शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019


कुछ बातें, कुछ यादें ६
मैं  और डग्गामार बस का अनुभव
वर्ष २००७ की बात है | मुझे एक कार्यक्रम के सिलसिले में जयपुर जाना था |  मैं आई० एस ० बी० टी ० दिल्ली पहुँचा  तो मुझे वहाँ एक आदमी दिखाई दिया | मैंने पूछा, भाई जी ! जयपुर जाने के लिए टिकट कहाँ से मिलेगा ?
उसने बोला, चलो ! मेरे साथ चलो | मैं उसके पीछे – पीछे जाने लगा | वह मुझे आइ० एस ० बी० टी के बाहर ऊपर रिट्ज सिनेमा हाल के पास ले गया | वहाँ पास में एक ऑफिस जैसा था | वह मुझे वहाँ ले गया | वहाँ उन्होंने मुझसे ६०० रूपये लेकर एक टिकट दे दिया | टिकट मिलने के बाद वह आदमी बोला, ‘’ आप यहाँ पर वेट कीजिये | यहीं से आपको गाडी मिलेगी  और हाँ आपको स्लीपर वाली सीट मिली है | वहाँ पर मेरे जैसे कुछ और यात्री भी थे | वे भी उसी गाडी का इन्तजार कर रहे थे | कुछ देर बाद वहाँ एक गाडी आ गई | हम उसमे बैठ गए | मैं उस आदमी के बताये के अनुसार स्लीपर में चला गया | मेरे बगल के स्लीपर की सीट पर एक आदमी लेटा हुआ था | कुछ देर के बाद बस का कंडक्टर बस में चढ़ा | वह उस स्लीपर की सीट के नीचे खड़े होकर स्लीपर में लेटे आदमी को भद्दी – भद्दी गालियाँ बकने लगा |  उसकी बात को सुनकर मैं स्लीपर से उतरकर बस में नीचे आ गया | मैंने उससे पूछा, भाई जी , इन्होने क्या किया है जो आप ऐसी गालियाँ दे रहें हैं | वह बोला, ये स्लीपर में ऐसे सो रहे हैं जैसे  गाडी इनके बाप की हो | स्लीपर तो पहले ही बुक है | स्लीपर में कोई नहीं सोयेगा |
लेकिन हमने तो स्लीपर का किराया दे रखा है | – उसने बोला |
‘’किराया तो आपने मुझे नहीं दिया है | - कन्डकटर ने बोला | उस आदमी ने अपना टिकट दिखाया | कंडक्टर मानने को तैयार ही नहीं हुआ | कंडक्टर ने स्लीपर वालों को सामान्य सीट पर बिठा दिया | कुछ देर बाद गाडी में एक और आदमी आया | वह बोला,सब लोग अपना- अपना टिकट दिखाओ | सबने अपना टिकट दिखाया | वह टिकट ऐसा बना था जिसका एक भाग बैंक के फॉर्म की रिसीविंग जैसा था जिसे आसानी से फाड़ कर अलग किया जा सकता था | उसने सबके टिकट का वह हिस्सा फाडकर अपने पास रख लिया | जो हिस्सा उसने अपने पास फाडकर रख लिया था उस पर किराया लिखा हुआ था | बाद में पता चला कि उस गाडी में हर सवारी से  जयपुर जाने का अलग – अलग किराया लिया गया था | कोई शिकायत न कर पाए शायद इसीलिये वह व्यक्ति टिकट के किराये वाले हिस्से को अपने साथ ले गया था |
 दिल्ली से राजस्थान जाने वाले रास्ते पर ऐसी गाड़ियाँ बहुत चलती हैं | जब कोई व्यक्ति दिल्ली आता है और रिक्शा वालों से पूछता है कि मुझे आ० एस० बी ० टी जाना है | तो कई बार आ० एस० बी० टी के बजाय वे डग्गामार बसों के ओफिस ले जाते हैं | शायद इनका भी कमीशन रहता है इसमें | दिल्ली में सिंधिया हाउस से अच्छी प्राइवेट बसें  विभिन्न मार्गों के लिए मिलती हैं | एक दिन मैंने एक रिक्शा वाले से कहा, मुझे सिंधिया हाउस जाना है | चलोगे ?
वह पचास रूपये में वहाँ जाने के लिए तैयार हो गया | वहाँ से रिक्शा वाले अमूमन एक सौ रूपये लेते हैं | मुझे आश्चर्य हुआ कि यह कम रुपयों पर कैसे तैयार हो गया ? मैं उसके रिक्शे में बैठ गया | चांदनी चौक में उसने टूरिस्ट बुकिंग ऑफिस के सामने रिक्शा रोक दिया | मैंने उससे पूछा, सिंधिया हाउस आ गया ? वह बोला, सिंधिया हाउस अभी दूर है | सिंधिया हाउस से भी अच्छी गाड़ियाँ यहाँ से मिलती हैं |’’ मैं समझ गया कि यह मुझे डग्गामार बस में बिठाने के लिए यहाँ लाया है | मैंने उसे पचास रूपये दे दिए | मै एक कोने पर खड़ा हो गया | वह मुझसे बार – बार कहने लगा, बाबू जी ! ओफिस से टिकट क्यों नहीं लेते ? मैंने कहा , मैं जाऊँगा तो सिंधिया हाउस से ही |
 मैंने उससे पूछा , मैं यहाँ से टिकट लूं या नहीं , तुम्हें क्या मतलब ? मैंने तुम्हें रिक्शा का किराया भी दे दिया है | अब अपना रास्ता नापो |
वह मुझसे वहीं से टिकट लेने के लिए दबाव बनाने लगा | अंत में उसके मुंह से सच्चाई बाहर आ ही गई ,बाबू जी ! दो पैसे अपने भी बन जायेंगे | आप बैठ ही लो | दिल्ली में अजनबी लोगों को सावधान रहना चाहिए जब भी आप टिकट लें आई ० एस ० बी ० टी के अन्दर निर्धारित काउंटर से ही लें | किसी और के बहकावे में न आयें |



मंगलवार, 19 फ़रवरी 2019

कुछ बातें , कुछ यादें ४


बछिया और चीनी की चोरी
बचपन की बात है | हमारी एक गाय थी | उसे हम प्यार से मधु कहते थे | उस गाय की एक बछिया थी | उसका नाम हमने यशोदा रखा था | यशोदा जब बड़ी हुई तो उसे भी मधु और दो बैलों के साथ जंगल चुगाने ले जाते थे | जब ये जंगल में चरते तो हम इनसे कुछ  दूर जंगल में ऊँचे स्थान पर बैठ जाया करते थे  जहाँ से इन पर नजर रखी जा सके | यशोदा कुछ देर अन्य गायों और बैलों के साथ रहकर वहाँ आ जाती | वहाँ आकर वह मेरे बालों को चाटती थी | जब मैं अपना सिर यशोदा से हटाता तो वह मुझे मारने को दौडती |
 एक दिन घर में मैं अकेला ही था | मेरा चीनी खाने का मन करने लगा | मैंने डिब्बे से चीनी निकाल कर खा दी | मुझे पक्का विश्वास था कि मेरी चीनी की चोरी पकड़ी जाने वाली नहीं है | शाम के समय जब सभी लोग घर आये | माँजी ने कहा, उमेश ! तूने आज चीनी खाई ?’’
मैं चक्कर में पड़ गया | मैं सोचने लगा, माँजी को मेरी चीनी चोरी का कैसे पता चला ?’’
दीदी ने पूछा , चीनी उमेश ने ही खाई तू यह कैसे कह सकती हो ?
माँजी ने कहा, उमेश जब भी कोई चीज खाता है तो पहले उसका कुछ हिस्सा यशोदा को जरूर देता है | मैंने यशोदा के मुंह पर चीनी चिपकी हुई देखी |  मैं समझ गई कि यह काम उमेश ने ही किया होगा |  
मै डर रहा था कि चीनी चोरी की डांट पड़ने वाली है किन्तु मैंने मांजी की आँखों में आँसू देखे | मैं समझ गया कि  मेरे यशोदा के प्रति  प्रेम को देखकर माँजी का ह्रदय भर उठा है |