पुस्तक समीक्षा
शिक्षा में पर्यावरण की समग्र रूप से पड़ताल करने में सफल है ‘पर्यावरण शिक्षण भारत में रुझान एवं प्रयोग ‘
लेखक – चोंग शिमरे,
समीक्षक – डॉ. उमेश चमोला
पर्यावरण शिक्षा से जुड़े शिक्षक, शिक्षक – प्रशिक्षक और अन्य हितधारक प्राय: पर्यावरण, पर्यावरण शिक्षा, पर्यावरण विज्ञान, पर्यावरण अध्ययन आदि शब्दों का प्रयोग करते हुए देखे जाते हैं | कई बार वे इनका प्रयोग एक दूसरे के समानार्थी या पर्यायवाची शब्दों के रूप में करते हैं जबकि इनमे से प्रत्येक शब्द अवधारणात्मक दृष्टि से अलग है | इसी तरह पर्यावरण शिक्षा को पृथक विषय और समावेशित रूप में क्रियान्वित किए जाने के बारे में भी विचारों में अस्पष्टता दिखाई देती है | शिक्षा में पर्यावरण शिक्षा के कुछ इन्हीं विविध पक्षों की पड़ताल करती है पुस्तक ‘पर्यावरण शिक्षण भारत में रुझान एवं प्रयोग ‘ | इस पुस्तक को लिखा है चोंग शिमरे ने जो राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद नई दिल्ली में विज्ञान और गणित शिक्षा विभाग में एसोसिऐट प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं और विगत कई वर्षों से भारत में पर्यावरण शिक्षा कार्यान्वयन में निरंतर योगदान देती आ रही हैं |
पुस्तक में पर्यावरण से संदर्भित विषयवस्तु को दस अध्यायों में समाहित किया गया है | प्रथम अध्याय में पर्यावरण शिक्षा के परिचय के साथ वैश्विक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा के उद्भव पर प्रकाश डाला गया है | इसी अध्याय में प्रमुख राष्ट्रीय , अंतराष्ट्रीय दस्तावेजों और विभिन्न शिक्षाविदों द्वारा उल्लिखित पर्यावरण शिक्षा की परिभाषाओं को बाक्स के अन्दर दिया गया है | पर्यावरण शिक्षा के मार्गदर्शक सिद्धान्तों को भी स्थान दिया गया है | पर्यावरण शिक्षा के महत्वपूर्ण घट्नाक्रमों के कालक्रम के अंतर्गत दी गई जानकारियों से पर्यावरण शिक्षा में समय के साथ –साथ आये बदलावों की एक झलक देखने को मिलती है | पर्यावरण शिक्षा को समझने और अन्य विषयों से इसके सम्बन्ध को जानने के लिए पर्यावरण शिक्षा और अन्य विषयों की प्रकृति को समझना अत्यंत आवश्यक है | इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए दूसरे अध्याय में विभिन्न विषयों और पर्यावरण शिक्षा की प्रकृति को स्पष्ट करने के साथ विभिन्न विषयों में पर्यावरण शिक्षा के प्रयोग को विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है | कुछ विचारक मानते हैं कि विज्ञान की शिक्षा पर्यावरण शिक्षा को लागू करने के लिए एक अनुकूल मंच प्रदान करती है | यह सही भी है क्योंकि पर्यावरण के सभी मुद्दे वैज्ञानिक अवधारणाओं से जुड़े हुऐ हैं किन्तु अन्य विचारकों का सोचना है कि पर्यावरण के मुद्दों के सामाजिक, राजनीतिक, भौगोलिक, आर्थिक और ऐतिहासिक आयाम पर्यावरण शिक्षा और विज्ञान के सम्मिलिन से पढ़ाये जाने खतरे से खाली नहीं हैं | दूसरे अध्याय में ‘विज्ञान के साथ पर्यावरण अध्यापन का सम्मिलिन , संभावनाएँ और सीमाएँ’ में इन्ही दो दृष्टिकोणों में विभेद और पूरकता की पड़ताल की गई है | इसी अध्याय में पर्यावरण शिक्षा, पर्यावरण विज्ञान और पर्यावरण अध्ययन का विश्लेषण किया गया है और 14 बिन्दुओं के आधार पर इनके बीच सम्बंधों और विभेदों को स्पष्ट करने का प्रयास किया गया है | अध्याय 3 ‘विद्यालयीन पाठ्यक्रम में पर्यावरण शिक्षण एवं स्थिति’ में पर्यावरण शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों के अंतर्गत जागरूकता (पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता ) , ज्ञान (पर्यावरण और इससे सम्बंधित समस्याओं की बुनियादी समझ ), मनोवृत्ति ( पर्यावरण के लिए मूल्यों और चिंता सम्बन्धी अनुभूतियाँ , सक्रिय रूप से पर्यावरण के सुधार और सुरक्षा में भाग लेने की प्रेरणा ), कौशल ( पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं की पहचान एवं उनका समाधान करना ) और भागीदारी ( पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय रूप में प्रतिभागिता ) को वर्णित किया गया है | एक सार्थक पर्यावरण शिक्षा के लिए इन सभी उद्देश्यों की आवश्यकता को स्पष्ट करने के साथ ही यह भी बताया गया है कि बच्चों के बौद्धिक और नैतिक विकास में भिन्नता को देखते हुए कक्षावार इन उद्देश्यों में से कुछ उद्देश्यों को दूसरों की तुलना में अधिक बल दिया जाना चाहिए | पर्यावरण शिक्षा पर्यावरण के द्वारा, पर्यावरण के बारे में और पर्यावरण के लिए शिक्षा है | अध्याय में चिंता व्यक्त की गई है कि प्राय: पर्यावरण शिक्षा पर्यावरण के द्वारा और पर्यावरण के बारे में ही केन्द्रित रखी जाती है | इसमें पर्यावरण के लिए अर्थात् पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी क्रियाओं की उपेक्षा की जाती रही है | कुछ शिक्षाविद पर्यावरण शिक्षा को अलग विषय के रूप में पढ़ाने की वकालत करते हैं जबकि अन्य शिक्षाविद विभिन्न विषयों में पर्यावरण शिक्षा के समावेशन की बात करते हैं | इस अध्याय में इन दोनों प्रकार के दृष्टिकोणों को विस्तार से समझाया गया है | साथ ही विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित और भाषा के शिक्षण में पर्यावरण शिक्षा के अनुप्रयोग के उदाहरण दिए गए हैं | विभिन्न राष्ट्रीय दस्तावेजों, आयोगों और शिक्षा नीतियों में पर्यावरण शिक्षा की उपयोगिता पर बल दिया गया है | अध्याय 4 में इस पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है जबकि अध्याय 5 में पर्यावरण शिक्षा के क्रियान्वयन से सम्बंधित वैश्विक रुझानो और इनके परिप्रेक्ष्य में भारत में किये जा रहे प्रयासों को साझा किया गया है | पर्यावरण के प्रति दायित्वपूर्ण व्यवहार के अंतर्गत अध्याय 6 में दो कारकों को विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है – संज्ञानात्मक और व्यक्तित्व सम्बन्धी | पर्यावरण सम्बन्धी मुद्दों का ज्ञान, कार्यवाही की रणनीति का ज्ञान और कार्यवाही के कौशलों को संज्ञानात्मक कारक में सम्मिलित किया गया है जबकि व्यक्ति के दृष्टिकोण, समस्या के व्यक्ति के नियंत्रण में होना या न होना और व्यक्तिगत जिम्मेदारी को व्यक्तित्व सम्बन्धी कारक के रूप में वर्णित किया गया है | इसी अध्याय में व्यवहार परिवर्तन के लिए, पारिस्थितिक अवधारणा, अवधारणात्मक जागरूकता , समस्या की जाँच और मूल्यांकन तथा पर्यावरण सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के कौशलों को उत्तरदाई माना गया है |
पर्यावरण शिक्षा के कुछ शोधार्थी पर्यावरण शिक्षा को जैव भौतिक के साथ – साथ सामाजिक आयामों को समाहित करने वाली शिक्षा के रूप में महत्व देते हैं जबकि अन्य विचारक पर्यावरण शिक्षा को पारिस्थितिक केन्द्रित शिक्षा के रूप में स्वीकार करते हैं | अध्याय 7 में पर्यावरण शिक्षा के इन्ही परिप्रेक्ष्यों का विश्लेषण किया गया है | अध्याय 8 पर्यावरण शिक्षा में शिक्षक सशक्तीकरण की चिंताओं को समाहित किये हुए है | इसमें पर्यावरण शिक्षा के लक्ष्यों और उद्देश्यों को प्राप्त करने के सन्दर्भ में चिंतन दिखाई देता है | इसके लिए यूनेस्को द्वारा दिए गए निर्देशों को दिया गया है | सेवा पूर्व और सेवाकालीन प्रशिक्षणों में पर्यावरण शिक्षा की स्थिति को भी स्पष्ट किया गया है | अध्याय 9 में संवहनीय विकास के लिए शिक्षा के विविध पक्षों को विश्लेषित करने का प्रयास किया गया है | संवहनीय विकास से सम्बंधित ऐतिहासिक घटनाक्रम का विवरण प्रस्तुत करते हुए पर्यावरण शिक्षा से इसके सम्बंधों पर प्रकाश डाला गया है | संवहनीय विकास के लिए शिक्षा कहीं पर्यावरण शिक्षा से विचलन प्रस्तुत तो नहीं कर रही है ? इस प्रश्न पर भी विचार किया गया है | पर्यावरण शिक्षा के धरातलीय क्रियान्वयन के सन्दर्भ में वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहीं हैं | अध्याय 10 में इन्हीं संस्थाओं की भूमिका का वर्णन किया गया है | साथ ही भारत में पर्यावरण शिक्षा क्रियान्वयन की योजना का एक खाका खींचा गया है |
अत: यह पुस्तक पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र के अनुसन्धाताओं के साथ ही पर्यावरण शिक्षा से जुड़े प्रत्येक हितधारक , शिक्षकों, विद्यार्थियों और शिक्षक – प्रशिक्षकों के लिए उपयोगी है | पुस्तक में सरल भाषा का प्रयोग किया गया है | यह पर्यावरण शिक्षा से जुडी विभिन्न अवधारणाओं को स्पष्ट करती है , विभिन्न शैक्षिक दस्तावेजों में पर्यावरण शिक्षा की स्थिति के साथ ही सेवा पूर्व और सेवाकालीन प्रशिक्षणों में पर्यावरण शिक्षा क्रियान्वयन के लिए एक रूपरेखा बनाने में मददगार सिद्ध हो सकती है | पुस्तक अंग्रेजी और हिन्दी दोनों संस्करणों में उपलब्ध है |
पुस्तक ‘पर्यावरण शिक्षण भारत में रुझान एवं प्रयोग ‘
लेखक – चोंग शिमरे,
प्रकाशक- SAGE Publications Inc,2455 Teller Road Thousand Oaks,
Californiya 91320, USA.
SAGE Publications Ltd.
1 Oliver;s yard,55 City Road London ECIY ISP,
United Kingdom
SAGE Publications Asia Pacific Pte Ltd
3 Church Street , # 10-04Samsung Hub
Singapore 049483
SAGE Publications India Pvt Ltd.
B1/1-1 Mohan Cooperative Industrial Area
Mathura Road New Delhi, 110044 India
मूल्य – 375 रु
समीक्षक - डॉ उमेश चमोला
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