गुरुवार, 5 अप्रैल 2012


हर क्षण,हर पल,
करती हलचल,
मन सागर की लहरें,
मानव मन की व्यथा-कथा से उद्वेलित हो
या मृदु भावों से प्रेरित हो
ये लहरें बादल बनकर,बरस जाती हैं कागज तल पर---रचना डॉ उमेश चमोला '

बुधवार, 14 मार्च 2012


 फूल्संक्रांति पर विशेष --गीत
म्वारा-भोंरा मीठा-मीठा गीत सुनोणा;

रिंगला-पिंगला फूलों तै छन रिझोणा;
घुघुती-कफू,हिलान्स बतई गईगि,
डांडी-कांठयोन माँ बसंत आयेगी,
   सजोलयों माँ गौ माँ छोरा फूल सजोणा
   रंगमत व्हे खोलि -खोलयों माँ घोघा नचोणा
   रूखी-सुखी डांडी-कंठी सजी गईगी

 डांडी--------------------

  सर्ग साफ बादल काख लूकी गईं
  परदेसू बटी पोथला बॉडी ऐन
  रंग-बिरंगी साड़ी धारती
  पैरी गईगि
  डांडी---------------

शनिवार, 10 मार्च 2012


जनता से जुदा हो रहा हूँ में,
कुर्सी पे बैठकर
खुदा हो रहा हूँ में,
कल तक जनता का था,
अब कुर्सी का
हो रहा हूँ mei

दृष्टि से सृष्टि विचारों की;
विचारो की धारो kee
sab mitron ka swagat hai