पुस्तक समीक्षा
दुनियां की सूरत
बदलेगी
कवि – गोविन्द
सिंह असिवाल
समीक्षक –डॉ
उमेश चमोला
Critical review of the book ‘duniya
ki surat badlegee
Poet- Govind Singh Asiwal
Critic- Dr.
Umesh Chamola
किसी ने कविता
को रसात्मक वाक्य कहा है तो किसी ने ह्रदय से स्वउद्भूत एवं स्वनिसृत भावनाओं का
ज्वार|
“मेरी पीड़ा,मेरा दर्शन,
कविता मेरी मशाल है,
आँखों में अंगारे मेरे,
पांवों में भूचाल है|’’
गोविन्द सिंह असिवाल की ये पंक्तियाँ उनके
व्यक्तित्व और उनकी कविता के बारे में सब कुछ बयां कर रही है | काव्य संग्रह
‘दुनियां की सूरत बदलेगी’ में संग्रहीत कवितायेँ अन्याय और शोषण के विरुद्ध बिगुल
बजाती हैं| शायद इसीलिए सम्पादकीय में शैलेन्द्र कुमार शैली ने इन्हें ‘इन्कलाब की
कवितायें’ शीर्षक के अंतर्गत सम्मिलित किया है | वस्तुतः ये कवितायेँ कवि के उस
जुनूनी और बागी मन की अभिव्यक्ति हैं जिसमें हर समय प्रश्न सुलगते रहते हैं –
‘मेरे साथ ही शहर से आया,
मेरा बागी मन,
भूख,गरीबी,जुल्म का मारा,
मेरा बागी मन |’
इसी प्रकार –
‘खुशियों के
झरने ढूढ रहा है,
मेरा पागलपन,
पत्थर-पत्थर पूज
रहा है,
मेरा पागलपन,
भूख,गरीबी,बेकारी,
क्यों नाच रही
दुनियाँ में,
प्रश्न सुलगते
पूछ रहा है,
मेरा पागलपन |’
कवि जड़ हो रही व्यवस्था में सुलगते प्रश्नों के
समाधान के लिए क्रांति का पक्षधर है |तभी तो कह उठता है –
‘अब सवालों के
अगर,
उत्तर जरूरी
हैं,
हाथ में दोनों
यहाँ पत्थर
जरूरी हैं |’
संग्रहीत अधिकांश कविताओं को इन्कलाब की
कवितायेँ कहा जाना सार्थक प्रतीत होता है किन्तु कुछ कविताएँ बिलकुल अलग प्रकृति
लिए हैं | उदाहरण के लिए –
‘हल्दी सी आँगन
में,
बैठ गई धूप,
भोर भये आँगन
में,
रात गई डूब |’
इसी प्रकार ‘मस्ती और आजादी चीड़ों की’ कविता
में कवि का प्रवासी ह्रदय वर्षों पहले छोड़ चुके चीड के जंगलों की मधुर स्मृतियों
में डूबा है | हिमवादी कविता में हिमालयी प्रकृति का सुन्दर चित्रण देखिए-
‘हिमवादी’ में कोंपल कलियाँ,
मुस्कानों के
निर्झर हैं,
फूल कई और
ब्रह्म कमल
और गंधों के
भंवर हैं |’
‘बड़ा सुहाना
लगता है’ कविता में कवि प्रकृति के नजारों का आनंद कुछ यों लेता है –
‘मौसम फिर पोशाकें बदला,
खुशियाँ भी हरियाई हैं,
छुप्पन छुप्पेया सूरज खेले,
बड़ा सुहाना लगता है |’
‘सोना सोना
गाँव’ और ‘शहतूती छाँव’ भी हिमालयी प्रकृति में रची -बसी हैं |
कवि विकृत
व्यवस्था की सूरत बदलने के लिए हड़ताल को आवश्यक मानता है –
‘दुनियाँ की
सूरत बदलेगी,
लोगों की हड़ताल,
नएं जहाँ का
सृजन करेगी,
लोगों की हड़ताल
|’
लेकिन उसे यह भी
विश्वास है कि दुनियाँ में चैन –अमन के लिए प्यार की खुशबू लुटाना भी जरूरी है |
इसीलिये तो वह कहता है –
‘चिट्ठियों सीं
जाएगी ये
आसमां के छोर
तक,
द्वार पर दस्तक
भी देगी,
प्यार की खुशबू
हमारी |’
क्रांति के साथ
प्यार की खुशबू बाँटने वाला यह कवि स्वप्नदर्शी है | कवि जीवन की प्रगति के लिए
स्वप्नों की उड़ान को जरूरी मानता है-
‘जिन्दगी में कुछ हसीं ख्वाब चाहिए,
एक नई रोशनी का आफताब चाहिए |’
संग्रह की कुछ
कवितायेँ भोगवादी सोच के कारण प्रदूषित हुए पर्यावरण की ओर हमारा ध्यान खींचती है
| ‘किरण –किरण लाचार’ कविता में कवि की चिंता इस तरह प्रकट होती है –
‘खुशियों के
झरने सूख गए,
दूषित है गंगा
जल,
बदली भी बीमार
हुई,
दिन अंधियारे
हैं |’
‘वातावरण’ और
‘ये सरोवर’ कवितायेँ भी पर्यावरनीय सरोकारों पर आधारित हैं |’ये सरोवर’ की
पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं –
‘जिनकी लहरों पर
लिखी थी
शाकुंतलम की
पंक्तियाँ,
अप्सराएँ थी
नहाती,
ये सरोवर देखिए
|’
कुल मिलाकर संग्रह की कविताएँ कवि के जीवन
संघर्ष एवं भोगे हुए यथार्थ को चित्रित करती है | कवितायेँ शिल्प के तटबंधों को
तोडती हुई आम जन के प्रति आवेगित हैं | संग्रहीत कविताओं से समाज में वैचारिक
चेतना का प्रसार होगा | इस आशा के साथ कवि को संकलन हेतु बधाई |
संग्रह का मूल्य
-२० रु,
प्रकाशक -2 बी,
विजय नगर,लालघाटी,भोंपाल -४६२०३०
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