वर्ष 1998 की बात है। डॉ. दिनेश चन्द्र भट्ट, दीपक गौड़, गोकरण बमराड़ा, गणेश डिमरी और महेन्द्र सिंह अधिकारी हम लोग श्री गुरुराम राय पब्लिक स्कूल श्रीनगर गढ़वाल में पढ़ाते थे। शाम को दिनेश चन्द्र भट्ट और मैं अलकनंदा किनारे घूमने जाते थे। श्री भट्ट जी का उस समय भी साहित्यिक रुझान था । वे भी अपनी कुछ रचनाएं मुझे सुनाते थे। वे मुझसे पूछते थे,‘‘चमोला जी! आजकल क्या लिख रहे हो ? उन दिनो मैं हिन्दी में हास्य व्यंग्य की कविताएंॅ लिखता था। साथ ही मैंने गढ़वाली में भी कुछ गीत और कविताएंॅ लिखी थी। मैंने इन्हें श्री भट्ट जी को सुनाना शुरू किया। वे मेरा उत्साह बढ़ाते रहते थे। कुछ दिनो के बाद शाम को घूमने वाली टीम में गणेश डिमरी, दीपक गौड़ और गोकरण बमराड़ा भी शामिल हो गए। गीतों को गुनगुनाने और सुनने-सुनाने का सिलसिला चलता रहा। एक दिन गोकरण बमराड़ा और दीपक गौड़ ने मुझे एक थीम दी। उन्होंने कहा कि एक ऐसा गीत लिखो जिसमें गांव के सौन्दर्य का जिक्र हो और गांव आने का आह्वान किया गया हो। श्री बमराड़ा ने एक गीतांश सुना दिया,
‘‘ टक लगैक सूण, ढोलकी चैत की,
छांछरी लगांदी बेटुली मैत की,
कबि खुदेड़ गीत, कबि सदैं लगांदी,
थड़्या चौफळों का हुलेर चौक मा,‘‘
मुझे अब इन्हीं पंक्तियों के ट्रैक पर एक गढ़वाली गीत रचना था। दो -तीन दिन में मैंने तीन-चार गीतांश बना दिए। इनमें से एक था-
‘‘गौत,तोर, दाळ, चुला मा धैरीक
कुटेरि खुल्दि छुंयों कि दगड़ा बैठीक,
लंबी रात ह्यून्द की कटिदी छुयांे मा,
तू भी ऐ जा कछिड़ी मा ह्यूंद मैनो मा‘‘
जब मैंने ये गीतांश शाम को घूमते समय दीपक गौड़,गोकरण बमराड़ा और गणेश डिमरी को सुनाए तो उन्हें यह गीत अच्छा लगा । मैंने उन्हें अपना गीत ‘गाड गदेरा, गीत सुणौणा‘, किलै नी औणू त्वैतें बुलौणा पहले ही सुना रखा था। उन्हें यह गीत बहुत अच्छा लगा था। सबका यह मानना था कि यह गीत अत्यंत मार्मिक है।
एक दिन दीपक गौड़ ने मुझे पूछा, ‘‘आपके कितने गढ़वाली गीत तैयार हैं ?‘‘ ‘बारह- चौदह‘- मैंने कहा। दीपक गौड़ ने सुझाव दिया,‘‘क्यांे न इन गानो की एक कैसेट निकाली जाए।‘‘ अब प्रश्न था, इन गीतों को गाएगा कौन‘‘ ? गोकरण बमराड़ा ने गीत की कुछ पंक्तियांे को गुनगुनाना शुरू किया। दीपक गौड़ और मैंने कहा, ‘‘ अगर इन गानो को हमारे गोकरण बमराड़ा ही गाएं तो कैसा रहेगा ? ‘‘ सबने एकमत से स्वीकृति दे दी।
मैं गुरुराम राय स्कूल में जीवविज्ञान प्रवक्ता के रूप में कार्यरत था। इस नाते जीवविज्ञान प्रयोगशाला का प्रभारी भी था। यह निर्णय लिया गया था कि छुट्टी के बाद जीवविज्ञान की लैब खोली जाएगी और रोज गीतों की रिहर्सल की जाएगी। इसके लिए हमने प्रधानाचार्य श्री बर्त्वाल जी से अनुमति ले ली। कैसेट के लिए आठ गीतों का चयन किया गया । पहला गीत गोकरण बमराड़ा और दीपक गौड़ की दी गई थीम पर आधारित था। गीत ‘गाड गदेरा गीत सुणौणा‘ और ‘ ये रौंतेळा मुलुक दोनो पलायन पर केन्द्रित गीत थे। ‘दारु तेरु ही छ सारु‘ गीत समाज में शराब के बड़ते प्रचलन पर एक व्यंग्य रचना थी। ‘भोळ पूसै कि मासंत‘ गीत लोकगीत शैली पर रचा गया गीत था। यह नायक और नायिका की मीठी नोंकझोंक पर आधारित था। एक श्रृंगार रस प्रधान गीत भी था- ‘ जब देखा, तब देखा सुपीन्यों मा ऐ जांदी, जिकुड़ी का बौण मा कुयेडि़ सीं छै जांदी, बथों सीं तू ऐ जांदी, बथों सीं तू चलि जांदी,
इस प्रकार अलग-अलग मिजाज वाले आठ गीतों का कैसेट के लिए चयन किया गया। छुट्टी के बाद इन गीतों की आठ- दस दिन तक रिहर्सल की गई। अब बारी थी इन गीतों के रिकार्डिंग की। उन दिनो नीलम कैसेट कंपनी का नाम काफी चल रहा था। हमने नीलम कंपनी को एक पत्र लिखा। यह पत्र हमने अपर बाजार श्रीनगर के एक टाइपिंग केन्द्र से इलेक्ट्रोनिक रूप से टंकित कर नीलम कैसेट कंपनी के पते पर भेज दिया। 10-15 दिन तक हम इंतजार करते रहे। वहांॅ से कोई उत्तर नहीं मिला। हमने नीलम कैसेट कंपनी के स्टूडियो जाने का निर्णय लिया । हम लोग दिल्ली के लिए रवाना हो गए। हमने जानकारी प्राप्त कर ली थी कि नीलम स्टूडियो पांडव नगर में है। दिल्ली में आइ.एस.बी.टी. के बाहर हमने पांडव नगर और नीलम स्टूडियो जाने के बारे में पता किया। एक बस परिचालक ने कहा,‘‘नीलम स्टूडियो का तो पता नहीं है किन्तु मैं तुम्हें पाण्डव नगर तक छोड़ सकता हूंॅ। मेरी गाड़ी में बैठ जाओ। हम उसकी गाड़ी में बैठ गए। एक जगह पर गाड़ी रुकी। उसने हमें उतरने का संकेत दिया। हमने वहांॅ पूछा, ‘‘नीलम स्टूडियो किस तरफ है ?‘‘ एक आदमी ने कहा,‘‘ नीलम स्टूडियो तो पाण्डव नगर में पड़ता है जो यहांॅ से बहुत दूर है। ‘‘तो यह पांडव नगर नहीं है ?‘‘- हमने कहा। वह बोला, ‘‘यह पाण्डु मोहल्ला है।
हमें पता चल गया कि पांडव नगर के भ्रम में बस का परिचालक हमें पाण्डु मोहल्ला छोड़ गया। इसके बाद हम पूछते -पूछते पांडव नगर और अंततः नीलम स्टूडियो पहुंॅच गए। वहांॅ हमने नीलम स्टूडियो के मालिक श्री कृष्ण कुमार चौधरी से संपर्क किया। उन्होंने हमें 15 दिन के बाद रिकार्डिंग की तारीख दी।
हम 15 दिन के बाद गीतों की रिकार्डिंग के लिए नीलम स्टूडियो चले गए। वहांॅ हमारी मुलाकात संगीतकार श्री राजेन्द्र चौहान और लोकगायिका कल्पना चौहान से हुई। गोकरण बमराड़ा ने गीत श्री राजेन्द्र चौहान और श्रीमती कल्पना चौहान को सुनाए। श्री राजेन्द्र चौहान जी ने हारमोनियम पर गीतों को बजाया और हमारी सोची गई धुन में परिमार्जन किया। हम आठ गानो की रिकार्डिंग करके श्रीनगर वापस लौट आए।
कुछ दिनो के बाद हमें सूचना मिली कि हमारे गानो की कैसेट ‘गौं मा‘ बाजार में आ चुकी है। हमने इसके लोकार्पण के बारे में सोचा। सोच विचार के बाद बैकुण्ठ चतुर्दशी मेले में इसके लोकार्पण करने का निर्णय लिया गया। हमने तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष श्री मोहन लाल जैन जी से संपर्क किया। वे लोकार्पण के लिए तैयार हो गए। हमने कार्यक्रम संचालन के लिए डॉ. राकेश भट्ट से बात की । डॉ. राकेश भट्ट के कुशल संचालन में कैसेट का लोकार्पण संपन्न हुआ। लोकार्पण कार्यक्रम में श्री राजेन्द्र चौहान और श्रीमती कल्पना चौहान भी शामिल हुए।
वर्ष 1998 के बाद श्री गुरुराम राय में कार्यरत हमारी टीम बिखर गई। हमारी सरकारी नौकरी लग गई। इस बीच समय ने करवट ली । ऑडियो कैसेट के बाद सीडी का जमाना आया। देखते ही देखते यू ट्यूब ने सीडी और डी.वी.डी की जगह ले ली। वर्षों के बाद गोकरण बमराड़ा और दीपक गौड़ से प्रशिक्षण शिविरों में मुलाकात होती रहती । एक मुलाकात में गोकरण बमराड़ा जी ने बताया कि उनके पास ‘गौं मा‘ कैसेट के साउंड ट्रैक की सी.डी. है। हमने उस सी.डी. को यू ट्यूब में रिकार्ड करने की योजना पर कार्य करना शुरू कर दिया। मैंने बमराड़ा जी से कहा,‘‘ ये साउंड ट्रैक मुझे ह्वट्सअप पर शेयर कर दो। बमराड़ा जी ने प्रयास किया किन्तु ये शेयर नहीं हो पाया। सितंबर 2019 में गोकरण बमराड़ा और दीपक गौड़ एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में मसाही ध्यान केन्द्र पुराना राजपुर देहरादून आए। हमने राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक श्री रमेश प्रसाद बड़ोनी से इस बात की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमें पूरे साउंड ट्रैक को अलग-अलग गीतों में तोड़ना होगा। उन्होंने लैपटाप के माध्यम से साउंड ट्रैक को अलग-अलग गीतों के रूप में तोड़ दिया। इन गीतों में से तीन गीत श्री गोकरण बमराड़ा ने मुझे ह्वट्सप पर शेयर किए। 10 सितंबर 2019 को इस कैसेट के गीतों में से एक गीत ‘गाड गदेरा गीत सुणोणा‘ को ‘अपणी पछ्याण, गढ़वाली कुमाऊं उत्तराखण्ड‘ के यू ट्यूब में अपलोड किया गया। ‘गौं मा‘ ऑडियो कैसेट के अन्य गीत भी शीघ्र ही आपके पास यू ट्यूब के माध्यम से उपलब्ध होंगे।
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