहाड़ी से गिरकर हो जाती है
। सुरिणी की मौत के बाद दीपा की दादी अपने बेटे और सुरिणी के पति हयात सिंह को
पुनर्विवाह के लिए राजी करती है । हयात
सिंह की मासंती के साथ शादी हो जाती है । मांसंती दीपा को कभी भान होने नहीं देती
कि वह उसकी सौतेली माँ है। मासंती की सगी लड़की सुरेखा और दीपा दोनो स्कूल पढ़ने
जाती हैं । दीपा सुरेखा की तुलना में पढ़ाई -लिखाई में होशियार होती है । इससे
मासंती के मन में दीपा के प्रति ईर्ष्या का भाव पैदा हो जाता है। वह दीपा का
रिश्ता फटाफट करवाना चाहती है जिससे उसकी सगी बेटी का विवाह समय पर हो सके । वह
दीपा की नकली जन्म कुण्डली बनाकर उसकी शादी प्रभात नामक युवक से करवा देती है।
शादी के बाद दीपा के भोलेपन का लाभ उठाकर वह दीपा और प्रभात के बीच दरार पैदा करने
के लिए तंत्र-मंत्र का सहारा लेती है । इसमें भी सफल न होने पर वह साजिश रचकर दीपा
के पति के खाने में जहर मिलाकर उसे मरवाना चाहती है किन्तु वह बच जाता है । अंत
में जब मासंती के कुकर्म उसकी सगी बेटी सुरेखा के ब्याह में बाधा बनकर खड़े हो
जाते हैं तो वह पगला जाती है और अपना अपराध प्रकट कर देती है ।
इस
उपन्यास में मासंती खलनायिका के रूप में वर्णित है । वह ईर्ष्यालु और अनैतिक
कार्यों में लिप्त है । अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए वह जीवानन्द ब्राह्मण से दीपा
की नकली जन्मकुण्डली बनाती है । वह तंत्र-मंत्र का सहारा लेती है । दीपा को उसके
ससुराल वालों के विरुद्ध समय-समय पर भड़काती रहती है ताकि उसका गृहस्थ जीवन बरबाद
हो जाए। वह अपने खेत का विस्तार करने के लिए
वोडा (सीमा मापक पत्थर) को आगे खिसकाती है । वह बाजारवादी मानसिकता से
ग्रस्त नारी है जो रिश्तों का व्यापारीकरण करती है । पंचायत में अपनी सौतेली बेटी
के लिए भरण पोषण के रूप में चार हजार रूपए प्रति माह जारी करवाती है । दीपा के
ससुराल वालों पर दहेज का झूठा मुकदमा दायर कर उनसे लाखों रुपए ऐंठती है। इस
उपन्यास की दूसरी महत्वपूर्ण नारी पात्र दीपा है । वह भोली भाली है। घरेलू कामों
में यहाँ तक पेड़ों पर चढ़ने के काम में भी निपुण है। बचपन में उसकी माँ सुरिणी की मौत के बाद मासंती ने ही उसे माँ
का प्यार दिया था। इसलिए वह अनुचित लगने पर भी मासंती के दुष्कर्मों का विरोध नहीं
कर पाती। उसकी बु़द्धि पर भावना अधिकार जमाती है । अनचाहे ही सही वह मासंती के
दुष्कर्मों में सहयोग देती है। वह अपने पति से प्रेम तो करती है किन्तु भोलेपन से
मासंती के बताए रास्ते पर चलकर अपने दांपत्य जीवन को बरबाद कर देती है।
इस
प्रकार ‘कचाकि‘ उपन्यास में उपन्यासकार ने नारी के विशिष्ट
रूपों का चित्रण किया है । ‘कचाकि‘ उपन्यास की भांति डॉ0
चमोला के दूसरे उपन्यास ‘निरबिजु‘ में भी
नारी चरित्रों को केन्द्रीय स्थान दिया गया है । इस उपन्यास में रूपिणी, कुसुम
और मोहिनी नारी पात्र आए हैं। महेन्द्र प्रताप शेरगढ़ का राजा अपने पड़ोसी गढ़ सौरगढ़
पर आक्रमण करता है तो वहाँ की राजकुमारी रूपिणी के प्रेम के संदेश से उसका हृदय
परिवर्तित हो जाता है। उन दोनो को एक दूसरे से प्रेम हो जाता है। दोनो विवाह के
सूत्र में बंध जाते हैं। बसंतोत्सव के समय राजा महेन्द्र प्रताप नर्तकी मोहिनी के
रूप सौन्दर्य पर निछावर हो जाता है। वह उसे राजनर्तकी का दर्जा देता है। एक दिन वह
उससे ब्याह कर उसे रानी बना देता है। मोहिनी राजा से कहकर अपने भाई दीवानू को सेनापति बनवा देती है और
राज्यद्रोह का आरोप लगाकर पूर्व सेनापति खडगसिंह और रानी रूपिणी को वनवास भिजवा
देती है। एक दिन मोहिनी के कहने में आकर राजा महेन्द्रप्रताप अपने मृत्यु की झूठी
खबर जंगल में रह रही रानी रूपिणी और खडगसिंह के पास एक दूत के माध्यम से भिजवा
देता है। इस खबर को सुनकर प्रतिव्रता रूपिणी प्राण त्याग देती है। इस उपन्यास में
रूपिणी साहसी,पतिव्रता,प्रेमी
हृदय की स्वामिनी के रूप में वर्णित है। उसे स्वप्न के माध्यम से आने वाली घटना का
पूर्वाभास हो जाता है । वह महेन्द्रप्रताप के नर्तकी मोहिनी से विवाह करने के
निर्णय का भी विरोध नहीं करती है। वह
राजकाज चलाने में निपुण और दैवीय गुणों से युक्त है। पति की मृत्यु के झूठे समाचार
को सुनते ही उसका प्राण त्याग देना उसके पतिव्रता धर्म की गहराई को व्यक्त करता
है।
जब
रूपिणी के हृदय में राजा महेन्द्रप्रताप के लिए प्रेम का निर्झर फूटता है तो वह
अपनी सहेली कुसुम से कहती है,‘‘ आज मुझे प्यूली के फूल इतने सुन्दर
क्यों दिखाई दे रहे हैं ? घुघुती पक्षी कल भी मीठी वाणी में
बासती थी पर आज उसकी वाणी में कुछ अधिक ही मिठास का मुझे अनुभव हो रहा है ।‘‘
रूपिणी के कुसुम के साथ ये संवाद उसके प्रकृति प्रेम और नायक के
प्रति गहरे प्रेम को व्यक्त करते हैं। कुसुम उसकी सच्ची सहेली है । कुसुम को किसी
पुरुष ने प्रेम पाश में बांधकर छोड़ दिया
था । अतः उसका मन शंकाग्रस्त है कि कहीं उसकी सहेली रूपिणी के साथ भी धोखा न हो ।
जहाँ
उपन्यास में रूपिणी सात्विक गुणों से युक्त एक सुन्दर नारी है वहीं मोहिनी अपार सौन्दर्य की स्वामिनी है । उसका
मुखड़ा चाँद जैसा है । उसकी हिरनी जैसी चंचल आँखें हैं । घुटनो तक फैली उसकी
केशराशि सावन के महीने में आसमान में घिरी बादलों की छटा जैसी मनोहर है । वह जितनी
सुन्दर है उससे अधिक स्वार्थसिद्धि के लिए सब कुछ करने को तत्पर एक षडयंत्रकारी
स्त्री है । अपनी महत्वाकांक्षा के कारण वह अपने पति के विरुद्ध भी मौत की साजिश
रचती है । उसके कुकर्मों से सारा राज्य छिन्न-भिन्न हो जाता है।
इस
प्रकार समग्र रूप से अनुशीलन करने पर स्पष्ट होता है कि जहाँ डॉ0
चमोला के खंडकाव्य ‘उमाळ‘ में नारी का
उदात्त चरित्र अभिव्यक्त हुआ है वहीं उनके उपन्यास ‘कचाकि‘
और ‘निरबिजु‘ में नारी
चरित्र दोनो रूपों में ही सामने आए हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि डॉ0
उमेश चमोला के खंडकाव्य और दोनो उपन्यासों में नारी चरित्र केन्द्रीय भूमिकाओं में
हैं । इनका कथानक नारी पात्रों के ही इर्द गिर्द घूमता है ।
संदर्भ संकेत-
1-मधुकांत,
राजेश, संपादक ‘उत्तराखण्ड
स्वर,‘मई 2013। उत्तराखंड को माटु बल निरबिज्या
ह्वेगि,समीक्षा आलेख डॉ0
नागेन्द्र जगूड़ी ‘नीलांबरम‘। उन्नति
बिहार चौक,
नत्थनपुर,हरिद्वार,रोड
देहरादून।
2-मोहन हरि संपादक ‘नवल‘,
फरवरी-मार्च 2013। उत्तराखण्ड प्रैस, रानीखेत
रोड,
रामनगर,नैनीताल, उत्तराखण्ड।
3-नेगी,विमल,संपादक
‘खबर सार,‘ पुरानी ट्रेजरी पौड़ी गढ़वाल, 15
फरवरी से 18 फरवरी
2013।
4- चमोला, डॉ0
उमेश, ‘उमाळः खंडकाव्य,2006, बिनसर प्रकाशन, 8 प्रथम
तल,डिसपेन्सरी
रोड, देहरादून, उत्तराखण्ड।
5- चमोला, डॉ0
उमेश, ‘निरबिजू ‘ उपन्यास ,2013, बिनसर
प्रकाशन, 8 प्रथम तल,डिसपेन्सरी
रोड, देहरादून, उत्तराखण्ड।
6- चमोला, डॉ0
उमेश, ‘कचाकि‘ उपन्यास ,2014, अविचल
प्रकाशन, हाइडिल
कॉलोनी, बिजनौर, उत्तर
प्रदेश ।
---- डॉ0 अनुराधा शर्मा,
‘शशि निकुंज‘ 3 ए, निकट गुरुद्वारा
रोड, मोहाली, पंजाब। मो0. 9875607651,
साभार – साहित्य प्रभा , सम्पादक – डॉ. चन्द्र सिंह तोमर ‘मयंक’
आमवाला अपर, डाकघर तपोवन नालापानी
देहरादून , उत्तराखंड २४८००८८
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