कुछ बातें, कुछ यादें ६
मैं और
डग्गामार बस का अनुभव
वर्ष २००७ की बात है | मुझे एक कार्यक्रम के सिलसिले
में जयपुर जाना था | मैं आई० एस ० बी० टी
० दिल्ली पहुँचा तो मुझे वहाँ एक आदमी
दिखाई दिया | मैंने पूछा, “भाई जी ! जयपुर जाने के लिए टिकट कहाँ से मिलेगा
?”
उसने बोला, चलो ! मेरे साथ चलो |” मैं उसके पीछे – पीछे जाने लगा | वह मुझे आइ० एस
० बी० टी के बाहर ऊपर रिट्ज सिनेमा हाल के पास ले गया | वहाँ पास में एक ऑफिस जैसा
था | वह मुझे वहाँ ले गया | वहाँ उन्होंने मुझसे ६०० रूपये लेकर एक टिकट दे दिया |
टिकट मिलने के बाद वह आदमी बोला, ‘’ आप यहाँ पर वेट कीजिये | यहीं से आपको गाडी
मिलेगी और हाँ आपको स्लीपर वाली सीट मिली
है | “ वहाँ पर
मेरे जैसे कुछ और यात्री भी थे | वे भी उसी गाडी का इन्तजार कर रहे थे | कुछ देर
बाद वहाँ एक गाडी आ गई | हम उसमे बैठ गए | मैं उस आदमी के बताये के अनुसार स्लीपर
में चला गया | मेरे बगल के स्लीपर की सीट पर एक आदमी लेटा हुआ था | कुछ देर के बाद
बस का कंडक्टर बस में चढ़ा | वह उस स्लीपर की सीट के नीचे खड़े होकर स्लीपर में लेटे
आदमी को भद्दी – भद्दी गालियाँ बकने लगा |
उसकी बात को सुनकर मैं स्लीपर से उतरकर बस में नीचे आ गया | मैंने उससे
पूछा, “भाई जी ,
इन्होने क्या किया है जो आप ऐसी गालियाँ दे रहें हैं |” वह बोला, ये स्लीपर में ऐसे सो रहे हैं
जैसे गाडी इनके बाप की हो | स्लीपर तो
पहले ही बुक है | स्लीपर में कोई नहीं सोयेगा | “
लेकिन हमने तो स्लीपर का किराया दे रखा है |” – उसने बोला |
‘’किराया तो आपने मुझे नहीं दिया है | - कन्डकटर
ने बोला | उस आदमी ने अपना टिकट दिखाया | कंडक्टर मानने को तैयार ही नहीं हुआ |
कंडक्टर ने स्लीपर वालों को सामान्य सीट पर बिठा दिया | कुछ देर बाद गाडी में एक
और आदमी आया | वह बोला,”सब लोग अपना- अपना टिकट दिखाओ “| सबने अपना टिकट दिखाया | वह टिकट ऐसा बना था
जिसका एक भाग बैंक के फॉर्म की रिसीविंग जैसा था जिसे आसानी से फाड़ कर अलग किया जा
सकता था | उसने सबके टिकट का वह हिस्सा फाडकर अपने पास रख लिया | जो हिस्सा उसने
अपने पास फाडकर रख लिया था उस पर किराया लिखा हुआ था | बाद में पता चला कि उस गाडी
में हर सवारी से जयपुर जाने का अलग – अलग
किराया लिया गया था | कोई शिकायत न कर पाए शायद इसीलिये वह व्यक्ति टिकट के किराये
वाले हिस्से को अपने साथ ले गया था |
दिल्ली
से राजस्थान जाने वाले रास्ते पर ऐसी गाड़ियाँ बहुत चलती हैं | जब कोई व्यक्ति
दिल्ली आता है और रिक्शा वालों से पूछता है कि मुझे आ० एस० बी ० टी जाना है | तो
कई बार आ० एस० बी० टी के बजाय वे डग्गामार बसों के ओफिस ले जाते हैं | शायद इनका
भी कमीशन रहता है इसमें | दिल्ली में सिंधिया हाउस से अच्छी प्राइवेट बसें विभिन्न मार्गों के लिए मिलती हैं | एक दिन
मैंने एक रिक्शा वाले से कहा, “मुझे सिंधिया हाउस जाना है | चलोगे ?”
वह पचास रूपये में वहाँ जाने के लिए तैयार हो गया
| वहाँ से रिक्शा वाले अमूमन एक सौ रूपये लेते हैं | मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कम
रुपयों पर कैसे तैयार हो गया ? मैं उसके रिक्शे में बैठ गया | चांदनी चौक में उसने
टूरिस्ट बुकिंग ऑफिस के सामने रिक्शा रोक दिया | मैंने उससे पूछा, सिंधिया हाउस आ
गया ?” वह
बोला, “सिंधिया
हाउस अभी दूर है | सिंधिया हाउस से भी अच्छी गाड़ियाँ यहाँ से मिलती हैं |’’ मैं
समझ गया कि यह मुझे डग्गामार बस में बिठाने के लिए यहाँ लाया है | मैंने उसे पचास
रूपये दे दिए | मै एक कोने पर खड़ा हो गया | वह मुझसे बार – बार कहने लगा, “बाबू जी ! ओफिस से टिकट क्यों नहीं लेते ? “ मैंने कहा , “मैं जाऊँगा तो सिंधिया हाउस से ही | “
मैंने
उससे पूछा , मैं यहाँ से टिकट लूं या नहीं , तुम्हें क्या मतलब ? मैंने तुम्हें
रिक्शा का किराया भी दे दिया है | अब अपना रास्ता नापो |”
वह मुझसे वहीं से टिकट लेने के लिए दबाव बनाने
लगा | अंत में उसके मुंह से सच्चाई बाहर आ ही गई ,बाबू जी ! दो पैसे अपने भी बन
जायेंगे | आप बैठ ही लो | दिल्ली में अजनबी लोगों को सावधान रहना चाहिए जब भी आप
टिकट लें आई ० एस ० बी ० टी के अन्दर निर्धारित काउंटर से ही लें | किसी और के
बहकावे में न आयें |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें