मंगलवार, 26 दिसंबर 2017

https://youtu.be/YP4XYwqG8Ec

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‘समोण अर बुझोण’ पर चर्चा के बहाने
  ‘समोण’ श्री सर्वेश्वर दत्त कांडपाल द्वारा लिखित खंडकाव्य है | यह सन १९७१ में प्रकाशित हुआ था | सन १९७२ में यह ‘समोण अर बुझोण’ नाम से द्वितीय संस्करण के रूप में प्रकाशित हुआ था | सन २०१२ में इसका तृतीय संस्करण ‘समोण अर बुझोण’ लोकभाषा आन्दोलन समिति रुद्रप्रयाग ,कलश संस्था और श्री कांडपाल के परिवारीजनों के सहयोग से संस्कृति प्रकाशन अगस्त्यमुनि द्वारा प्रकाशित किया गया | इसमें समोण खंड के अंतर्गत ‘समोण’ खंडकाव्य पर आधारित विषयवस्तु को स्थान दिया गया है | ‘बुझोण’ में श्री सर्वेश्वर दत्त कांडपाल द्वारा लिखित 14 कविताओं को जगह दी गई है |
  ‘समोण’ खंडकाव्य पहाड़ की पहाड़ जैसे जीवन जीने वाली नारी की व्यथा कथा है | इसमें खैरी खाने वाली बेटी –ब्वारी की प्रतीक है सरला | सरला के रूप में पहाड़ की बेटी –ब्वारी के कष्टों का जो यथार्थ चित्रण कवि ने किया उसे पहाड़ की नारी ने आत्मसात किया और सरला में अपने रूपों को महसूस किया | यही कारण यह खंडकाव्य १९७० के दशक में पहाडी नारी द्वारा  खूब पढ़ा गया | रात को खाने बनाते समय या और कामों को करने के साथ –साथ महिलाओं द्वारा इसी रचना का गायन किया जाता रहा और छ्वीं – बत भी इसी के सम्बन्ध में होती रही | यह कृति गढ़वाल की नारी की कंठहार बन गई |
  इस खंडकाव्य की कथा में सरला के पिता वीरू लड़ाई में गुम हो जाते हैं | उसकी माँ इस वियोगजनित पीड़ा को सह नहीं पाती है और उसी अज्ञात लोक को चली जाती है जहाँ उसके पति जा चुके थे | अब सरला अनाथ हो गई थी | उसका लालन – पालन उसकी गाँव की काकी द्वारा किया गया | समय बदलता है और एक दिन सरला के पिता घर आ जाते हैं | वह अपने हाथों सरला का कन्यादान कर देती है |
  इस खंडकाव्य के सर्गों में शार्दुलविक्रीडित, द्रुतविलंबित, मंदाक्रांता और कवित्त छंदों का प्रयोग किया गया है | पहाड़ के मेले,त्यौहार. यहाँ की वनस्पति ग्वीराल,प्यूली,किनगोड,करोंदा,हिसर तथा यहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य को जीवंत बनाने वाली पक्षियों घुघुती,सेंटुली,हिलांस आदि की मीठी भौण इस खंडकाव्य में महसूस की जा सकती है | ग्रामीण जीवन का यथार्थ यहाँ देखा जा सकता है |
 खंडकाव्य में आम जन में प्रयुक्त गढ़वाली शब्दों का प्रयोग किया गया है | कहीं –कहीं पर संस्कृतनिष्ठ भाषा भी प्रयोगित है जैसे –
 ‘जननि हे ! गढ़भूमि प्रभामयी,
  वरदहस्त विभावन सुन्दरी,
 सकल पुष्प पराग प्रसर्पिता,
 गिरिलतावृत्त माँ ममतामयी |’
  ‘बुझोण’ खंड में रामलीला से सम्बंधित कुछ गीत जैसे ‘पंचवटी में राम’ , ‘सीता –जनक संवाद’ और ‘सूर्पणखा लक्ष्मण संवाद ‘ दिए गए हैं | ‘सूर्पणखा लक्ष्मण संवाद’ में सूर्पणखा द्वारा अपनी सुन्दरता की तुलना रत्तादाणि (एक प्रकार का सुन्दर बीज ) से करना बेजोड़ है |
  मुझे याद है मंदाक्रांता , शिखरनी आदि छंदों से हमारा परिचय हाई स्कूल तथा इंटर की कक्षाओं में हिन्दी के पठन से हुआ | हिन्दी की पाठ्य पुस्तक में वर्णित श्री अयोध्या प्रसाद ;हरिऔध’ की इन पंक्तियों को हमने कंठस्थ  किया था –
‘जब हुए समवेत शने –शने,
 सकल गोप सधेनु समन्डली ,
तब चले ब्रज भूषण को लिए,
अति अलंकृत गोकुल ग्राम को |’
 यद्यपि इन छंदों से हमारा वास्तविक परिचय हिन्दी की पाठ्यपुस्तक से हुआ था किन्तु प्राथमिक स्तर से  ही हम इन छंदों में आबद्ध पद्याशों को गाते थे | इसका कारण था हमारे घर में श्री राम प्रसाद गैरोला कृत ‘सुद्याल’ ,मेघढूत(गढ़वाली ) ,समोण’ जैसी पुस्तकें थी | अपने माता – पिता के मार्गदर्शन में हम इन छंदबद्ध
 पद्याशों का गायन कर आनंदित होते थे | उस समय सूचना सम्प्रेषण तकनीकी के संसाधन सीमित थे | इसके बावजूद ‘समोण’ और ‘सुद्याल’ जैसी कृतियों का लोकप्रिय होना इन कृतियों का भावप्रणव होना था | आज परिस्थितियां बदल गई हैं | आज ह्वटसअप, फेसबुक,इन्स्टाग्राम आदि के माध्यम से गढ़वाली –कुमाउनी भाषाओँ का खूब प्रचार प्रसार हो रहा है | गढ़वाली और कुमाउनी  भाषा में सृजनात्मक चिंतन और लेखन के लिए ह्वटसअप और फेसबुक में सक्रिय रचनाधर्मियों ने कई समूह बनाए हैं | यू ट्यूब के माध्यम से भी गढ़वाली और कुमाउनी भाषा में कई कवितायेँ सृजित कर प्रस्तुत की जा रहीं हैं | इन माध्यमों से गढ़भाषाओं में सृजन और प्रचार –प्रसार के लिए युवा वर्ग सक्रिय रूप से आगे आ रहा है | कई मेलों, रामलीला और अन्य उत्सवों के अवसरों पर जगह –जगह कवि सम्मेलनों का आयोजन किया जा रहा है | यह सभी प्रयास हमारी दुदबोली भाषा के प्रचार –प्रसार  और उन्नयन की दृष्टि से एक सुखद अहसास देते हैं |
  वर्तमान में गढ़वाली भाषा में बहुत पुस्तकें लिखी जा रही हैं | यदि प्रकाशित पुस्तकों का हम विश्लेषण करें तो पाएंगे कि इन पुस्तकों में से अधिकांश पुस्तकें काव्य की पुस्तकें हैं | गद्य: कविनाम निकष: वदन्ति (गद्य कविता की कसौटी है) लिखकर विद्वानों ने कविता के सन्दर्भ में गद्य की महत्ता को दर्शाया है | गढ़वाली भाषा में गद्य में लिखी जाने वाली पुस्तकों की संख्या बहुत कम है | किसी भी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए उस भाषा में प्रत्येक विधा में लिखा जाने वाला अनिवार्य है | अत: गढ़वाली भाषा में हर विधा में लिखा जाना होगा तभी भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में अपनी दुदबोली भाषाओँ को सम्मिलित करने का हमारा दावा मजबूत होगा | गढ़वाली भाषा में निबंध, कहानी, जीवनी, उपन्यास, रिपोर्तार्ज आदि सभी विधाओं के साथ –साथ बालसाहित्य, व्यंग्यसाहित्य आदि उपेक्षित  क्षेत्रों पर गंभीरतापूर्वक कार्य किए जाने की आवश्यकता है | वर्तमान युग की आवश्यकताओं के अनुरूप विज्ञान आधारित साहित्य,समीक्षा और शोध की दिशा में भी लिखे जाने की आवश्यकता है | आज ह्वटसअप, फेसबुक ,यु ट्यूब आदि माध्यमों ने नए –नए रचनाकारों को मंच प्रदान किया है | इन माध्यमों में अधिक समय दिए जाने के कारण हमारे स्वाध्याय में कमी आई है | स्वाध्याय का अर्थ मुद्रित सामग्री के अध्ययन के साथ –साथ ई सामग्री के अध्ययन से भी है |
   आज प्रस्तुत की जाने वाली कई कवितायेँ मंचीय दृष्टि से तो अत्यधिक सफल हैं किन्तु साहित्यिक कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही हैं | मंचीय कविताओं में प्रस्तोता की भाव भंगिमा, वाचन और गायन शैली कई बार रचना की विषयवस्तु और साहित्यिकता के ऊपर हावी होती है | इस कारण रचना की लोकप्रियता के बावजूद वह शिल्प विधान, बिम्ब आदि की दृष्टि से कमजोर साबित होती है | आज प्रस्तुत कई कवितायेँ तुकात्मक सपाटबयानबाजी की शिकार हो चली हैं |
  अत: युवा रचनाकारों को वरिष्ठ, नए और पुराने रचनाकारों की रचनाओं का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करना चाहिए | इससे उनकी रचनाओं में प्रौढ़ता आएगी | वे अपनी विरासत से परिचित हो पायेंगे | उन्हें जानकारी प्राप्त हो पायेगी कि इन रचनाकारों ने क्या लिखा है ? उन्हें किन नए क्षेत्रों में कलम चलानी चाहिए ? ‘समोण अर बुझोण’ जैसी कृतियों को नएं रूप में प्रकाशित कर पाठकों तक पहुँचाने का लक्ष्य भी शायद यही है नई पीढ़ी भी अपनी गौरवशाली विरासत को जान सकें | इस नवीन संस्करण का मूल्य ३५ रु शायद इसीलिये निर्धारित किया गया है ताकि पुस्तक आम पाठक तक पहुँच जाय |
 ‘समोण अर बुझोण’ के प्रकाशन के इस पुनीत लक्ष्य को सफल बनाने की दिशा में लोकभाषा आन्दोलन समिति, कलश संस्था और कलश लोकसंस्कृति ट्रस्ट, श्री कांडपाल जी के परिवारी जनो के साथ ही संस्कृति प्रकाशन अगस्त्यमुनि रुद्रप्रयाग को हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |
पुस्तक का नाम – समोण अर बुझोण
कवि – सर्वेश्वर दत्त कांडपाल
मूल्य – ३५ रु
प्रकाशक –संस्कृति प्रकाशन विजय नगर ,अगस्त्यमुनि ,रुद्रप्रयाग ,उत्तराखण्ड भारत समीक्षक –डॉ ० उमेश चमोला



रविवार, 8 अक्टूबर 2017




पुस्तक समीक्षा 
                पर्यावरणीय शिक्षा पाठ्य सहगामी  
                     क्रियाकलाप
समीक्षक – हेमा उनियाल  , लेखक – डॉ० उमेश चमोला
जब हम उस परम शक्ति के करीब होते हैं तो उस धरा,प्रकृति के भी उतने ही अन्तरंग हो जाते हैं | प्रकृति अध्यात्म का भाव जगाती है | सुंदर सुघड़ प्रकृति के ही सन्निकट ईश्वरीय भाव का संचार होता है | जब हम सुन्दर प्रकृति की बात करते हैं तो प्रकृति से जुडा पर्यावरण भी अहम विषय हो जाता है | पर्यावरणीय जागरूकता आज के सन्दर्भों में इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हम सुंदर प्रकृति के कायल हैं,प्रशंसक हैं लेकिन उस वातावरण को शुद्ध और स्निग्ध बनाए रखने के लिए उतने कटिबद्ध नहीं हैं | चाहे अनचाहे हम पर्यावरणीय असंतुलन को बढ़ावा देते हैं |
 डॉ० उमेश चमोला की पुस्तक ‘पर्यावरणीय शिक्षा पाठ्य सहगामी क्रियाकलाप’ आज के सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण पुस्तक है | यह पुस्तक पर्यावरणीय शिक्षा से सम्बंधित विभिन्न विषयों जैसे वृक्षारोपण,पॉलिथीन उन्मूलन, आग, मध्य निषेध,धूम्रपान निषेध,वर्षा जल संग्रहण,देववन,प्रदूषण,जल संरक्षण आदि के प्रति जानकारी देकर जागरूक करती है | डॉ० चमोला द्वारा लिखित यह एक शिक्षण साहित्य है जिसमें पर्यावरण नाटिका,जागरूकता रैली एवं पर्यावरण से सम्बंधित गीत एवं कवितायेँ हैं | इस पुस्तक के माध्यम से विद्यालयों में पाठ्य सहगामी क्रियाकलापों  को आयोजित किया जाने लगा है |
 यह पुस्तक पर्यावरणीय चेतना से परिपुष्ट नाटक, गीत, कविताओं आदि के द्वारा शिक्षित करने का प्रयास तो है ही साथ ही लेखक के संवेदनशील आंतर-वाह्य प्रवृत्तियों को दर्शाने का माध्यम भी है |
  पुस्तक में पर्यावरणीय जागरूकता रैली के लिए ३६ सिंहनाद (नारे) बच्चों के लिए बच्चों की ही भाषा में दिए गए हैं | कुछ सिंहनाद दृष्टव्य हैं –
   ‘धरती माँ का संवरे वेश,
   इको क्लब का यह सन्देश |

   आओ हम सब गाये गीत,
   वृक्षारोपण कार्य पुनीत |
 
  गाँव –गाँव, गली –गली,
  जागरूकता लहर चली चली |
जागरूकता रैली से सम्बंधित प्रयाण गीतों को भी पुस्तक में स्थान दिया गया है | पर्यावरणीय शिक्षा में समाज(समुदाय) की सहभागिता को बढाने के लिए स्थानीय बोली भाषा को महत्व देते हुए लोकगीत जैसे झुमैलो के माध्यम से स्वस्थ पर्यावरण निर्माण का सन्देश दिया गया है|
  कुल मिलाकर पुस्तक की विषयवस्तु बच्चों के मानसिक स्तर के अनुरूप है | पुस्तक के भाषा सरल है और प्रस्तुतीकरण रोचक है | पुस्तक पर्यावरण से सम्बंधित पाठ्य सहगामी क्रियाकलोपों के आयोजन की दृष्टि से सफल होगी | साथ ही बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि को भी बढ़ाएगी | ऐसा विश्वास है |
पुस्तक – पर्यावरणीय शिक्षा पाठ्य सहगामी क्रियाकलाप
लेखक – डॉ० उमेश चमोला
प्रकाशन – शिक्षा विभाग मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार
         के आभार से उत्तराखण्ड सेवा निधि अल्मोड़ा ,उत्तराखण्ड
मूल्य – निशुल्क





                                       

रविवार, 24 सितंबर 2017




पुस्तक समीक्षा  ‘उमाळ’ (गढ़वाली खंडकाव्य)
देश प्रेम और हृदयगम्य भावनाओं का प्रस्फुटन है ‘उमाळ’ खंडकाव्य
समीक्षक – हेमा उनियाल  , कवि –डॉ० उमेश चमोला
        सात सर्गों में विभाजित ‘उमाळ’ खंडकाव्य डॉ० उमेश चमोला द्वारा रचित गढ़वाली भाषा में रचित एक ऐसा खंडकाव्य है जिसमे देशभक्ति एवं प्रेममय भावपूर्ण अभिव्यक्ति का कुशल समायोजन है | लेखक की यह भावनाएं कहीं देश के प्रति अपने परम कर्तव्य को लिए हुए मुडती है तो कहीं सुख –दुःख की मिश्रित अनुभूति लिए अपनी प्रेयसी पत्नी व गाँव –घर के प्रति प्रकट होती है | जहाँ खंडकाव्य का प्रारम्भ ही वीरभूमि ! गढ़भूमि! त्वेतैं परणाम, नौं जपदू रौऊँ मीं सुबेर अर शाम’ इन पंक्तियों से हो ,वहाँ यह स्पष्ट  होता है कि अपनी माटी गढ़भूमि उत्तराखण्ड के प्रति लेखक कितना सजग और सम्मान रखता है |
     ‘उमाळ’ खंडकाव्य हृदयगम्य भावनात्मक अनुभूतियों का भी कुशल समायोजन है | नायक के लिए एक ओर जहाँ देश प्रेम की भावना सर्वोपरि है तो वहीं अपनी पत्नी की याद का दृश्यावलोकन सुखद अनुभूति प्रदान करता है | प्रेममय भावनाओं का ज्वार देश प्रेम के आड़े नहीं आता बल्कि उसे और समृद्ध बनाता है | नारी के मन का प्रेम ,पीड़ा, उद्वेग व भावनाओं को बड़ी सूक्ष्मता से इस खंडकाव्य में उकेरा गया है –
         ‘कन होला स्वामीजी लडै मा तख,
           सुशीला छै घौर मुं तख छै टक |’

             वुँका बिना द्वीइ दिन भी नि ह्वेन,
              लगुणु छौ कति मैना बीति गेन |’
      नायक सीमा पर हो तो अशल –कुशल जानने का एक महत्वपूर्ण माध्यम पत्र होता है | यह ह्रदय की सम्पूर्ण स्थिति एवं जीवन की संभावनाओं को अभिव्यक्त करते हैं | नायक का पत्र गाँव की एक –एक याद को शब्दों के माध्यम से ऐसा बुनता है जैसे सम्पूर्ण ग्रामीण परिवेश उसकी आँखों में उतरकर शब्दों के माध्यम से फूट पडा हो –
           ‘ऊँचि –निस्सि डांडी,गाड़ गदेरा,
            रौली गदनी पाड कि स्वाणी,
            वूँतैं तु प्यारी मेरि सेवा बोली,
             मेरि सेवा बोली तु धारा का पाणी ‘|
      नायक के पत्र के माध्यम से अभिव्यक्त खंडकाव्य का सम्पूर्ण छटा सर्ग कहीं एक फ़ौजी की मनोदशा को बखूबी दर्शाता है वहीं देश प्रेम का जज्बा जो एक सैनिक में कूट कूट कर भरा होता है उसे उसकी सर्वोत्तम वरीयता पर ला खड़ा कर देता है |
 नायक का यह सोचना –
             ‘गबर सिंह, चन्द्र सिंह,कफ्फू सिंह की वीर या भूमी,
              जबरि भारत ब्वेन धदेन,ल्वे बगे दीनी चूमी या भूमी ,
             देश का बाना काम ऐ जालू,मी भी अमर ह्वे जालू प्यारी,
              देश मा खुशी का फूल खिलला,शान्ति कि सजिली देश मा क्यारी |
             उत्तराखण्ड के सैनिकों की परम वीरता, देश के प्रति निस्वार्थ समर्पित दृष्टिकोण को बखूबी चरितार्थ करता है | एक सैनिक का देश प्रेम अपनी समस्त आंकाक्षाओं,इच्छाओं को दरकिनार कर देश के प्रति अपने अभिन्न अक्षुण प्रेम का जो दृष्टिकोण रखता है वह इस खंडकाव्य का वास्तविक आधार है |
         ग्रामीण पात्रों  का समग्र व्यक्तिगत जीवन,भोगा हुआ यथार्थ,जीवंत मूल्यों की सार्थकता,एक अभीष्ट आदर्श एवं एक सम्पूर्ण सांस्कृतिक ग्रामीण जीवन यह सब लेखक के स्वनुभुत किए गए विचारों एवं आदर्शों का एक ऐसा खंडकाव्य प्रतीत होता है जिससे उमाळ के बाद आने वाला ठहराव  ही खंडकाव्य का वास्तविक धरातल है | उच्च आदर्श और जीवंत मूल्यों को सहेजता यह खंडकाव्य पठनीय एवं संग्रहणीय है |
पुस्तक –उमाळ
कवि – डॉ ० उमेश चमोला

प्रकाशक –बिनसर प्रकाशन कम्पनी देहरादून 

मंगलवार, 19 सितंबर 2017



समालोच्य कृति ‘आस –पास विज्ञान
लेखक –डॉ ० उमेश चमोला  समीक्षक –डॉ० नागेन्द्र ध्यानी

  यह बालसाहित्य की एक अप्रितम कृति है | बालसाहित्य के प्रति भारतीय प्राचीनकाल से ही रूचि लेते रहे हैं | विदेशियों ने भी हमारे बालसाहित्य की प्रशंसा की और उसका अनुवाद अपनी भाषाओँ में किया है | ‘हितोपदेश’, ‘पंचतंत्र’ और ‘सरित्सागर इसके उदाहरण हैं |
    बौद्ध और जैन साहित्य में समानेरों  (बाल भिक्षुओं ) को ज्ञान –विज्ञान की सरलतम विधि से शिक्षा देने के लिए ‘बालबोधिनी’ जैसी पुस्तकें आज भी उपलब्ध हैं | ज्ञान ही नहीं विज्ञान को भी हमारे मनीषियों ने प्राचीन काल से ही सूत्रबद्ध करके पद्यमय शिक्षा के माध्यम से पढ़ाया है | समस्त चिकित्सा  सूत्र, गणित और विज्ञान को पद्य के माध्यम से सिखाने का प्रयास हमारे ऋषि –मुनि वैदिक युग से करते आऐ है |
   डॉ० उमेश चमोला की विज्ञान कविताएँ पढकर मुझे ऋग्वेद के नासदीय सूक्त और अरण्यानी सूक्त का स्मरण हो आया | इन सूक्तों में भी सृष्टि उत्पत्ति के रहस्य तथा वनों के संरक्षण के भाव को वैदिक ऋषि ने कहीं सरलतम प्रहेलिकाओं और कहीं कथाओं के माध्यम से समझाया है | उपनिषदों में कथाओं का सहारा लेकर विज्ञान को विवेचित किया गया है | गार्गी –याज्ञवलक्य संवाद को ही देख लीजिए जिसमें गार्गी याज्ञवलक्य से सृष्टि के  रहस्य को पूछती है | कठोपनिषद में मृत्यु और जीवन क्या है ? इसकी जानकारी के लिए नचिकेता और यम संवाद पठनीय हैं | इसमें एक बालक नचिकेता यम से पूछता है –‘अमरत्व क्या है ?’ यह सब विज्ञान की ही जानकारी है | ऋग्वेद में भुज्यु की मौत का उल्लेख,अश्वनी कुमारों की दी हुई औषधि से वृद्ध च्यवन्य का युवा होना,बुद्धिमती के कटे हाथ की शल्य क्रिया करके उस पर सोने का हाथ लगाना, वीरांगना विश्पला की टूटी जांघ को तोड़ने और शोण के घुटने ठीक करने का वर्णन मिलता है | अश्वनी कुमारों ने ऋजाश्व की आँखें ठीक की थी | यह वर्णन प्राचीनकाल के चिकित्सा विज्ञान की ओर संकेत करता है |
    अतएव इस विज्ञान के युग में जीने वाले नितांत भौतिकवादी विचिन्तको को भी इस प्राचीन विज्ञान के गवाक्ष उद्घाटित कर उसमें छिपे ज्ञान –विज्ञान पर भी अनुसन्धान करना चाहिए और इस प्रकाश को सबके लिए वितरित करना चाहिए | प्राचीन ज्ञान –विज्ञान को कल्पना कहकर नकार देना एक प्रकार की अकर्मण्यता ही होगी | मुझे प्रसन्नता है कि राज्य शैक्षिक अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद उत्तराखण्ड में कार्यरत शिक्षक –प्रशिक्षक डॉ० उमेश चमोला का ध्यान उस प्राचीन ज्ञान –विज्ञान की ओर भी गया है | उन्होंने इस बालबोधिनी विज्ञान पद्यावली में दृश्यमान विज्ञान जो हमारे आस-पास बिखरा है को लेकर बच्चों को विज्ञान के रहस्यों से परिचित कराया है |
    लेखक ने दो कविताएँ,सात कहानियां तथा ३५ विज्ञान पहेलियों को इस पुस्तक में ‘आस-पास विज्ञान नाम से प्रकाशित किया है | ‘खोज’ कविता में न्यूटन और फ्लेमिंग के साथ बेटिंग और जेनर जैसे वैज्ञानिकों के द्वारा की गई खोजों का कवि ने वर्णन किया है | अपनी दूसरी कविता में वे विज्ञान विश्लेषण की विधियों का वर्णन करते हैं |
    विज्ञान के अध्ययन में पहले समस्या फिर कल्पना, फिर प्रयोग तदन्तर विश्लेषण और अंत में समाधान या नियम निर्धारण किया जाता है | भारतीय दर्शन शास्त्र में भी विज्ञान की इन अध्ययन विधियों को ही अपनाया जाता है | कवि ने बालबोधिनी कविताओं के माध्यम से इस प्रक्रिया को सरलता से समझाया है |
  इन कविताओं को पढने से लगता है जैसे वे हिन्दी कविता में आर्ष ऋषि द्वारा रचे गए सूत्र हों | छोटे और रोचक तथा सरल विज्ञानं के सूक्त | इस पुस्तक में ‘भूतों का रहस्य’ विज्ञानसम्मत कहानी है | यह बच्चों को ज्ञान दिलाती है कि रात में चमकने वाले (उड़ने वाली प्रकाशमान वस्तुएँ) भूत नहीं हैं | वह फोस्फोरस नामक तत्व है जो ओक्सीजन के साथ मिलकर जलने लगता है और ऑक्साइड बनाता है | इसी से रोशनी होती है जिसे लोग उड़ने वाला भूत समझते हैं | हम भी जब तक बच्चे थे विज्ञान के इस रहस्य से परिचित नहीं थे और इसे भूत ही समझते थे |
  ‘भूत रहस्य’ कहानी में विज्ञान के इस तथ्य को उजागर किया गया है कि रात में पौधे कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस छोड़ते हैं | उनके नीचे सोने से प्राय; साँस लेने में कठिनाई होती है | ऐसा लगता है कि भूत मुझे दबा रहा है |
  ‘चमत्कारी बाबा’ कहानी चमत्कारों के पीछे छिपे विज्ञान को स्पष्ट करती है | चमत्कारी बाबा समझे जाने वाले लोग आज भी अपनी रासायनिक विज्ञान सम्मत जानकारी से लोगों को चमत्कार दिखाकर खूब लूटते हैं | यह सब तंत्र –मन्त्र नहीं है | हाथ की सफाई है या रसायन विज्ञान का चमत्कार है | प्राचीन जातक ग्रंथों, बौद्ध और जैन साहित्य तथा नाथ सम्प्रदाय में ऐसे सन्यासियों का वर्णन आया है जो अपने चमत्कार से जनता पर अपना प्रभाव डालकर उन्हें आतंकित करते थे | बौद्ध काल में रसायन विज्ञान की चरम उन्नति हुई थी | रसायन के अनेक प्रयोग करके भिक्षुओं ने सिद्धांत प्रतिपादित किए तथा ग्रन्थ लिखे लेकिन साधारण जनता इस विज्ञान से अछूती रहने के कारण अन्धविश्वासों में जकड़ी रही | भिक्षु भी जो विज्ञान के रहस्यों को जानते थे, सीधी सादी जनता को इसके बल पर खूब लूटती थी | आज भी लोग ऐसे बाबाओं से लोग हर रोज लूटे जाते हैं |
    डॉ ० चमोला की ये विज्ञान कहानियां बच्चों को ही नहीं उन लोगों की भी आँखे खोलेंगी जो अन्धविश्वासी हैं और किसी भी बात को विज्ञान की दृष्टि से न परख कर उसे परंपरा समझकर अपना लेते हैं |
    डॉ० चमोला की छंद्धबद्ध विज्ञान पहेलियाँ बड़ी ही रोचक हैं जो कि खेल –खेल में विज्ञान के रहस्य खोलती है | ये पहेलियाँ विज्ञान के नियम याद करने में नई प्राविधि को अनुसंधानित सी करती है | कविता के माध्यम से यह प्रयोग सर्वाधिक सुंदर है | ये पैतीस पहेलियाँ सरलता से ज्ञान को विज्ञान में बदलकर उन रहस्यों की ओर भी हमारा ध्यान आकृष्ट करती है जिन पर हमारी दृष्टि नहीं जाती है | नई शिक्षा नीति में जिन नवाचारों की बात की गई है उनमे यह भी एक है सरस पद्य के माध्यम से ज्ञान को सूत्रबद्ध करके पढाना या स्मरण कराना जिससे बच्चा खेल खेल में सीख सके |
    पद्य की सहायता से विज्ञान और गणित को पढाने के लिए डॉ० चमोला से पहले डॉ० शिवदर्शन नेगी प्रधानाचार्य ने भी ‘गणित गीतिका’ नामक पुस्तक लिखी थी | यह काफी लोकप्रिय रही | डॉ० चमोला की शैली उनसे भी अधिक  सरल है | उनकी लिखी इन कहानियों और और कविताओं के माध्यम से हमारे शिक्षकों को विज्ञान को पढाने और विज्ञान के रहस्यों को समझाने में आशातीत सफलता मिलेगी | ऐसा मेरा विश्वास है |
   निस्वार्थ भाव से अपना धन इस ज्ञान यज्ञ में व्यय करने वाले इस अनुसंधाता एवं प्रयोक्ता के विज्ञान सम्मत चिंतन की मुक्त कंठ से प्रशंसा की जानी चाहिए | आशा है कि भविष्य में प्राचीन विज्ञान की जानकारी के लिए भी इस प्रकार की सूत्रात्मक पद्धति का सहारा लेकर डॉ ० चमोला बालक –बालिकाओं के लिए पुस्तक लिखेंगे | ये पुस्तकें बच्चों के साथ – साथ विज्ञान से आँखें मूंदें हुए लोगों के लिए भी दृष्टि का भी कार्य करेंगी | विज्ञान शिक्षा के क्षेत्र में यह कार्य प्रशंसनीय माना जाएगा | डॉ० चमोला का यह नव्य प्रयोग शिक्षा जगत के लिए उपादेय है | पाठ्य पुस्तकों में भी इन विज्ञान पहेलियों और कहानियों को स्थान दिए जाने हेतु उपक्रम किया जाना चाहिए ताकि बच्चों को इसका लाभ मिल सके | पुनश्च लेखक को हार्दिक शुभकामनायें |
 पुस्तक –आस –पास विज्ञान
 लेखक –डॉ ० उमेश चमोला
 समीक्षक –डॉ ० नागेन्द्र ध्यानी
 प्रकाशक – बिनसर प्रकाशन देहरादून ,उत्तराखण्ड |


पुस्तक समीक्षा ‘निरबिजु’
उत्तराखण्ड कु माटु निरबिज्या ह्वेगी
    --------------------डॉ० नागेन्द्र जगूड़ी ‘नीलाम्बरम
गढ़वाली भाषा में लिखा डॉ० उमेश चमोला का एक छोटा उपन्यास ‘निरबिजु’ अपने आप में जीवन का एक सम्पूर्ण दर्शन प्रस्तुत करता है | ऐसा नहीं लगता कि यह उपन्यास लेखक की कल्पना की उपज है बल्कि गहरे दुःख से भरी इस उपन्यास की कथा पूरी ताकत के साथ ऐसा आभास देती है कि अपने चारों ओर की दुखांतक घटनाएँ लेखक पर दबाव डालती है कि वह अपने परिवेश में पनपते हुए सीमेंट गारे के घने जंगल ,गगनचुंबी इमारतों और ऐय्याशी भरे राजनेताओं के जीवन एवं विलासिता में डूबी राजसत्ता को बेनकाब करता हुआ कुछ रच डाले |
  उपन्यास के कथानक का यह जीवंत दृश्य क्षेत्र लेखक के ह्रदय पर लिखने के लिए दबाव बनाता है | उस दबाव की यातना में लेखक इस मर्मान्तक कहानी को लिखता है | उपन्यासकार के इस परिवेशप्रदत्त कथानक का जीवंत दृश्य क्षेत्र आखिर वह कौन से ऐसा स्थान हो सकता है जहाँ की राजसत्ता अधर्म के मार्ग पर चल पडी है ? जहाँ जंगल के जंगल सफाचट होते जा रहे हैं ? जहाँ के राजनेता विलासिता में डूबते जा रहें हैं ?
 इस उपन्यास के गुंथे हुए सौन्दर्य के अंदर पाठक वर्ग उत्तराखण्ड की राजसत्ता तले जन्म लेते हुए काली छाया वाले राक्षस को बखूबी देख सकता है | मुझे तो लगता है कि अपनी सशक्त लाक्षणिकता के साथ यह उपन्यास उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आन्दोलन की कड़वी –काली सच्चाइयों की ओर भी इशारा करता है और राज्य निर्माण के व्यर्थ हो चुके उद्देश्य और बरबाद हो चुके स्वप्न का भी साहित्यिक चातुर्य के साथ खुलासा करता है |
 उपन्यास साफ़ कहता है –‘’माराज ! आप धर्म का बाटा चलणा रैला त आपका भितर बुरै कु रागस जरमन्या नीं | जब स्वो जरमुलु ही नीं त आपकु क्वी बिगाड़ नि सकदु | पर जै दिन से अबाटा चलण बैठला त आपतैं क्वी बच्ये नि सकणयां ‘’-राजपुरैत धर्मदत्त न राजा तैं इन बिंगे |
  पूरा उपन्यास समकालीन राजनीति की सिलाई उधेड़ता हुआ नजर आता है जबकि कहानी हमेशा की पुरानी कहानी है | एक था राजा | एक थी राजकुमारी | दोनों की शादी हो गई | प्यार की कहानी भी ख़त्म हो गई | कहानी बहुत ही पुरानी,छोटी सी ,रेडीमेड और सफल कहानी है |
अपने पिता के देहांत के बाद राजा महेंद्र प्रताप शेरगढ़ राज्य की राजगद्दी पर बैठता है | सौरगढ़ एक पड़ोसी राज्य है | सौरगढ़ का राजवंश समाप्ति की ओर है | वहाँ की राजकुमारी रूपिणी राज्य संचालन कर रही है | राजा महेंद्र प्रताप के स्वर्गीय पिता ने सौरगढ़ के राजा भानु प्रताप के साथ आजीवन शान्ति संधि बनाए रखी लेकिन गद्दी पर बैठते ही राजा महेंद्र प्रताप ने पिता के शान्ति सिद्धांत को तोड़ डाला | एक राजकुमारी द्वारा शासित सौरगढ़ राज्य पर आक्रमण करके उसे अशोक का कलिंग बना दिया | निहत्थी राजकुमारी रूपिणी के साहस एवं विवेक से भरे मर्मभेदी व्यंग्य बाणों से राजा महेंद्र प्रताप अपना सर्वस्व हार गया |
 अंततः दोनों का प्रेम उनको विवाह बंधन में बाँध कर विफल हो गया क्योंकि राजा महेंद्र प्रताप ने राजनर्तकी मोहिनी के सौन्दर्य पर मोहित होकर चालबाज मोहिनी से विवाह कर लिया | राजपुरुषों के सत्ता मद और विलासितापूर्ण भटकाव का उपन्यासकार ने सफल वर्णन किया है | इस उपन्यास को पढ़ते हुए उत्तराखण्ड का जैनी प्रकरण,आन्ध्र का चर्चित राजभवन और ऋषिकेश का शीशमझाड़ी काण्ड बरबस ही याद आ जाते हैं | राजनर्तकी जब महारानी बन गई तब उसने राजा को मारकर अपने भाई दीवानू को राजा बनाने का षड्यंत्र रचा | सर्वप्रथम उसने राजा महेंद्र प्रताप के सबसे विश्वासपात्र सेनापति खडगसिंह को अपने पद से हटवाया और अपने नालायक नाकारा भाई दीवानू को शेरगढ़ राज्य का सेनापति बनवा दिया | फिर वफादार रानी रूपिणी और वफादार देश प्रेमी पूर्व सेनापति खडगसिंह को राज्य से निकलवा दिया | राजा महेंद्र प्रताप की हत्या की झूठी खबर रूपिणी के पास विशेष दूत से भेजकर उसकी परीक्षा ली गई | पतिव्रता रानी रूपिणी ने बुरी खबर सुनते ही प्राण त्याग दिए | वह भगवती देवी के रूप में देव मंदिर में स्थापित हो गई | देशप्रेमी खड्ग सिंह भी उसी सदमे से मर गया | वह देवी के वीर भड के रूप में जन मानस में प्रसिद्ध हुआ | इधर मोहिनी के भाई दीवानू ने राजा महेंद्र प्रताप की हत्या कर दी | राजा के वफादार सैनिकों ने स्वार्थी महारानी मोहिनी और षड्यंत्रकारी सेनापति दीवानू की भी हत्या कर दी |
गद्दी प्राप्त करने के चक्कर में राज भवन पूरी तरह से षड्यंत्रों की गंगोत्री बन गया | शोषक नौकरशाह जनता का खून चूसने लगे | माफियों ने जंगलों का सफाया कर वहाँ पर सीमेंट के गगनचुंबी भवनों का निर्जीव हृदयहीन जंगल खड़ा कर दिया | यह मसालेदार उपन्यास इस तरह से समाप्त होता है –‘’लोग ब्व्दन कै साल बीति गैन पर आज भी यख ढून्गे ढुंगा छन | दूर तलक क्वी डालू बोटुलु नि दिखेंद किलैकि यख कु माटू बल निरबिज्या ह्वेगि|’’
 उपन्यासकार को अपनी कहानी चुनने और बुनने की अगाध स्वतंत्रता है | मुझे यह उपन्यास आज के उत्तराखण्ड राज्य की बदहाली को केंद्र में रखकर रचनाकार की कलाकारी मालूम पड़ता है | उपन्यास स्वयं प्रमाण देकर सिद्ध करता है कि लेखक ने जितना लिखा है उससे अधिक साहित्य संसार को पढ़ा है | विश्व प्रसिद्ध लेखकों की टक्कर के कई मुहावरे रचनाकार ने अपनी साधना से गढे हैं | उपन्यास श्रेष्ठतम पुरस्कार के काबिल है लेकिन गढ़वाली भाषा का दुर्भाग्य आर्यावर्त से से भी विशाल है | इस सीमान्त पहाडी भाषा को भोटिया राजा का राज्य जानता था और करीब १३०० वर्षो तक टिहरी गढ़वाल रियासत में यह राजभाषा रही लेकिन आज भोटिया राजा का राज्य चीन में चला गया है और टिहरी रियासत का ह्रदय टिहरी बाँध में डूब चुका है | लेखक की भाषा पर पालि भाषा का गहरा प्रभाव है | अच्छा होता कि वे संस्कृतनिष्ठ गढ़वाली भाषा को प्राथमिकता देते |
 लेखक ने मुहावरों की जबरदस्त बौछार की है | बिस्या सर्प कि जिकुड़ी मा दया जरमि जौ त क्या बात छ /माया कु सूरज उदै होण का दगिडि ही अछ्लेगि छौ/माया कु बाटू भौत संगुडू होंद,यख कै भ्योल,बिठा रैंदीन |अपने नए –नए मुहावरों से लेखक पाठकों का ह्रदय जीतने में शत =प्रतिशत सफल है | लेखक बधाई के पात्र हैं इन  नएं मुहावरों के लिए बगत को पोथुलू अपड़ा पंखुडा फैले उडणु रै(वक्त का वनपंछी अपने पंख फैलाकर उड़ता रहा –समय बीतता चला गया/ क्या छलबलान्दी ज्वनि छ यींकि/मन धक-धक धकद्यंदी जिकुड़ी न कब्जैलि छौ | उत्तराखण्ड की विनाशकारी बेरोजगारी को उपन्यासकार ने इस तरह बयान किया है –‘गुरमुल्या ढूंगु जन नौकरि तैं लमडूणू आज यख, भोल वख |’
   उत्तराखण्ड की सरकार की झलक देखिए –‘जनता तैं द्वी टैम कु खाणु नि छौ अर दरबार्यों की मौज छै | लोगु तैं रौण कि जगा नि छै अर यों तैं गढ़  का  वोर –पोर का बौण का बौण साफ़ करी वुंकि जगा पर सर्ग दगडी बुलान्दी मकानि बणाया गेन |’
 बहुत समय बाद गढ़वाली में एक ताकतवर उपन्यास सामने आया है जो झकझोर देता है |
       निरबिजु गढ़वाली उपन्यास
       लेखक –डॉ ० उमेश चमोला
       प्रकाशक –विनसर पब्लिशिंग कम्पनी देहरादून ,उत्तराखण्ड

       मूल्य –६० रु 

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

पुस्तक समीक्षा  निरबिज
समीक्षक –डॉ० नन्द किशोर ढोडियाल ‘अरुण’
पुस्तक समीक्षा  निरबिजु
समीक्षक –डॉ० नन्द किशोर ढोडियाल ‘अरुण’
उपन्यासकार –डॉ ० उमेश चमोला
गढ़वाली साहित्य तैं दिशा देण मा सफल छ गढ़वाली 
             उपन्यास ‘निरबिजु’
     गढ़वाली मा निरबिजु शब्द का द्वी अर्थ हूंदिन | एक अर्थ मा इन वस्तु जैको बीज ही नि होंदो | रिखू ,ईख या गन्ना इनि घास छ जैको बीज नि होंदो | इलै जब हम गढ़वाली भाषा कि एक पहेली (आणा –भैणा) निरबिजु क्या ? पूछ्दों ,त उत्तर मिलदा रिक्खु या गन्ना | निरबिजु को दुसरो अर्थ छ इन वस्तु या जैको पैलि बीज त छयो पर परिस्थितिवश वैको बीज नष्ट ह्वेगे | हमारा उपन्यास को शीर्षक ‘निरबिजु’ को सम्बन्ध दुसरा अर्थ से छ | गढ़वाली मा निरबिजु या निरबिजि एक मुहावरा भी चा जैको प्रयोग यख गाली का रूप मा करै जांद | निरबिजु को एक औरि अर्थ भी छ बुसिलो | बुसिलो यानि चीज त छैंछ पर वैका अंदर बीज नीं छ | हमारा उपन्यासकार डॉ० उमेश चमोलान अपणा उपन्यास को शीर्षक केवल मुहावरा का रूप प्रयोग करे ‘निरबिजु’ |
  निरबिजु उपन्यास को कलेवर यद्यपि छ्व्टो छ पर कथानक या कथा येकि बहुत लम्बी छ | मात्र दस भागों मा सिमटी ये उपन्यास कि कथा एक बड़ा कालखंड कि कथा छ | जैमा राजनैतिक उथल पुथल अर राजमहलू मा होण वालि कूटनीति का वर्णन करेगे | नितांत लोककथा शैली को येको कथानक आधुनिक उपन्यास कला मा ढलेगे | उपन्यास कि कानी इन छ |
  शेरगढ़ का रज्जा महेन्द्र प्रतापन एक बार अपणा पड़ोसी राज्य सौरगढ़ जैकि इन मार काट मचै कि अपणा राज्य मा खून खराबा देखि की वखै राजकुमारी रूपिणि राजा महेन्द्र प्रताप का समिणि ऐकि रज्जा तैं प्रेम अर धर्म की शिक्षा दीन्द | जैको प्रभाव रज्जा का मन पर पड़द अर वो सेना का साथ शेरगढ़ लौटी जान्द | इनै जब रूपिणि तैं पता चलद कि रज्जा का मन पर वींकि शिक्षा को प्रभाव पडी त वो राजा का पराक्रम अर दयालु स्वभाव से वेसे मन ही मन प्रेम करण लगद | जैकु पता राजकुमारी कि दगडया कुसुम तैं लगद | त वो रूपणि तैं सलाह दीन्द कि वो अपणु प्रेमपत्र रज्जा महेन्द्र प्रताप का पास भेजो | रूपिणि उन्नी करद अर रज्जा तैं जब पता लगद वेतैं भी यो आभास हुंद कि वी भी रूपिणि से प्रेम करण लगीगे | येका बाद दुयुं को ब्यौ होंदा अर एक साल तक वो बड़ा प्रेम से जीवन बितदिन | शेरगढ़ अर सौरगढ़ कि जनता वुँका राज काज से प्रसन्न हूंद पर एक दिन राणी रूपिणि तैं एक इनौ सपना हूंद जैमा अमंगल कि छाया दिखेंद | राजा जब राणी को सुपिन्या अपणा पुरोहित धर्मदत्त जी का समिणि खुलोंद त धर्मदत्त रज्जा का जीवन मा अमंगल कि आहट बतैकि बुरा कर्म से बचण कि नसीहत देंदिन |
  कुछ समय बाद जब रज्जा अपणा दरबार मा सरा राज्य का नचाड अर गवैयों का समागम करद त एक सुंदर नौनि पर वैको दिल ऐ जांद | मोहिनि नौंकि यीं नचाड नौनि पर वो राजा इतगा मोहित हुंदा कि बिना प्रजा तैं पूछी वीं से ब्यौ कर देंद | ईंका रूप मा आसक्त ह्वे वो रज्जा राजपाट कि ओर ध्यान नि देंदु अर मोहिनि का भै दीवान तैं सेनापति बनै दीन्द | ये से रज्जा का स्वामीभक्त सेनापति खड्क सिंह तै राज्य का विणास को पूर्वाभास हुंद अर वो राणी रूपिणि का साथ जैक रज्जा तैं समझाण खुनै जान्द पर मोहिनि वूँतैं रज्जा से नि मिलण दीन्द | इने दिवान, कुछ् दरबारी अर राणि मोहिनि रज्जा तैं मारण कि साजिस रची सेनापति अर राणी रूपिणि तैं देश निकाला दे दींदिन | राज पुरोहित धर्मदत्त जब रज्जा तैं समझांद त रज्जा वे तैं भी राज्य से निकाल दीन्द | इने रज्जा राणि मोहिनि का ब्व्ल्याँ पर एक सेवक द्वारा अपणि मौत कि नकली खबर खडक सिंह अर राणि रूपिणि मुं भेजद त राणि प्राण त्याग देंदि | जब यो समाचार रज्जा का पास पौंछ्द त वैका आँखा खुलि जान्दन त वो भरा दरबार मा राणि मोहिनि तैं मार देण कु आदेश देंद |सेनापति दिवान रज्जा तै मार देंद | हौर राज्य भक्त सैनिक राणि मोहिनि अर दिवान तैं मार देंदा | सारो राज्य उजड़ जांद | धर्मदत्त पुरोहित दयखद कि जै रज्जा को इतना बडो राज्य छयो वेको निरबिजु ह्वेगे |
  उपन्यास कि कानी बड़ी रोचक अर शिक्षाप्रद छ | जैतैं  बार बार पढणा कु ज्यू करद | कानी को गठन उपन्यासकार डॉ० उमेश चमोलान बड़ा सूझबूझ अर सदीं लेखनी से करी | यी रचना का संवाद बड़ा छवटा पर वातावरण का अनुकूल छन जो उपन्यास की कथा तैं अगनै बढान्दिन |ये उपन्यास मा चार पुरुष अर तीन स्त्री पात्र छन जौंकु चरित्र पात्रानुकूल छ | रज्जा महेंद्र प्रताप वीर,बुद्धिमान पर काल का वश प्वडयूँ राणि मोहिनि को गुलाम छ | राणि रूपिणि सदृश्य कुशल शासिका,पतिव्रता दूर दृष्टि संपन्न नारि छ | कुसुम राणि कि समझदार सखी छ | राणि मोहिनि सुंदर,नचाड पर हमेशा रज्जा तैं अपणा अंगुल्यूं मा नचाण वालि खलनायिका नारि छ | जु अपणा स्वार्थ खुनै राजा अर राज्य कु निरबिजु करद | खड्क सिंह स्वामी भक्त सेनापति अर दिवान सत्तालोलुप आदिम छ | धर्मदत्त सच्चो स्पष्टवक्ता अर दूरदृष्टिसंपन्न राजपुरोहित छ | उपन्यास कि सैरि कथा तैं यी पात्र ही अगनै बढ़ादिन | उपन्यास कि कथा दुखांत छ | जैको प्रभाव पाठक का मन मा बड़ी देर तक रैंद |
 उद्देश्य की दृष्टि से निरबिजु उपन्यास एक सफल उपन्यास छ | जनकि उपन्यासकार एक खास उद्देश्य की पूर्ति ख़ुनै उपन्यास लिखद ऊनि डॉ ० चमोलान ये कल्पनापरक उपन्यास तैं इनि गति अर सामग्री सौंपि जैसे वुंको पर्यावरण संरक्षण अर गढ़ संस्कृति पोषण का उद्देश्य पूरो होंद | देश,काल अर वातावरण कि दृष्टि से भी यो उपन्यास एक सफल अर सार्थक उपन्यासों की श्रेणि मा आंद | उत्तराखण्ड कि धरति का गढ़ु अर गढू का अपणा आपस कि एतिहासिक लडै का साथ –साथ युंका सामंतों, राणी अर कर्मचारियों कि आपसी लडै को सुंदर अर भावानुकूल वर्णन उपन्यासकारन यै उपन्यास मा करि | वातावरण मा राजदरबारों को वातावरण,लडै कि विभीषिका,रज्जा रान्यूँ को पारस्परिक प्रेम –विवाद आदि तैं चित्रित करण मा उपन्यासकार सफल ह्वे |
  भाषा अर शैली कि दृष्टि से भी ‘निरबिजु’ उपन्यास अफुमा सफल उपन्यास छ | ये की भाषा विशुद्ध गढ़वाली पर नागपुरिया बोलि की आंशिक छैल मा पलीं अर बढीं छ | भाषा मा संस्कृत का शब्दू का साथ –साथ अरबी अर फ़ारसी का शब्द भी ऐ गिन| टैम अर सैड जना अंगरेजी शब्द भी ये उपन्यास मा अया छन | मुहावरा अर कहावतों को प्रयोग भी ईं गढ़वाली भाषा मा हुयूँ छ | ये का अलावा उपन्यासकारन ये उपन्यास कि भाषा मा देशज शब्द को भी प्रयोग करी | उपन्यास कि शैली भावात्मक छ | ये उपन्यास मा इन शैली को भी प्रयोग करेगै जैसे कि यो उपन्यास एतिहासिक जन लगद |
  ये तरों से ‘निरबिजु’ नौंकु यो उपन्यास उपन्यास तत्वों का आधार पर सफल उपन्यास छ | ये उपन्यास का उपन्यासकार को यो पैलो उपन्यास जरूर छ पर युंकी कथा गठन अर उपन्यास शैली से इन नि लगदु कि उपन्यासकार एक नवाड उपन्यासकार छ | इलै यदि आणा वला वक्त मा डॉ० उमेश चमोला इनि ही उपन्यास लिखीं त वो दिन दूर नीं छ जब वुंकि गणना गढ़वाली का लोकप्रिय उपन्यासकारों मा ह्वेली | जनकि गढ़वाली भाषा का पाठक जणदा होला गढ़वाली मा अबि तक अंगुल्यूं मा गनै जाणा वाला उपन्यास छन | यी विधा तैं अगर अगने क्वी बडै सकदा त डॉ० उमेश चमोला जना युग साहित्यकार ही बडै सकदी |
 डॉ० उमेश चमोला को यो बालोपयोगी उपन्यास मूलतः पर्यावरणनीय चेतना,सामाजिक सरोकार, संस्कृति अर नैतिकता का अलावा साहित्य तैं नै दिशा दींण मा सफल होलो | उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की आर्थिक सहायता से छ्प्युं अर बिनसर प्रकाशन देहरादून से प्रकाशित ये उपन्यास की कीमत मात्र साठ रूप्या छ | पेपर बैक का कलेवर मा बंध्यु अर संजीव चेतन की कुची का सतरंगी रंगु का रंग मा रंग्युं ये को आवरण पृष्ठ प्रौढ़,युवा अर बुढ्यों का साथ –साथ बच्चों तैं भी अपणा ओर खेंचद |मात्र अट्ठाईस पृश्ठु मा सिमटयां ये उपन्यास तैं भाषा को कुई पाठ्यक्रम बणा त यो प्राथमिक कक्षा का बच्चों ख़ुनै शिक्षापयोगी छ |
  ( रंत रैबार दिसम्बर २०१२ अर उत्तराखण्ड खबर सार १५ से २८   फरवरी २०१३  बटिन साभार )उपन्यासकार –डॉ ० उमेश चमोला 
गढ़वाली साहित्य तैं दिशा देण मा सफल छ गढ़वाली  


शनिवार, 9 सितंबर 2017

पुस्तक समीक्षा
डांड्यों –कांठयों अर यखै रैबास्यूं कि खैरि छ   ‘पथ्यला’
कवि –डॉ० उमेश चमोला ,   समीक्षक- यतेन्द्र प्रसाद गौड़
   सन अस्सी क दशक क बाद बिटि आज गढ़वाली साहित्य मा बंड्या कुछ लिख्येणा बि छ अर छ्प्येणा बि छ | ये से पैलि गढ़वाली साहित्य लिख्येंद त छ्या पण छ्प्येंद कम छ्या | कखि-कखिमुं बंच्येग्या त बंच्येग्या निथर सैरि लिख्युं सुच्युं एकि जिकुड़ी मा रितणू रै | जादा से जादा रै त कलम स्यांक लिख्यू जु कि पोथि पन्नो मा इ लिख्युं रैगे | पढ्दरों तलक नि पौंचि साक | यां से गढ़वाली बोली भाषा कि विकास जात्रा अगनै त बढणा रै पण जरा जरा कैकि |
    गढ़वाली साहित्य मा बड़ा बड़ा जणगुरु साहित्यकार ह्वेनि जौंन गढ़वाली बोली /भाषा मा इ अपड़ी लेखनि चलै | गढ़वाली बोली तैं भाषा कि सी अन्वार दे | वूं मध्ये स्व० भजनसिंह,स्व० कन्हैया लाल डंडरियाल,स्व० जीवानंद श्रीयाल, श्री सुदामा प्रसाद प्रेमी, यना रचनाकार ह्वेनि जौंन गढ़वाली समाज तैं अमर कृति देनि | जू आज का समै मा बुल्ये जा त अमर ग्रन्थ छन | जौं मा कविता संग्रै, गीत काव्य,खंड काव्य छन | अजर –अमर रैंयाँ  यु रचनाकारों कु सत अर तपन आज नया –नया साहित्य सृजन हुण बैठि ग्यां | बोलि/भाषा क साहित्यप्रेमी साहित्य सृजन करण बैठि गैनि| जां से गढ़वाली साहित्य कु आज का तारीख मा बड़ो रचना संसार बणि ग्ये |
   ये इ रचना संसार बिटि  एक नों औंद डॉ० उमेश चमोला जु एक दशक बिटि गढ़वाली बोलि भाषा अर संस्कृति तै अगनै बढाण मा अपड़ा महत्वपूर्ण योगदान दीणा छन | ये संग्रह से पैलि वुंको एक गढ़वाली खंडकाव्य प्रकाशित ह्वेग्ये छौ | वेक बाद एक गढ़वाली गीतुं कि अलबम ‘गौं मा’ बि प्रसारित ह्वे छौ | ‘पथ्यला’ गीत /कविता संग्रै वूँको यु तिसरु प्रयास छ | ये संग्रै मा कुछ गीत छन, त कविता बि छन | कुल मिलैक डॉ ० उमेश चमोला को यो ४४ रचनौ कु संग्रै छ |
  ‘पथ्यला’ गढ़वाली मा ये शब्द कु अर्थ हूंद ‘सूखो पात’ जु डालों बिटि झडीक भियां ऐ जांदिन | इ सूखो पात सैनों मा करलों परे ,बाटों मा चदरि सीं बिछी रंदिन | सैद आज हमर पहाड़ कि माटि अर मनिख्युं कि यन्नि कुछ हालत हवीं छ | वूँकि रचनौ मा या पीड़ साफ़ दिखेणी छ | अपड़ी मन कि ईं बिथा तैं कवि श्री चमोला जी माँ सरसुति का समणि प्रकट करणा छन | ज्वाकि वूंकि पैलि रचना छ | गढ़भूमि मा जगो-जगों पर द्यब्तों का ठौ छिन | ये ही कारण से ये थैं देवभूमि बुल्ये ग्या| वेखि की बि वंदना श्री चमोला जी कन्ना छिन |
    संग्रै मा तीसरि कविता ‘पथ्यला बोण का’ सैरि पोथी का सार प्रकट कन्न वाळी कविता छ | या रचना नई ढंग कि विषयवस्तु लेकि पढ़दरों कि जिकुड़ी परै सुबराट कन्न वाळी रचना छ | ये ई कारण से पोथिक शीर्षक बि बनि ग्ये | संग्रै मा देवभूमि क आस अर बिस्वास क कै बनिकि रंग अर अन्वार दिखणू कु मिलद छिन | तकरीबन कवितों मा राजनैतिक भ्रष्टाचार, ध्वकादारी,एक हैका रीस, ठीन्स-मीस जनि बुरै छन त हैकि तर्फ रूप सिंगार, ज्वनि कि उमंग,बसंत कि बहार बि छ |
   कवि चमोला जी कि रचनो मा गजल विधा कि बि झलक आणि छ जौं थैं कि असरदार रचना बोलि सकदों |
   मिथे वन त छंद शास्त्र क इतगा बडू ज्ञान नीं छ ,पण बंचण मा लय बंठ मा शब्द आणा छन | त बोलि सकदा कि ज्यादातर रचना छंदबद्ध छन | आखिर मा क कुछ रचना छंदमुक्त रचना छन | कुछेक रचना छिट्गा छन जु असरदार छन | छंदबद्ध रचना हिन्दी साहित्य शैली मा लिख्याँ छन | भाषा सरल अर बिम्बप्रधान छन | पोथी मा केदार घाटी अर नागपुर छेत्र कु सांस्कृतिक जीवन कि झलक दिख्येणी छ | यु बडू सुंदर लग कि कठिन शब्दों क अर्थ बि पोथी अलग से लिख्याँ छन | पोथी कु मुखपृष्ठ सुन्दर अर छ्पछुप छ |

   कुलमिलैकि ‘पथ्यला’ आखर मात्र नी छ | आखरु से अगनै कि छ्वीं छन | उम्मीद छ साहित्य की कवितों कि या बिज्वाड फूललि फललि जरूर |
         (शैल वाणी २३ जुलाई २०१३ बटिन साभार )