पीतवर्णी अमलताश
पीतवर्णी आभा विखेरता अमलताश
मैं उसे निहारता एकटक
जैसे उसने मेरे मन की बात
पढ़ ली हो ,
वह बोला
मेरे जीवन में ये बहार
रातों रात नहीं आई,
इस दिन की साल भर से
मैं कर रहा था प्रतीक्षा,
थर –थर कंपाती शीत लहरी हो,
आंधी हो या झंझावत का प्रबल आघात,
मैं सब सहता रहा चुपचाप,
मैं रहा दृढ और स्थिर चित्त,
मुझे पता था ये सब मेरे जीवन
में आने वाली बहार को छीन नहीं
पायेंगे,
मैं यह भी जानता हूँ धन के वहशी
रिश्तों और भावनाओं के व्यापारियों
के मिथ्यारोपों की आंधी ने
तुझे भी किया है पर्णविहीन,
इस आंधी को सहते –सहते
तेरे जीवन के चौदह साल बीत गए,
तुझे भी है अपने स्वर्ण काल की
प्रतीक्षा,
तू चिंता मत कर
तेरे जीवन का भी ख़त्म होगा वनवास,
तेरे जीवन की डाली भी होगी
मेरी तरह खुशियों के फूलों से लकदक |
---------- c डॉ० उमेश चमोला
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 26 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर।
जवाब देंहटाएं